विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट में दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 भारत के हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने वर्ष 2016 में दुनिया के सबसे प्रदूषित 4300 शहरों की सूची जारी की है. विश्व भर में 20 सबसे प्रदूषित शहरों में 14 शहर भारत के हैं. यह कोई उपलब्धि नहीं है. अब यह न सिर्फ़ चिंता करने का विषय है बल्कि ‘कॉल टू ऐक्शन’ लेने का वक्त है.
बतातें चलें कि वर्ष 2018 की शुरुआत में पर्यावरण पर काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन ग्रीनपीस इंडिया ने एयरपोकलिप्स नामक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें 280 भारतीय शहरों के आंकड़ों को शामिल किए गए थे. इस रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया था कि 80 प्रतिशत शहरों की हवा सांस लेने योग्य नहीं है. चूंकि ग्रीनपीस सरकार के आंखों की किरकिरी है इसलिए स्पष्ट कर दूं, चाहे डब्लूएचओ की रिपोर्ट हो या ग्रीनपीस की, दोनों ही खतरनाक तस्वीर उजागर कर रही हैं. यहां तक की राज्यों के पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के आंकड़ें भी देखें तो कमोबेश यही तस्वीर उभरती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में 32 भारतीय शहरों को शामिल किया है. जबकि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मिलकर देश के 300 शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी करते हैं. फिर भी थोड़ा चौंकाने वाला तथ्य यह है कि डब्लूएचओ ने सिर्फ 32 शहरों का डेटा लिया है. अगर डब्लूएचओ थोड़ी और मेहनत करता तो लिस्ट में और भी कई भारतीय शहरों के नाम शामिल हो सकते थे!
भारतीय शहरों का हाल बेहाल
दिल्ली, वाराणसी, कानपुर, फरीदाबाद, गया, पटना, आगरा, मुजफ्फरपुर, श्रीनगर, गुड़गांव, जयपुर, पटियाला, जोधपुर और मुंबई- भारत के इन शहरों ने दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में जगह पाई है.
गौरतलब हो इसमें तीन-तीन शहर उत्तर प्रदेश (वाराणसी, कानपुर और आगरा) और बिहार (गया, पटना और मुजफ्फरपुर) के हैं. दो राजस्थान (जयपुर और जोधपुर) और एक पंजाब (पटियाला) का है. दिल्ली एनसीआर क्षेत्र मिलाकर तीन जिले. एक जम्मू और कश्मीर और महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई. लगभग सारे शहर उत्तर भारत के हैं. दक्षिण भारतीय शहरों के नाम न आने पर कर्नाटक पल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के चेयरमैन लक्ष्मण ने एनडीटीवी को इसके कारण बताये. उन्होंने कहा, “हमने बस डे, लेस ट्रैफिक डे जैसे मुहिम चलाए हैं. सार्वजनिक परिवहन पर बहुत जोर दिया गया है. साथ ही जागरूकता कार्यकर्मों से भी लाभ मिला है.”
केरल और आंध्र प्रदेश में भी इसी तरह के कैंपेन की शुरुआत हुई है. प्रदूषित क्षेत्रों को चिन्हित कर वहां से कारखानों को दूसरे क्षेत्रों में शिफ्ट किया गया है.
दिल्ली और मुंबई में प्रदूषण के स्तर की चिंता राष्ट्रीय चिंता बन जाती है पर सूची में आये बाकी 12 शहरों में प्रदूषण का क्या हाल है, यह राजकीय स्तर पर भी विमर्श का विषय नहीं बन पाया है. क्लाइमेट चेंज के संदर्भ में कार्बन उत्सर्जन की बात आती है. विकासशील और विकसित देशों के बीच रार की वजह यही होती है कि किसे कार्बन उत्सर्जन रोकने में जरूरी पहल करनी चाहिए. विकासशील देशों का कहना होता है कि उन्हें अपने लोगों का विकास करना है इसीलिए उन्हें कार्बन उत्सर्जन में रियायत मिलनी चाहिए.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट भारत के भीतर ठीक ऐसी ही स्थिति की ओर इशारा कर रही है. दिल्ली और मुंबई को छोड़कर ज्यादातर शहरों में नए उद्योग कारखाने लग रहे हैं. मसलन बिहार के तीन शहरों पर गौर करें- गया, पटना और मुजफ्फरपुर. ये शहर दिल्ली और मुंबई के विकास के तरीके अपना रहे हैं. लिहाजा ट्रैफिक की समस्या से निपटने के लिए फ्लाईओवर, खनन का काम फल-फूल रहा है, इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास आदि. लोगों के लाइफ स्टैंटर्ड में बड़ा बदलाव दर्ज किया जा रहा है. बताते चलें यहां गाड़ियां तेजी से बढ़ तो रही हैं लेकिन सीएनजी स्टेशन नहीं हैं. न ही यह राज्य सरकार की वरीयता में है.
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम
हालांकि वायु प्रदूषण की समस्या से निपटने की दिशा में पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक बड़ा फैसला लेते हुए देशभर में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) बनाया है. आगामी 17 मई तक इस कार्यक्रम के ड्राफ्ट पर फीडैबक भी मांगा गया है. अगर सरकार इस कार्यक्रम को गंभीरता से लागू करती है तो यह वायु प्रदूषण से निपटने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है.
इस कार्यक्रम में वायु निगरानी के लिये मॉनिटरिंग नेटवर्क को बढ़ाने की बात कही गयी है. अभी फिलहाल 4000 भारतीय शहरों में से सिर्फ 303 शहरों में 691 मैन्यूअल वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशन है, जिसे प्रस्तावित राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम में 1000 करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके साथ ही फिलहाल ग्रामीण भारत में कहीं भी वायु गुणवत्ता की निगरानी की व्यवस्था नहीं है, लेकिन इस कार्यक्रम में 50 नए निगरानी केन्द्र ग्रामीण भारत में लगाने का प्रस्ताव है.
लेकिन शुरुआत में आरटीआई से प्राप्त एनसीएपी के ड्राफ्ट में उत्सर्जन को आने वाले तीन साल में 35 प्रतिशत और पांच साल में 50 प्रतिशत तक कम करने की बात कही गयी थी. जब लोगों के फीडबैक के लिए इसे सार्वजनिक किया गया तो इसमें से स्पष्ट समय सीमा को हटा दिया गया. इसके साथ ही इस कार्यक्रम में उद्योग और कोयला थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले वायु प्रदूषण को लेकर कोई स्पष्ट लक्ष्य नहीं रखा गया, जो कि केन्द्र सरकार के अधीन आते हैं.
पर्यावरण मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम के भीतर 100 अयोग्य शहरों को चिन्हित किया है. वायु प्रदूषण से निपटने के लिये शहर केन्द्रित योजना के साथ-साथ क्षेत्रीय स्तर पर योजना बनाने की जरूरत है. उदाहरण के लिये यदि दिल्ली के वायु प्रदूषण को कम करना है तो सिर्फ दिल्ली के भीतर मौजूद प्रदूषकों से निपटने के साथ-साथ आसपास के क्षेत्रीय प्रदूषण कारणों को भी हल करना होगा. हालांकि इस कार्यक्रम में डब्लूएचओ रिपोर्ट में शामिल सबसे प्रदूषित 14 शहरों में से 3 शहर गया, पटना और मुजफ्फरपुर गायब हैं. वहीं उत्तर प्रदेश के सिर्फ 15 शहरों को इसमें शामिल किया गया है, जबकि यूपी के 24 जिलों के वायु गुणवत्ता के आंकड़ें बताते हैं कि हवा की स्थिति खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है.
अगर हम कुछ साल पहले के आंकड़ों को देखें तो हम पाते हैं कि 2013 में विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में चीन के कई शहरों के नाम आते थे, लेकिन बीते सालों में चीन के शहरों ने कार्ययोजना बनाकर, समयसीमा निर्धारित करके और अलग-अलग प्रदूषण कारकों से निपटने के लिये स्पष्ट योजना बनाकर वायु गुणवत्ता में काफी सुधार कर लिया है. राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम में प्रदूषण को कम करने के लिये स्पष्ट लक्ष्य और निश्चित समय सीमा को शामिल करना जरुरी है.
डब्लूएचओ की रिपोर्ट भी बताती है कि 70 लाख लोगों की पूरी दुनिया में मौत बाहरी और भीतर वायु प्रदूषण की वजह से होती है. बाहरी वायु प्रदूषण की वजह से 42 लाख मौत 2016 में हुई, वहीं घरेलू वायु प्रदूषण जिसमें प्रदूषित ईंधन से खाना बनाने से होने वाला प्रदूषण शामिल है से 38 लाख लोगों की मौत हुई.
वायु प्रदूषण से मरने वाले लोगों में 90 प्रतिशत निम्न और मध्य आयवर्ग के देश हैं जिनमें एशिया और अफ्रीका शामिल है. जाहिर सी बात है कि भारत जैसे विकासशील देशों में जहां सबसे ज्यादा निम्न और मध्य आयवर्ग के लोग रहते हैं, वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है. प्रदूषण नियंत्रण पर सरकार की लापरवाही लाखों लोगों की मौत की वजह बन रही है.