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नफ़रती महापंचायत के जाने पहचाने चेहरे और मूकदर्शक दिल्ली पुलिस
रविवार 3 अप्रैल को मैं और मेरे सहयोगी रौनक भट्ट सुबह 9 बजे बुराड़ी मैदान के लिए निकले थे. 10:30 बजे जब हम वहां पहुंचे तब लोग गाड़ियों, बसों और बाइकों से झुंड में आ रहे थे.
बुराड़ी मैदान में रविवार को हिंदू महापंचायत का आयोजन हो रहा था. इसके मुख्य आयोजक सेव इंडिया फाउंडेशन के संस्थापक प्रीत सिंह और पिंकी चौधरी थे. यति नरसिंहानंद सरस्वती और सुदर्शन न्यूज़ के संपादक सुरेश चह्वाणके मुख्य वक्ता थे.
बता दें न्यूज़लॉन्ड्री ने 28 जनवरी को ही खबर कर दी थी कि बुराड़ी में बिना इजाज़त के हिंदू महापंचायत का आयोजन होने जा रहा है.
कार्यक्रम शुरू होते-होते करीब 500 लोगों की भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी. सभी अलग-अलग संगठनों जैसे हिंदू रक्षा दल, हिंदू युवा वाहिनी, हरियाणा वक्फ लैंड होल्डर्स एसोसिएशन आदि से थे.
जब हम मैदान में पहुंचे उसी वक्त से हम पर निगरानी होने लगी. कुछ लोग हमें लगातार घूर रहे थे और हाथों से इशारे कर रहे थे. शायद वो हमें पहचान गए थे. मैंने पिछले साल 8 अगस्त को जंतर मंतर पर हुई मुस्लिम-विरोधी नारेबाजी और भड़काऊ भाषण की रिपोर्ट की थी. उस रिपोर्ट के आधार पर आयोजक प्रीत सिंह, पिंकी चौधरी और उत्तम उपाध्याय को गिरफ्तार किया गया था.
हम जहां भी जाते कुछ लोगों का समूह हमारा पीछा कर रहा था. एहतियातन हमने अपना मास्क पहने रखा था.
कार्यक्रम की शुरुआत हवन से हुई. उसके बाद स्टेज पर वक्ता बोलने लगे. सबसे पहले सुदर्शन न्यूज़ के सुरेश चह्वाणके ने भाषण दिया. उन्होंने अपने भाषण में तमाम मुस्लिम विरोधी बातें कही जिनमें से एक था मुसलमानों का अधिकार वापस लेना. वहां मौजूद लोग तालियां बजाकर उनका समर्थन कर रहे थे.
इसी दौरान डासना मंदिर के विवादित महंत और जूना अखाडा के महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद सरस्वती मंच पर पहुंचे. उनके आते ही भीड़ में नारा गूंजने लगा- "जय श्री राम, हर-हर महादेव.”
पिछले साल 8 अगस्त को मुस्लिम विरोधी नारेबाजी के मामले में मेरी रिपोर्ट के बाद प्रीत सिंह और पिंकी चौधरी के साथ विनीत क्रान्ति और मुख्य आरोपी उत्तम उपाध्याय को गिरफ्तार किया था. दिल्ली पुलिस ने मेरे वीडियो को बतौर सबूत इस केस में शामिल किया था. ये सारे लोग बुराड़ी मैदान में मौजूद थे.
मंच पर मौजूद उत्तम मालिक ने शायद मुझे पहचान लिया था. उसने मुझे देखकर हाथ जोड़ा. इस दौरान नीचे कुर्सी पर बैठा एक अन्य आरोपी विनीत क्रांति भी मुझे लगातार घूर रहा था. असहज होकर मैंने और रौनक ने तुरंत उस क्षेत्र को छोड़कर, मुख्य स्टेज की तरफ, जहां ज्यादा लोग थे, वहां चले गए.
आखिर में सेव इंडिया फाउंडेशन का अध्यक्ष और कार्यक्रम का मुख्य आयोजक प्रीत सिंह स्टेज पर पहुंचा. वह एक-एक कर अपनी 5 मांगें जनता के सामने रखता है. इसी दौरान मेरे लिए बहुत एक बड़ी असहज स्थिति पैदा हो गई. मंच से भाषण दे रहा प्रीत सिंह मेरी तरफ इशारा करते हुए कहने लगा, "शिवांगीजी मैं जो बोल रहा हूं क्या उसमें कोई हेट स्पीच है."
यह सुनकर तुरंत ही सारे लोग मुझे घूरने लगे. मुझे डर लगा लेकिन मैं चुपचाप खड़े रहकर वीडियो शूट करती रही. मैंने और रौनक ने फैसला किया कि हम भीड़ में बैठे कुछ लोगों से बातचीत करके वापस लौट जाएंगे.
हम मीडिया के लिए आरक्षित क्षेत्र से बाहर निकल ही रहे थे कि मेहरबान, जो की एक फ्रीलांस पत्रकार हैं, भागते हुए हमारी तरफ आए. वह घबराए हुए थे. मेहरबान हमसे कहते हैं, "जल्दी चलिए. कुछ रिपोर्टरों को पुलिस पकड़कर ले जा रही है."
इस घटना को समझने के लिए हम मेहरबान के पीछे-पीछे भागे. रौनक थोड़ा आगे निकल गया था. मैं पीछे से आ रही थी. इसी दौरान एक आदमी ने मुझे रोका. वह आयोजकों की टीम में से था. उसने कहा, “मैं आपको अच्छे से जानता हूं शिवांगीजी. पिछले साल आपके ही कारण हमें लोग जानने लगे.” मैं कुछ कहने की बजाय आगे बढ़ गई.
जब मैं घटनास्थल पर पहुंची तब वहां धक्कामुक्की चल रही थी. पुलिस की पीसीआर वैन खड़ी थी. पुलिसकर्मी भी खड़े थे. तभी 15-20 लोगों की भीड़ ने मेहरबान को खींच लिया.
लोग चिल्ला रहे थे- “यह पत्रकार नहीं हैं. इनकी तलाशी लो. इन लोगों के पास हथियार हैं.”
रौनक और मैं वीडियो बनाने लगे. मैंने कई बार ऐसे कार्यक्रमों को कवर किया है. वीडियो में भीड़ का चेहरा आना जरूरी होता है. देखते ही देखते अचानक भीड़ ने रौनक को अपनी तरफ खींच लिया. वह भीड़ में घिर गया. सबसे पहले उसका चश्मा निकालकर जमीन पर फेंक दिया, फिर उसका प्रेस आईडी कार्ड मांगने लगे. उसके हाथों से इक्विपमेंट भी छीन लिया.
मैं इस सबका वीडियो बना रही थी. तभी 4-5 आदमी मेरे पास आए. मेरा बैग पकड़कर मुझे पीछे की तरफ खींचने लगे. इनमें से दो आदमी मेरे पीछे खड़े थे, एक बैग पकड़कर, और एक ने मुझे कंधे से पकड़ा लिया. एक आदमी ने मेरा वो हाथ पकड़ लिया जिसमें मैंने मोबाइल लिया हुआ था. एक आदमी मेरा मोबाइल छीनने लगा.
कोई कह रहा था- “अपना प्रेस आईडी कार्ड दिखाओ.” कोई कह रहा था- “मोबाइल में रिकॉर्डिंग डिलीट करो. हम वीडियो नहीं बनाने देंगे.”
पुलिस मेरे बगल में खड़ी थी, इसलिए मुझे भरोसा था लिहाजा मैं भी उनसे तेज़ आवाज़ में बोलने लगी, “मैं अपना प्रेस आईडी कार्ड दिखा देती हूं. लेकिन आप मेरे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते.” मुझे उम्मीद थी कि पुलिस बीच-बचाव करेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
मेरे विरोध के बाद उन आदमियों की पकड़ थोड़ा हल्की पड़ी तो मैं तुरंत रौनक को देखने के लिए उसकी ओर भागी. मैंने देखा कि 5 पत्रकार पुलिस की पीसीआर वैन में पीछे की तरफ बैठे थे. ये मीर फैसल, मेहरबान, मेघनाद, अरबाब अली और शाहिद थे.
द क्विंट के पत्रकार मेघनाद ने मुझे खिड़की के अंदर से बताया कि उन्हें थाने ले जाया जा रहा है.
पीसीआर उन्हें लेकर निकल गई. मैं और रौनक थोड़ी देर वहीं रुक गए क्योंकि रौनक को जिस भीड़ ने घेरा था वह उसका प्रेस आईडी लेकर भाग गई थी.
वहां मौजूद पुलिस वालों ने हमसे पूछताछ की. हमसे भीड़ में शामिल लोगों के नाम मांगे. इसके तुरंत बाद ही हम मुख़र्जी नगर थाने पहुंचे. हमारे साथ थाने में द क्विंट के मेघनाद बोस, हिन्दुस्तान गैज़ेट के मीर फैसल, आर्टिकल 14 के अरबाब अली और मेहरबान मौजूद थे. हमने पुलिस से अपनी लिखित शिकायत दर्ज करवाई. उस वक्त डीसीपी (उत्तर-पश्चिम) और एसएचओ भी वहां मौजूद थे.
मीर और अरबाब को चोटें आई थी. बाद में उनका मेडिकल टेस्ट हुआ. मीर ने बताया, “मैं और अरबाब कवरेज कर रहे थे. हम लोगों का इंटरव्यू कर रहे थे. काम खत्म करने के बाद हम वहीं कुर्सी पर बैठ गए. तभी कुछ लोगों के झुंड ने मुझे घेर लिया.”
मीर का आरोप है कि भीड़ ने उनका कैमरा छीन लिया. वह कहते हैं, “भीड़ में एक शख्स ने मुझसे मेरा नाम पूछा. मैंने उन्हें अपना असली नाम ‘मीर फैसल’ बताया. उन्हें समझ आ गया था मैं मुसलमान हूं. उन्होंने मुझ से आगे पूछा कि मैं कहां से आया हूं. मैंने बताया ओखला. यह सुनते ही उन्होंने खुद कहा, ‘अच्छा जामिया नगर.’ उसके बाद उन्होंने मुझसे मेरा प्रेस आईडी मांगा.”
मीर आगे की घटना के बारे में बताते हैं, “मैंने हाल ही में नई संस्था में काम करना शुरू किया है इसलिए मेरे पास दिखाने के लिए आईडी कार्ड नहीं था लेकिन मोबाइल में फोटो थी. अरबाब भी मेरे साथ था. मैंने उन्हें अपना बैग भी दे दिया कि इसमें कुछ भी गलत सामान नहीं है.”
भीड़ ने मीर का बैग अपने पास रख लिया. मीर बताते हैं, “देखते ही देखते 20 लोग हमारे आस-पास, हमें घेरकर खड़े हो गए. वे लोग हम पर आरोप लगाने लगे कि तुम लोग एक एजेंडा के तहत यहां आए हो. उन्होंने मेरे बैग की तलाशी ली. बैग में मुस्लिम नामों की लिस्ट थी. यह वो नाम थे जिनके ऊपर मुझे अपने अगली स्टोरीज करनी थी.”
आगे की कहानी अरबाब बताते हैं, “भीड़ को देखकर पुलिस आई. बावजूद इसके भीड़ ने हमें उनके सामने ही मारना शुरू कर दिया. धक्का दिया. वे कह रहे थे कि इन दोनों को पुलिसवालों को न दो, इन्हें यही मारो. ये जिहादी हैं, ये मुल्ले हैं.”
अरबाब कहते हैं, “भीड़ ने मेरा मोबाइल छीन लिया और 7-8 लोगों से कहा कि हम पर नजर रखे और हमें वहां से जाने न दें. उन्होंने जबरदस्ती की और मेरे फोन से वीडियो डिलीट करने लगे. काफी देर तक पुलिस केवल हमें देख रही थी. कुछ कर नहीं रही थी.”
इस दौरान मेहरबान, मीर और अरबाब से कुछ ही दूर खड़े थे. उन्हें डर था कि अगर वह बचाने जाएंगे तो भीड़ उन पर भी हमला कर देगी.
मेहरबान बताते हैं, “वे लोग मीर और अरबाब को परेशान कर रहे थे. मुझे डर था कि मेरे मुसलमान होने के कारण मुझ पर भी हमला कर सकते हैं. जब मैंने महसूस किया कि चीज़ें आगे बढ़ रही हैं, मैंने मेघनाद को बुला लिया. मेघनाद ने मुझसे बाकी पत्रकारों को बुलाने के लिए कहा.”
मेघनाद को भी पुलिस पीसीआर वैन में थाने लेकर आई थी. मेघनाद ने हमें बताया, “भीड़ आक्रामक थी. उन्होंने ड्राइविंग सीट पर बैठे पुलिसकर्मी को भी घसीटकर मारा क्योंकि वे लोग सिविल ड्रेस में थे.”
मेघनाद के एक ट्वीट को डीसीपी (उत्तर-पश्चिम) उषा रंगनानी ने “झूठा” बताया.
उन्होंने कहा, “हमने किसी भी पत्रकार को डीटेन नहीं किया. कुछ पत्रकारों ने स्वेच्छा से, अपनी मर्जी से, भीड़ से बचने के लिए, जो उनकी उपस्थिति से उत्तेजित हो रही थी, कार्यक्रम स्थल पर तैनात पीसीआर वैन में बैठ गए और सुरक्षा कारणों से पुलिस स्टेशन जाने का विकल्प चुना.”
जबकि असलियत में मेरी उपस्थिति में पुलिस पत्रकारों को पीसीआर वैन में बिठा रही थी. उसने भीड़ में से एक भी शख्स को हिरासत में नहीं लिया.
शाम 4 बजे मुख़र्जी नगर पुलिस थाने में धारा 354, 323, 356, 511 और 34 के तहत न्यूज़लॉन्ड्री ने एक एफआईआर दर्ज कराई है. इसके आलावा मीर फैजल, अरबाब और मेहरबान ने मेडिकल के बाद एक अलग एफआईआर दर्ज कराई है.
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