विवादों की ‘घाटी’ में गहरे फंसे पुलिसकर्मियों के परिवार

चंद दिनों के दौरान कश्मीर घाटी में पुलिसकर्मियों के 11 परिजनों का आतंकियों द्वारा अपहरण यहां सिर उठा रही एक नई मुसीबत का इशारा है.

WrittenBy:दानिश बिन नबी
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जम्मू कश्मीर के पुलिसकर्मियों ने अपने उच्च अधिकारियों से अपील की है कि वे कश्मीर में स्थानीय निवासियों और उग्रवादियों के परिवारों को परेशान ना करें. पुलिस की तरफ से यह अपील 11 लोगों के अपहरण के बाद आयी. सभी 11 लोग जम्मू कश्मीर पुलिसकर्मियों के रिश्तेदार थे.
कांस्टेबल शबीर अहमद जारगर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “मैं उच्च अधिकारियों (प्रमुख अधिकारियों) से अपील करता हूं कि सरकारी तंत्र कश्मीरी लोगों और उग्रवादियों के परिवारों को परेशान करना बंद कर दे क्योंकि जब हम अपने गांवों में वापस जाते है तो हमारे लिए स्थितियां बेहद ख़राब हो जाती हैं.” उग्रवादियों ने गुरुवार को रात करीब 9 बजे शबीर का अपहरण कर लिया था लेकिन जल्द ही उन्हें रिहा कर दिया.
“वे (उग्रवादी) लगभग 10 से 20 लोग थे. सभी थकान से पीड़ित थे. हालांकि, उनमें से चार ने मुझसे बात की. उन्होंने बार-बार यही कहा कि मैं उच्च अधिकारियों को सूचित कर दूं कि वे उग्रवादियों के परिवारों को और स्थानीय निवासियों को निशाना न बनाएं. मैंने उन्हें बताया कि मैं सिर्फ एक कांस्टेबल हूं और मेरी पहुंच उच्च अधिकारियों तक नहीं है,” शबीर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया.

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शबीर वर्ष 2011 से जम्मू कश्मीर पुलिस विभाग में हैं और बड़गाम जिले में तैनात हैं. उनका अपहरण पुलवामा जिले में कंगन स्थित उनके घर से हुआ. शबीर हर्निया के उपचार के बाद मेडिकल लीव पर हैं. उनका छोटा भाई भी पुलिस विभाग में है.

“उन्होंने मुझे प्रताड़ित नहीं किया और ना ही मारा पीटा, लेकिन मैं सिर्फ अपने परिवार के लिए चिंतित था. अपने परिवार के सदस्यों के बीच में होना एक सुखद एहसास है. ख़बर है कि उग्रवादियों ने कुछ और लोगों का भी अपहरण किया है, उम्मीद करता हूं कि उन्हें जल्दी रिहा कर दिया जायेगा,” शबीर ने कहा.

अपहरण

संदिग्ध उग्रवादियों द्वारा दक्षिण कश्मीर से 11 लोगों का अपहरण कर लिया गया था, ये सभी पुलिसकर्मियों के रिश्तेदार हैं.

जम्मू कश्मीर पुलिस विभाग के सीआईडी विंग के एक उच्च अधिकारी ने उन लोगों की पहचान की जिनका अपहरण हुआ. जिन लोगों का अपहरण हुआ उनमें पुलवामा जिले के त्राल, पिंगलिश से नासिर असलम, डिप्टी एसपी के भतीजे- अदनान शाह, पुलिस कर्मी रफ़ीक अहमद राथेर के पुत्र आसिफ अहमद, मिदुरा त्राल से पुलिस कर्मी ग़ुलाम हसन के पुत्र नासिर अहमद, काटपोरा, कुलगाम से डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट ऑफ़ पुलिस के भाई गौहर अहमद, कुलगाम जिले के अरवणी के एक पुलिसकर्मी के पुत्र ज़ुबैर अहमद, कुलगाम जिले के खरपोरा के एक पुलिस कर्मी के पुत्र फैज़ान अहमद, कुलगाम जिले के यरिपोरा के एक पुलिस कर्मी के पुत्र समीर अहमद राथेर और अरवणी के पुलिस कर्मी के भाई, आरिफ अहमद शामिल हैं.

हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन के कश्मीर के ऑपरेशन कमांडर, रियाज़ अहमद नाइकू, जो कि एक ट्विटर हैंडल भी ऑपरेट करते हैं, और ऐसा माना जाता है कि इसको सीमा पार से संचालित किया जाता है, ने जम्मू कश्मीर पुलिस कर्मियों को कठोर चेतावनी दी थी. उसने लिखा, “पुलिस ने हमें जैसे को तैसा वाली रणनीति अपनाने के लिए मजबूर किया. कोई बख्शा नहीं जायेगा और जो जिन्दा रहना चाहता है वो नौकरी छोड़ दे वर्ना भयानक मौत के लिए तैयार रहे.”

अधिकारी ने बताया कि 2018 से घाटी में 34 पुलिस कर्मी और 130 उग्रवादी मारे जा चुके हैं.

दूरगामी परिणाम

आम कश्मीरियों की नज़र में जम्मू कश्मीर पुलिस बल को भारत के ‘सहयोगी’ के रूप में देखा जाता है. इसी के साथ यह बहुत सारे पुलिसकर्मियों के लिए आजीविका का एक मुख्य जरिया भी है. जो पुलिसकर्मी उग्रवादियों के खिलाफ अभियान में भाग लेते हैं उन्हें खबरी माना जाता है, इसलिए इनके लिए रोने वाला कोई नहीं है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ये ‘गन्दा काम’ कर रहे हैं.

विश्लेषकों का मानना है कि जबसे हिज़्ब के पोस्टर बॉय बुरहान वानी ने एक वीडियो में यह कहा कि पुलिस कर्मियों के परिवारों को निशाना नहीं बनाया जायेगा तब से अब तक उग्रवाद के चेहरे में बदलाव आया है.

गौहर गिलानी, कश्मीर के राजनीतिक समीक्षक कहते हैं, “ऐसा लगता है कि दक्षिण कश्मीर में उग्रवादी नेतृत्व ने कथित उत्पीड़न, गिरफ़्तारी और उग्रवादियों के परिवारों के कुछ सदस्यों को पीड़ित करने का बदला लेने के लिए स्थानीय पुलिस बलों के परिजनों को निशाना बनाना शुरू किया है. अगर ऐसा जारी रहा तो इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं.”

दक्षिण कश्मीर में हाल के दिनों में एक और प्रवृत्ति देखी गयी है कि यहां के पुलिस विभाग में ज्यादातर उच्च पदस्थ पुलिस अधिकारी राज्य के मूल निवासी नहीं हैं. चूंकि वे सभी उच्च पदस्थ अधिकारी हैं इसलिए उनकी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गए हैं और उनको जान माल का खतरा भी कम है. एसपी ऑपरेशन अनंतनाग, एसएसपी कुलगाम (पहले स्थानीय थे लेकिन अब राज्य के बाहर रहते हैं), एसएसपी शोपियां, एसएसपी पुलवामा, डीआईजी दक्षिण कश्मीर, एसपी अवंतीपोरा जाहिद, सभी राज्य के बाहर से आते हैं और इनका सामना जनता के रोष से हो इसकी संभावना कम है या तभी हो सकता है जब वे छुट्टियों में घर अपने परिवारों से मिलने जाएं.

उग्रवादियों के गुस्से का निशाना निचले पदों पर तैनात कर्मचारियों या कॉन्स्टेबलों को बनना पड़ रहा है. यहां तक कि जम्मू कश्मीर पुलिस के शीर्ष अधिकारी, डीजीपी और आईजीपी भी राज्य के बाहर से हैं.

चिंता

सुरक्षा ग्रिड में तैनात एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि विभाग के अंदर कमान श्रृंखला में समझ है ही नहीं.

“जब डीजीपी ट्वीट करते हैं ‘बहुत अच्छे जवानों’, तो उसका नतीजा निचले स्तर के अधिकारियों को भुगतना पड़ता है. वरिष्ठ अधिकारियों को समझना चाहिए की वास्तव में ज़मीनी हकीकत क्या है और वहां क्या हो रहा है. उच्च पदस्थ अधिकारी जो भी सोचते हैं या करते हैं उसका सीधा असर वहां पर मौजूद अफसरों पर होता है. जमीनी हकीकत क्या है और उनके द्वारा लिए गए फैसलों का क्या असर जनता के बीच मौजूद अफसरों पर पड़ता है,” एक पुलिस अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया.

यह समझाते हुए कि कैसे घाटी में पुलिस और जनता के बीच आपसी संबंध बिगड़े, एक अधिकारी ने बताया, “जब पूर्व मुख्यमंत्री मुफ़्ती मुहम्मद सईद ने 2003-2004 में स्पेशल टास्क फ़ोर्स (उग्रवादियों से निपटने के लिए तैयार की गयी फ़ोर्स) को भंग कर दिया और उसे मुख्य पुलिस बल के साथ मिला दिया तो कानून व्यवस्था, पुलिसिंग और उग्रवाद के बीच अंतर खत्म हो गया.”

पुलिस अधिकारी के अनुसार यहीं से जनता और जम्मू कश्मीर पुलिस के बीच रिश्ते ख़राब होने लगे.

उन्होंने बताया कि जनता और पुलिस विभाग के बीच अविश्वास मूलतः यहीं से शुरू हुआ और 2008, 2010 और 2016 के हिंसक आंदोलनों ने पुलिस और आम जनता के बीच संबंधों को और भी ख़राब कर दिया.

वे कहते हैं, “जब तक कोई राजनीतिक हल यहां नहीं पहुंचता, तब तक कश्मीर पुलिस तो छोड़िये दुनिया का कोई भी पुलिस बल कश्मीर में चीज़ों को बेहतर नहीं कर सकता है. राजनीतिक समाधान कश्मीर के लिए, खासकर युवाओं के लिए बहुत जरूरी हो गया है.”

यह सब कैसे शुरू हुआ?

अपहरणों के सिलसिले की शुरुआत तबसे हुई जबसे सरकारी बलों ने दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के गांव मुनिवार्ड में ए++ आतंकवादी, अल्ताफ अहमद डार उर्फ़ अल्ताफ काचरू और उसके सहयोगी को मार गिराया. जैसे ही अल्ताफ को मारा गया उसके प्रतिशोध में उग्रवादियों ने शोपियां जिले के बोनगाम में फल बाजार के पास चार पुलिस कर्मियों को मार डाला. ये पुलिस कर्मी डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट के एस्कॉर्ट का हिस्सा थे.

मारे गए चार पुलिसकर्मियों की पहचान पन्ज़ेनारा-एचएमटी श्रीनगर के कांस्टेबल जावेद अहमद भट्ट, बारामुला के कांस्टेबल मोहम्मद इक़बाल मीर, शेख़पुरा बारामुला के कांस्टेबल इश्फाक अहमद मीर और जावूरा, शोपियां के एसपीओ आदिल मंज़ूर भट्ट के रूप में हुई.

जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बलों ने रात में छापा मारकर पुलवामा जिले के अवंतीपुरा इलाके से हिज़्बुल मुजाहिदीन के कमांडर रियाज़ नाइकू के पिता असदुल्ला नाइकू को गिरफ्तार कर लिया. असदुल्ला नाइकू के अलावा 18 युवाओं को भी पुलवामा जिले के विभिन्न इलाकों से गिरफ्तार किया गया.

सरकारी बलों ने कथित तौर पर बुधवार की रात शोपियां जिले के दो गांवों अमशिपोरा और नाज़नींपोरा में दो घरों में आग भी लगा दी. दोनों घर दो उग्रवादियों के थे. अमशिपोरा का घर शाहजहां का था जो कि जैश-ए-मुहम्मद से जुड़ा था और नाज़नींपोरा का घर सईद नवीद का था जो कि हिज़्बुल मुजाहिदीन से जुड़ा था.

आतंकवादी संगठन में शामिल होने से पहले नवीद एक पुलिसकर्मी था. उसकी तैनाती बड़गाम जिले में भारत खाद्य निगम के गोदाम में थी. वह चार राइफलें लेकर भाग गया था और आतंकवादी संगठन में शामिल हो गया.

दोनों आतंकवादियों के घरों को जलाने के बारे में बताते हुए शोपियां जिले के पुलिस अधीक्षक संदीप चौधरी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पुलिस इस मामले की जांच कर रही है. “हमें दो जिलों में दो घरों को जलाने की रिपोर्ट मिली है. हम दोनों मामलों में जांच कर रहे हैं. जांच के बाद ही सामने आएगा कि बुधवार की रात को वास्तव में क्या हुआ.”

जम्मू कश्मीर पुलिस विभाग के सीआईडी विंग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि शोपियां जिले में आतंकवादियों के घरों को जलाने के प्रतिशोध में ही अपहरण किये गए.

आतंकवादियों के घर जलाने के बाद जम्मू कश्मीर पुलिस बल के कर्मियों के आठ रिश्तेदारों का अपहरण कर लिया गया. उत्पीड़न, गिरफ़्तारी और अपहरण का एक चक्र पूरा होगा गया.

इस बीच, जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने ट्वीट करके कहा: “शोपियां में चार पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद पुलिस और सेना ने दक्षिण कश्मीर में कम से कम तीन आतंकवादियों के घरों में आग लगा दी. इसने एक सिलसिले को शुरू कर दिया, जिससे कश्मीर में गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा हो गए, जिसके एक तरफ स्थानीय उग्रवादी हैं और दूसरी तरफ स्थानीय पुलिसकर्मी.”

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