जितना मुश्किल उपर्युक्त संख्या को पढ़ना है उतना ही जटिल जलवायु संकट का समाधान है.
हाल ही में कॉप-28 संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु शिखर सम्मेलन में दुबई में जहां भारत समेत 200 देश जिस क्लाइमेट वार्ता के लिए जुटे हैं, वहां क्लाइमेट फाइनेंस भी एक बड़ा मुद्दा है.
हालांकि सम्मलेन में जिन अमीर और विकसित देशों ने पिछले 150 सालों में अंधाधुंध कार्बन उत्सर्जन करके धरती को संकट की इस कगार पर लाकर खड़ा किया है वो अब उस संकट से हो रही तबाही के लिए वित्त मुहैया कराएंगे.
इस साल उत्तराखंड-हिमाचल और सिक्किम की बाढ़ हो या फिर चक्रवाती तूफान ‘मिचौंग’ के कारण तमिलनाडु और पूर्वी तट पर बसे दूसरे राज्यों में हुई तबाही, सबने भारी नुकसान पहुंचाया है.
इन आपदाओं के कारण हुए आर्थिक नुकसान का बिल्कुल सटीक या पूर्ण आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. लेकिन राज्य और केंद्र सरकार के बयानों से कुछ अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है.
उत्तराखंड और हिमाचल की बाढ़ से क्षति की कीमत 15,000 करोड़ आंकी गई है, जबकि पूर्वी तट पर चक्रवाती तूफान से कई राज्यों में तबाही की आर्थिक कीमत हजारों करोड़ में है. इसी तरह तमिलनाडु के मुख्यमंत्री द्वारा आपदा के बाद केंद्र सरकार से मांगी गई अंतरिम सहायता राशि भी 5060 करोड़ रुपए से अधिक है. जैसे-जैसे क्लाइमेट चेंज का प्रभाव बढ़ेगा ऐसी आपदाओं की तीव्रता, संख्या और इनसे होने वाली क्षति भी बढ़ेगी.
इन बाढ़ और तूफानों से होने वाली क्षति से बचने की कोशिश में हजारों, लाखों नहीं बल्कि करोड़ों रूपए खर्च हो चुकें हैं और आगे भी होते रहेंगे.
क्लाइमेट क्राइसिस का कितना बोझ खजाने पर पड़ता है? और विकासशील देशों पर इसकी मार को कैसे समझा जाए? इस वीडियो में इन्हीं सवालों का जवाब खोजने की कोशिश की है. देखिए पूरा वीडियो-