भाग II: बेल्लारी और जिंदल का उदय

अप्रैल 2016 से 11 जनवरी 2017 के बीच, जेएसडब्ल्यू स्टील ने बेल्लारी जिले की दो सार्वजनिक क्षेत्र की खदानों से 71 प्रतिशत लौह अयस्क की खरीदारी की, इनमें से ज्यादातर लौह अयस्क की खरीद न्यूनतम मूल्य पर कि गई. इसके बावजूद किसी को चिंता क्यों नहीं हुई?

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खनन के धंधे की बेहतरीन जानकारी और समझ होने के चलते लोकायुक्त की रिपोर्ट तैयार करने वाले यूवी सिंह को खनन के ई-ऑक्शन की जिम्मेदारी सौंपी गई. इससे लौह-अयस्क को बेचने और निकालने की प्रक्रिया को काफी हद तक पारदर्शी और छेड़छाड़ से मुक्त बनाने में सफलता मिली.

ज़ाहिर है कि ई-नीलामी का तरीका पारदर्शी  होता है, जिसमें हर बोली पूरी होने के बाद, एक तीन सदस्यों की  निगरानी समिति एक दस्तावेज प्रकाशित करती है जिसमें लौह अयस्क की गुणवत्ता, खदान के मालिक, उसके लिए बोलीदाताओं की संख्या, और उसके अंतिम खरीदार आदि का ब्यौरा होता है. निगरानी समिति को सुप्रीम कोर्ट तैनात करती है और मौजूदा समय में यूवी सिंह भी इस समिति के सदस्य हैं.

हर संभावित बोलीदाता को एमएसटीसी लिमिटेड (एक सार्वजनिक क्षेत्र इकाई और भारतीय इस्पात प्राधिकरण की सहायक कंपनी, जिसे पहले मेटल स्क्रैप ट्रेड कारपोरेशन लिमिटेड के नाम से जाना जाता था) द्वारा डिज़ाइन किये गये एक ऑनलाइन पोर्टल पर 10,000 रूपये की फीस के साथ एक खरीदार के रूप में रजिस्ट्रेशन करना होता है. एक बार रजिस्ट्रेशन होने के बाद, खरीदार आगे होने वाली नीलामियों को देख सकता है और बोली लगा सकता हैं. हर विक्रेता बिक्री के लिए मौजूद अयस्क की गुणवत्ता, उसके प्रकार और न्यूनतम मूल्य, के बारे में जान जाता है. नीलामी शुरू होने के बाद खरीदार न्यूनतम कीमत या उससे अधिक की बोली लगा सकते हैं, और नीलामी खत्म होने तक मूल्य जितना चाहें उतना बढ़ा सकते हैं. दिशा-निर्देशों के मुताबिक नीलामी दो घंटे तक चलती है. विक्रेता वो होते हैं जिनके पास (कानूनी) लौह अयस्क खदाने हैं और खरीदार आमतौर पर स्टील निर्माता होते हैं.

बेल्लारी में खनन पर रोक लगाने के एक साल बाद, सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2012 में क्षेत्र में 18 ‘श्रेणी ए’ खदानों में फिर से खनन शुरू करने की इजाजत दी. खदानों में उनके द्वारा किए गए अनधिकारिक खनन की सीमा के आधार पर उन्हें ए, बी और सी श्रेणियों में बांटा गया था. ए केटेगरी में उन खदानों को रखा गया था जिनमें कोई गैरकानूनी गतिविधि नहीं पाई गई थी.  ज्यादा गंभीर गैरकानूनी गतिविधियों वाली खदानों को उनसे संबंधित अपराधों के आधार पर बी और सी केटेगरी में रखा गया था. इसके बाद जब खदानों में फिर से काम  करने की अनुमति दी गयी, तो अयस्कों को ई-नीलामी के जरिये बेचा गया.

ई-नीलामी के पारदर्शी होने के बावजूद, कई लोग इससे असंतुष्ट  भी हैं. जेएसडब्ल्यू समूह के अध्यक्ष सज्जन जिंदल ने 2011 में एक सम्मेलन के दौरान संवाददाताओं से कहा, “उद्योग-धंधे लौह अयस्क की नीलामी के सहारे नहीं  चलते.” “ इन्हें चलाने के लिए समय-समय पर लगातार सप्लाई की जरुरत होती है. दुनिया में कोई भी उद्योग नीलामी पर आधारित सप्लाई से नहीं चलता.”

हालांकि, सिंह के लिए ई-नीलामी ही इस समस्या का बेहतरीन समाधान हैं. बेल्लारी में खनन के बारे में उन्होंने कहा, “सब कुछ बेहतरीन तरीके से किया गया है, और इसी वजह से  आज तक, सब कुछ नियंत्रण में है.” “आज, ई-नीलामी के बलबूते, अयस्क के टुकड़े का एक भी ग्राम अवैध रूप से नहीं निकला गया.”

बेंगलुरु में यूवी सिंह के ऑफिस से तीन सौ किलोमीटर दूर, बेल्लारी जिले में, स्थानीय लोग इससे असहमत हैं.

जिंदल का उदय

1997 में, 11 अरब डॉलर से ज्यादा की जेएसडब्ल्यू समूह की प्रमुख कंपनी और देश की सबसे बड़ी इस्पात उत्पादक जिंदल स्टील वर्क्स (जेएसडब्ल्यू) ने बेल्लारी जिले में एक प्लांट लगाया . जन संग्राम परिषद (जेएसपी) के एजी श्रीशैल के अनुसार, “जब यह ऑपरेशन शुरू हुआ था तब जेएसडब्ल्यू विजयनगर स्टील प्लांट की क्षमता एक साल में 1.2 लाख टन थी. कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक, आज, इसकी सालाना क्षमता 10 मिलियन टन हो गयी है.” जिंदल अब अपने व्यापार का विस्तार करने की दिशा में सोच रहे हैं, ताकि एक साल में 15 मिलियन टन स्टील का उत्पादन किया जा सके.

श्रीशैला ने न्यूज़लॉन्ड्री  को बताया, “यदि 2003 में यह रेड्डीज़ का गणराज्य था, तो आज की तारीख़ में यह जिंदल का रियासत है.”

ई-नीलामी के ऑनलाइन रिकॉर्ड बताते हैं कि जेएसडब्ल्यू के विजयनगर प्लांट में ज्यादातर अयस्क बेल्लारी की दो सार्वजनिक क्षेत्र की खनन कंपनियों से आता है. जिसमें पहली कंपनी है राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी). यह केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली एक कंपनी है और भारत की सबसे बड़ी लौह अयस्क उत्पादक कंपनी भी है, जो बेल्लारी क्षेत्र में दो खदानों का संचालन करती है. दूसरी है, मैसूर मिनरल्स लिमिटेड (एमएमएल) है, यह कर्नाटक सरकार के स्वामित्व वाली एक संस्था है, जिसके बेल्लारी में दो परिचालन खनन ठेके हैं, और ये सालाना 4 मिलियन मीट्रिक टन अयस्क निकाल सकती है.

गोपनीयता की शर्त पर, संदूर में एमएमएल की दो खानों में से एक खान के एक सीनियर ऑफिसर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि जेएमडब्ल्यू स्टील ने तक़रीबन 90 फीसदी अयस्क खरीदा था. ई-नीलामी की बोली की पत्रिकाओं को देखने से इसकी पुष्टि हुई है, जो बताती है कि अप्रैल 2016 में इस वित्तीय वर्ष की शुरुआत से 6 जनवरी, 2017 तक दोनों एमएमएल खानों द्वारा उत्पादित अयस्क की कुल मात्रा 26,43,000 टन थी. इनमें से, 23,77,000 टन जेएसडब्ल्यू स्टील ने खरीदा था. यह एमएमएल के कुल उत्पादन का 89.9 प्रतिशत है.

इसी समय-सीमा  के दौरान, एनएमडीसी की दो खानों का उत्पादन 1,19,38,000 टन था और जेएसडब्ल्यू स्टील ने ई-नीलामी के जरिये इसके 80,11,000 टन उत्पादन का अधिग्रहण किया, जो कंपनी के उत्पादन का 67 फीसदी था. कुल मिलाकर, बेल्लारी में एनएमडीसी और एमएमएल  के 1,45,81,000 टन के उत्पादन  में से जेएसडब्ल्यू स्टील ने 1,03,88,000 टन यानि कि 71.2 फीसदी खरीदा.

इनमें से कोई भी कानूनी तौर पर गलत नहीं था. आख़िरकार, जेएसडब्ल्यू स्टील कंपनी देश में इस्पात उत्पादन की सबसे बड़ी उत्पादक कंपनी है, और इसी वजह से उसे दूसरी स्टील कंपनियों के मुकाबले ज्यादा अयस्क की जरुरत पड़ती है. लेकिन बेल्लारी में काम करने वाले स्थानीय कर्मचारियों से सुना गया है कि जेएसडब्ल्यू स्टील ने ई-नीलामी की प्रक्रिया को प्रभावित करने के तरीके ढूंढ़ लिए हैं.

श्रीशैल का आरोप था कि जेएसडब्ल्यू स्टील सरकारी खदानों से नीची गुणवत्ता वाले अयस्क की कीमत पर ऊंची गुणवत्ता वाले अयस्क की खरीदारी कर रहा है. उन्होंने हमें बताया, “वे (एनएमडीसी और एमएमएल) अच्छी गुणवत्ता वाले अयस्क बेच रहे हैं लेकिन अपने रिकार्ड्स में वे यह दिखाते हैं कि यह खराब गुणवत्ता वाला है”. “वे दिखायेंगे कि वे 58 प्रतिशत ग्रेड के अयस्क बेच रहे हैं, लेकिन वास्तव में यह 63 प्रतिशत ग्रेड का अयस्क होता है.” उन्होंने बताया कि ऐसा बेहतर गुणवत्ता वाले अयस्क के स्टॉक के ऊपर नीची गुणवत्ता वाले अयस्क की एक परत लगाकर किया जाता है, जिसके सरकारी खजाने को भारी नुक्सान हुआ है.

जेएसडब्ल्यू स्टील अपना ज्यादातर अयस्क सरकारी खदानों से खरीदता है. अप्रैल 2016 और 11 जनवरी 2017 के बीच, जेएसडब्ल्यू स्टील ने निजी खानों से 39,13,500 टन अयस्क खरीदा था जबकि सरकारी खदानों से साढ़े तीन गुना ज्यादा लगभग 1,03,88,000 टन  अयस्क ख़रीदा गया.

ई-नीलामी की बोली की शीट के निचले हिस्से में, लॉट के न्यूनतम मूल्य पर कुल कीमत और बोली मूल्य पर लॉट की कुल कीमत देखी जा सकती है. इस अंतर से “न्यूनतम वैल्यू पर प्रतिशत वृद्धि” का पता चलता है. बोली की शीट को देखने से पता चलता है कि वह प्रतिशत जिसमें बेल्लारी में सार्वजनिक क्षेत्र की खदान अयस्क बेच रही है, नीलामी के लिए उल्लेखनीय रूप से कम है या कभी कभी तो यह शून्य भी है.  कुल मिलकर इसका मतलब यह है कि अयस्क पर कोई बोली नहीं लगी और ज़्यादातर मामलों का खरीदार जेएसडब्ल्यू स्टील बिना किसी प्रतिद्वंद्वी के लॉट उठाता है.

6 जून 2016 को 21 नम्बर की नीलामी में, जेएसडब्ल्यू ने न्यूनतम कीमत पर शून्य प्रतिशत वृद्धि के साथ पूरा 2,16,000 टन अयस्क  खरीदा. वहीं 28 जुलाई, 2016 को हुई 39 नंबर की नीलामी में भी न्यूनतम कीमत शून्य थी, जिसके दौरान जेएसडब्ल्यू स्टील ने 3,04,000 टन में से 3,00,000 टन अयस्क खरीदा था. 22 नवम्बर 2016 को नीलामी नंबर 73 में भी ये प्रतिशत महज़ 0.23 फीसदी था.

प्रतिशत में यह बढ़ोत्तरी जेएसडब्ल्यू स्टील के अलावा बाकि खरीदारों के कारण भी हो सकती है जिन्होंने उस नीलामी में कुल मिलाकर 36,000 टन अयस्क खरीदा था और न्यूनतम कीमत से ज्यादा की बोली लगाई थी. जेएसडब्ल्यू स्टील ने इस नीलामी में 2,08,000 टन अयस्क खरीदा था, ये सारा अयस्क भी उसने न्यूनतम मूल्य पर ख़रीदा था .

13 मई 2016 को 13 नम्बर की नीलामी के लिए न्यूनतम मूल्य पर 0.01 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी, जिसमें जेएसडब्ल्यू स्टील ने 2,00,000 टन में से 1,96,000 टन अयस्क न्यूनतम कीमत पर खरीदा था. एक अन्य कंपनी, एसएलआर मेटालिक्स लिमिटेड ने उसी लॉट से न्यूनतम कीमत से 10 रुपये ज्यादा की कीमत पर 4,000 टन अयस्क  खरीदा था, इसका नतीजा रहा कि प्रतिशत वृद्धि शून्य नहीं रही.

उपरोक्त सभी नीलामियों में एमएमएल या एनएमडीसी शामिल हैं. अगर तुलना करें तो, वो नीलामियां जिसमें निजी कंपनियां अयस्क की बिक्री कर रही हैं, उनकी वजह से न्यूनतम कीमत में ज्यादा प्रतिशत की वृद्धि दर्ज होती हैं.

उदाहरण के लिए, 27 सितम्बर 2016 को 57 नंबर की नीलामी  में जेएसडब्ल्यू स्टील ने तय न्यूनतम मूल्य से 690 रुपये की बोली लगाकर सेसा स्टरलाइट लिमिटेड से 20,000 टन अयस्क खरीदा था. उसी नीलामी में, उन्होंने पी बालासुब्बा सेट्टी एंड सन की खानों से न्यूनतम मूल्य से 30 रुपये ज्यादा की कीमत पर 4000 टन अयस्क खरीदा. इस नीलामी में जिसमें जेएसडब्ल्यू स्टील ने 9,64,000 टन में से 6,20,000 टन खरीदा था, न्यूनतम मूल्य में हुई प्रतिशत वृद्धि 6.93 फीसदी थी.

इसी तरह 14 अक्टूबर, 2016 को 62 नंबर की नीलामी में, जब जेएसडब्ल्यू स्टील ने वीरभद्रप्पा संगप्पा एंड कंपनी से 4,000 टन अयस्क खरीदा तो न्यूनतम मूल्य 140 रुपये ज्यादा कर दिया. उसी नीलामी में, उन्होंने वीरभद्रप्पा संगप्पा एंड कंपनी से 8,000 टन अयस्क के दूसरे बैच के लिए न्यूनतम मूल्य से 90 रुपये ज्यादा का भुगतान किया. कुल मिलाकर इस नीलामी में होने वाली 2,65,000 टन अयस्क की बिक्री में से, जेएसडब्ल्यू स्टील ने न्यूनतम मूल्य पर 4.2 फीसदी की प्रतिशत वृद्धि के साथ 2,03,500 टन खरीदा था.

श्रीशैल द्वारा न्यूज़लॉन्ड्री  को दिए एक दस्तावेज में, एनएमडीसी खान के ई-नीलामी के आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि अप्रैल 2016 और नवम्बर 2016 के बीच बेचे गये 171 अयस्कों के लॉट में से सिर्फ 20 लॉट में बोली की कीमत न्यूनतम मूल्य से ज्यादा थी. वहीं दूसरी तरफ, निजी खनिकों के नीलाम  किये गये 187 लॉट में, 109 लॉट्स की बिक्री न्यूनतम मूल्य से अधिक मूल्य पर हुई थी. दस्तावेज से साफ पता चलता है कि, “यह इस बात का संकेत है कि संगठित तरीके से एनएमडीसी को सही कीमत तय करने से रोका जा रहा है.”

इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए था कि जेएसडब्ल्यू स्टील ने सरकारी खदानों से शायद ही कभी न्यूनतम मूल्य से अधिक की कीमत पर अयस्क खरीदा. इसके अलावा, ऐसे उदाहरण भी हैं, जहां जेएसडब्ल्यू ने निजी खदानों से अयस्क के लिए न्यूनतम कीमत का भुगतान किया है. हालांकि, जो पैटर्न उभरकर सामने आ रहा है, वह यही है कि सरकारी खदानों से अयस्कों की कीमत कम हो रही है, जिससे इस राज्य की आमदनी भी कम हो रही है.

टीएन शिवकुमार, एक वकील हैं जो संदूर (बेल्लारी में एक तालुक) में प्रैक्टिस करते हैं, और इन्होंने  रेड्डी दौर से ही अवैध खनन का पर्दाफाश करने पर काम किया है, उन्होंने ई-नीलामी में होने वाली कई दूसरी गड़बड़ियों के बारे में बात की. उन्होंने हमें बताया, “एनएमडीसी और एमएमएल, दोनों सरकारी खदानें, जो ई-नीलामी में भाग लेती हैं, वे दस्तावेजों पर जगह कोई और दिखाती हैं, लेकिन माल का परिवहन किसी अन्य जगह पर करती हैं.” एक एमएमएल सूत्र ने आरोप लगाया कि जेएसडब्ल्यू स्टील परिवहन प्रक्रिया को नियंत्रित करती है. सूत्र ने हमें बताया, “यदि कोई अन्य कंपनी (जेएसडब्ल्यू स्टील के अलावा) माल के लिए सफ़लतापूर्वक बोली लगाती है, तो माल हमारे परिसर से निकलता ही नहीं है.”

जब न्यूज़लॉन्ड्री ने सिंह से इन आरोपों के बारे में पूछा कि ई-नीलामी प्रक्रिया में छेड़छाड़ की जा सकती है, तो उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा कि “यह संभव ही नहीं है.” नीलामी में जेएसडब्ल्यू स्टील के सरकारी खदानों से भारी मात्रा में अयस्क की खरीदारी करने के विषय पर सिंह ने कहा कि चूंकि “जिंदल के पास थोड़ी अधिक परिवहन (क्षमता) है, इसलिए वे पूरी चीज़ खरीद लेते हैं.” उन्होंने अनुमान लगाया कि सरकारी खानें “शायद अधिक (न्यूनतम) कीमत तय कर रही हों,” शायद यही वजह हो सकती है कि “अन्य कंपनियां बोली लगाने के लिए नहीं जा रही हैं.” यह पूछे जाने पर कि क्या किसी खास पार्टी के फायदे के लिए कीमतों को तय करने पर सरकारी खानों पर दबाव डाला जा रहा है, सिंह साफ जवाब नहीं दे पाए और उन्होंने कहा कि “ठेकेदारों के पास कीमत तय करने के लिए अपनी खुद की व्यवस्था है,” जिसकी जांच निगरानी समिति नहीं करती है.

न्यूज़लांड्री ने जेएसडब्ल्यू के ऊपर लग रहे आरोपों की सत्यता जानने के लिए कंपनी से भी संपर्क किया. हमारे सवाल और जेएसडब्ल्यू के जवाब नीचे दिए जा रहे हैं.

जेएसडब्ल्यू के सार्वजनिक क्षेत्र की खदानों से कम कीमत पर बेहतर गुणवत्ता वाले अयस्क की खरीद के मुद्दे पर

जेएसडब्ल्यू ने माननीय सुप्रीम कोर्ट  द्वारा तैनात की गई मॉनिटरिंग कमेटी द्वारा नियंत्रित पारदर्शी प्रतिस्पर्धा बोली की प्रक्रिया के माध्यम से कर्नाटक राज्य में नीलामी में लौह अयस्क की खरीद की है. आधार मूल्य और मात्रा विक्रेता द्वारा तय किया जाता है है.

सार्वजनिक क्षेत्र की खदानों पर जेएसडब्ल्यू स्टील के लॉबिंग के सवाल पर

माननीय उच्चतम न्यायलय द्वारा  तय किये गए मानकों के अनुसार पीएसयू को आवंटित खदानों जैसे कि एनएमडीसी या एमएमएल सहित सभी खानों के लिए उत्पादन की मात्रा तय की गयी है. इस संबंध में जेएसडब्ल्यू स्टील की कोई भूमिका नहीं है.

आरोप हैं कि एक प्रतियोगी द्वारा नीलामियों के जरिये सफलतापूर्वक खरीदे जाने वाले लौह अयस्क को जेएसडब्ल्यू स्टील ने वहां पहुंचने से रोका है. आप इस पर क्या कहेंगे?

खरीदार को माल के संचालन के लिए ठेकेदारों द्वारा तय किये गये समय के अनुसार उसे दूसरी जगह भेजना होता है. यह कहना बिलकुल गलत है कि जेएसडब्ल्यू स्टील इसे किसी भी तरीके से रोक सकती है.

हमने अप्रैल 2016 की नीलामी की बोली वाली शीटों की पड़ताल की है. जेएसडब्ल्यू ने अपने ज्यादातर लौह अयस्क सार्वजनिक क्षेत्र की खदानों से खरीदे हैं. सार्वजनिक क्षेत्र की खानों से खरीद के पीछे कोई खास कारण?

जैसा कि ऊपर दिए गये सवाल  के जवाब में कहा गया है, लौह अयस्क एक पारदर्शी ई-नीलामी के जरिये खरीदा जाता है. खरीदार को वास्तविक  उपयोगकर्ता होना चाहिए. सभी पंजीकृत खरीदारों को ई-नीलामी में माल खरीदने का एक समान मौका मिलता है.

चालू  वित्त वर्ष में, जेएसडब्ल्यू स्टील ने बेल्लारी और चित्रदुर्ग जिले से 14 मिलियन टन से ज्यादा लौह अयस्क खरीदा है, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाये गये 30 लाख टन की संयुक्त खनन सीमा का लगभग आधा है. कंपनी ने जिले में अपनी स्थिति और मजबूत करने के लिए पिछले साल अक्टूबर में ई-नीलामी के जरिये बेल्लारी में तीन ‘श्रेणी सी’ की खानों का भी अधिग्रहण किया था. इस मामले के मद्देनजर और जेएसडब्ल्यू के विशाल आकार और उसकी जरूरतों को देखते हुए इनमें से कुछ भी अवैध नहीं है. हालांकि, जेएसडब्ल्यू  बेल्लारी में जो एकाधिकार बना रहा है उसके बारे में भी सवाल उठाये जा रहे हैं कि क्या एक बार फिर से जिले को लूटने खसोटने की तैयारी चल रही है. सिंह अगले ही साल रिटायर हो गए और वह बेल्लारी पर अब उतनी पैनी नज़र नहीं रखते हैं जितनी कि रखा करते थे. श्रीशैल ने बताया, “निगरानी समिति कुछ काम नहीं करती. वो  यहां से बहुत दूर बेंगलुरु में अपने वातानुकूलित दफ्तर में आराम करती हैं.” उन्होंने आगे बताया, “कमेटी सिर्फ उन्हें भेजी गयी रिपोर्टों पर हस्ताक्षर करती  है, लेकिन कोई भी क्षेत्र का दौरा नहीं करता है.” सवाल यह है कि अब सिंह की जगह कौन लेगा और कौन बेल्लारी का रक्षक बनेगा?

इन सब बातों के बीच जेएसडब्ल्यू का चमकदार विजयनगर परिसर आधुनिकता के एक चमकदार बुलबुले की तरह है जो बेल्लारी के विस्फोट वाले इलाके में बेतुका सा दिखता है. बेल्लारी की लाल मिट्टी में हरियाली के साथ हुई छेड़छाड़ से उलट, इस विशाल परिसर के पांचवे हिस्से को पेड़ों और सुव्यवस्थित लॉन के साथ कवर किया गया है. यहां मालियों की एक अच्छी खासी सेना लॉन की देखभाल करती हैं, वहीं एक बहुत बड़ा पानी का फव्वारा परिसर में प्रवेश करते समय आपके स्वागत के लिए तैयार खड़ा रहता है.

इसके 150 एकड़ के इलाके में एक इस्पात प्लांट, एक सीमेंट प्लांट, एक बिजली पैदा करने की इकाई, एक हयात रीजेंसी, एक स्कूल, सुपरमार्केट्स, एक हवाई अड्डा, निजी रेलवे लाइन, एक अस्पताल और दूसरी सुविधाएं भी हैं. इससे उलट, परिसर के बाहर बेल्लारी जिले में लाल मिट्टी की धुंध है, ऐसा लगता है कि इसकी हरियाली चादर पर लौह अयस्क का छिड़काव सा किया गया है.

यह स्टोरी एनएल सेना प्रोजेक्ट का हिस्सा है. इसे संभव बनाने में अर्नब चटर्जी, राहुल पांडे, नरसिम्हा एम, विकास सिंह, सुभाष सुब्रमण्या, एस चटोपाध्याय, अमिया आप्टे, और एनएल सेना के अन्य सदस्यों का योगदान रहा है. हम इस तरह की ढेरों स्टोरी करना चाहते हैं जिसमें आपके सहयोग की अपेक्षा है. आप भी एनएल सेना का हिस्सा बनें और खबरों को स्वतंत्र और निर्भीक बनाए रखने में योगदान करें.

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