बरेली के सरकारी स्कूल से ग्राउंड रिपोर्ट: 'ज्यादा दबाव पड़ा तो हम घर बेच कर चले जाएंगे'

बरेली के सरकारी स्कूल में अल्लामा इकबाल की नज़्म गाने पर प्रधानाचार्य नाहिद सिद्दीकी को निलंबित, और शिक्षा मित्र वजीरूद्दीन को जेल भेजा गया. क्या हैं स्कूल के हालात?

WrittenBy:अवधेश कुमार
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उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के एक सरकारी स्कूल में अल्लामा इकबाल की नज़्म ‘लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी’ पर विवाद खड़ा हो गया है. इसके चलते जिले की तहसील फरीदपुर स्थित सरकारी स्कूल कंपोजिट कमला नेहरू उच्च प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाचार्य और एक शिक्षा मित्र के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया गया है. प्रधानाचार्य नाहिद सिद्दीकी को निलंबित कर दिया गया और शिक्षा मित्र वजीरूद्दीन की सेवाएं समाप्त कर उसे गिरफ्तार कर लिया गया. अदालत से 2 जनवरी को जमानत मिलने के बाद उसे रिहा कर दिया गया.

यह पूरा मामला क्या है, इसकी पड़ताल के लिए हम बरेली जिले में स्थित उस स्कूल पहुंचे.

कंपोजिट कमला नेहरू उच्च प्राथमिक विद्यालय, फरीदपुर के परा मोहल्ला की घनी आबादी में बना है. संकरी गलियों में बने इस स्कूल के बोर्ड पर अगर ध्यान न जाए, तो पता ही नहीं चलेगा कि यहां कोई स्कूल भी है. प्रधानाचार्य के मुताबिक कक्षा एक से छह तक के इस स्कूल में करीब 300 बच्चे पढ़ते हैं. इनमें ज्यादातर छात्र मुस्लिम हैं. 

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विवाद की वजह

इस स्कूल में नियमित रूप से 'इतनी शक्ति हमें देना दाता' प्रार्थना होती थी, लेकिन एक दिन वहां इकबाल की नज़्म ‘लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी’ हुई. इस दौरान किसी ने उस प्रार्थना का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाला और वह वीडियो वायरल हो गया. इसके बाद इलाके में सक्रिय हिंदू संगठनों ने इसका विरोध किया और पुलिस से शिकायत की, जिसके बाद यह कड़ी कार्रवाई हुई.

इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने वाले विश्व हिंदू परिषद के फरीदपुर नगर अध्यक्ष सोमपाल राठौर कहते हैं, "यहां पर शिकायत आ रही थी कि सरकारी स्कूल में बच्चों को इस्लाम धर्म की प्रार्थना कराई जा रही है. इसका मेरे पास वीडियो आया, तो हमने इसमें मामला दर्ज कराया और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया."

वो कहते हैं कि इसे लेकर शिकायत तो बार-बार मिल रही थी, लेकिन कोई ठोस सबूत न होने के कारण वे कुछ कर नहीं पा रहे थे. जैसे ही उनके पास इसका वीडियो आया तो उन्होंने तुरंत अपनी तरफ से कार्रवाई की. 

वह आगे कहते हैं, “बच्चों से हमारी बात हुई तो वह भी कह रहे थे कि उनसे यह प्रार्थना जबरन कराई जाती है, और नहीं करने पर उन्हें पीटा भी जाता है.” 

हमने उन्हें याद दिलाया कि यह नज़्म तो बच्चों के पाठ्यक्रम में भी है. इस पर वह कहते हैं, “यहां हिंदू मुस्लिम सभी बच्चे पढ़ते हैं. तो इसे आप मुस्लिम बच्चों से करवाइए, हिंदू से क्यों करवा रहे हैं? सिलेबस में क्या है इससे मुझे मतलब नहीं है. वह कविता इस्लामिक है और हिंदू बच्चे कर रहे हैं, तो हम इसका विरोध करते हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “अगर पढ़ाना है तो जय श्री राम पढ़वाइए, हनुमान चालीसा पढ़वाइए. हिंदू बच्चों से भी पढ़वाओ और मुसलमान बच्चों से भी पढ़वाओ, हमें कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन एक ही चीज क्यों पढ़वाई जा रही है? और भी बहुत सी प्रार्थना हैं, वो करवाओ. जरूरी थोड़ी है यही करवाई जाए. इस मामले में हमने दो लोगों पर एफआईआर दर्ज कराई है.”

imageby :सोमपाल राठौर

राठौर बार-बार इस बात पर जोर देते रहे कि यह पूरा मामला हिंदू बच्चों को सनातन धर्म से दूर करके इस्लाम से प्रेरित करना था. 

इसके पीछे की मंशा क्या रही होगी? इस पर वह कहते हैं, “इनकी मानसिकता बहुत लंबी थी. यह पूरा धर्मांतरण का मामला था. ये बच्चों का अभी से ‘माइंड-वाश’ करने की कोशिश थी क्योंकि यह सब बच्चों से जबरन कराया जा रहा था. यह बात हमें बच्चों ने ही बताई है. बच्चों के परिजनों ने भी बताया है कि हमसे हाथ ऊपर करवाकर, ‘या अल्लाहा’ वाली कोई प्रार्थना कराई जाती थी.”

क्या स्कूल में स्थित मंदिर भी विवाद का एक कारण है? 

स्कूल के प्रांगण में एक मंदिर भी मौजूद है. स्थानीय लोगों के मुताबिक स्कूल में मंदिर से कुछ लोगों को दिक्कत हैं. स्थानीय निवासी और स्कूल से कुछ ही दूर रहने वाले पुष्पेंद्र कुमार मिश्रा कहते हैं, “यहां जो प्रिंसिपल हैं, वह मुस्लिम हैं. और उनको चिढ़ है कि यहां मंदिर क्यों है.” 

स्कूल के बड़े गेट पर दो ताले लगे हैं. छोटे गेट के ताले की चाबी स्थानीय मंदिर से कुछ ही दूरी पर रहने वाले आचार्य संजीव कुमार मिश्रा रखते हैं. जबकि दूसरे बड़े गेट के ताले की चाबी स्कूल प्रशासन के पास रहती है.

संजीव कहते हैं, “छोटा गेट मंदिर के लिए है और बड़ा गेट स्कूल के लिए. यहां शनिवार और मंगलवार को ज्यादा भीड़ रहती है क्योंकि यहां शनि महाराज और हनुमान का मंदिर है.”

इस पूरे विवाद को लेकर उनका कहना है, “हमारी यहां के अध्यापक से बात हुई थी तो उन्होंने कहा था कि वह नज़्म पांचवीं के बच्चों को पढ़ा रहे थे. लेकिन सवाल ये है कि अगर वह बच्चों को पढ़ा रहे थे तो क्लास में बैठकर पढ़ाते, वो बाहर बैठकर क्यों पढ़ा रहे थे? जबकि बच्चों का कहना है कि रोजाना दो से ढाई बजे के बीच छुट्टी के समय यह प्रार्थना बच्चों से कराई जाती थी.”

यह नज़्म तो बच्चों की किताब में भी छपी है, इस पर वह कहते हैं, “यह नज़्म 5वीं और 6वीं के बच्चों की किताबों में है, लेकिन यह नज़्म कक्षा 1 से 8 तक के सभी बच्चों से गवाई जा रही थी.”

क्या कहती हैं प्रिंसिपल नाहिद सिद्दिकी

प्रिंसिपल नाहिद सिद्दिकी फरीदपुर में ही रहती हैं. उन्होंने हमें अपने घर आने से मना कर दिया. उनका कहना था कि वे इस विवाद के चलते बहुत परेशान हैं और किसी से इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहती हैं. 

थोड़ी हिचकिचाहट के बाद वह हमसे बात करने के लिए तैयार हो गईं. वह कहती हैं, “मैं छुट्टी पर गई हुई थी. मेरे पीछे ये सब हुआ. मेरी बेटी की शादी थी, मैं उस समय बरेली गई थी. मेरे पीछे जो कराया है, ये वजीरुद्दीन ने कराया है.”

हमने उन्हें याद दिलाया कि उनके खिलाफ भी मामला दर्ज हुआ है. इस पर उन्होंने कहा, “मेरा मामला अब सुलझ गया है. अब मेरी सिर्फ स्कूल में ज्वाइनिंग रह गई है, स्कूल खुलते ही मैं ज्वाइन कर लूंगी. बेसिक शिक्षा अधिकारी के यहां से आदेश आ गया है. मेरा ट्रांसफर भौजीपुरा से आगे करा दिया गया है.”

जब यह नज़्म पाठ्यक्रम की किताबों में है, तो फिर इतना विवाद क्यों? वे कहती हैं, “हां यह नज़्म उर्दू की किताबों पर पीछे छपी है. इस नज़्म को बच्चे शौक से पढ़ रहे थे. मुस्लिम बच्चे भी ज्यादा हैं हमारे यहां. बच्चों के कहने पर मास्टर ने गवा दी. लेकिन पता नहीं क्यों इसका इश्यू बना रहे हैं? अगर नज़्म से दिक्कत है तो उसे किताब से भी हटा देना चाहिए. जबकि दिल्ली के स्कूलों में भी ये पढ़ाई जाती है. हिंदुस्तान के हर स्कूल और हर जगह यह गवाई जा रही है. पता नहीं हमारे यहां बोलने पर इतना इश्यू क्यों बना रहे हैं?” 

नाहिद पैरों से विकलांग हैं. चलने फिरने में असमर्थ हैं. उनको शक है कि यह पूरा विवाद किसी स्कूल वाले ने नहीं बल्कि ऊपर वालों ने किया है. उन लोगों ने ही यह वीडियो बनाई है. उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.

उन्होंने कहा, “मैं 31 मार्च को रिटायर होने वाली हूं. अपनी बीमारी और परेशानियों को देखते हुए ही मैंने दो साल पहले वीआरएस लिया है. नहीं तो इतनी तनख्वाह मिल रही है, कौन इतना पहले नौकरी छोड़ सकता है?”

जब मैंने उन्हें बताया कि मैं दिल्ली से आया हूं, तो उन्होंने हैरान होते हुए कहा, “बताओ, इतनी सी बात की दिल्ली तक खबर हो गई! जबकि मैंने कभी दिल्ली की शक्ल तक नहीं देखी है. खैर, अभी बीएसए से मेरी बात हो गई है. मुझे सिर्फ स्कूल खुलने पर ज्वाइन करना है. मेरा मामला सुलझ गया है.”

वजीरुद्दीन को लेकर वे कहती हैं कि वह अच्छे इंसान हैं और स्कूल में काफी मेहनत भी करते थे. उन्हें भी बेवजह फंसाया गया है. स्कूल में चार टीचर हैं, इनमें तीन मुस्लिम और एक हिंदू है. दो महिलाएं और दो पुरुष हैं. 

प्रिंसिपल की बातों से बीएसए का इंकार

हमने इस पूरे मामले पर बरेली जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी विनय कुमार से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने इसमें असमर्थता जताई.

बीएसए विनय कुमार ने बताया, “मैं एक कोर्ट केस के मामले में लखनऊ आया हुआ हूं. बरेली आने में एकाध दिन लग जाएगा, इसलिए मिलकर तो मुलाकात नहीं हो पाएगी.”

मामले को लेकर वे कहते हैं, “हमने प्रिंसिपल को निलंबित कर दिया है और शिक्षा मित्र की सेवाएं समाप्त कर दी हैं.”

जब प्रिंसिपल नाहिद सिद्दिकी की बहाली के बारे में हमने बीएसए विनय कुमार से पूछा तो उन्होंने कहा कि ऐसा तो कुछ अभी नहीं हुआ है. वे उनकी बहाली होने से भी इनकार करते हैं.

नज़्म के पाठ्यक्रम में होने के बावजूद उसे लेकर इतना विवाद क्यों? वे जवाब में कहते हैं, “उर्दू मीडियम की किताबों में यह नज़्म है. दूसरी बात यह प्रार्थना नहीं है, क्योंकि प्रार्थना अलग निर्धारित है.”

अगर यह नज़्म इतनी विवादित है तो क्या उसे किताबों से ही नहीं हटवा देना चाहिए? इस सवाल पर वह चुप हो जाते हैं, काफी देर बाद कहते हैं कि प्रार्थना अलग है और यह अलग है. इसके बाद कुछ पूछ पाने से पहले ही विनय फोन काट देते हैं. 

परेशान करेंगे तो घर बेच देंगे

बाकी सब से बात करने के बाद हम वजीरुद्दीन के घर पहुंचे. यहां हमारी मुलाकात उनके बेटे अरमान से हुई. अरमान विकलांग हैं और उस समय काफी डरे हुए हैं. वह घर पर ही फोटो स्टेट की दुकान चलाते हैं.  

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वजीरुद्दीन के पांच बेटे और तीन बेटियां हैं. बेटियों की शादी हो चुकी है. जबकि पांचों बेटे घर पर साथ में ही रहते हैं. उनको डर है कि कहीं पुलिस उनको भी न गिरफ्तार कर ले. अरमान कहते हैं, “कोई भी घर पर नहीं है. इस विवाद के बाद सभी लोग घर से चले गए हैं. हम पापा से पहले ही मना करते थे कि मत करो नौकरी. 10 हजार रुपए कुल मिलते हैं.”  

अरमान नाराजगी जाहिर करते हुए कहते हैं, “मैं किसी से कोई बात नहीं करना चाहता. मीडिया ने हमारे साथ कोई कमी नहीं छोड़ी है. जब तक पापा छूट कर वापस नहीं आ जाते तब तक मैं किसी से कोई बात नहीं करना चाहता.”

वह आगे कहते हैं, “यहां के एक स्थानीय अखबार ने छाप दिया कि वजीरुद्दीन के बच्चे भी हिंदू विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं. इन पर भी कार्रवाई हो सकती है. इसके बाद से हम और डरे हुए हैं. परिवार के सारे लोग बाहर हैं.” 

हमने उस कथित अखबार को तलाशने की कोशिश भी की, लेकिन नहीं मिला.

वे अपने नज़रिए से घटनाक्रम बयान करते हैं, “पापा स्कूल में पढ़ा रहे थे. तभी पुलिस का फोन आया कि आपसे पूछताछ करनी है थाने आ जाइए. हमें भी लगा कि पूछताछ के लिए बुलाया है. लेकिन वहां उनसे फोन छीन लिया गया और कुछ देर बाद पुलिस का घर पर फोन आया कि इन्हें थाने ले जा रहे हैं, आखिरी बार देख लो. पहले वह घर में ही स्कूल चलाते थे फिर प्राइवेट पढ़ाने लगे और अब सरकारी स्कूल में पढ़ाने जाते थे. कभी कोई दिक्कत नहीं हुई लेकिन अब ये सब हो गया. वे 2007 से पढ़ा रहे हैं.”

वे आखिर में परेशान होते हुए कहते हैं, “हमें ज्यादा परेशान करेंगे तो हम यहां से अपना घर बेचकर चले जाएंगे. हिंदू संगठनों ने पुलिस पर बेवजह दबाव बनाकर पापा को गिरफ्तार करवाया है.”

स्कूल में कूड़े का ढेर

फरीदपुर थाने के थानाध्यक्ष दया शंकर कहते हैं, "विश्व हिंदू परिषद के नेता सोमपाल राठौर की शिकायत के बाद शिक्षा मित्र वजीरूद्दीन और प्रधानाचार्या नाहिद सिद्दीकी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. वजीरूद्दीन को तो तभी जेल भेज दिया गया था और प्रधानाचार्या नाहिद सिद्दीकी के बारे में राय ली जा रही है, और जांच जारी है. आईओ चेंज हो गए हैं इसलिए देरी हो रही है. अब जांच के बाद देखेंगे कि उन पर क्या कार्रवाई होती है.”

वह आगे कहते हैं, “घटना सही थी इसलिए कार्रवाई की गई है. यह कार्रवाई कोई दबाव में नहीं हुई है. उर्दू की किताबों में ये नज़्म है. इसलिए इसे उर्दू पढ़ने वाले बच्चों को ही पढ़ाया जाना चाहिए था, सार्वजनिक रूप से नहीं. संस्कृत पढ़ने वाले बच्चों को उर्दू क्यों पढ़ा रहे हैं? इसलिए कार्रवाई हुई है.”

बता दें कि 'लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी' नज़्म को मोहम्मद इकबाल ने 1902 में लिखा था. अल्लमा इकबाल के नाम से मशहूर इक़बाल ने ही 'सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा' गीत भी लिखा था, जो आज़ादी की लड़ाई का एक बड़ा हिस्सा भी बना.

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