सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार राजधानी दिल्ली में जिले-स्तर पर 11 रोड सेफ्टी समितियां हैं जिन्हें मार्च 2022 में एक पत्र के माध्यम से ये निर्देश दिया गया था कि हर 15 दिन में ऑनलाइन तथा महीने में एक बार फिजिकल मीटिंग की जाए. हैरानी की बात है कि इन निर्देशों की अंजलि हत्याकांड के पहले पूरी तरह से अनदेखी की गई.
1 जनवरी को दिल्ली के कंझावला में 20 वर्षीय अंजलि सिंह की एक दर्दनाक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई. इस हादसे ने काफी सवाल खड़े कर दिए हैं. देश की राजधानी में 69 ऐसे "fatality spots” हैं जहां 250 मीटर की रेंज में सबसे ज़्यादा सड़क दुर्घटनाएं होने की संभावनएं हैं.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार दिल्ली में जिले स्तर पर 11 ऐसी रोड सेफ्टी समितियों का भी गठन किया गया है जिनकी ज़िम्मेदारी है सड़क सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर लगातार मीटिंग के माध्यम से समस्या से लड़ना और समाधान निकालना.
न्यूज़लॉन्ड्री ने एक रियलिटी चेक में पाया की ये समितियां नियमित रूप से मीटिंग नहीं कर रही हैं. रोड सेफ्टी को लेकर स्पेशल कमिश्नर का पद भी पिछले साल लगभग दो महीनों के लिए अक्टूबर से दिसंबर के बीच खाली था.
रोड सेफ्टी विशेषज्ञ जो कि इस तरह की समितियों में आए दिन शिरकत करते हैं, एक तरफ दिल्ली सरकार के उदासीन व्यवहार से परेशान समझ आते हैं तो वहीं केंद्र की नीतियों पर भी सवाल उठाते हैं, क्योंकि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी द्वारा समर्थित 2020 के स्टॉकहोम डिक्लेरेशन के मुताबिक भारत को 2030 तक सड़क दुर्घटनाओं में 50 फीसदी तक की कमी लाने का प्रयास करना है.
एक परिवार ने वीभत्स सड़क हादसे में जहां अपनी इकलौती कमाने वाली बेटी खोई है, वहीं दिल्ली के सरकारी आकाओं का रवैया ये सवाल खड़े करता है कि आखिर कितनी अंजलियों जैसे आम नागरिकों के मरने के बाद सिस्टम की नींद खुलेगी.
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