कांग्रेस इस समय विश्वसनीयता के संकट से जूझ रही है और इससे पार पाने के लिए पंजाब मॉडल सही दिशा में बढ़ाया गया क़दम सिद्ध हो सकता है.
16 दिसंबर, 2017 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लिए एक ऐतिहासिक दिन था. इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि कांग्रेस और मीडिया ने हमें ऐसा भरोसा दिलाने की कोशिश की. यह लंबे समय से प्रतीक्षित राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी का दिन था. हालांकि यह सर्वविदित था कि एक न एक दिन कांग्रेस की कमान राहुल गांधी के हाथों में आनी ही थी. पर यह ऐसे समय में संभव हुआ है जब राहुल के आगे चुनौतियों की लंबी फेहरिस्त है. सबसे बड़ी चुनौती है 2014 चुनावों में हाशिए पर पहुंच गई कांग्रेस की वापसी करवाने की. लेकिन कांग्रेस में पंजाब की जीत से कई काम की बातें कांग्रेस सीख सकती है.
केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा अपने मिशन ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ में एक हद तक ही सफल हो पाई है. इसका तात्पर्य यह नहीं है कि कांग्रेस तस्वीर से पूरी तरह साफ हो गई है. पार्टी विद डिफरेंस का दावा करने वाली भाजपा भी खुद को सत्ता के खामियों से बच नहीं पाई है. कांग्रेस आज भी राष्ट्रीय फलक पर मुख्य विपक्षी के रूप में मौजूद है. साथ ही राजनीतिक परिदृश्य बदलने की स्थिति में कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी के भविष्य में प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं भी खारिज नहीं की जा सकतीं. यह 2019 या 2024 में होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता. लेकिन 47 वर्षीय राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की संभावनाओं को पर जरूर लग गए हैं.
सिर्फ संभावनाओं और भाग्य के सहारे पार्टी का पुनरुत्थान नहीं होगा और न वे इसके बदौलत भारत के प्रधानमंत्री बन पाएंगे. निश्चित तौर पर उसके खिलाफ तो बिल्कुल नहीं जो हर चुनाव के बाद अपराजेय होता जा रहा हो. गुजरात के चुनाव को ही देख लीजिए, राहुल के सितारे चमके जरूर हैं लेकिन अभी भी पूरी तरह से उनके साथ नहीं हैं. राहुल गांधी को अपनी पार्टी के लिए आने वाले 20 वर्षों की कार्ययोजना तैयार करनी होगी. पहला, भाजपा के सामने सशक्त विपक्ष खड़ा करने का और फिर कांग्रेस को शासन के नजरिए से विश्वसनीय बनाने का. जब इस वक्त राहुल का नया चेहरा गढ़ा जा रहा है, मैं इस लेख में देश की सबसे पुरानी पार्टी के लिए कुछ दिशानिर्देश देना चाहता हूं. इसका गुजरात और हिमाचल के चुनावों से कोई लेना-देना नहीं है.
अब कांग्रेस के पास राहुल गांधी के रूप में एक नया चेहरा है. ऐसे में उसे अपने एक विश्वसनीय और भरोसेमंद “मॉडल” की जरूरत है. वे नरेंद्र मोदी और भाजपा की नीतियों की आलोचना करते रह सकते हैं लेकिन वोटर की जिज्ञासा इसी बात में है कि आज कांग्रेस कहां खड़ी है? यह मेरी सामान्य समझ है कि मूल कांग्रेसी वोटर अपनी पार्टी के प्रति निष्ठावान है, चाहे जो हो जाए. ये गैरकांग्रेसी वोटर होते हैं जो वोट प्रतिशत की उलटफेर करते हैं जिससे जीत मुक्कमल हो पाती है.
मैंने महसूस किया है कि गैर काडर वोटर विचारधारा या दलगत राजनीति से परे जाकर उम्मीदवार के हिसाब से अपना वोट तय करता है. आज का युवा इस बाबत अनभिज्ञ है कि कांग्रेस ने पहले क्या किया या स्वतंत्र भारत के 70 वर्षों में क्या नहीं किया. मोदी और भाजपा वोटरों को कांग्रेस की गलतियां और भ्रष्टाचार की याद दिलाते रहते हैं. इसलिए कांग्रेस को चाहिए कि राहुल के जरिए वो एक साकारात्मक विमर्श लोगों के बीच लेकर जाएं. उन्हें यह बताए कि वे सत्ता में आने पर भाजपा से क्या अलग कर सकते हैं. इसे करने का सबसे अच्छा तरीका है कि वे किसी एक राज्य को उदाहरण के तौर पर पेश करें. उस राज्य को जिसमें आप सत्ता में हैं. एक प्रभावी राजनेता को पोषित करें. शासन पर जोर दें. वो करें जो आप समझते हैं कि भाजपा नहीं कर सकती या नहीं कर रही है. अंत में यही चीज मायने रखती है. लब्बोलुआब में कहें तो यह मॉडल राज्य होगा! और इस मॉडल का देशभर में बखान किया जाए!
आज कांग्रेस के लिए विश्वसनीयता कायम कर पाना सबसे बड़ी चुनौती है. कोई ऐसा राज्य नहीं है जिसे कांग्रेस की सफलतम कहानी के तौर पर पेश किया जा सके. पांच साल पहले कर्नाटक में भाजपा को रोककर कांग्रेस के पास एक स्वर्णिम अवसर था. लेकिन कांग्रेस ने अपने प्रदर्शन से निराश किया है. 2018 में कर्नाटक चुनाव होंगे पर कांग्रेस अपना समर्थन खो चुकी सी लगती है.
अगर मान कर चलें कि कर्नाटक हाथ से निकल गया है तो राहुल को अपना पूरा ध्यान पंजाब पर लगा देना चाहिए. एक राज्य जहां कांग्रेस ने 2017 में अकाली-भाजपा गठबंधन के खिलाफ चुनाव जीता है. अभी पंजाब चुनाव होने में चार साल की दूरी है, यहां कांग्रेस को अपनी क्षमता दिखाने का भरपूर मौका है. यहां से निकल सकता है “पंजाब मॉडल”.
कांग्रेस के लिए खोने को कुछ नहीं है लेकिन पाने के लिए बहुत कुछ है. कांग्रेस ने भाजपा-अकाली सरकार के भारी असंतोष के बाद सत्ता काबिज की थी. पंजाब में एक प्रभावशाली मुख्यमंत्री है. पंजाब बाकी राज्यों के मुकाबले अमीर भी है. कृषि और उद्योगों की स्थिति भी बाकी राज्यों से बेहतर है. इस वजह से कांग्रेस के लिए एक बेहतर शासन का मॉडल दे पाना मुश्किल नहीं है. राहुल को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पंजाब के मुख्यमंत्री को कांग्रेस का सहयोग मिले और 2022 तक वे आर्थिक उन्नति के मामले में पंजाब को सर्वश्रेष्ठ राज्य बना दें. फिर चुनाव में पंजाब मॉडल के इर्द-गिर्द राजनीतिक विमर्श को रखा जा सकता है.
मार्केटिंग की दुनिया में एक वाक्य काफी मशहूर है- ‘वन थ्री, फाइव मेनी.’ इसका मतलब है पहले उत्पाद को मार्केट में लॉन्च किया जाए, उसे सफल बनाया जाए और फिर तीसरे, पांचवें और कई बाजारों में ले जाया जाए. मैं कांग्रेस को ऐसा नहीं कर पाने के लिए कोई कारण नहीं पाता. पंजाब को सफल बनाने के बाद छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में पकड़ बनाने में मदद मिलेगी जहां 2023 तक सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ असंतोष के स्वर मुखर होंगे. तीन से पांच राज्यों में कांग्रेस अपना झंडा बुलंद कर राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर चुनौती पेश कर सकती है.
इसी वर्ष उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत से खीजे उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया था कि विपक्ष को 2019 भूल जाना चाहिए और 2024 की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए. 2022 तक पंजाब मॉडल तैयार कर कांग्रेस देश भर में एक संदेश दे सकती है. या फिर ठहरकर भाजपा के भीतर किसी बड़े विस्फोट का इंतजार कर सकती है.