उलझे और जटिल समय में काज़ुओ इशिगुरो का साहित्य दुनिया को थोड़ा सरल, थोड़ा स्नेह की जगह बनाता है.
आज काज़ुओ इशिगुरो को नोबेल पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई. सजीव प्रसारण में उनका नाम सुनना बहुत अच्छा लगा. साहित्यिक जीवन के शुरुआती दिनों में इनकी किताबों से परिचय हुआ था. भला हो ‘अस्सी’ की ‘हारमनी’ का, उस दुकान से हमें भाषाई दुनिया का हर नायाब हीरा मिला.
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Contributeसबसे पहले इनकी किताब ‘दि रिमेन्स ऑफ द डे’ पढ़ने को मिली थी. वह मुहाने की किताब है. जहां सभ्यताओं का मुहाना मिलता है, जहां कार्य-संस्कृति के दो मुहाने मिलते हैं. और उससे भी ऊपर वह किताब पुरानी पड़ती जा रही उस धारणा का उत्कृष्ट उल्लेख है जिसे ‘कर्तव्यपारायण होना’ कहा जाता है. यह स्टीवेंस नाम के एक ऐसे बुजुर्ग की कहानी है जो एक बड़े घराने में प्रमुख नौकर (बटलर) है. उस घर की सारी जिम्मेदारियां उसकी है, जिसमें बाकी नौकरों से काम लेना भी शामिल है.
एक दृश्य है जिसमें दूसरे विश्वयुद्ध के ठीक पहले जर्मनी के ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और अमेरिका के संबंधों पर बातचीत के लिए एक अनौपचारिक गोष्ठी बुलाई गयी है. घर का पुराना मालिक, जिसकी स्मृति के बहाने यह किताब लिखी गयी है, इतना रसूखदार है कि इन देशों के बड़े-बड़े अधिकारी इसी के घर रुकते हैं और गोष्ठी भी वहीं होनी है. यही वो जगह है जहां जर्मनी का भाग्य तय होता है. उस कहानी को आप लोग किताब में ही पढ़े लेकिन जिस बात का जिक्र करना चाहता था, वह है स्टीवेंस का किरदार. इस अति महत्वपूर्ण मीटिंग में एक आयोजन संबंधी जिम्मेदारी स्टीवेंस पर पड़ती है, मालिक भरोसा दिखाता है. उसी चारदीवारी के एक कमरे में उसका पिता अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है. बेटा जाता है, मिलता है, लाचार सा मिलन है ये, दूसरों को पिता की देखभाल सौंपता है और खुद काम पर वापस लौट आता है.
दरअसल यह उपन्यास उस व्यक्तिगत हानि (लॉस) की भी है जो हमें तब होता है जब किसी बड़े कारण के लिए खुद को न्यौछावर कर देते हैं. कहानी कला और भाषा पर अद्भुत गति है इशिगुरो की. प्रयोग और विमर्शों के इस दौर में सीधी सच्ची कहानियों को वृहद् उपन्यासों का कथ्य बनाना बड़े साहस की मांग करता है.
इसके बाद एक रौ में इनकी कई किताबें पढ़ गया था. ‘व्हेन वी वर ओरफंस ‘ ‘आर्टिस्ट ऑफ द फ्लोटिंग वर्ल्ड ‘ और ‘द कॉनसोल्ड ‘. इनमें कोंसोल्ड ने ठीक ठाक प्रभावित किया. इसके बाद इस लेखक की सबसे अच्छी किताब हाथ लगी. आज भी वो किताब हाथ लगे तो दो चार पन्ने पढ़े बिना आप छोड़ नहीं सकते- ‘नेवर लेट मी गो’.
कथ्य सुनने में सामान्य लगेगा, एक दड़बानुमा हॉस्टल है, कुछ कमसिन उम्र के लड़के लडकियां हैं और उनका जीवन है. लेकिन… लेकिन ये बच्चे ‘जीन तकनीक’ से बनाये गए हैं हैं. इन्हें अंगों की खेती (ऑर्गन फार्मिंग) के लिए तैयार किया गया है. अमीर उमरे की जरुरत के अनुसार इन बच्चों/युवकों के एक अंग का इस्तेमाल होता है. यह एक बड़ा व्यवसाय बनता है. यह कोई काल्पनिक ही सही लेकिन सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम है. और वह सरकार एक दिन निर्णय लेती है कि यह सब प्रयोग बंद होंगे. फिर क्या होता है उन हाड़ मांस के पुतलों का, उनके संबंधों का, उनके प्रेम का, उनकी ईर्ष्या का… यह एक महान किताब है, जो मनुष्य की भावनात्मक मुश्किलों का जवाब देने की कोशिश करती है. यह किताब अपने कथ्य, अपनी भाषा, रवानगी और अपनी पकड़ से दंग करती है.
उनकी किताब ‘दि ब्यूरिड जायंट’ भी बेहतरीन लिखी किताब है. 1954 में जन्में इशिगुरो ने स्क्रीन प्लेज तथा कुछ गीत भी लिखें हैं. उन्हें उनकी किताब ‘दि रिमेन्स ऑफ द डे’ के लिए बुकर पुरस्कार भी मिला था.
इस किस्सागो को नोबेल पुरस्कार मिलना खुशी की बात है.
sautuk.com से साभार
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