विज्ञापन जिनके प्रकाशन पर डीआईपी ने ‘आप’ से मांगा 163 करोड़ का हर्जाना

ये विज्ञापन दिल्ली सरकार के एक साल पूरे होने पर 2016-17 में प्रकाशित हुए थे. जिसकी शिकायत कांग्रेस नेता अजय माकन ने की थी.

WrittenBy:बसंत कुमार
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11 जनवरी को आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से दिल्ली के सूचना एवं प्रचार निदेशालय (डीआईपी) की सचिव आर ऐलिस वाज़ ने विज्ञापन देने में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करने के मामले में 163.62 करोड़ रुपए देने की मांग की है. इसमें 99.31 करोड़ रुपए मूलधन है, और 64.31 करोड़ इस पर लगने वाला ब्याज है.

‘आप’ पर आरोप है कि उसने सरकारी विज्ञापनों की आड़ में राजनीतिक विज्ञापन प्रकाशित कराए. इसमें पार्टी का प्रचार किया. डीआईपी ने ‘आप’ को यह पैसे 10 दिनों के भीतर जमा कराने के लिए कहा है. अगर निर्धारित समय में पार्टी पैसे नहीं देती है, तो कानून के मुताबिक पार्टी पर आगे कार्रवाई होगी.

इस आर्डर के बाद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एलजी विनय सक्सेना पर हमला बोला. उन्होंने कहा, ‘‘एलजी साहब के जरिए भाजपा इन अफसरों के ऊपर असंवैधानिक कब्जा बनाकर, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके मंत्रियों के खिलाफ राजनीतिक इस्तेमाल कर रही है. एक चुनी हुई सरकार को काम नहीं करने दिया जा रहा है.’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘पार्टी ने पत्र लिखकर उन विज्ञापनों की सूचना मांगी है कि ये कौन से विज्ञापन हैं? हम उन विज्ञापनों को भी तो देखें कि उसमें क्या गैरकानूनी है. जो भाजपा के अभी विज्ञापन लगे हैं, आप पूरी दिल्ली में चले जाओ भाजपा के मुख्यमंत्रियों के होर्डिंग लगे हुए हैं. अखबारों में रोज विज्ञापन आ रहे हैं. हम भी तो देखें कि हमने उनसे अलग क्या विज्ञापन दे दिया.’’

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डीआईपी सचिव के नोटिस के बाद कांग्रेस और भाजपा, ‘आप’ पर हमलावर हैं. पार्टी पर सरकारी पैसे के दुरुपयोग का आरोप लग रहा है. वहीं आप के सचिव संदीप पाठक ने पत्र लिखकर विज्ञापनों की सूचना मांगी है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने उन विज्ञापनों की सूची हासिल की है जिनको लेकर ‘आप’ पर सरकारी पैसे के दुरुपयोग का आरोप लगा है. ये ज्यादातर विज्ञापन साल 2016 में देश के अलग-अलग हिस्सों के अंग्रेजी और हिंदी अखबारों में प्रकाशित हुए और टीवी चैनलों पर भी दिखाए गए. इसमें से ज्यादातर विज्ञापन दिल्ली सरकार के एक साल पूरा होने पर प्रकाशित हुए थे.

डीआईपी की सेक्रेटरी ने जो नोटिस केजरीवाल को भेजा है, उसमें सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के साथ उसके द्वारा बनाई गई एक कमेटी का जिक्र है.

दरअसल, कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन ने केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा सरकारी विज्ञापनों के जरिए सार्वजनिक पैसे की बर्बादी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटीशन दायर की थी. इसमें बताया गया था कि सरकारें, किसी नेता या अपनी पार्टी को प्रमोट करने के लिए जनता के पैसे का इस्तेमाल करती हैं. यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई थी.

13 मई, 2015 को जस्टिस रंजन गोगोई ने इस पर अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने इस विषय को लेकर तीन लोगों की कमेटी बनाई थी, जिसमें राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी भोपाल के पूर्व निदेशक एनआर माधव मेनन, लोकसभा के पूर्व महासचिव टीके विश्वनाथन और वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार शामिल थे. इस कमेटी ने विज्ञापनों को लेकर दिशा निर्देश बनाए और कोर्ट में प्रस्तुत किए. जिसे COMMITTEE ON CONTENT REGULATION OF GOVERNMENT ADVERTISING 2014 ( CCRGA ) नाम दिया गया.

तीन सदस्यीय कमेटी ने काफी विस्तार में सरकारी विज्ञापनों को लेकर दिशा निर्देश दिए हैं. डीआईपी के सेक्रेटरी ने अपने नोटिस में बताया कि अजय माकन द्वारा दिल्ली सरकार के विज्ञापनों के राजनीतिक इस्तेमाल को लेकर हाईकोर्ट जाने के बाद, 10 अगस्त, 2016 को हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट की इसी कमेटी को विज्ञापनों की समीक्षा कर छह सप्ताह में अपना जवाब देने के लिए कहा. 

कमेटी ने दिल्ली सरकार के विज्ञापनों की समीक्षा की. समीक्षा के बाद कमेटी ने दिल्ली सरकार को चार बिंदु बताए और इसके अंतर्गत आने वाले विज्ञापनों का खर्च आम आदमी पार्टी से लेने के लिए कहा. ये चार बिंदु थे-

1. कई मौकों पर राज्य के बाहर विज्ञापन दिए गए.

2. वो विज्ञापन जिसमें आम आदमी पार्टी का जिक्र है.

3. किसी दूसरे राज्य में हुई घटना पर मुख्यमंत्री द्वारा प्रकट किए विचार को विज्ञापन के रूप में प्रकाशित किया गया.

4. वो विज्ञापन जिसमें विपक्ष को निशाना बनाया गया.

दरअसल जिन विज्ञापनों को लेकर शिकायत की गई थी उसमें से ज्यादातर कमेटी द्वारा दिल्ली सरकार को दिए गए आदेश के अंतर्गत आते हैं. उदाहरण के रूप में, दिल्ली सरकार के एक साल पूरे होने पर 16 और 17 फरवरी 2016 को अलग-अलग अखबारों में दिल्ली ही नहीं उत्तर प्रदेश, पंजाब और हैदराबाद के अखबारों में विज्ञापन दिए गए. 

इस दौरान टाइम्स ऑफ इंडिया के अलग-अलग एडिशन में एडवर्टोरियल छपा. इस विज्ञापन के सबसे ऊपरी हिस्से पर लिखा था, ‘One Year OF AAP KI SARKAR’. 

यहां पाठक को संबोधित करते हुए आप की जगह, AAP लिखा गया. यह आम आदमी पार्टी  के नाम का संक्षिप्त रूप भी है. इसके अलावा भी कई अन्य विज्ञापनों में भी दिल्ली सरकार को AAP KI SARKAR लिखा गया. इन विज्ञापनों में जो सामग्री छपी, उसमें भी दिल्ली सरकार को बार-बार केजरीवाल सरकार लिखा गया.

कमेटी ने यह भी कहा कि राज्य के बाहर हुई किसी घटना पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के विचार को विज्ञापन के रूप में दिखाया गया. दरअसल 10 मार्च 2016 को एक पत्र केजरीवाल ने हरियाणा वासियों को लिखा था. इस पत्र को दिल्ली सरकार ने विज्ञापन के रूप में छपवाया था. इस पत्र में केजरीवाल हरियाणा के गौरव की याद दिलाते हुए भाईचारा बनाए रखने की बात करते हैं. दरअसल यह पत्र जाट आरक्षण के लिए हुई हिंसा के बाद लिखा गया था.

मार्च 2016 में हरियाणा वासियों के नाम लिखा गया दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का पत्र

कमेटी का चौथा बिंदु विपक्षी दलों पर विज्ञापन के जरिए निशाना साधना बताया गया. जिस दौरान के विज्ञापनों को लेकर अजय माकन ने शिकायत दी थी, उसमें एक नहीं कई ऐसे विज्ञापन शामिल हैं जिनमें विपक्ष पर सीधा निशाना साधा गया है.

मसलन, जुलाई 2015 में दिल्ली सरकार ने मेट्रो स्टेशन पर एक विज्ञापन लगवाया, जिसमें लिखा था, ‘‘प्रधानमंत्री जी, प्लीज! दिल्ली सरकार को काम करने दीजिए. दिल्ली सरकार ठीक काम कर रही है.’’  एक दूसरा विज्ञापन था, ‘‘वो हमें परेशान करते रहे, हम काम करते रहे.’’ 

डीआईपी के नोटिस के बाद आम आदमी पार्टी ने 12 जनवरी को पत्र लिखकर इन विज्ञापनों की जानकारी मांगी है. हालांकि डीआईपी की नोटिस की माने तो 'आप' की तरफ से सितंबर 2016 में सीसीआरजीए के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिसे सीसीआरजीए ने 11 नवंबर, 2016 के अपने आदेश द्वारा खारिज कर दिया था.

इसके बाद  30 मार्च 2017 को डीआईपी ने आप के संयोजक केजरीवाल को डिमांड नोटिस जारी किया. जिसे आप ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. आप को यहां से भी राहत नहीं मिली. हाईकोर्ट ने पैसों की रिकवरी के मामले में स्टे नहीं दिया.

इसके बाद यह सब ठंडे बस्ते में चला गया. अब नोटिस आने के बाद, आम आदमी पार्टी के नेता एलजी पर भाजपा के इशारे पर काम करने का आरोप लगा रहे हैं. वहीं इस मामले के शिकायतकर्ता अजय माकन ने भी ट्वीट कर लिखा, “यह सीएम बनाम एलजी का मामला नहीं है. एलजी ने तो छह साल देरी की है. हाईकोर्ट में मेरी याचिका पर 2016 में 6 हफ्तों में फैसला लेने को कहा था! 6 हफ्ते नहीं 6 वर्षों बाद, देर आए-दुरुस्त आए!’’

विनय सक्सेना ने एलजी बनने के कुछ ही महीने बाद डीआईपी के डायरेक्टर और सेक्रेटरी, दोनों को बदल दिया.

सितंबर के शुरुआती सप्ताह में सक्सेना ने डीआईपी के डायरेक्टर और सेक्रेटरी के तबादले का आदेश जारी किया. डायरेक्टर पद से मनोज कुमार द्विवेदी को हटा दिया गया और साथ ही सेक्रेटरी सीआर गर्ग का भी तबादला कर दिया गया. निदेशक के पद पर द्विवेदी की जगह आरएन शर्मा को लाया गया. शर्मा फिलहाल श्रम विभाग में कमिश्नर भी हैं. वहीं आर ऐलिस वाज़ को सेक्रेटरी बनाया गया. वाज़, डीआईपी के अलावा उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण व तकनीकी शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी भी संभाल रही हैं.

नाम नहीं छापने की शर्त पर एक अधिकारी बताते हैं, “इसके बाद डीआईपी में पुराने फाइल निकाले जाने लगे. वे फाइल एलजी हाउस भेजे जाने लगे. सिर्फ वही फाइल ही नहीं, कोई भी नई फाइल पहले एलजी हाउस जाती है और उसके बाद मुख्यमंत्री या दूसरे मंत्रियों के यहां. जिसका असर दिल्ली के विज्ञापनों पर भी पड़ा. अजय माकन की शिकायत के बाद कमेटी ने अपना सुझाव भी दे दिया था, पर इस पर आगे कुछ नहीं हुआ. विनय सक्सेना ने आते ही इसपर कार्रवाई तेज कर दी.''

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