अन्ना हजारे पार्ट टू: सर्वहित पर भारी निज हित

स्थानीय समर्थन का अभाव और संगठनों को बिना भरोसे में लिए एकतरफा आंदोलन की घोषणा करना अन्ना हजारे को भारी पड़ा.

WrittenBy:अमित भारद्वाज
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बुधवार, दोपहर दो बजे के आस-पास, दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक व छात्र संसद मार्ग की ओर मार्च कर रहे थे. यह मार्च यूजीसी द्वारा विश्वविद्यालयों को स्वायत्तता प्रदान किए जाने के खिलाफ था. सड़क पर छात्रों की संख्या 1000 के आस-पास रही होगी.

यहां से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर, सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के भूख हड़ताल का पांचवा दिन था. यह हड़ताल ऐतिहासिक रामलीला मैदान में चल रही थी जहां करीब 700 लोग (ज्यादातर अलग-अलग राज्यों से आए किसान हैं) टेंट के नीचे बैठे थे. यहीं पर चार-पांच टीवी चैनल अन्ना हजारे की प्रेस कॉन्फ्रेंस का इंतजार कर रहे थे. हालांकि, हजारे के डॉक्टर धनंजय पोटे ने मीडिया को सूचित किया कि उनका स्वास्थ्य नाजुक है और उन्हें न बोलने की सलाह दी गई है. भूख हड़ताल में मौजूद कम भीड़ और आमरण अनशन में अन्ना की बिगड़ती हालत को लेकर लोगों में चिंता थी. 2011 की तरह, जब अन्ना के एक बुलावे पर दिल्ली और देश के विभिन्न भागों से हजारों प्रदर्शनकारी दिल्ली आ गए थे और समूचा मीडिया रामलीला मैदान पहुंच गया था. लेकिन यह आंदोलन उस तरह का नहीं है.

बिना रणनीति के किसानों का प्रदर्शन, किसान संगठनों में बेहतर तालमेल का अभाव, अनुभव की कमी वाली कोर कमेटी- कम भीड़ जुटने के ये सभी कारण हैं. और काफी हद तक पांचवें दिन तक इस खराब शो के लिए अन्ना खुद भी जिम्मेदार थे. उन्होंने पक्षकारों को भरोसे में लिए बिना ही एकतरफा आंदोलन का ऐलान कर दिया था.

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मुख्य रूप से हजारे की केंद्र सरकार से तीन प्रमुख मांगें थी- एक सशक्त कृषि नीति, लोकपाल की नियुक्ति और चुनाव सुधार. केंद्र सरकार ने 82 वर्षीय अन्ना को आश्वस्त किया है कि वे उनकी मांगों को पूरा करने के लिए सारे जरूरी कदम उठाएंगे. गुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस इस सिलसिले में अन्ना से मिले. उन्होंने अन्ना को पानी पिलाकर उनका अनशन समाप्त करवाया.

केंद्र सरकार का प्रतिनिधि भेजने की बजाय सोमवार को भाजपा ने महाराष्ट्र के मंत्री गिरिश महाजन को बातचीत के लिए भेजा. इसके बाद देवेंद्र फड़नवीस को भेजकर भाजपा ने एक संकेत यह भी दिया कि भाजपा अन्ना के आंदोलन को राष्ट्रीय होने के बजाय स्थानीय मुद्दों तक सीमित कर देना चाहती है.

इसी बीच हजारे के प्रदर्शन स्थल पर राष्ट्रीय किसान महासभा (आरकेएम), जिसके अंतर्गत पचासों संगठन आते हैं, आंदोलन में शामिल हुए. हालांकि, आरकेएम के एक वरिष्ठ नेता ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा कि पचासों संगठनों के बावजूद केवल तीन या चार संगठनों ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया है. पंजाब का भारतीय किसान यूनियन एकता- सिद्धुपुर और मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ (आरकेएमएस) की आंदोलन में सक्रिय भागीदारी है.

“हम लोग अन्नाजी के संपर्क में 21 मार्च को आए. यह प्रदर्शन का बहुत ही गलत समय है,” आरकेएम के कंवेनर शिव कुमार शर्मा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया. “यह राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के कुछ हिस्सों में कटाई का समय है. आप किसानों से इस वक्त खेत छोड़कर आंदोलन में आने को नहीं कह सकते.” शर्मा ने कहा कि ये बातें अन्ना हजारे के सामने भी रखी गई थीं.

हजारे के कोर टीम के सदस्य पीएन कल्की ने माना कि उन्हें मालूम है कि प्रदर्शन का वक्त थोड़ा अजीब है.  उन्होंने पिछले साल अक्टूबर में ही तय कर लिया था कि भगत सिंह के शहीदी दिवस के मौके पर अन्ना दिल्ली में अनशन पर बैठेंगे. हमारे पास किसान संगठनों के साथ सहभागिता के अलावा कोई विकल्प नहीं था. हजारे के 24 सदस्यीय गैर सरकारी संगठन- भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन न्यास (बीवीजेएएन) की स्थापना वर्ष 2018 में हुई. वह भी ऐसे चेहरों के साथ, जिन्हें बहुत कम लोग जानते हैं. स्पष्ट तौर पर यह गैर अनुभवी टीम कृषि संगठनों के साथ समन्वय बना पाने में सफल नहीं हो पाई.

आरकेएम के शर्मा ने ध्यान दिलाया कि हजारे के मांगों की सूची किसान संगठनों की मांगों से कथित तौर पर मेल नहीं खाती. “इनके डिमांड्स भी अटरम-शटरम हैं. किसान संगठनों से बात करके अगर मुद्दे और मांगे तय की गई होती तो ये डिमांड्स अलग तरह के होते.” शर्मा ने कहा कि गैर सरकारी संगठन के लोगों ने अन्ना को दिल्ली आने के लिए मनाया और अब देखिय यह स्थिति.

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हजारे ने किसानों के लिए चार सूत्रीय मांगें रखी हैं, जिसमें एक संवैधानिक संस्था- कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेज़ (सीएसीपी)- बनाने की भी मांग की है. यह सरकारी दबावों से मुक्त होना चाहिए. वे 60 वर्षीय व ज्यादा के उम्र के उन किसानों को 5000 रूपए की पेंशन दिलवाना चाहते हैं जिनकी जीविका कृषि पर आधारित है. उनकी तीसरी मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य को सी3+50 पर्सेंट फॉर्मूला पर जोड़ने की मांग शामिल है. चौथी मांग है कि सभी किसानों को अनाज का बीमा दिया जाय.

सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य और लोकपाल बनाने की मांग मान ली है. चुनाव सुधार के मुद्दे को सरकार ने कहा है कि यह चुनाव आयोग का मसला है तो वे अन्ना की मांग को आयोग के पास पहुंचा देंगे. अन्ना ने घोषणा की है कि अगर सरकार ने छह महीने के बीतर उनकी मांगे पूरी नहीं की तो वे फिर से अनशन पर बैठेंगे.

जब कल्की से मांगों को तय किए जाने की प्रक्रिया के बारे में पूछा गया उन्होंने कहा, “अन्ना के काम करने और सोचने का अपना तरीका है.” इस आंदोलन की रूपरेखा कैसे तैयार हुई यह देखिए- 2 अक्टूबर, 2017 को अन्ना राजघाट आए और बड़ा आंदोलन करने का आश्वासन दिया. “6-7 अक्टूबर को रालेगण सिद्धी में 70 लोगों का एक वर्कशॉप हुआ. बातचीत के दौरान तीन मुद्दे तय किए गए थे,” कल्कि ने कहा.

कोर टीम के एक अन्य सदस्य ने अपना नाम न छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “भावनाओं में आकर उन्होंने तय कर लिया कि भगत सिंह के शहीदी दिवस पर अनशन पर बैठेंगे. मुझे लगता है उनको लगा कि ये उनके जीवन के अंतिम आंदोलनों में से एक होगा- हेल्थ इश्यू या कुछ दुर्भाग्यपूर्ण हो उससे अच्छा है कि या तो व्यवस्था परिवर्तन कर दें या आंदोलन में ही शहीद हो जाएं.”

अन्ना से कटाई के समय में आंदोलन की तिथी के बारे में बात की गई थी और उनसे आंदोलन को प्रीपोन कर फरवरी में करने का आग्रह किया गया था.

महत्वपूर्ण है कि आरकेएम ने दिल्ली घेराव का आयोजन 23 फरवरी को किया था जहां आठ अलग-अलग स्थानों से राष्ट्रीय राजधानी में लोग आने वाले थे. लेकिन वे सभी अलग-अलग राज्यों में हिरासत में ले लिए गए.

22 फरवरी को सैकड़ों किसानों को चीमा मंडी, संगरूर में कथित तौर पर हिरासत में लिया गया. तब से ही वे मंडी में रुके थे. 59 साल के जगजीत सिंह ने 20 मार्च को अपनी भूख हड़ताल शुरू किया. उसी दिन वे हजारे के आंदोलन में शरीक होने रामलीला मैदान के लिए आए थे. आठ दिन के भूख हड़ताल के बाद, सिंह ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, “बेहतर है कि इस देश में किसानों के लिए ठोस कानून बनवाने के लिए प्राण न्यौछावर कर दूं. पंजाब और बाकी देश में, कर्ज की वजह से किसान आत्महत्या कर रहे हैं.” सिंह आगे कहते हैं, “अगर में खुद जान देकर दो किसानों को आत्महत्या करने से बचा पाया तो कम से कम मैं एक किसान की जान बचा पाऊंगा.” सरकार की खामोशी और टेंट में लोगों की संख्या से चिंतित हुए बिना सिंह कहते हैं, “यह इस देश के किसानों को बचाने की लड़ाई है.”

हजारे की एक मांग चुनाव सुधारों से संबंधित भी थी. साथ ही वे राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह को उम्मीदवारों की तस्वीरों से बदलना चाहते हैं. इससे उनका मानना है कि चुनावी लोकतंत्र में राजनीतिक दलों की अहमियत कम होगी. वे नोटा को राइट टू रिजेक्ट में बदलवाना चाहते हैं. उन्होंने राइट टू रिकॉल पर फिर से जोर दिया- यह मुद्दा इंडिया एगेनस्ट करप्शन मूवमेंट की मांगों में भी शामिल था.

हर बीतते दिन के साथ अन्ना की तबियत बिगड़ती जा रही थी. आंदोलन आगे बढ़ाने की योजना और इसमें लोगों की सहभागिता इतनी कम थी कि केंद्र सरकार के लिए ज्यादा चिंता की बात नहीं थी. हालांकि, आयोजकों का मानना था कि गुरुवार से आंदोलन जोर पकड़ेगा लेकिन उससे पहले ही सरकार ने आधा-अधूरा मानकर आंदोलन को खत्म करवा दिया. गुरुवार को मध्य प्रदेश और पंजाब से बड़ी संख्या में किसान पहुंचे थे.

हालांकि, किसान संगठनों के साथ बेहतर योजना व सहभागिता न बनाने में हजारे की भी रजामंदी लगती है. गौरतलब है कि हजारे राजनीतिक दलों पर निशाना साध रहे हैं और राजनीतिक दलों को आंदोलन में शामिल करने की मनाही पर उनका मत स्पष्ट है. जब से केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार आई है, मजदूरों और किसानों के जितने भी सफल आंदोलन हुए हैं सभी राजनीतिक व गैर राजनीतिक संगठनों के संयुक्त प्रयास से किए गए हैं.  भूमि अधिग्रहण बिल के विरोध से लेकर ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम के अंतर्गत किए गए आंदोलन सभी केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में हुए थे.

यहां तक कि योगेन्द्र यादव का कृषक समन्वय समिति भी दिल्ली की सड़कों पर बड़ी संख्या में किसानों को उतारने में सफल हुआ था. हाल ही में हुआ महाराष्ट्र किसानों का आंदोलन वामपंथी दलों के समर्थन से सफल हो सका था. ऐसे संगठनों से दूरी बनाना, जिसका मतलब है ज़मीन पर लोगों का संगठित न होना.

हजारे के पहले आंदोलन के बाद अरविंद केजरीवाल का उभार और आम आदमी पार्टी की स्थापना ने हजारे को भीतर से डरा दिया है. वे अपनी गलती को सुधारना चाहते हैं, अपने कंधों से केजरीवाल का भार हटाना चाहते हैं. यही कारण है कि अन्ना किसी भी राजनीतिक दल को हड़ताल में शामिल होने देना नहीं चाहते, कोर कमेटी के एक सदस्य ने बताया. हालांकि उन्होंने माना कि इस शर्त की वजह से उन्हें नुकसान भी उठाना पड़ा.

अगर रामलीला मैदान में किसान संगठन भीड़ जुटाने में कामयाब हो भी गए तो, इस बात को मानने में कोई गुरेज नहीं होगा कि इस आंदोलन से सिर्फ अन्ना का लक्ष्य पूरा होना है.

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