#बजट 2019: एक कमजोर बाउंसर और मोदी ने मारा सिक्सर!

मोदी सरकार के कार्यकाल के अंतिम बजट का निष्कर्ष.

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2019 में कौन सा चुनावी मुद्दा असर करेगा, इस सवाल का जवाब इतनी तेजी से रंग बदल रहा है कि गिरगिट भी खेतों में गायब हो जाने में ही भलाई समझेगा. 2019 का लोकसभा चुनाव पांच साल पहले वाला 2014 का लोकसभा चुनाव तो कतई नहीं है. 2014 के लोकसभा चुनाव के बहुत पहले से, करीब-करीब 2011 से ही भ्रष्टाचार के मुद्दे पर यूपीए-2 की सरकार कमजोर दिखने लगी थी. और 2011 से शुरू हुई कमजोरी 2013 तक आते एकदम से सरकार की बुनियाद में बड़ी दरार में बदल गई.

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2013 में नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया और नायक के तौर पर अचानक उभरे नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए. अब 2019 के चुनाव से ठीक पहले नरेंद्र मोदी फिर से नायक बनते दिख रहे हैं, लेकिन क्या एक अंतरिम बजट में इतना कुछ हो सकता है कि देश में अचानक मजबूत होते मजदूर, किसान और मध्यम वर्ग का गुस्सा एकदम से गायब सा दिखने लगे. दरअसल, राहुल गांधी और विपक्ष की दिलचस्पी अगर क्रिकेट में जरा सी भी रही होती तो इस बदले हुए परिदृश्य से फिलहाल तो खुद को बचा ही लेते.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय क्रिकेट के पूर्व कप्तान एमएस धोनी एक जैसे ही नजर आते हैं. दोनों ही अगर क्रीज पर खड़े हैं तो मैच जीतने की हर सम्भावना बनी रहती है. अब अगर धोनी क्रीज पर खड़े हैं और लगातार 2-3 अच्छे बल्लेबाजों के विकेट ले भी लिए तो भी गेंदबाज की सतर्कता में जरा सी कमी मैच का रुख पलट सकती है. और यही भारतीय राजनीति में भी हुआ है.

राहुल गांधी के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान का प्रचार याद करेंगे तो समझ आएगा कि कांग्रेस ने एक बहुत सधी रणनीति के तहत राहुल गांधी को शिवभक्त, जनेऊधारी, ब्राह्मण के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की.

राहुल गांधी एक हद तक 2 बड़े मुद्दों पर सफल होते दिखे जब उन्होंने मोदी सरकार को किसान और मध्यवर्ग की विरोधी सरकार बताना शुरू किया. बावजूद इसके कि खुद एमएस स्वामीनाथन ने एक बड़े अखबार में सम्पादकीय लिखकर बताया कि पहली बार कोई सरकार राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिशों को लागू कर रही है, उस लेख में विस्तार से उन्होंने बताया कि नरेंद्र मोदी सरकार कैसे किसानों की बुनियादी मजबूती के लिए काम कर रही है. इस सबके बावजूद किसानों की कर्जमाफी को राहुल गांधी ने मुद्दा बना दिया.

दिल्ली और मुम्बई में किसानों का विशाल प्रदर्शन कराने में वामपन्थी दलों की किसान यूनियनें कामयाब रहीं. छत्तीसगढ़ में गंगाजल हाथ में लेकर कांग्रेस ने कर्जमाफी का वादा किया और किसानों को बोनस देने का भी. छत्तीसगढ़ से चुनाव के दौरान खबरें आने लगीं कि किसान ने उपज बेचना थाम लिया है. इसने साफ किया कि राज्य से रमन सिंह जा रहे हैं, राजस्थान में पहले से ही वसुंधरा विरोधी माहौल था और मध्य प्रदेश में 2 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ हुए बंद के दौरान हुई हिंसा और किसान आन्दोलन ने शिवराज का राज भी छीन लिया.

2017 तक कांग्रेस और भाजपा के बीच का मैच बांग्लादेश और भारत के बीच का मैच लग रहा था. 2018 में कांग्रेस एक बेहद कमजोर टीम से बराबरी का मुकाबला देने वाली टीम बन गई थी और 3 राज्यों में कांग्रेस की सरकार आने के बाद तो भाजपा के कप्तान नरेंद्र मोदी का भरोसा कितना बचा रह गया है, इस पर सवाल खड़े होने लगे थे. सब कुछ कांग्रेस के लिहाज से अच्छी स्क्रिप्ट के मुताबिक चल रहा था, लेकिन यहीं पर लगातार विकेट लेने से अतिउत्साहित राहुल गांधी, बाउंसर समझकर एक ऐसी हल्की गेंद डाल बैठे, जिसे भारतीय टीम के कप्तान रहे धोनी की ही तरह नरेंद्र मोदी ने बाउंड्री के पार भेज दिया है.

वित्त मंत्री अरुण जेटली के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यम के यूनिवर्सल बेसिक इनकम वाले प्रस्ताव को राहुल गांधी ने न्यूनतम इनकम गारंटी के लिफाफे में लपेट कर लागू करने का वादा कर डाला. आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू करके सवर्ण भावना अपने पक्ष में करने में कामयाब रहे नरेंद्र मोदी के लिए फिर से बड़ी चुनौती खड़ी हो गई थी. नरेंद्र मोदी सत्ता में हैं और किसी भी तरह के वादे पर जनता सीधा सवाल पूछती कि क्या किया और मुझे क्या मिला, ये बताओ.

विपक्ष में रहने से राहुल गांधी के पास वादे करने का असीमित विकल्प था, लेकिन जब विकल्प असीमित हो तो चुनने का खतरा भी बड़ा हो जाता है और 5-7 लाख करोड़ के बजट से लागू होने वाले यूनिवर्सल बेसिक इनकम के विकल्प को चुनने में राहुल गांधी से गड़बड़ हो गई. राहुल गांधी बेरोजगारों के खाते में 1500 रुपये देने का ही सपना दिखा रहे थे. किसानों की कर्जमाफी में मध्य प्रदेश में ढेरों गड़बड़ियां सामने आने लगी थीं और मध्य प्रदेश ही नहीं, इससे पहले उत्तर प्रदेश में भी 2-4 रुपये की किसानों की कर्जमाफी की खबरें, किसानों को और उद्वेलित कर रही थीं, लेकिन अचानक एक अंतरिम बजट ने सारा माहौल बदलकर रख दिया.

किसान, मजदूर और मध्यम वर्ग के लिए वादे नहीं, सीधे राहत मोदी सरकार ने दे दी है. अब इसे राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल सहित सारा विपक्ष भले ही जुमला बजट कहे, लेकिन भारत भावनाओं का देश है और भावनाएं कैसे भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में चली गई हैं, इसका अंदाजा, मोदी सरकार के मंत्रियों, भाजपा सांसदों और कार्यकर्ताओं के नए नारे अबकी बार 400 पार से समझा जा सकता है. आर्थिक आधार पर आरक्षण और अंतरिम बजट ने एकदम से भाजपा कार्यकर्ताओं में फिर से उत्साह का संचार कर दिया है.

हालांकि सीधे खाते में 17 रुपये प्रतिदिन को किसानों का अपमान बताकर राहुल गांधी ज्यादा बड़ी गलती कर रहे हैं, क्योंकि इन्हीं किसानों की उपज 50 पैसे किलो की खबरें देश देखता रहा है और देश के 90 प्रतिशत किसानों को हर 4 महीने पर 2000 रुपये सीधे खाते में मिलने का महत्व बखूबी पता है. लम्बे समय से बजट देखते हर चुनाव के पहले के अंतरिम बजट को चुनावी बजट ही हम लोग कहते हैं, लेकिन मुझे लगता है कि सही मायने में चुनावी बजट इस अंतरिम बजट को कह सकते हैं. मैच का आखिरी ओवर चल रहा है और कप्तान मोदी खुलकर खेल रहे हैं. धोनी वाले हेलीकॉप्टर शॉट मार रहे हैं. और, अभी अयोध्या बाकी है.

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