जामिया मिल्लिया इस्लामिया और इसके छात्रों पर हुए दिल्ली पुलिस के हमले के दो साल पूरे होने पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित कार्यक्रम में अरुंधति रॉय द्वारा दिया गया भाषण.
यह किसी भी चीज को नहीं समझती, सिवाय नफरत के. हमारे पास एक ऐसी सरकार है जो देश को प्यार करती है लेकिन लोगों से प्यार नहीं करती है. दो दिन पहले हमने देखा मोदी जी बनारस में एक मंदिर में सीमेंट के भारत माता के नक़्शे को प्रणाम कर रहे थे. आज जबकि उनकी नीतियों के चलते पूरा देश आर्थिक रूप से, और कोरोना महामारी में, बदहाल है. आज जब इस देश के एक्टिविस्ट जेल में है, छात्र जेल में हैं, बुद्धिजीवी जेल में हैं, आखिर वे किस देश की पूजा कर रहे थे? किसानों की नहीं, दलितों की नहीं, मजदूरों की नहीं, महिलाओं की नहीं, आदिवासियों की नहीं. वे पूजा करते हैं तो अंबानी की, अडानी की.
इन हालात को बदलना होगा, और यह आसान नहीं है. उन्होंने सत्ता पर अपनी पकड़ को बनाए रखने के लिए चुनाव की पूरी व्यवस्था ही बदल दी है. अब चुनावों में किसी दल के पास पर्याप्त संसाधन नहीं है, सिर्फ भाजपा ही ऐसा दल है जिसके पास चुनाव की फंडिंग है. चुनावी बॉन्ड्स के बारे में लाया गया कानून, निर्वाचन क्षेत्रों की बदली जाने वाली सीमाएं - हर चीज इस तरह की जा रही है कि वे सत्ता में बने रहें. आज इस देश के संस्थानों पर सिर्फ भाजपा का नहीं, बल्कि आरएसएस और उसकी विचारधारा का कब्जा है.
यह कब्जा ऐसे किया गया है कि अगर वे चुनाव हार भी जाएं, तब भी सत्ता में उन्हीं के लोग रहेंगे. हमने खुद देखा कि किस तरह मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सर्वोच्च न्यायालय को एक प्रशासनिक संगठन में बदल दिया, उसे सीएए-एनआरसी के रोजमर्रा के कामकाज की निगरानी करने का जिम्मा दे दिया. यह तब किया गया जब यह सवाल अभी हल नहीं हुआ था कि सीएए-एनआरसी संवैधानिक है भी कि नहीं, वे इस सुनवाई को ही टालते रहे.
इन कानून की संवैधानिकता पर सवाल खड़े थे और न्यायालय इसको तय किए बिना इसको लागू कर रहा था. उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय का मजाक बना दिया. ऐसे हालात में हम सबके लिए बड़ा सवाल है कि भविष्य क्या होने जा रहा है. इसका जवाब मुश्किल बना रहेगा जब तक हम यह नहीं समझते कि ये सारे संघर्ष आपस में जुड़े हुए हैं, जब तक हम अलग-अलग लड़ते रहेंगे. वे यही चाहते हैं कि हम अलग-अलग बने रहें, जामिया के छात्र सिर्फ जामिया के लिए लड़ें, जेएनयू के छात्र सिर्फ जेएनयू के लिए लड़ें, छत्तीसगढ़ के लोग सिर्फ छत्तीसगढ़ के लिए लड़ें, किसान सिर्फ किसान के लिए लड़ें. वे यही चाहते हैं कि एक जाति दूसरे के खिलाफ, एक धर्म दूसरे धर्म के खिलाफ बना रहे. हम आज जिस हालात में हैं हमें समझना पड़ेगा कि चीजें ऐसे नहीं चल पाएंगी.
हमारा देश भारत एक सामाजिक करार पर बना है. यह करार सैकड़ों समुदायों, भाषाओं, धर्मों, जातीयताओं, जातियों, क्षेत्रों, नस्लों के बीच में है. अगर इस करार को तोड़ दिया जाए, और आरएसएस-भाजपा की विचारधारा इस करार को तोड़ने की विचारधारा है, तो भारत नहीं रहेगा. शायद 10 या 20 साल लगेंगे, लेकिन इस करार के टूटने के बाद भारत भी नहीं रह जाएगा. अगर आप देखना चाहते हैं कि देश कैसे खत्म होते हैं तो आप बस सोवियत संघ और यूगोस्लाविया को देख लीजिए.
इसलिए हमें यह समझने की जरूरत है कि जामिया और एएमयू के छात्रों ने और उन सारे लोगों ने, जो सीएए के खिलाफ खड़े हुए, उन्होंने समझा कि यह हमारे देश के सामने बुनियादी खतरा है. और उनमें से कई लोग आज यूएपीए के तहत जेल में हैं. किसी लोकतंत्र में ऐसा कोई कानून कैसे हो सकता है कि आप किसी को उठा कर सालों के लिए जेल में बंद कर दें. वे इसे प्रीवेंटिव डिटेंशन कहते हैं, एक लोकतंत्र में ऐसे कानून की जगह कहां होती है? इस आतंकवाद के कानून के तहत सरकार ने जिस-जिस को भी उठाया है, उसे अच्छी तरह मालूम है कि वे आतंकवादी नहीं हैं. इसीलिए वे उन्हें आतंकवादी कह रहे हैं.
साईबाबा आतंकवादी नहीं हैं, सुधा भारद्वाज आतंकवादी नहीं हैं, आनंद तेलतुंबड़े आतंकवादी नहीं हैं, सुरेंद्र गडलिंग, गौतम नवलखा, उमर खालिद, शरजील इमाम, कोई भी आतंकवादी नहीं है. बल्कि सच्चाई इसके उलट है. आप जानते हैं खुर्रम परवेज क्यों जेल में हैं. क्योंकि वे कश्मीर में एक मजबूत पाए की तरह खड़े थे, वे एक मुश्किल जमीन पर खड़े थे, जहां से वे वहां के अवाम के खिलाफ राज्य की कार्रवाइयों के खिलाफ भी थे और मिलिटेंसी के खिलाफ भी. कश्मीर पर भारतीय राज्य ने जो दहशत थोपी है, उनके संगठन ने इसके दस्तावेज तैयार किए. वे इसलिए जेल में हैं कि उन्होंने उस दहशत को और भारतीय राज्य को, जो एक दहशतगर्द राज्य है, उजागर किया.
यूएपीए इसी का एक नमूना है कि यह दहशत किस तरह थोपी जा रही है. अमित शाह ने यूएपीए को और भी कठोर बनाते हुए यह बात जोड़ी कि सिर्फ संगठन ही नहीं, व्यक्ति भी आतंकवादी माने जा सकते हैं. आप-हम, यहां मौजूद सभी नौजवान, छात्र, नेता, एक्टिविस्ट, और बुद्धिजीवी जेल में डाले जा सकते हैं. एक अगस्त 2019 को यूएपीए कानून में संशोधन के समय अमित शाह ने जो कहा था, वह मैं आपको पढ़ कर सुनाना चाहती हूं, “महाशय, बंदूकों से आतंकवाद नहीं बढ़ता, आतंकवाद की जड़ इसको फैलाने वाले प्रचार में है. और अगर ऐसे सभी व्यक्तियों को आतंकवादी घोषित कर दिया जाए, तो मैं नहीं सोचता कि संसद के किसी सदस्य को इस पर आपत्ति होनी चाहिए.”
यह छात्रों पर, बुद्धिजीवियों पर हमला है, यह हम सब पर हमला है जिनको अर्बन नक्सल कहा जाता है. और हमें इस हमले का एक साथ सामना करना है. जैसे इन्हें कृषि कानून वापस लेने पड़े, वैसे ही इनको सीएए-एनआरसी को वापस लेना पड़ेगा.
आखिर में मैं दो और बातें कहना चाहती हूं. पहली बात यह है कि इनको सत्ता से हटाना पड़ेगा. यह बात हमें साफ-साफ कहने की जरूरत है कि जो भी विपक्षी दल आपस में एक दूसरे के साथ लड़ते हैं, वे फासिस्टों के साथ हैं. उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं, हम चाहते हैं कि जो भी दल फासीवाद के खिलाफ हैं वो एक साथ हो जाएं. और अगर वो नहीं होते हैं तो इसका मतलब है कि वो इनके साथ हैं.
दूसरी बात यह है कि हमें एक बड़ी अहम मांग उठाने की जरूरत है कि हमारे देश में कोई व्यक्ति सिर्फ एक ही कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री बन सकता है. हमें राजा-महाराजाओं का समय नहीं चाहिए. वह समय खत्म हो गया. अब हमें मांग करनी है कि एक व्यक्ति सिर्फ एक ही बार प्रधानमंत्री बन पाए, उससे ज्यादा नहीं. हमारी तरफ से यह एक लोकतांत्रिक मांग उठनी चाहिए.
शुक्रिया.
15 दिसंबर 2021
अनुवाद: रेयाज़ुल हक़