ज़ी समूह के मुखिया सुभाष चंद्रा के दफ्तर से गोपनीय वित्तीय फाइलें लीक की गईं

वित्तीय आसूचना इकाई (एफआईयू) की गोपनीय फाइलों के आधार पर ज़ी बिजनेस और डीएनए ने सरकार के खिलाफ स्टोरी प्लांट की. इन दस्तावेजों में सुभाष चंद्रा की दो कंपनियों पर 1900 करोड़ रुपए के टैक्स गबन का आरोप भी था.

WrittenBy:मनीषा पांडे
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8 सिंतबर को जी बिजनेस चैनल ने एक असमान्य स्टोरी की. असमान्य इसलिए क्योंकि चैनल ने मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी को नकारात्मक छवि में पेश किया.

अगर आप खबरों में दिलचस्पी रखते हैं तो आपको मालूम होगा कि जी मीडिया कॉरपोरेशन और उससे जुड़े अन्य शाखाएं शायद ही ऐसी पत्रकारिता करती हैं जो सत्ताधारी दल को कटघरे में खड़ा करता है.

यह एक दिलचस्प बदलाव था.

#UneaseofDoingBusiness जैसे हैशटैग से प्रसारित ज़ी बिजनेस की एक्सक्लूसिव स्टोरी वित्तीय आसूचना इकाई (एफआईयू) के एक गोपनीय दस्तावेज पर आधारित था. यह विभाग केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आता है. ज़ी बिजनेस के सह-संपादक मिहिर भट ने बताया कि ये दस्तावेज मोदी सरकार के ‘टैक्स टेररिज्म’ में शामिल होने के सुबूत हैं. उन्होंने दावा किया कि दस्तावेजों में कुछ बड़ी और अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के नाम हैं, जिन्हें मोदी सरकार द्वारा गलत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है. साथ ही उन्हें टैक्स डिफॉल्टर्स की श्रेणी में डाल दिया गया है. “क्या टैक्स वसूली के नाम पर सरकार जरूरत से ज्यादा सख्ती नहीं बरत रही है?” उन्होंने ने सवाल दागा.

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लेकिन भट सुविधानुसार यह बताना भूल गए कि एफआईयू दस्तावेजों में उन दो कंपनियों के भी नाम हैं जिनका संबंध उनकी कंपनी के मालिक एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन सुभाष चंद्रा से है.

यह चूक और भी स्पष्ट हो जाती है जब हम इस ओर ध्यान लगाते हैं कि इतने गोपनीय दस्तावेज ज़ी बिजनेस के हाथों के हाथ लगे कैसे.

ईमेल पर निर्देश

जी बिजनेस द्वारा यह एक्सक्लूसिव स्टोरी करने के दो दिन पहले 6 सिंतबर को चंद्रा के दफ्तर से डीएनए के मुख्य संपादक द्वैयपायान बोस को ईमेल भेजा गया, “कृपया इसे जल्द प्रकाशित करें.” (न्यूज़लॉन्ड्री के पास यह ईमेल मौजूद है).

ईमेल से एक फाइल अटैच थी जो कि एफआईयू द्वारा 16 अगस्त को बैंकों को भेजा गया पत्र था. पत्र में जिक्र था, “उन टैक्स डिफॉल्टर्स की सूची जिनका पता नहीं लग सका या धन वापसी के लिए उनके पास संसाधन नहीं हैं.” पत्र में बैंकों से मांग की गई कि अगर इन लोगों या कंपनियों का बैंक में खाता हो तो उसे पता लगाया जाए और उसका पूरा ब्यौरा उपलब्ध कराया जाए. अटैचमेंट में सौ के करीब टैक्स डिफॉल्टर्स की भी सूची हैं जैसे नोकिया, वोडाफोन, एस्सार, लूप, इम्पलॉय प्रोविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन और बाकी. (न्यूजलॉन्ड्री के पास बैंकों को भेजे पत्र की प्रति है).

ज़ी बिजनेस ने जिस खुलासे को 8 सिंतबर को चैनल पर प्रसारित किया वह एफआईयू का गोपनीय दस्तावेज था. इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर एस्सेल ग्रुप के अखबार डीएनए ने एक और स्टोरी प्रकाशित की जिसका शीर्षक था- “वित्त मंत्रालय द्वारा टैक्स डिफॉल्टर्स के भेजे पत्र पर उद्योगपतियों ने सवाल उठाया.”

यहां यह जानना जरूरी हो जाता है कि चंद्रा मीडिया मुगल होने के साथ-साथ तकनीकि, स्वास्थ्य, निर्माण कार्य जैसे कई उद्योगों में दिलचस्पी रखने वाले उद्योगपति भी हैं. साथ ही हरियाणा से स्वतंत्र निवार्चित राज्यसभा सदस्य भी हैं. राज्यसभा सदस्यों के कोड ऑफ कंडक्ट के अनुसार, “सदस्य साथी सांसद सदस्यों या संसदीय समितियों के सदस्यों के बारे में किसी भी तरह की कोई गोपनीय सूचना की जानकारी अथवा उनके अधिकार में हो, उन्हें इसका खुलासा अपने व्यक्तिगत फायदों के लिए नहीं करना चाहिए.”

हालांकि इस बात को लेकर पुख्ता जानकारी नहीं है कि चंद्रा के दफ्तर ने उनके राज्यसभा सांसद की हैसियत से एफआईयू की गोपनीय फाइलें प्राप्त की. दूसरी तरफ यह गौर करने की बात है कि इन दस्तावेजों को डीएनए संपादक को भेजा गया और वित्त मंत्रालय की टैक्स वापसी की कोशिशों का एकतरफा पक्ष दिखाया गया.

दो कंपनियों की कहानी

ज़ी बिजनेस और डीएनए दोनों की रिपोर्ट ने बैंकों को लिखे टैक्स डिफॉल्टर्स की विस्तृत सूची के लिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय की कटु आलोचना की. इन रिपोर्टों में अफआईयू की नीयत पर भी सवाल उठाए गए. साथ ही सरकार की नज़र में आने वाली कंपनियों का मजबूत पक्ष भी रखा गया. बताया गया कि ये सूची मोदी के ईज़-ऑफ-डूइंग-बिजनेस नीति के खिलाफ जाता है.

एक जगह पर तो जी बिजनेस के एंकर मिहिर भट ने नियमों पर प्रश्न खड़ा करते हुए सूची को गैरजिम्मेदाराना कह डाला. फिर उसने भाजपा प्रवक्ता गोपाल कृष्णा से पूछा कि क्या सूची बनाने वाले व्यक्ति पर कार्रवाई की जाएगी.

भट एफआईयू पर प्रश्न खड़ा करते हुए कहते हैं कि कैसे विभाग इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि एस्सार, गीतांजलि जेम्स, भूषण स्टील और वोडाफोन जैसी कंपनियां दिवालिया हो गई हैं. यहां भट दस्तावेज को समझने में चूक कर गए क्योंकि सूची में दिवालिया न लिखकर “वापसी के लिए अपर्याप्त धन” लिखा है. अब भट या तो जानबूझ कर गलत बयानी कर रहे हैं या फिर वास्तव में उन्हें दस्तावेज समझ नहीं आए.

टैक्स डिफाल्टर के रूप में दर्ज दो कंपनियों के नाम हैं डाइरेक्ट मीडिया डिस्ट्रीब्यूशन वेंचर्स और गंजम ट्रेडिंग कंपनी. दोनो कंपनियों पर संयुक्त रूप से 1,887 करोड़ रुपए का टैक्स बकाया है. डाइरेक्ट मीडिया देश की दस सबसे बड़ी टैक्स डिफाल्टर कंपनियों में शामिल है. इसके ऊपर 1,674 करोड़ रुपए का टैक्स बकाया है. इस सूची में सबसे ऊपर है हसन अली खान जिसके ऊपर 1.25 लाख करोड़ का कर बकाया है. अली पर मनी लॉन्डरिंग के आरोप में सीबीआई ने मामला दर्ज किया था.

एफआईयू की टैक्स डिफॉल्टर्स की सूची में शामिल कंपनियों के नाम हैं- डायरेक्ट मीडिया डिस्ट्रीब्यूशन वेन्चर्स, और गंजम ट्रेडिंग कंपनी. उद्योग मामलों के मंत्रालय के अनुसार, डायरेक्ट मीडिया डिस्ट्रीब्यूशन वेन्चर्स के 99 फीसदी इक्विटी शेयर एस्सेल कॉरपोरेट रिसोर्सेस प्राइवेट लिमिटेड के पास हैं. इसके अतिरिक्त निदेशक मुकुंद गिगलानी डिलिजेंट मीडिया डिस्ट्रीब्यूशन (जो कि एस्सेल ग्रुप कंपनी है) के निदेशक हैं. डायरेक्ट मीडिया डिस्ट्रीब्यूशन वेन्चर्स एस्सेल डिश टीवी के प्रचार समूह का भी हिस्सा है. इसी तरह गंजम ट्रेडिंग कंपनी एस्सेल प्रोपैक के प्रचार भाग का हिस्सा है. गंजम ट्रेडिंग और डायरेक्ट मीडिया डिस्ट्रीब्यूशन वेन्चर्स दोनों ही एनएम जोशी मार्ग, लोवर पारेल, मुंबई के पते से काम करते हैं.

कहने का सार है कि एफआईयू के दस्तावेजों पर हमला करने के दौरान ज़ी बिजनेस और डीएनए ने चालाकी से उन कंपनियों का बचाव किया जो एस्सेल समूह से संबंधित हैं. उन्होंने सारी जानकारी उपलब्ध नहीं करवाई.

सबसे बड़ा रुपैय्या

भारतीय मीडिया जगत में क्रॉस-ओनरशीप के लिए कोई क़ानून नहीं है. लेकिन यह कहानी बताती है कि कैसे एक साथ कई उद्योगों में लगे मीडिया मालिक न्यूज चैनलों का इस्तेमाल जनहित में करने की बजाय अपने निजी और राजनीतिक स्वार्थ के करते हैं.

साथ ही यह कहानी हमें बताती है कि जब व्यापारिक हितों की बात आती है मीडिया मालिक अपनी राजनीतिक पक्षधरता को भी किनारे रख देते हैं.

चंद्रा को मोदी का करीबी माना जाता है. उन्होंने हरियाणा में खुलकर भाजपा का समर्थन किया था. जब जीएसटी बिल पास हुआ, उन्होंने प्रधानमंत्री को इसकी बधाई दी. साथ ही मोदी के “2022 का नया भारत” के प्रति प्रतिबद्धता के लिए भी बधाई दी.

गौर करने की बात है कि पिछले साल जनवरी में चंद्रा की किताब ज़ी फैक्टर का लोकार्पण मोदी के निवास 7 – लोक कल्याण मार्ग पर हुआ था.

सर्जिकल स्ट्राइक और जेएनयू के आज़ादी प्रकरण जैसी घटनाओं पर ज़ी न्यूज भाजपा के मुखपत्र की तरह पेश आता रहा है. इस कदर कि चंद्रा ने टीवी के परदे पर आकर सफाई देने की कोशिश भी की कि ज़ी न्यूज प्रो-बीजेपी न होकर प्रो-भारत है. लेकिन जब एस्सेल समूह से जुड़ी कंपनियों पर सरकार ने जांच बिठाई तो चंद्रा के अपने चैनल ने मोदी सरकार को ‘टैक्स टेरर’ का आरोपी ठहरा दिया.

न्यूजलॉन्ड्री ने चंद्रा और ज़ी के संपादक सुधीर चौधरी से निम्न प्रश्नों का जवाब जानना चाहा. लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है. अगर उन्होंने जबाव दिया तो इस स्टोरी को हम फिर से अपडेट करेंगे.

1- 6 सितंबर को डॉ.चंद्रा के ऑफिस से डीएनए संपादक को ईमेल भेजा गया. इस इमेल के अटैचमेंट में एफआईयू के गोपनीय दस्तावेज थे जिसमें टैक्स डिफॉल्टर्स की सूची थी. आपको इस पर क्या कहना है?

2- दो दिनों बाद, ज़ी बिजनेस और डीएनए ने इन दस्तावेजों के आधार पर स्टोरी की लेकिन एस्सेल से जुड़ी कंपनियों का जिक्र नहीं किया गया. क्या आप संपादकों द्वारा ऐसा करने की वजह बता सकते हैं?

3- एफआईयू के दस्तावेज गोपनीय हैं. डॉ चंद्रा राज्यसभा सांसद होने के हैसियत से क्या यह मानेंगे कि इस तरह से दस्तावेजों को साझा करना कोड ऑफ कंडक्ट के खिलाफ है?

4- ज़ी बिजनेस और डीएनए ने जिन दस्तावेजों के आधार पर स्टोरी की उनमें डॉ सुभाष चंद्रा से जुड़ी कंपनियों का भी नाम है. क्या आपको नहीं लगता कि यह हितों के टकराव का मामला है?

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