योगी आदित्यनाथ सरकार की पहचान बनती जा रही हैं, बाहर पुलिस का एनकाउंटर और जेल के भीतर माफिया की हत्या.
जब से योगी आदित्यनाथ की सरकार ने उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में गैंगस्टरों का इंकाउटर करना शुरू किया है, कई छुपे हुए बदमाशों ने डर के मारे सरेंडर करना शुरू कर दिया है. शामली में बैंक कर्मचारियों को लूटने वाले दीपक ने मुजफ्फरनगर के चरथवाल पुलिस थाने में हाल में ही सरेंडर किया. वैसे भी जेलें बदमाशों को उनके विरोधी गैंग से बचाने के लिए जन्नत मानी जाती हैं. जब तक उनके प्रति सहानुभूति रखने वाले लोग सत्ता में नहीं आ जाते, तब तक जेलें उनके लिए आरामगाह बनी रहती हैं.
यह भ्रम हाल ही में तब टूट गया जब प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल के भीतर एक और बदमाश सुनील राठी ने गोली मार कर हत्या कर दी. मुन्ना बजरंगी को एक दिन पहले ही झांसी जेल से बागपत लाया गया था. उन्हें बहुजन समाज पार्टी के विधायक लोकेश दीक्षित से 2017 में रंगदारी मांगने के एक मामले में स्थानीय कोर्ट में पेश किया जाना था.
51 वर्षीय मुन्ना बजरंगी का करियर बतौर गैंगस्टर ‘शानदार’ रहा था. उसके नाम 24 क्रिमिनल केस दर्ज थे जिसमें से ज्यादातर हत्या और रंगदारी वसूलने से संबंधित थे. 2005 में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या भी इसी में शामिल है. मुन्ना बजरंगी की पत्नी, सीमा सिंह ने दो दिन पहले ही एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके प्रशासन को गुहार लगाई थी कि उनके पति की हत्या की जा सकती है. उनका यह डर बेवजह नहीं था. “यह एक कस्टोडियल मर्डर था और इसकी साजिश उत्तर प्रदेश और जेल अधिकारियों द्वारा रची गई थी. पूर्व सांसद सहित कई लोग मेरे पति की हत्या करवाने के पीछे हैं,” सीमा सिंह ने प्रेस से कहा.
जहां सीमा अपने पति की हत्या को लेकर चिंतित थी वहीं राय की पत्नी ने अपने पति के कथित हत्यारे की हत्या पर संतुष्टि व्यक्त की. भरी दुपहरी में गाजीपुर जिले के भांवरकोल क्षेत्र में भाजपा विधायक राय की छह अन्य लोगों के साथ हत्या कर दी गई थी. कहा जाता है कि मुन्ना बजरंगी ने उन्हें एके-47 की गोलियों से छलनी कर दिया था. यह घटना नवंबर, 2005 की है.
जेल प्रशासन के लिए जबाव देना मुश्किल हो रहा है- जेल के अंदर बंदूक कैसे पहुंचा? आदित्यनाथ ने कहा है कि जेल के अंदर सुरक्षा में हुई चूक गंभीर मसला है और उन्होंने जेलर और अन्य अधिकारियों के निलंबन के आदेश दे दिए हैं. “जेल के भीतर ऐसी घटना जेल की सुरक्षा को लेकर गंभीर प्रश्न खड़े करती है. हम मामले की तह तक जांच करेंगे और जो भी इसमें जिम्मेदार होंगे, उनपर सख्त कार्रवाई की जाएगी,” उन्होंने कहा.
सुनिल राठी नाम के एक अन्य बदमाश ने मुन्ना की हत्या से जुड़े घटनाक्रम को पुलिस के सामने बयां किया है. राठी के अनुसार, वह मुन्ना से बंदूक छिनने में कामयाब रहा और उसे दस गोली मारी, जिसमें से की तीन उसकी खोपड़ी को आर-पार कर गए. एडिशनल डायरेक्टर जनरल (लॉ एंड ऑडर) आनंद कुमार ने कहा कि उससे 10 गोलियां, 2 मैगज़ीन और 22 जिंदा कारतूस जब्त किए गए हैं. 0.762 हथियार के दस खाली खोखे और कुछ जिंदा कारतूस जिला जेल के अंदर से पाए गए हैं और हत्या में इसका इस्तेमाल किया गया. बंदूक पास की नाली से बरामद हुआ है.
हालांकि जांच अभी आरंभिक स्तर पर हैं लेकिन मुन्ना की हत्या के राजनीतिक निहितार्थ खंगाले जाने लगे हैं. मुन्ना बजरंगी एक अन्य माफिया नेता मुख्तार अंसारी का करीबी था और भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में दोनों की कथित संलिप्तता की बात सामने आती है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश के इस क्षेत्र में बाहुबल का प्रदर्शन एक अलिखित नियम सा है. सारी राजनीतिक पार्टियों ने क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले लोगों को विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार बनाया था. मुन्ना ने भी चुनावी राजनीति में अपना हाथ आजमाया था. साथ ही उसकी पत्नी सीमा ने भी जौनपुर में राजनीतिक जमीन तैयार करने की कोशिश की थी लेकिन सफल नहीं हो पाई.
मुन्ना जौनपुर के पूरे दयाल गांव से ताल्लुक रखता था. 1982 में जब वह अपने किशोरावस्था में ही था, उस पर हत्या और लूटपाट का मामला दर्ज हो गया था. जल्द ही वह पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपराध की दुनिया में जाना-पहचाना नाम बन गया. ध्यान रहे इसी पूर्वी उत्तर प्रदेश में श्री प्रकाश शुक्ला, हरिशंकर तिवारी, मुख्तार अंसारी जैसे शातिर बदमाश पनपे हैं. मुन्ना का प्रभाव समूचे भारत में था.
पुलिस और विरोधी गुटों से मुन्ना की कई भिंड़त हुई लेकिन वह सबसे बच निकला. 1998 में दिल्ली में मुन्ना को यूपी स्पेशल टास्क फोर्स की गोलियों से गंभीर चोट पहुंची थी. बाद में जांच से यह बात सामने आई है कि मुन्ना बजरंगी द्वारा की गई ज्यादातर हत्याओं का कोई न कोई राजनीतिक पक्ष था. इत्तेफाक से मुन्ना की हत्या को भी राजनीतिक हितों के तहत ही अंजाम दिए जाने की अटकलें लगाई जा रही हैं.
पुलिस द्वारा दी गई आधी-अधूरी सूचनाओं के आधार पर ऐसा बताने की कोशिश हो रही है कि मुन्ना की हत्या गैंगवार का नतीजा है और इसमें कोई राजनीतिक हित नहीं हैं. मुन्ना, सुनील राठी को पहचानता था और कथित तौर पर जेल से दोनों रंगदारी का रैकेट भी चला रहे थे. दोनों के संबंध काफी अच्छे बताए जाते हैं. बताया जाता है कि राठी मुन्ना को ‘बड़ा भाई’ कहकर बुलाता था. बाद में दोनों के रिश्ते बिगड़ गए, जब मुन्ना ने राठी के एक सहयोगी से पैसों की मांग की. यह मर्डर दोनों के बीच तनातनी का नतीजा हो सकता है.
हालांकि मुन्ना बजरंगी की अंतिम यात्रा किसी हीरो जैसी रही. हत्या के अगले दिन मुन्ना के 14 वर्षीय बेटे द्वारा बनारस के ऐतिहासिक मणिकर्णिका घाट पर दाह संस्कार किया गया. बनारस की सड़कों पर सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए थे. लेकिन हत्या से संबंधित विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहे.
ऐसा लगता है कि योगी सरकार के कार्यकाल में गैंगस्टर सुरक्षित नहीं है, यहां तक कि जेल में बंद बदमाश भी नहीं.