केएएस अधिकारी भीमा नायक के ड्राईवर की मौत के एक महीने बाद न्यूज़लॉन्ड्री वापस बेल्लारी यह पता लगाने के लिए गया कि असल में हुआ क्या था.
बेंगलुरु से लगभग 100 किलोमीटर दूर, मंडया के कदुकोथनहल्ली गांव का गौड़ा घर, बच्चों की कहानी की किताबों का आभास देते हैं. इसकी खपरैल वाली छत, चमकदार पीली दीवारें, और एक बेहतरीन बरामदा, जहां से दुनिया देखना सबसे आदर्श हो. बाहर से देखने पर ये घर आराम और समृद्धि का अहसास देता है. महज छह महीने पहले ही, घर की रंगाई-पुताई हुई है, इस ताज़गी को आज भी इमारत के सामने से महसूस किया जा सकता है. हालांकि, जैसे ही आप घर की चौखट पार कर अंदर प्रवेश करते हैं यह ताजगी गायब हो जाती है. एक निराशा से आपका सामना होता है. महेंद्र गौड़ा का सिर मुंडा हुआ था, और जब भी वह ऊपर देखते हैं, उनकी आंखों में एक आतंक साफ़ दिखता था. उसके पिता, चिक्का हम्बला दुबली काठी वाले, उदास और कमज़ोर से दिख रहे थे. उनकी मां, सकम्मा, फर्श पर बैठी थीं, बाल बिखरे हुए थे, वह अभी भी सदमे और उदासी में थीं, उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे. उन्होंने हमें बताया, “एक वही हम सबकी देखभाल कर रहा था”. वह इस परिवार का आधार स्तम्भ था.
सकम्मा अपने छोटे बेटे रमेश के बारे में बात कर रहीं थी. 6 दिसम्बर, 2016 को 31 वर्षीय रमेश रातोंरात चर्चित हो गया. बेहद तनाव में रमेश ने आत्महत्या कर ली और पीछे छोड़ गया 11 पेज का एक खुदकुशी का नोट जिसमें उसने अपने बॉस, कर्नाटक प्रशासनिक सेवा अधिकारी, भीमा नायक के भ्रष्टाचार का पूरा चिट्ठा खोलकर रख दिया था. रमेश को खो देने का दुख परिवार के बाकी सदस्यों से ज्यादा सकम्मा को हुआ, इसकी एक वजह थी. सकम्मा याद करती हैं कि जब रमेश आख़िरी बार बेंगलुरु से घर आया था तो उसका चेहरा बिल्कुल पीला पड़ा हुआ था और वह काफ़ी परेशान दिख रहा था. जब वह वापस जाने लगा, तो उसने कहा कि वह सकम्मा को रास्ते में पड़ने वाली एक शादी में छोड़ देगा, और फिर वह बेंगलुरु निकल जाएगा. उस दिन जब रमेश ने उन्हें अलविदा कहा, तो उन्हें इस बात का बिलकुल अंदाज़ा नहीं था कि वह आख़िरी बार अपने बेटे को जीवित देख रही हैं.
4 दिसम्बर की शाम को, रमेश अपनी मां को छोड़ने के बाद बेंगलुरु नहीं गया था. इसके बजाय, वह कदुकोथनहल्ली से 19 किलोमीटर की दूरी पर मद्दुर गया, और वहां समृद्ध लॉज में चेक-इन किया. दो दिन बाद, उसकी लाश उसी लॉज के कमरा नं. 14 में मिला.
समृद्ध लॉज, मद्दुर में नया-नया बना है, और बस स्टैंड से सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी पर है. शायद इसी वजह से रमेश की नज़र इस लॉज पर पड़ी होगी. उसने एक कमरे के लिए पूछा. कमरा मिलने में कोई समस्या नहीं थी. उस समय लॉज में सिर्फ दो कमरे बुक थे, इसलिए कमरा नं. 14 आसानी से रमेश को दे दिया गया. इस कमरे के बारे में खास कुछ नहीं है. चमकदार टाइल, एक दीवार जो रेडियोएक्टिव हरे रंग से रंगी थी. इसमें एक डबल बेड, नीली नियॉन ट्यूबलाइट्स, एक खिड़की जहां से टीन शेड दिखता है और कमरे से जुड़ा हुआ एक बाथरूम.
कोई नहीं जानता कि रमेश ने अपने रुकने के लिए मद्दुर को ही क्यों चुना– शायद यह एक ऐसा ठिकाना था जहां से उसके लिए अपने दोस्तों सुरेश टी और शशि कुमार से मिलने आसानी से जाया जा सकता था, पर साथ ही यह इतना दूर भी था कि वह उन सवालों से बच पाए जो उसके घरवाले उससे पूछ रहे थे.
6 दिसम्बर की दोपहर को, कुमार रमेश से मिलने गया. उसने दरवाज़ा खटखटाया, लेकिन अन्दर से कोई जवाब नहीं मिला. उसने रमेश को कॉल किया पर रमेश ने फ़ोन नहीं उठाया. परेशान होकर कुमार ने महेंद्र को बुलाया, जो कि एक घंटे के अंदर ही वहां पहुंच गया. महेंद्र और कुमार ने एक सीढ़ी ली और उसे पहली मंज़िल के 14 नं. कमरे की खिड़की के बाहर लगाया. जब वे ऊपर चढ़े, तो उन्होंने रमेश को कमरे के अंदर उल्टा लेटे हुए देखा. फिर उन्होंने एक लम्बी छड़ी लेकर उससे रमेश को उठाने की कोशिश की, लेकिन उसका शरीर नहीं हिला.
सके बाद महेंद्र और कुमार ने पुलिस को बुलाया. समृद्ध लॉज के प्रबंधक राजन्ना एचसी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “पुलिस शाम को करीब 5.30 बजे पहुंची और उनकी निगरानी में होटल के स्टाफ ने दरवाज़ा तोडकर खोल दिया.” राजन्ना को उस दिन वहां देखा हुआ नज़ारा याद आया- शराब की एक बोतल, ज़हर की शीशी, बेडसाइड टेबल पर सुसाइड नोट, और बिस्तर पर रमेश की लाश.
जहां तक आत्महत्याओं की बात है तो भारत में उसका ट्रैक रिकॉर्ड बेहद चिंताजनक है, पर यह ट्रैक रिकॉर्ड ऐसी वजह नहीं है जिसके कारण पूरे कर्नाटक में सनसनी पैल गई और इस खबर ने क्षेत्रीय और राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा. रमेश की आत्महत्या की खबर के सुर्ख़ियों में आने का कारण था उसका सुसाइड नोट, हालांकि रमेश के आख़िरी शब्दों को एक ‘नोट’ कहना अनुचित है. 11 पन्नों का यह ‘नोट’ एक निबंध जैसा था जिसमें विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी भीमा नायक के भ्रष्टाचार के कई कारनामें और अवैध कमाई के बारे में लिखा था.
केएएस अधिकारी अपनी ईमानदारी के लिए नहीं जाने जाते. पिछले सप्ताह ही एक केएएस भूमि अधिग्रहण अधिकारी, गायत्री एन नायक, को मंगलौर में 20,000 रुपये की रिश्वत लेते एसीबी ने हिरासत में लिया था. यहां तक कि जिन तौर-तरीकों से केएएस अधिकारियों का चयन होता है वह भी विवादपूर्ण है. डॉ एचपीएस मिथ्री जो कि एक व्हिसलब्लोअर हैं, ने एक घोटाले का पर्दाफाश किया जिसमें कर्नाटक लोक सेवा आयोग (केपीएससी) के सदस्य उम्मीदवारों को उनका मनमाफिक पद देने के एवज में उनसे रिश्वत मांगते हुए पकड़े गये थे.
रमेश ने किसी के काले कारनामें की जितनी व्यापक सूची अपने सुसाइड नोट में छोड़ी थी वह कहीं और मिलना दुर्लभ है.
रमेश ने उस सुसाइड नोट में नायक की संपत्तियों की सूची बनाई थी और उसमें यह भी दर्ज किया था कि कैसे उस अधिकारी ने अपने और अपने परिवार के लाभ के लिए अपने ओहदे का गलत इस्तेमाल किया. उसने नायक और पूर्व भारतीय जनता पार्टी मंत्री और खनन तालुकेदार ज़ी जनार्धन रेड्डी के बीच घनिष्ठ संबंध होने का भी दावा किया. रमेश के अनुसार, नायक ने 16 नवम्बर, 2016 को रेड्डी की बेटी की शानदार शादी के लिए रेड्डी को 25 करोड़ रूपये की काली धनराशि की मदद की थी. नायक ने रेड्डी के लिए 75 करोड़ रूपये भी बदलवाए, ऐसा रमेश ने लिखा.
हालांकि कमीशन की दरें रकम और मध्यस्थ की हैसियत के आधार पर अलग अलग तय होती हैं, वहीं विमुद्रीकरण की घोषणा के तुरंत बाद पुराने नोटों को नए नोटों की खेप से बदलने वाले लोग इसका चार्ज 15 से 20 प्रतिशत ले रहे थे. इस लेनदेन से नायक ने कितना कमाया, इसकी अभी भी जांच हो रही है. हालांकि, रमेश के सुसाइड नोट ने नायक का भंडाफोड़ कर दिया और रमेश की आत्महत्या की वजह भी है.
रमेश के परिवार के लिए, नायक के बारे में ये खुलासे उतने ही चौंकाने वाले थे जितना ये सच कि उनके घर का एकमात्र कमाने वाला सदस्य अब जिंदा नहीं है. नायक का इन दो सालों के दौरान गौड़ा परिवार में गर्मजोशी से स्वागत होता रहा क्योंकि रमेश केएएस अधिकारी के लिए काम करता था. परिवार नायक का बेहद आभारी था क्योंकि जब तक रमेश उनके यहां ड्राईवर के तौर पर नौकरी पर नहीं लगा था, तब तक गौड़ा परिवार गुज़ारे के लिए संघर्ष कर रहा था. उनका एक एकड़ खेत, जिसमें महेंद्र अब भी खेती करता है, काफ़ी नहीं था, इसलिए रमेश ने एक कारखाने में लम्बे समय तक काम किया था. नायक के ड्राईवर के रूप में काम करने से गौड़ा परिवार की किस्मत में तेज़ी से सुधार हुआ. रमेश अब परिवार के खर्चों को आसानी से उठाने लगा था जैसे कि घर की मरम्मत और महेंद्र की शादी जिसमें नायक भी आया था. सकम्मा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कैसे उनके पोते नायक के बच्चों के साथ शादी में घुल-मिल गये थे. उन्हें यह भी याद है कि नायक ने रमेश की प्रशंसा की थी और उसे कड़ी मेहनत करने वाला इंसान बताया था. महेंद्र याद करते हुए बताता है, “उन्होंने (नायक) ने कहा था, मैं तुम्हारे भाई का ध्यान रखूंगा, चिंता मत करो. मैं तुम्हारे परिवार का ध्यान रखूंगा और तुम्हारी बहन की बेटी को पढ़ाऊंगा.”
गौड़ा परिवार को यह नहीं मालूम था कि रमेश नायक की अवैध गतिविधियों में किस हद तक शामिल है. हालांकि, जब उनके संबंध खट्टे होने शुरू हो गये तो उन्हें इस बात का आभास जरूर हो गया था. लगभग दो महीने पहले, रमेश ने महेंद्र को बताया, “मोसा मदिदरू (उसने मुझे धोखा दिया)”, लेकिन उसने इस पर ज्यादा बात नहीं की. महेंद्र ने भी इस बात को बहुत गंभीरता से नहीं लिया. रमेश का परिवार कहीं ना कहीं उस सुविधा में मशगूल था, जो रमेश के नायक के लिए काम करने से मिला था. “मैंने उसे अपना काम ईमानदारी से करने के लिए कहा और यह कि उसे किसी बात से नहीं डरना चाहिए,” महेंद्र ने कहा.
आज, परिवार अपने सभी दुखों के लिए नायक को ज़िम्मेदार मानता है. इस शिकायत के अलावा कि नायक ने पिछले तीन महीनों से रमेश को कोई वेतन नहीं दिया था, वे अब मुआवज़ा भी चाहते हैं. बीमार चिक्का हम्बाला ने हमें बताया कि उनके बेटे पर उसके मालिक ने अत्याचार किया है. “भीमा नायक ने मेरे बेकसूर बेटे को मार डाला,” उन्होंने कहा. एक जनवरी 2017 को, चिक्का हम्बाला गौड़ा का निधन हो गया, जिससे परिवार की त्रासदी में एक दुःख और बढ़ गया.
सकम्मा और महेंद्र रमेश की बेगुनाही का दावा कर सकते हैं, पर उसके सुसाइड नोट और साथ ही साथ बाद की पुलिस जांच से यह साफ है कि वह नायक की अवैध गतिविधियों में हर तरह से शामिल था. रमेश की मौत के बाद, 6 दिसम्बर को महेंद्र ने मंडया पुलिस थाने में नायक और उसके अन्य ड्राईवर मोहम्मद के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत एफ़आईआरदर्ज करायी थी, जिसमें वे दोनों उस समय फ़रार थे.
मंडया पुलिस के सूत्रों का कहना है कि जब उन्होंने रमेश के व्हिसलब्लोअर बनने के पीछे के तारों को जोड़ना शुरू किया तो कुछ ही दिनों में उन्होंने 90 फीसदी केस का पता लगा लिया था. उनके अनुसार, नायक ने रमेश और सुरेश टी को 50 लाख का पुराने नोटों को बदलने का जिम्मा सौंपा था. यह 8 से 17 नवम्बर के बीच की घटना है जब नोटबंदी की घोषणा हुई थी. उन पैसों को नए नोटों में बदलवाने वाले व्यक्ति का नाम दीपक था जिसने 25 प्रतिशत कमीशन की मांग की. नायक ने 20 प्रतिशत से ज्यादा देने से मना कर दिया था. खैर काफी मलो-भाव के बाद सौदा तय नहीं हो सका. पैसा नायक को लौटा दिया गया पर नायक के मुताबिक उसमें से 8 लाख रुपये गायब थे.
नायक को पूरा भरोसा था कि गायब हुए रुपये रमेश ने ही चोरी किये हैं, और पुलिस सूत्रों के मुताबिक रमेश और सुरेश दोनों को मेसेज और कॉल के माध्यम से मौत की धमकी मिली थी. पुलिस का मानना है कि 17 नवम्बर को बेंगलुरु स्थित एक क्रिकेट बुकी फाइटर रवि द्वारा रमेश और सुरेश का अपहरण करके उन पर हमला किया गया था. अपराध जांच विभाग (सीआईडी) की उप महानिरीक्षक (डीआईजी) सोनिया नारंग किसी भी तरह की गड़बड़ी की आशंका को दरकिनार करते हुए कहती हैं, “शुरुआती जांच के आधार पर हम कह सकते हैं कि यह एक आत्महत्या है.” हालांकि, मंडया पुलिस के सूत्रों ने हमें बताया कि रमेश के शरीर पर घावों के निशान थे, जो शायद उस पर हुए पहले हमले के दौरान आये होंगे.
फाइटर रवि कोई छोटा-मोटा अपराधी नहीं बल्कि कॉलीवुड में एक संगठित नेटवर्क वाला मजा हुआ अपराधी है. वह पहली बार 2015 में पुलिस अधिकारी आलोक कुमार द्वारा क्रिकेट सट्टेबाजी रैकेट का पर्दाफाश होने के समय सुर्ख़ियों में आया था. कुमार ने आरोप लगाया था कि जब उन्होंने बेंगलुरु में सट्टेबाजी के राजा के रूप में माने जाने वाले फाइटर रवि को गिरफ्तार करने की कोशिश की तो उन्हें राजनेताओं और शीर्ष पुलिस अधिकारियों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था. फ़िलहाल रमेश की आत्महत्या की जांच की निगरानी करने वाले नारंग के अनुसार– 50 लाख रुपया जो रमेश और सुरेश को सौंपा गया था, वह वास्तव में फाइटर रवि का ही था. इससे यह समझा जा सकता है कि रमेश और सुरेश पर 17 नवम्बर को फाइटर रवि ने क्यों हमला किया था. लगभग एक महीने और रमेश की मौत के छः दिन बाद बाद 12 दिसम्बर को रामनगर जिले के इजूर पुलिस थाने में इस घटना के बारे में एक एफ़आईआर दर्ज कराई गयी थी. नारंग ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि सुरेश से पूछताछ करने पर उसने खुलासा किया कि गौड़ा ने उसे एफ़आईआर दर्ज कराने से मना किया था, उसने कहा था कि हमें ताकतवर लोगों के साथ नहीं उलझना चाहिए.
रमेश की ख़ुदकुशी की जांच के संबंध में कम से कम तीन बार सीआईडी ने फाइटर रवि से पूछताछ की है. सीआईडी ने भाजपा के बेल्लारी संसद सदस्य बी श्रीरामुलु के साथ काम करने वाले एक गनमैन चन्नाबासवान्ना गौड़ा से भी पूछताछ की है.
रमेश के केस को 11 दिसम्बर को सीआईडी को सौंप दिया गया था. उसी दिन, मंडया पुलिस ने नायक और मोहम्मद को गिरफ्तार कर लिया. रमेश की आत्महत्या की खबर मीडिया में आने के बाद से ही ये दोनों उत्तर कर्नाटक के कालाबुरगी में सीआईबी कॉलोनी में नायक के साले के घर में छिपे हुए थे. पुलिस ने नायक के मोबाइल फ़ोन को ट्रैक करके उसका पता लगाया – ये वही फ़ोन था जिससे चन्नाबासवन्ना और फाइटर रवि को लगातार कॉल किये गये थे.
मंडया पुलिस ने बताया कि उन्हें नायक से पूछताछ के लिए सिर्फ 20 मिनट मिले, नायक फ़िलहाल सीआईडी की हिरासत में है. इतने कम समय में, पुलिस नायक से यह क़ुबूल करवाने में कामयाब हो गयी थी कि रमेश ने जो आरोप लगाये थे वे सभी सही थे. सीआईडी जिनकी हिरासत में नायक है, उससे से भी इस बात की पुष्टि की गयी थी. नायक के परिवार में उसका भाई है, जिससे कोई बात नहीं हो पाई है, और बोर्डिंग स्कूल में रहने वाले दो बच्चे हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए नारंग ने बताया कि इस सनसनीखेज केस जिसमें एक विस्तृत और गहरी जांच की जरुरत है उसे सीआईडी को सौंप दिया गया है. उन्होंने कहा कि सीआईडी की जांच के दो पहलु हैं: पहला यह जानना कि रमेश की मृत्यु के लिए कौन ज़िम्मेदार था और दूसरा सुसाइड नोट में जिन पैसों के बारे में जिक्र है उन पैसों का पता लगाना. नारंग ने बताया कि नायक की ‘आय से ज्यादा संपत्ति’ की जांच भ्रष्टाचार ब्यूरो (एसीबी) द्वारा की जा रही है. एसीबी, कर्नाटक के महानिरीक्षक डॉ एमए सलीम ने कहा कि रमेश द्वारा उसके सुसाइड नोट में दी गई जानकारी के आधार पर भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम, 1988 (असंतुलित संपत्ति) की धारा 13(1)(ई) के तहत नायक के खिलाफ जांच शुरू की गयी है. हालांकि सलीम ने जांच के बारे में कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया.
श्रीरामुलु के गनमैन को नायक द्वारा की गई कॉल, और रेड्डी के साथ उसके रिश्तों की डोर हमें 2009 में ले जाती है– जब नायक को एक प्रोजेक्ट के लिए बेल्लारी में करीब 1000 एकड़ जमीन हासिल करने का काम सौंपा गया था. इसके पीछे उस समय कर्नाटक के आधारभूत ढांचा विकास मंत्री रेड्डी थे. यह इस ओर इशारा है कि नायक भाजपा के स्टेट विंग को अच्छे से जानता था. रमेश के सुसाइड नोट में लिखा है कि नायक की राजनीतिक आकांक्षाएं भी थीं. उसने लिखा था, “डील उसको (नायक) 2018 में हगारिबोम्मानाहल्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की हुई थी.” मंडया पुलिस ने पुष्टि की कि नायक टिकट की उम्मीद में काफी जगह अपना बायोडाटा भेज रहा था, जिसमें उसकी पहले हुई नियुक्तियों का जिक्र था (उनमें से एक बेल्लारी के तहसीलदार के रूप में भी थी).
रमेश इन राजनेताओं, पहलवानों, और अधिकारियों से नायक के ड्राईवर और एक ऐसे आदमी के रूप में जुड़ा जो जल्दी पैसा कमाना चाहता था. यह कहना मुश्किल है कि क्या नायक और उसका रिश्ता रमेश के ज्यादा पैसे कमाने की महत्वकांक्षा के कारण टूट गया. लेकिन जो सुसाइड नोट उसने लिखा है उससे यह साफ़ है कि रमेश ने यह नहीं सोचा था कि नायक के ऊपर उंगली उठाने के बाद कुछ सवाल उसकी तरफ भी उठेंगे. रमेश को सरकारी तंत्र पर भरोसा नहीं था, शायद उसे पता था कि नायक केएएस और राजनीतिक संबंधों के कारण उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा. उसे यह डर भी था कि अगली बार फाइटर रवि उसे आसानी से नहीं जाने देगा जैसे की 17 नवम्बर को जाने दिया था.
इतना तो पक्का है: अपने सुसाइड नोट से, रमेश ने इसना तो साबित कर ही दिया कि आज के भारत में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं और इस व्यवस्था में आम लोग कितने लाचार हैं. रमेश का परिवार मुआवज़े की मांग कर रहा है और साथ ही उन पैसों की भी जो उनके अनुसार नायक के ऊपर रमेश का बकाया है.
इसी बीच उन 8 लाख रुपयों का कोई सुराग नहीं है जो नायक कथित तौर पर रमेश से वापस पाना चाहता था.