रॉयटर्स इंस्टीट्यूट की ताजा डिजिटल न्यूज़ रिपोर्ट बताती है कि खबरों में आम लोगों की रुचि और भरोसा दोनों घट रहा है.
भारतीय मीडिया में अंग्रेजी के साथ-साथ तमाम क्षेत्रीय भाषाओं की बड़ी हिस्सेदारी है. कोविड महामारी के दौरान समूचा भारतीय मीडिया आर्थिक दिक्कतों और विज्ञापन की कमी से परेशान था. ऑक्सफोर्ड के रायटर्स इंस्टीट्यूट की डिजिटल मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर के बाद से भारत का मीडिया वापसी की राह पर दिख रहा है. रिपोर्ट में अंग्रेजी भाषी लोगों ने इंडिया टुडे टीवी, NDTV 24x7 और बीबीसी को सबसे लोकप्रिय अंग्रेजी खबरी चैनल बताया. प्रिंट में अंग्रेजी अख़बार द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स और द हिन्दू अंग्रेजी अखबारों में सबसे आगे हैं. महामारी के बाद 2021 में प्रिंट मीडिया की आय में 20% की बढ़ोतरी हुई है.
हालांकि इन पुराने मीडिया संस्थानों को आज के इंटरनेट युग में जन्मे मीडिया संस्थानों से कड़ी टक्कर मिल रही है. डिजिटल न्यूज़ रिपोर्ट की मानें तो इन नयी मीडिया संस्थाओं के आर्थिक मॉडल पुरानी संस्थाओं से अलग हैं. ये नई मीडिया संस्थाएं जैसे न्यूज़लॉन्ड्री, द वायर आदि गैर-परम्परागत आर्थिक ढांचों पर निर्भर हैं. मसलन न्यूज़लॉन्ड्री किसी बी तरह का विज्ञापन सरकार या उद्योग जगत से नहीं लेता. यह केवल पाठकों के सब्सक्रिप्शन पर चलता है.
कई दूसरे ऑनलाइन संस्थान अपने पाठकों की उदारता, चंदे या नॉन-प्रॉफिट की तरह चलते हैं. कई थोड़े बहुत विज्ञापनों का सहारा लेते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री सारी ख़बरों को निष्पक्ष रूप से दिखाने के लिए चर्चित है, द वायर सत्ता पक्ष के खिलाफ बेखौफ आवाज़ उठाने के लिए जाना जाता है और द न्यूज़ मिनट अपना पूरा ध्यान दक्षिण भारत की रिपोर्टिंग पर रखता है. डिजिटल न्यूज़ रिपोर्ट 2022 के मुताबिक़ डिजिटल बाजार ने कुल मिलाकर 29 प्रतिशत की उछाल देखी है जिसमें विज्ञापन और सब्सक्रिप्शन, दोनों का ही योगदान 29-29 प्रतिशत का है.
रिपोर्ट बताती है कि डिजिटल मीडिया में वृद्धि का श्रेय भारतीय मोबाइल बाजार को दिया जा सकता है. भारत में 72 प्रतिशत लोगों की ख़बरों का स्रोत मोबाइल है जबकि सिर्फ 35% लोग ही ख़बरों के लिए कंप्यूटर का उपयोग करते हैं. आज के युग में मोबाइल ऐप और न्यूज़ एग्रीगेटर प्लेटफार्म जैसे गूगल न्यूज़ (53%), इन-शार्ट (19%), डेली-हंट (25 %) और न्यूज़ पॉइंट (17%) ख़बरों तक पहुंचने का एक महत्वपूर्ण ज़रिया हैं.
सर्वे में भाग लेने वाले लोगों से ये भी पता चला कि 51 प्रतिशत लोग व्हाट्सएप और 53 प्रतिशत लोग यूट्यूब से खबरें हासिल करते हैं. नीति निर्माताओं के लिए सोशल मीडिया की बढ़ती लोकप्रियता एक खतरे का संकेत भी है. इसकी वजह झूठी ख़बरों का संचार, ट्रोलिंग और सोशल मीडिया पर आम हो चुकी अभद्रता व उत्पीड़न है. अक्सर फेक-न्यूज़ और ट्रोलिंग का आरोप सत्ता-पक्ष के करीबी लोगों पर लगता रहा है. इस साल अप्रैल में सरकार ने कई यूट्यूब चैनलों पर प्रतिबंध लगा दिया. इन चैनलों पर आरोप था कि इन चैनलों ने गलत खबरें फैलाकर देश की विदेश नीति और आंतरिक सुरक्षा को हानि पहुंचाई थी.
ये प्रतिबंध फरवरी 2021 में पारित आईटी एक्ट के अंतर्गत लगाया गया था. इस दौरान फेसबुक की भी कड़ी समीक्षा हुई, जब मीडिया में यह बात सामने आयी कि फेसबुक द्वारा समाज में ध्रुवीकरण पैदा करने वाली ख़बरों को प्रोत्साहन मिल रहा था. फेसबुक पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को 2019-20 के आम चुनावों के मदद पहुंचाने के आरोप भी लगे.
2022 में, भारत वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में आठ स्थान गिरकर 150वें पायदान पर आ गया है. इस गिरावट की बड़ी वजह आज़ाद पत्रकारिता के सामने आ रही कड़ी चुनौतियों को माना जा रहा है. कश्मीर प्रेस क्लब (KPC) को जनवरी के महीने में क्षेत्रीय प्रशासन ने पुलिसवालों के सामने कथित तौर पर कब्ज़ा लिया था. इस घटना को एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने लगातार प्रेस की स्वतंत्रा के गला घोंटने की प्रक्रिया का हिस्सा करार दिया. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भी पत्रकारों के लिए नई मान्यता के नियम लागू किये हैं, जिसमें कहा गया है कि अगर पत्रकारों के काम से देशहित और संप्रभुता को खतरा होता है, तो ऐसे पत्रकारों की मान्यता निलंबित कर दी जायेगी.