बेल्लारी: अतीत को तबाह करती खनन की धमक

सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि बेल्लारी में दोबारा से खनन तभी शुरू होगा जब खनन कंपनियां पुनर्वास योजनाओं का ईमानदारी से पालन करेंगी. लेकिन उस आदेश की बेहद लापरवाही से अवहेलना की जा रही है.

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कर्नाटक के बेल्लारी जिले में संदूर कस्बे के ठीक बाहर एक धूल भरी संकरी पगडंडी गंदगी से अंटे पड़े मुख्य सड़क से निकलती है. यह पगडंडी हरि शंकर मंदिर की ओर जाता है जो एक पहाड़ी की तलहटी में है. इसके पास से एक नदी बहती है. कहा जाता है कि यह मंदिर 600 साल पहले आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया गया था. कुछ समय पहले तक यह सब किसी खूबसूरत तस्वीर जैसा था. लेकिन कर्नाटक सरकार के स्वामित्व वाली मैसूर मिनरल्स लिमिटेड (एसआईओएम) द्वारा सुबरयानाहल्ली लौह अयस्क खान में शुरू हुए सिलसिलेवार विस्फोटों के बाद यह इलाका किसी उजड़े हुए बियाबान सा लगता है.

मंदिर के पुजारी ने न्यूज़लॉन्ड्री की टीम को बताया, “हर दिन दो से तीन बम विस्फोट होते हैं. जब ऐसा होता है तो सब कुछ हिल जाता है.” उन्होंने यह भी पाया कि नदी में पानी की मात्रा धीरे धीरे कम होती जा रही है. नंदी की एक छोटी सी मूर्ति, शिव के पौराणिक पर्वत पर विरजमान होकर नदी से एक धारा को टैंक में छोड़ते हैं. पुजारी का यह भी कहना है कि अब पानी की गुणवत्ता भी खराब होती है.

खदानों के चलते अस्तित्व के संकट में फंसने वाला संदूर में सिर्फ हरि शंकर मंदिर ही इकलौता प्राचीन मंदिर नहीं है. यहां से बस कुछ ही किलोमीटर दूर 1200 साल पुराना कुमारस्वामी मंदिर परिसर है, जिसमें एक मंदिर भगवान कुमारस्वामी (शिव और पार्वती के छोटे बेटे) का है और दूसरा माता पार्वती का. ये संरक्षित स्मारक हैं और इन्हें प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थलों और अवशेष अधिनियम- 1958 के तहत राष्ट्रीय महत्व के रूप में घोषित किया गया है.

हरि शंकर मंदिर की तरह, कुमारस्वामी परिसर भी एसआईओएम की साइट से एक किलोमीटर से भी कम की ही दूरी पर है. इसकी दीवारों के पत्थर कभी धूसर रंग के हुआ करते थे, लेकिन खनन गतिविधियों की चलते हवा में फ़ैली धूल के कारण अब लाल हो गये हैं.

संदूर में रहने वाले एक वकील टीएन शिवकुमार, जो कि अवैध खनन को रोकने के लिए काम कर रहे हैं, बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक मंदिरों के इतने करीब खनन की अनुमति नहीं है. वे आगे बताते हैं, “मंदिर के चारों ओर एक किलोमीटर का क्षेत्र कोर ज़ोन है और उसके बाद का एक किलोमीटर बफर ज़ोन है.”

शिवकुमार 2013 में केके गुरुप्रसाद राव बनाम कर्नाटक राज्य के फैसले की तरफ इशारा करते हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को “प्राचीन स्मारकों” की सुरक्षा के लिए कोर ज़ोन और बफर ज़ोन बनाने का निर्देश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने “संरक्षण के फौरी उपायों को अमल में लाने” के साथ मुख्य क्षेत्रों में “विस्फोट या बिना विस्फोट के खनन पर पूरी तरह रोक लगाने की बात कही है.” यह भी कहा गया कि बफर ज़ोन में केवल “विशेषज्ञ एजेंसी” की देखरेख में ही खनन का काम किया जा सकता है.

हालांकि, जब हम संदूर गये तो हमने पाया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का साफ़ तौर पर उल्लंघन हो रहा है, और एसआईओएम जोर शोर से खुदाई का काम करवा रही है. इसके अलावा, अवैध खनन की वजह से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को तय करने के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ़ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (ICFRE) द्वारा तैयार की गयी सुधार और पुनर्वास की योजना को पूरी तरह से लागू करने में एसआईओएम विफल हो गया है.

2011 में बेल्लारी में खनन पर रोक लगाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर आर एंड आर की योजनायें लागू की गई. डॉ यूवी सिंह, अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक (एपीसीसीएफ़), जो लोकायुक्त जांच का भी एक हिस्सा थे, अब निगरानी समिति के सदस्य हैं. यह बेल्लारी में आर एंड आर योजनाओं के अमल में लाने की प्रगति की निगरानी करते हैं. खान मालिकों, राजनेताओं और परिवहन माफिया के बीच के सबंधों को उजागर करते हुए उनके काम ने उन्हें इलाके का नायक बना दिया. हालांकि, निगरानी समिति का हिस्सा रहते हुए उनकी साख धूमिल हुई है.

हालांकि हर खान की अपनी अलग-अलग आर एंड आर योजना है लेकिन पर्यावरण के लिहाज से उनमें कई समान दिक्कतें भी हैं जिन पर सभी को ध्यान देना होगा. सिफारिशें खासकर उन इलाकों में स्थिरता लाने के लिए हैं जहां कचरे को डंप (चारो तरफ से घिरी दीवार जो इस कचरे को समेट कर रखती है) किया जाता है. इसके अलावा वह उपाय भी रेखांकित हैं जिनमें पट्टों पर दिए इलाकों में भू-स्तरीय जल प्रबंधन से मिट्टी के कटाव को रोकने के उपाय करने हैं, इसमें चेक बांधों का निर्माण और निपटान के टैंक शामिल हैं. आर एंड आर योजनाओं में जंगलों को बढ़ावा देना भी जरुरी हिस्सा है, जो कि मिट्टी के कटाव को रोकने और प्राकृतिक वन संपदा को बहाल करने में मदद करेगा. इसके अलावा, इस योजना के तहत, उन सड़कों पर अधिक से अधिक पानी छिड़कने की जरूरत होती है, जो खदान से जुड़ी होती है, ताकि ट्रकों की आवाजाही के कारण उड़ने वाली धूल से निपटा जा सके.

सिंह बताते हैं कि खनन का काम दोबारा से शुरू करने के लिए आर एंड आर योजना का समुचित पालन करना ज़रूरी है. सिंह आगे बताते हैं, “अगर वे (पट्टेदार) आर एंड आर योजना को लगभग 70-80 फीसदी लागू करते हैं, तो उन्हें (खनन शुरू करने के लिए) अनुमति दी जा सकती है.” उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री के साथ रिकॉर्ड साझा किये जिसमें बेल्लारी जिले में 30 पट्टेदारों को खनन शुरू करने के लिए दी गयी आधिकारिक अनुमति को देखा जा सकता है, लेकिन खनन तभी होगा जब वे पहले अपनी संबंधित आर एंड आर योजनाओं को सही मायनों में लागू करेंगे. आर एंड आर योजनाओं को अमल में लाने की कोशिशों के बारे में पट्टेदारों को निगरानी समिति को सूचित करना चाहिए. “पट्टेदार को साप्ताहिक आधार पर रिपोर्ट जमा करनी पड़ती है,” उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया.

यद्यपि खनन अधिकारियों का दावा है कि आर एंड आर योजना पूरी तरह से लागू की गयी है, लेकिन वहां इसलसके कोई संकेत वहां नहीं दिखे. पट्टा क्षेत्र के भीतर 74.19 हेक्टेयर क्षेत्र में जंगल लगाने के निर्देशों के बावजूद, एसआईओएम में कोई भी पेड़ नहीं दिख रहा था. भू-स्तरीय जल प्रबंधन के लिए चेक बांध भी नहीं बने थे. और साथ वहां धूल-मिट्टी का अंबार था. इस इलाके में फैली मिट्टी की धुंध से पता चलता है कि खदान तक आने वाली और वहां से निकलने वाली सड़कों पर पानी का छिड़काव नहीं किया जा रहा है.

स्थानीय लोग दावा करते हैं कि बेंगलुरु में निगरानी समिति बस रिपोर्ट बनाने भर के लिए है. बेल्लारी में, हालात इन रिपोर्टों से काफी अलग है. शिवकुमार दावा करते हैं, “केवल एसआईओएम ही नहीं है जो आर एंड आर योजनाओं को लागू नहीं कर रही है.” उन्होंने कहा, “किसी को भी सुधार और पुनर्वास में दिलचस्पी नहीं है.” गैर-लाभकारी संस्था जन संग्राम परिषद के जिला सचिव एजी श्रीशैल ने बताया, “आर एंड आर केवल कागज़ पर है, खदानों में नहीं. यहां तक कि सार्वजनिक सेक्टर भी आज तक आर एंड आर नहीं कर रहे हैं.”

हालांकि सिंह इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहते हैं कि निगरानी समिति के पास खनन स्थल पर पूरा स्टाफ है जो इस बात की पुष्टि कर सकता है कि आर एंड आर की योजनायें लागू नहीं की जा रही हैं.

बेल्लारी के स्थानीय लोगों के आरोपों में सिंह कोई दिलचस्प नहीं लेते हैं. लिहाजा फिलहाल बेल्लारी की पर्यावरण और सांस्कृतिक तबाही से बचाने वाला कोई नहीं है. इसी बीच, एसआईओएम के हर विस्फोट के साथ, हरि शंकर मंदिर की दीवारें हिल रही हैं और कमज़ोर पड़ रही हैं.

यह स्टोरी एनएल सेना प्रोजेक्ट का हिस्सा है. इसे संभव बनाने में अर्नब चटर्जी, राहुल पांडे, नरसिम्हा एम, विकास सिंह, सुभाष सुब्रमण्या, एस चटोपाध्याय, अमिया आप्टे, और एनएल सेना के अन्य सदस्यों का योगदान रहा है. हम इस तरह की ढेरों स्टोरी करना चाहते हैं जिसमें आपके सहयोग की अपेक्षा है. आप भी एनएल सेना का हिस्सा बनें और खबरों को स्वतंत्र और निर्भीक बनाए रखने में योगदान करें.

(न्यूज़लॉन्ड्री की बेल्लारी सिरीज़ एनएल सेना प्रोजेक्ट के तहत फरवरी, 2017 में की गई है)

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