फ्लिपकार्ट-वालमार्ट सौदा: क्यों सही है फ्लिपकार्ट का अधिग्रहण

भावुकता का चश्मा उतार कर धंधे की व्यावहारिकता के नजरिए से देखें तो फ्लिपकार्ट-वालमार्ट सौदे की जरूरत समझ आएगी.

WrittenBy:विवेक कौल
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फ्लिपकार्ट को अमेरिकी कंपनी वालमार्ट खरीदने वाली है. सौदा तय हो चुका है. आय के हिसाब से वालमार्ट विश्व की सबसे बड़ी कंपनी है. इस सौदे से संबंधित कई ख़बरें लगातार चल रही हैं. एक खबर यह भी चल रही है कि यह भारत का अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश होगा. लेकिन यह सच नहीं है. इसकी वजह बिल्कुल स्पष्ट है. फ्लिपकार्ट के दो बड़े निवेशक सॉफ्टबैंक और टाइगर ग्लोबल हैं.

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सॉफ्टबैंक जापान से है और टाइगर ग्लोबल का अमेरिका से वास्ता है. इस सौदे में वालमार्ट केवल फ्लिपकार्ट के मौजूदा निवेशकों का हिस्सा खरीद रहा है, कोई नया निवेश नहीं हो रहा है.

हाँ, यह जरूर है कि आने वाले सालों में वालमार्ट फ्लिपकार्ट में जो नया निवेश करेगा, उसे हम सही मायने में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कह सकते हैं. दूसरी खबर यह चल रही है कि एक बाहरी अमरीकी कंपनी फ्लिपकार्ट जैसी भारतीय कंपनी को खरीद रही है, और यह सही नहीं है. काफी लोगों का यह मानना है कि फ्लिपकार्ट की भारतीयता बनी रहनी चाहिए, लेकिन जैसा कि मैंने पहले बताया, फ्लिपकार्ट के बड़े निवेशक विदेशी हैं. गौर करें तो राघव बहल ने अपने कॉलम में लिखा है: “जो हिस्सेदारी बिक रही है, वो सिंगापुर की कंपनी की है, भारतीय कंपनी की नहीं.”

तीसरी खबर सचिन बंसल को लेकर चल रही है. सचिन बंसल ने फ्लिपकार्ट को बिन्नी बंसल (दोनों भाई नहीं है) के साथ मिलकर शुरू किया था. सचिन अपना फ्लिपकार्ट में 5.5% हिस्सा वालमार्ट को बेचकर करीब-करीब एक बिलियन डॉलर कमाने वाले हैं. इस होनेवाली बड़ी कमाई पर कई लोगों ने लंबा चौड़ा स्तुतिपाठ कर डाला है. लेकिन मेरा यह मानना है, कि सचिन बंसल काफी भाग्यशाली रहे और उन्हें सही समय पर वालमार्ट को अपना 5.5 % का हिस्सा बेचने का मौका मिल गया है. इस बात को गहराई से समझने के लिए हमें अर्थशास्त्र के शब्दकोश में मौजूद एक वाक्यांश समझना होगा—नेटवर्क एक्सटर्नलिटी (network externality).

इसका मतलब क्या होता है? जितने ज़्यादा लोग किसी भी नेटवर्क में शामिल होते हैं, उस नेटवर्क का मूल्य उतना ज़्यादा बढ़ जाता है. अब स्विगी जैसे एप को ले लीजिये. जितने ज़्यादा लोग इस एप का इस्तेमाल करेंगे, उतने ज़्यादा रेस्टोरेंट्स इस एप पर सूचित होना चाहेंगे. (इसका विपरीत भी सही होगा).

इसकी वजह से होता यह है कि फायदे की चिंता किये बगैर, ज्यादातर इ- कॉमर्स कंपनियां पहले अपने नेटवर्क पर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को लाने की कोशिश करती हैं. और इसके लिए ये कंपनियां छूट और ऑफर जैसे माध्यम का इस्तेमाल करती हैं. इसका खर्चा कंपनी (यानि कि कंपनी के निवेशक) उठाते हैं.

जैसे कि फ्लिपकार्ट के सीईओ कल्याण कृष्णमूर्ति ने कुछ समय पहले कहा था: “इन दिनों लाभ कमाना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं है.”
छूट और ऑफर्स की वजह से इ-कॉमर्स कंपनियां घाटे में चलती हैं. और ऐसी कंपनियों को चलाते रहने के लिए ये ज़रूरी होता है कि निवेशक नया पैसा लाते रहें और लगाते रहें.

इसके पीछे इरादा ये होता है कि लोगों को ये विश्वास दिलाया जाए कि यही एक वेबसाइट या एप है, जिस पर जाकर सामान खरीदना या बेचना चाहिए. अगर इस किस्म का विश्वास पैदा हो जाता है तो फिर कंपनी का बाजार पर एकाधिकार हो जाता है और कंपनी बहुत ज़्यादा मुनाफा कमा सकती है. कम से कम सैद्धांतिक रूप में तो यही अपेक्षा रहती है.

लेकिन हमेशा ऐसा होता नहीं है. आप फ्लिपकार्ट को ही ले लीजिये. 2016-2017 में कंपनी की आय 29% बढ़कर 19,854 करोड़ रुपए हो गयी. साथ ही साथ कंपनी का घाटा 68% बढ़कर 8,771 करोड़ रुपए हो गया. अब ये किस प्रकार का धंधा है, जहां नुकसान, आय की तुलना में तेज़ी से बढ़ता है?

जैसा कि मैंने पहले बताया, सारा का सारा किया-धरा नेटवर्क एक्सटर्नालिटी का है. फ्लिपकार्ट इस चक्कर में था कि बाजार में उसका एकाधिकार जम जाए और फिर कंपनी जम कर पैसे कमाए. फ्लिपकार्ट से पहले स्नैपडील का भी यही इरादा था. अब वह कंपनी बंद होने के कगार पर आ गयी है.

फ्लिपकार्ट के सामने अमेज़न खड़ा है. अमेज़न के पास पैसे की कोई कमी नहीं है और वो फ्लिपकार्ट को नेटवर्क एक्सटर्नालिटी के मोर्चे पर कड़ी टक्कर दे रहा है. इस माहौल में, फ्लिपकार्ट के लिए ये ज़रूरी था, कि उसके निवेशक पैसा लगाते रहें और कंपनी के नुकसान की भरपाई करते रहें. लेकिन कोई भी निवेशक असीमित समय तक पैसा नहीं लगा सकता है. इसलिए यहां ये ज़रूरी हो गया था कि फ्लिपकार्ट को एक बड़ी कंपनी जो कि अमेज़न को टक्कर दे सके, खरीद ले. इसलिए फ्लिपकार्ट के लिए वालमार्ट से बेहतर कुछ और हो नहीं सकता था.

अगर वालमार्ट फ्लिपकार्ट को नहीं खरीदता तो अगले दो-तीन साल में कंपनी स्नैपडील की तरह बंद होने की कगार पर आ सकती थी. इसलिए मेरा ये मानना है, कि सचिन बंसल भाग्यशाली रहे और समय पर उन्हें कंपनी से निकलने का मौका मिल गया है.

अगर वालमार्ट फ्लिपकार्ट को नहीं खरीदता तो अगले दो-तीन वर्ष में सचिन के 5.5% हिस्से का कुछ खास मूल्य नहीं रह जाता. वालमार्ट के आ जाने से फ्लिपकार्ट में जो लोग अभी काम कर रहे हैं, उनकी नौकरियां और कुछ सालों तक बरकरार रहेंगी. इसके अलावा वालमार्ट फ्लिपकार्ट को और भी नयी दिशाओं में ले जाने की कोशिश करेगा. इससे और भी नौकरियां पैदा होंगी. कंपनी कुछ और साल आराम से चलेगी. इससे भारत का फायदा होगा.

चौथी खबर ये चल रही है कि वालमार्ट अब फ्लिपकार्ट पर चीनी माल बेचेगा. इस बात पर काफी बवाल मचाया जा रहा है. लेकिन प्रश्न ये है कि क्या फ्लिपकार्ट अभी चीनी माल नहीं बेच रहा है? जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरण फ्लिपकार्ट की वेबसाइट और एप पर बिकते हैं, वो कहां से आते हैं?

इस किस्म का हो हल्ला वे लोग भी कर रहे हैं, जो अभी फ्लिपकार्ट पर अपना माल बेचते हैं और ये जानते हैं कि चीनी माल आने से वे उसके साथ मुकाबला नहीं कर पाएंगे. या कम से कम उनके भीतर इस बात का डर है. ये अक्षम लोग हैं, जो किसी भी प्रकार का मुकाबला, जिससे कि ग्राहक का फायदा हो, नहीं चाहते. समस्या यह है कि ऐसे अक्षम लोग गला फाड़-फाड़ कर हल्ला कर सकते हैं और अपनी बात रख सकते हैं, लेकिन ग्राहकों की सुनवाई करने वाला कोई नहीं है.

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