वैलेंटाइन डे विशेष : मेरी नानी की जवानी

पैदाइश, शादी और दूसरी शादी सबकुछ वैलेंटाइन डे के दिन.

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मानता हूं, मैं मानता हूं कि ख़्वातीन-ओ-हज़रात को यह शीर्षक ज़रा अटपटा लगा होगा. मुझे भी लगा पर, परंतु, किन्तु, लेकिन क्या करूं, मेरी नानी की भी तो जवानी थी. आपकी भी होगी.

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मियां, उनकी जवानी ना होती तो हम होते क्या? वह अलहदा बात है कि समाज के ठेकेदार जैसे ही ‘जनाना’ और ‘जवानी’ के अल्फ़ाज़ को इकट्ठे देखते हैं, वे दो और दो जोड़कर पांच बना ही डालते हैं. आदत से मजबूर हैं.

मानता हूं, मैं मानता हूं लेकिन इसमें मेरी नानी का क्या क़ुसूर? नानी मेरी, लेख मेरा, यादें मेरी- आप कौन, मैं ख़ामख़ां.

तो सुनिए जनाब,

14 फ़रवरी, 1932. वैलेंटाइन का दिन

मेरी नानी पैदा हुईं थी मथरा में (मथुरा नगरी को वहां के बाशिंदे प्यार से ‘मथरा’ कहते हैं). वहीं, जहां से कृष्ण कन्हैया आए थे. दोनों रास रचैया.
यहां वैलेंटाइन डे के कनेक्शन पर ग़ौर करिएगा. मेरी नानी इतनी मस्तानी थीं कि उस ज़मानें में ज़िद पकड़ बैठ गईं कि वैलेंटाइन डे पर ही ब्याह रचाऊंगी. हां जी, उस ज़मानें में. वह गांधीजी वाला टाइप ज़माना था.

उनकी ख़ूबसूरती पर मेरे ‘होने वाले’ नाना जी मोर थे ही. मान गए लड़केवाले.
सोलह बरस की कच्ची जवानी में मेरी नानी ब्याह दी गईं.

14 फ़रवरी, 1948, एक बार फिर से वैलेंटाइन का दिन

नानी हमेशा कहती थीं, दिल्लीवाले से दिल लड़ाऊंगी. सुना है, बड़े दिलवाले होते हैं. ग़लत. ना दिल्ली वाले दिलवाले होते हैं, ना मेरे नानाजी थे. मेरे नाना जी उबाऊ क़िस्म के सरकारी अधिकारी थे. (मुझे लगता है कि उन दोनों की पांच औलादें मेरी नानी की रूमानियत की देन होंगी.)

ना मेरे पूज्य नानाजी देव आनंद थे, ना उन्हें प्रेम करना आता था. फिर भी, मेरी नानी देव आनंद और प्रेम चोपड़ा साब की मुरीद थीं. बड़ी वाली. विरोधाभास है, फिर भी थीं. मुझे लगता था कि देव साहब के आकर्षण से दीवानी थीं, पर प्रेम चोपड़ा? चोपड़ा से क्यों प्रेम था? उन्होंने कुछ किया था क्या इनके साथ, जैसा उनका फ़िल्मी व्यक्तित्व है? मुझे शक था. बचपने में सनीमा का असर इसे ही कहते हैं?

ख़ैर, नानीजी ने इन दोनों महानुभावों से प्रेरित शिक्षा मुझे दी. जहां देव साब के गीतों ने मुझे ‘आनंद’ दिया और जीने का तरीक़ा सिखाया, वहीं चोपड़ा साब मुझे ‘प्रेम’ जाल में फांस नहीं पाए. ‘बद अच्छा, बदनाम बुरा’ वाली बात है, शायद.
प्रिय देव आनंद का गीत- ‘मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया…’ मेरी शख्सियत का निचोड़ है.

श्री श्री प्रेम चोपड़ा जी का जुमला- ‘मीठा बोल, बड़ा अनमोल…’ मैं ग्रहण न कर पाया. वैसे प्रेम से प्रेम कर लेता तो काफ़ी नुकसान से बच जाता. जुमला तो बजा है. उर्दू वाला बजा, हिंदी वाला नहीं.

नानी की रंगीन मिजाज़ी का अंदाज़ा मुझे तब हुआ जब वह सठियाने की उम्र में अक्षय कुमार पर मर मिटीं. बताओ! वैलेंटाइन डे के साइड इफेक्ट्स कहते हैं इसे.

‘चुरा के दिल मेरा, गोरिया चली…’ इस गीत को रोज़ाना देखकर, गुनगुना कर, पैरों को थिरकाकर और शर्मीली सी मुस्कान दबाकर उन्हें चैन नहीं पड़ता, हमें रोटी नसीब नहीं होती थी. क्या चित्रहार, क्या रंगोली, क्या टॉप टेन. पहले हमने समझा कि ‘गोरिया’ को ‘गौरैया’ समझ बैठी हैं (वह चिड़िया) लेकिन एक दिन नानाजी जो बिदके तो सफ़ाई देते कहतीं– “कितना रस से भरपूर है यह भावमय गीत” हम उनकी भावनाएं समझ रहे थे पर काफ़ी देर हो चुकी थी. मतलब, काफ़ी उम्र हो चुकी थी उनकी.

इन्हीं हरकतों और हसरतों के मद्देनज़र, एक बार मैंने उनका बाप बनने का फैसला किया.

14 फ़रवरी, 1998, एक और वैलेंटाइन डे

उनकी शादी की गोल्डन जुबली पर मैंने नाना-नानी का बाक़ायदा ब्याह करवाया और कन्यादान भी किया. अपनी इस नई, गोद ली हुई बेटी को याद भी रखवाना था कि अक्षय को भूलकर अपने वाले ‘कुमार’ पर ध्यान लगाओ. इसी से मोक्ष मिलेगा.

वह मेरा ग्लोबल ज्ञान समझीं कि नहीं पता नहीं क्योंकि रहल पर बैठीं हों तो भी संजीदा नहीं रहती थीं. कहती थीं- “तेरे नानाजी तो वैलेंटाइन डे पर मुझे गुलाब नहीं देते, तू अपनी गर्लफ्रैंड को ज़रूर दियो. वर्ना मेरी तरह उसके भी गाल सूख जाएंगे, पूरी तरह से. हां, पूरी से याद आया, मेरे पूरे होने पर मिरासी ज़रूर बुलवाना वर्ना मेरी आत्मा बोर हो जाएगी.”

बता दूं कि हमारे यहां मौत पर भी जश्न मनाया जाता है. रिवाज़ है. कहते हैं कि जब दुनिया में आने पर जलसा मनाते हैं तो रुखसत होने पर क्यों नहीं. मेरी मस्तमौला नानी तो गोया कहतीं थीं कि उन जैसी आशिक़ाना मिजाज़ का जनाज़ा निकले तो ज़रा… धूम से निकले. शुक्र है, मेरी शख्सियत उन पर नहीं गई वर्ना मेरी बेग़म तो ग़म से रुखसत हो लेतीं और फिर बजाता भी मैं ही. बजाता माने, बैंड-बाजा. कृपया ग़लत समझकर शर्मिंदा न करें (ख़ुद को).

अजीब राबता था मेरा उनसे. मां से भी गहरा. मायूस होता हूं तो उन्हीं की तसल्ली याद आती है. हमेशा छत पर ले जातीं और आसमां दिखा कर कहतीं कि रात जब सबसे गहरी हो तो समझ लो सुबह होने को है. अलबत्ता, उनकी तसल्ली ज़्यादा दिनों तक टिकती नहीं थी क्योंकि जिस दर्ज़े का गधा मैं था, सियापे आम थे. ऐसे में पूछती थीं, अखिल बड़ा या भैंस? मैं समझ जाता. भैंस ही बड़ी है.

आज भी छत पर वह आसमां देखने जाऊंगा. मायूसी नहीं है. बीन बजानी है-भैंस के आगे नहीं, नागिन वाली. नागिन डांस होगा तारों के बीच, इकतारे के साथ.

14 फ़रवरी 2019, आज का वैलेंटाइन डे.

मेरी नानी आज ही के दिन इक तारे में तब्दील हो गई थीं. छः बरस पहले.
‘चुरा के दिल मेरा, गोरिया चली…’

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