आपके मीडिया का मालिक कौन: एनडीटीवी की कहानी

न्यूज़लॉन्ड्री की एक सीरीज़ जो भारत के प्रमुख समाचार संगठनों के स्वामित्व का रहस्योद्घाटन करती है.

WrittenBy:पूजा भूला
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एनडीटीवी या न्यू दिल्ली टेलीविज़न लिमिटेड के अतिरिक्त 26 प्रतिशत शेयरों के लिए एक महीने की देरी से 22 नवंबर, 2022 को शुरू हुआ अडानी समूह का खुला ऑफर, आखिर 5 दिसंबर को बंद हुआ. ऑफर किए गए शेयरों का 31.7 प्रतिशत हासिल कर अडानी समूह ने एनडीटीवी के 8.26 प्रतिशत शेयर हासिल कर लिए. चूंकि एनडीटीवी की होल्डिंग कंपनी आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड (आरआरपीआर) के माध्यम से अडानी समूह के पास पहले से ही एनडीटीवी के 29.18 प्रतिशत शेयर थे, इसलिए समूह की कुल हिस्सेदारी 37.44 प्रतिशत हो गई और वह एनडीटीवी के सबसे बड़े शेयरधारक बन गए.

इस ऑफर को वित्तपोषित करने वाली अडानी समूह की सहायक कंपनी, एएमजी मीडिया नेटवर्क्स लिमिटेड (एएमएनएल) ने ऑफर जारी होने की मूल तिथि, 17 अक्टूबर से पहले, विश्वप्रधान कमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड के एस्क्रो खाते में 493 करोड़ रुपए की समूची आवश्यक राशि जमा करा दी थी.

ओपन ऑफर जारी करने के मूल कार्यक्रम में देरी, सेबी की रज़ामंदी के इंतज़ार में हुई क्योंकि बोर्ड ने एनडीटीवी के प्रवर्तकों - राधिका और प्रणॉय रॉय - को स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार न करने का आदेश दिया था.

बीएसई के आंकड़ों से पता चलता है कि इस प्रक्रिया में केवल व्यक्तिगत निवेशकों ने भाग लिया और विनिमय पर केवल 467 शेयरों की बोली लगाई गई. एनएसई के आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट बताती है कि कॉर्पोरेट निवेशकों ने सबसे अधिक 39 लाख शेयर ऑफर किए, खुदरा निवेशकों ने 7 लाख से अधिक शेयर और 6.8 लाख शेयर योग्य संस्थागत खरीदारों ने ऑफर किए. हालांकि इन आंकड़ों में शेयरधारकों की पहचान उजागर नहीं की गई.

राधिका और प्रणॉय रॉय ने 29 नवंबर को आरआरपीआर के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया था. उनके पास अभी भी एनडीटीवी में 32.26 प्रतिशत हिस्सेदारी है. सुदीप्ता भट्टाचार्य (सीईओ, अडानी ग्रुप नॉर्थ अमेरिका, और सीटीओ, अडानी ग्रुप), संजय पुगलिया (सीईओ और एडिटर इन चीफ, एएमएनएल) और सेंथिल सिन्नैया चेंगलवारायण (क्विंटिलियन बिजनेस मीडिया लिमिटेड के निदेशक) आरआरपीआर के बोर्ड में शामिल हुए.

जहां इस ऑफर के लिए शेयरों की पेशकश 294 रुपए की रियायती दर पर की जा रही थी, 23 अगस्त को ऑफर के बारे में पहली घोषणा के बाद एक शेयर की कीमत एक पखवाड़े से भी कम समय में 369.75 रुपए से बढ़कर 545.75 रुपए हो गई थी. साथ ही स्क्रीनर के अनुसार, 10 नवंबर से 21 नवंबर के बीच यानी ओपन ऑफर के संशोधित कार्यक्रम की घोषणा के एक दिन पहले से लेकर टेंडर प्रक्रिया शुरू होने के एक दिन पहले तक, एनडीटीवी के एक शेयर की कीमत 366 रुपए से बढ़कर 381 रुपए हो गई.

अडानी द्वारा अचानक अधिग्रहण

23 अगस्त को अचानक अडानी समूह की मीडिया शाखा ने बड़ी तेजी के साथ वीसीपीएल में 100 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल कर ली. वीसीपीएल के पास (जुलाई 2009 और जनवरी 2010 में दिए गए लोन के आधार पर) एनडीटीवी की प्रमोटर कंपनी आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड का परिवर्तनीय वारंट था. एएमएनएल की स्थापना अप्रैल 2022 में ही हुई थी. इस समझौते का निष्पादन एएमएनएल, नेक्स्टवेव टेलीवेंचर्स (एनटीपीएल), एमिनेंट नेटवर्क्स (एनपीएल, सामूहिक रूप से एनटीपीएल के साथ विक्रेता के रूप में) और वीसीपीएल के बीच 113.74 करोड़ रुपए में किया गया. 

लोन के करार की शर्तों के अनुसार वीसीपीएल को आरआरपीआर द्वारा जारी किए गए 100,000,000 शेयर वारंटों में से किसी एक या सभी का उपयोग करने का पूरा अधिकार था. ऐसा करके वह आरआरपीआर की इक्विटी शेयर पूंजी का 99.99 प्रतिशत तक खरीद सकते थे.

इसके अलावा, वीसीपीएल को प्रणॉय और राधिका रॉय के पास आरआरपीआर के जो 10,000 इक्विटी शेयर थे, उन सभी को खरीदने का भी अधिकार था. वारंटों का प्रयोग एक या एक से अधिक हिस्सों में इक्विटी शेयर खरीदने के लिए किया जा सकता था और ऐसा करने के लिए वीसीपीएल को आरआरपीआर को एक लिखित नोटिस जारी करना होता. इसके बाद, अपेक्षित राशि के भुगतान पर आरआरपीआर द्वारा वीसीपीएल या उसके द्वारा नामित किसी व्यक्ति को, दो व्यावसायिक दिनों के भीतर, नोटिस में निर्दिष्ट इक्विटी शेयर आवंटित किए जा सकते थे. 

वीसीपीएल का अधिग्रहण करने के बाद, अडानी समूह ने बोर्ड की मंजूरी लेने में जरा भी देर नहीं की. 23 अगस्त को ही समूह ने आरआरपीआर को 19,90,000 वारंटों को उतने ही इक्विटी शेयरों में परिवर्तित करने के लिए एक नोटिस जारी किया, जो आरआरपीआर की इक्विटी पूंजी का 99.5 प्रतिशत था. साथ ही रॉय दंपत्ति से आरआरपीआर के शेयर खरीदने के लिए भी नोटिस जारी किया. इस प्रकार वीसीपीएल की एनडीटीवी में अप्रत्यक्ष रूप से 29.18 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने की प्रक्रिया शुरू हुई. 

रॉय दंपत्ति ने सेबी के 27 नवंबर, 2020 के आदेश पर स्पष्टता की मांग करते हुए वारंटों के तत्काल प्रयोग को रोक दिया. इस आदेश ने प्रणॉय और राधिका को दो साल के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त से वंचित कर दिया था. उन्होंने कहा कि इस अधिग्रहण से प्रतिबंधों का उल्लंघन हो सकता है और सेबी की पूर्व स्वीकृति के बिना वारंटों का प्रयोग नहीं किया जा सकता. एनडीटीवी ने भी यही तर्क दिया. 

लेकिन देरी के बावजूद वीसीपीएल को इस मामले में आगे बढ़ने की अनुमति मिल गई. 

इसलिए एनडीटीवी में अतिरिक्त 26 प्रतिशत हिस्सेदारी या 1,67,62,530 शेयरों तक को खरीदने का खुला प्रस्ताव, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (शेयरों का पर्याप्त अर्जन और अधिग्रहण) विनियम 2011 के अनुपालन के लिए अनिवार्य था. वीसीपीएल, एएमएनएल और अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड की ओर से ऑफर के प्रबंधक जेएम फाइनेंशियल ने मूल रूप से टेंडरिंग की अवधि 17 अक्टूबर से 1 नवंबर घोषित की थी.

स्वामित्व का पैटर्न और शेयरों के संभावित विक्रेता

ओपन ऑफर शुरू होने से पहले, एनडीटीवी में प्रणॉय और राधिका रॉय की संयुक्त हिस्सेदारी 32.26 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक थी, जिसमें प्रणॉय की हिस्सेदारी 15.94 प्रतिशत और राधिका की 16.32 प्रतिशत थी. इसके बाद प्रमोटर समूह आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड की 29.18 प्रतिशत हिस्सेदारी थी. यह समूह पहले पूरी तरह से रॉय दंपत्ति के स्वामित्व में था लेकिन अब अडानी द्वारा अधिग्रहित कर लिया गया है. 

शेष 38.55 प्रतिशत में उच्चतम हिस्सेदारी दो मॉरीशस स्थित विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के पास थी: विकास इंडिया ईआईएफ आई फंड के पास 4.42 प्रतिशत और एलटीएस इन्वेस्टमेंट फंड के पास 9.75 प्रतिशत शेयर थे. एलटीएस 2011 में पंजीकृत हुई थी और 2016 में उसने एनडीटीवी में अपनी हिस्सेदारी खरीदी. अडानी की तीन और कंपनियों में इसके एक प्रतिशत से अधिक शेयर हैं. विकास इंडिया ईआईएफ आई फंड 2014 में पंजीकृत हुई थी और इसने 2021 में एनडीटीवी में निवेश किया. 

"ओपन ऑफर्स और बाजार की सामान्य प्रवृत्ति के इतिहास" को ध्यान में रखते हुए जिन विशेषज्ञों ने हिंदू बिजनेस लाइन से बात की उन्होंने कहा कि, "खुदरा निवेशक इस प्रस्ताव में अपने शेयर बेचे, इसकी संभावना नहीं है, क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि वित्तीय रूप से मजबूत नए प्रोमोटर्स के आने के बाद उन्हें अधिक लाभ होगा.” लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अगर रॉय दंपत्ति और सार्वजनिक शेयरधारक "ओपन ऑफर में पूरी तरह से भाग नहीं लेते हैं, तब भी अडानी मॉरीशस के निवेशकों की मदद से प्रभुत्व हासिल कर सकते हैं.”

मॉरीशस-स्थित कंपनियों की तरह ही सुर्खियों में न आने वाली कुछ अन्य शेयरधारक कंपनियां भी थीं, जिनके पास एनडीटीवी में एक प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी थी. उनमें ड्रोलिया एजेंसीज प्राइवेट लिमिटेड (1.48 फीसदी), जीआरडी सिक्योरिटीज लिमिटेड (2.8 फीसदी), आदेश ब्रोकिंग हाउस प्राइवेट लिमिटेड (1.5 फीसदी) और कन्फर्म रियलबिल्ड प्राइवेट लिमिटेड (1.33 फीसदी) शामिल हैं. 

इन कंपनियों के आपस में संबंध दिलचस्प हैं. ड्रोलिया एजेंसीज ​​और जीआरडी सिक्योरिटीज दोनों कोलकाता में स्थित हैं और इन्होंने सितंबर 2022 में एनडीटीवी में निवेश किया. संबंधित ओपन ऑफर से पहले, ट्रेंडलाइन पर उन दोनों के पोर्टफोलियो ने केवल एनडीटीवी में निवेश दिखाया. इसके अलावा दोनों के निदेशक भी एक ही हैं, बिमल कुमार ड्रोलिया. आदेश ब्रोकिंग हाउस के निदेशकों में से एक सत्यम सराफ, जीआरडी के भी एक निदेशक हैं. इसी तरह, कन्फर्म रियलबिल्ड के एक निदेशक अर्पित सराफ, जीआरडी सिक्योरिटीज के सीईओ और प्रमुख अधिकारी हैं. 

एनडीटीवी में इन कंपनियों की संयुक्त हिस्सेदारी 7.11 फीसदी थी.

व्यक्तिगत शेयरधारकों की बात करें तो एक प्रतिशत हिस्सेदारी डॉली खन्ना के पास थी, जो एक गृहिणी हैं और कथित रूप से इकबाल घई और पीएल लांबा के क्वालिटी मिल्क फूड्स का चेन्नई में व्यापर शुरू करने वाले राजीव खन्ना की पत्नी हैं. क्वालिटी मिल्क फूड्स ने अपना आइसक्रीम व्यवसाय 1995 में एचएलएल को बेच दिया था. 

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फ्लैशबैक: रॉय परिवार और एनडीटीवी का उदय

अडानी समूह की इस घोषणा से भारी हंगामा हुआ. भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशनों में 'प्रेस की स्वतंत्रता और स्वतंत्र पत्रकारिता पर खतरा' जैसी बातें उठीं.

आखिर एनडीटीवी की इस यात्रा में क्या ख़ास रहा है?

एक व्यावसायिक न्यूज़ नेटवर्क के रूप में एनडीटीवी का आगाज़ टेलीविज़न के भारत में आने के लगभग तीन दशक बाद साल 1988 में हुआ. दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक, लंदन के ओल्ड्रे फ्लेमिंग स्कूल से योग्य स्पीच पैथोलॉजिस्ट और सीपीआईएम पोलित ब्यूरो सदस्य बृंदा करात की बहन राधिका रॉय, तब तक इंडियन एक्सप्रेस और इंडिया टुडे के साथ एक प्रिंट पत्रकार के तौर पर काम कर चुकी थीं. उनके पति प्रणॉय रॉय प्रसिद्ध लेखक और कार्यकर्ता अरुंधति रॉय के चचेरे भाई हैं.

जब राधिका देहरादून के वेल्हम गर्ल्स हाई स्कूल में पढ़ाई कर रही थीं, उसी समय के आस-पास प्रणॉय दून स्कूल में थे. प्रणॉय क्वीन मैरीज़ कॉलेज लंदन से अर्थशास्त्र में स्नातक हैं और उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में ही डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की है. जब एनडीटीवी की कल्पना की गई, तब तक प्रणॉय एक प्रोफेसर और प्राइसवाटरहाउस के साथ एक चार्टर्ड एकाउंटेंट रह चुके थे और चुनावी विश्लेषण में भी उन्होंने अपनी विशेषज्ञता साबित की थी. बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार प्रणॉय ने पहला चुनावी पूर्वानुमान मेनस्ट्रीम पत्रिका के लिए 1977 में किया था जब उन्होंने जनता पार्टी की जीत की भविष्यवाणी की थी. लेकिन वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार उनके "गौरव का क्षण" 1984 के चुनाव के दौरान आया जब प्रणॉय ने भविष्यवाणी की कि कांग्रेस 400 से थोड़ी अधिक सीटें जीतेगी. कांग्रेस ने उस साल 402 सीटें जीतीं. जल्द ही वह वित्त मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार बन गए और 1985 से 1987 तक उस भूमिका में रहे.

इसलिए, जब एनवाईयू टिश स्कूल ऑफ़ द आर्ट्स से टीवी प्रोडक्शन की पढ़ाई कर चुकी राधिका ने एनडीटीवी शुरू करने का फैसला किया और प्रणॉय उनके साथ जुड़े, तो उनके विभिन्न और पूरक कौशल ने उनकी शानदार यात्रा का मार्ग प्रशस्त किया.

1988 में न्यू डेल्ही टेलीविजन प्राइवेट लिमिटेड के रूप में निगमित किए जाने से पहले, एनडीटीवी शुरुआती वर्षों में एक स्टूडियो के रूप में काम करता था. मोर न्यूज़ इज गुड न्यूज़: 25 इयर्स ऑफ़ एनडीटीवी, में प्रणॉय ने पिछली यादें ताज़ा करते हुए बताया कि तब दूरदर्शन ही एकमात्र राष्ट्रीय टीवी चैनल था: "यद्यपि भारतीय प्रिंट प्रेस स्वतंत्र था, शायद इसकी अधिक पहुंच के कारण टेलीविजन समाचार पर सरकारी एकाधिकार था. और ऐसा बिलकुल नहीं लगता था कि निकट भविष्य में सरकार की इस एकाधिकार को समाप्त करने की कोई मंशा थी. तो पत्रकारों के रूप में, हमें क्या करना चाहिए था? हमने अंतरराष्ट्रीय समाचारों को कवर करने के लिए आवेदन किया और हमें अनुमति मिल गई. लेकिन एक स्पष्ट और गंभीर चेतावनी के साथ, कि 'भारत पर कोई खबर नहीं' दिखाई जाएगी.”

यह साप्ताहिक कार्यक्रम ‘द वर्ल्ड दिस वीक’ के नाम से प्रसारित होता था. इसके पहले प्रसारण के प्रोमो में एक महिला, संभवतः राधिका, अपने माथे से अपनी बिंदी हटाती हैं और उसे माइक पर बने एनडीटीवी के लोगो पर लगा कर उसे पूरा करती हैं. पृष्ठभूमि में शास्त्रीय संगीत बजता है. फिर प्रणॉय स्क्रीन पर आते हैं और सप्ताह के समाचारों का विश्लेषण करते हैं. कार्यक्रम ने अपने शुरुआती वर्षों में बर्लिन वाल के गिरने और सोवियत संघ के विघटन से लेकर नेल्सन मंडेला के जेल से छूटने और सुष्मिता सेन को मिस यूनिवर्स का ताज पहनाए जाने तक दुनिया भर की कई महत्वपूर्ण घटनाओं को कवर किया. उन्होंने चुनावी शो भी किए.

और आर्थिक उदारीकरण के चार साल बाद, 1995 में हमने 'मोर न्यूज़ इज गुड न्यूज़' के रूप में वो देखा जिसे प्रणॉय "भारत की प्रसारण नीति में पहला आमूल-चूल बदलाव" कहते हैं.

उन्होंने लिखा है, "हम सरकार के पीछे पड़े हुए थे कि हमें भारत के समाचार रिपोर्ट करने की अनुमति दी जाए. फिर एक दिन, सूचना और प्रसारण मंत्रालय के एक जोखिम लेने वाले और सही में समझदार प्रमुख ने हमें एक मौका देने का फैसला किया, और हमें सरकारी चैनल पर राष्ट्रीय समाचार के लिए रात में आधे घंटे का स्लॉट आवंटित किया." 

इस कार्यक्रम का नाम था 'द न्यूज़ टुनाइट'. लेकिन रॉय दंपत्ति को फंडिंग की जरूरत थी, जो उन्हें सबसे पहले रतन टाटा ने दी. एनडीटीवी ने गुड मॉर्निंग इंडिया और न्यूज़ऑवर नाम के दो कार्यक्रम भी निर्मित किए.

1996 तक रूपर्ट मर्डॉक की नज़र भी एनडीटीवी पर पड़ी. उन्होंने सबसे पहले उनसे स्टार इंडिया पर एक न्यूज़ शो बनाने के लिए कहा और 1998 में उन्होंने भारत का पहला 24 घंटे का न्यूज़ चैनल, स्टार न्यूज़ बनाने के लिए एनडीटीवी को साइन किया. बिज़नेस स्टैंडर्ड के अनुसार इस अनुबंध में उन्हें वार्षिक शुल्क के रूप में 50 करोड़ रुपए की भारी भरकम पेशकश की गई थी.

एनडीटीवी की वेबसाइट के अनुसार इस दौरान उन्होंने बीबीसी इंडिया का 80 प्रतिशत कंटेंट बनाया और एनडीटीवी ऑनलाइन लॉन्च किया. पांच साल बाद 2003 में अनुबंध समाप्त होने पर स्टार और एनडीटीवी, एक संयुक्त उद्यम की शर्तों के संबंध में असहमति के कारण अलग हो गए. एनडीटीवी ने बिना वक्त गंवाए उसी साल अपने 24 घंटे के दो समाचार चैनल लॉन्च किए: एनडीटीवी 24x7 (अंग्रेजी) और एनडीटीवी इंडिया (हिंदी).

रॉय दंपत्ति की महत्वाकांक्षाएं बढ़ने लगी थीं. 2004 में एनडीटीवी सार्वजनिक हो गया. उस समय राजदीप सरदेसाई मैनेजिंग एडिटर थे. रॉय दंपत्ति के पास संयुक्त रूप से 65.12 प्रतिशत शेयर थे. शेष 34.88 प्रतिशत शेयर इंडियन फंड्स/म्युचुअल फंड्स (21.32 प्रतिशत), विदेशी संस्थागत निवेशकों (9.57 प्रतिशत) और विदेशी निवेशकों (3.99 प्रतिशत) के बीच फैले हुए थे. राधिका और प्रणॉय की बेटी तारा भी एक निदेशक थीं और उनके मुख्य हामीदार (अंडरराइटर) थे जेएम मॉर्गन स्टेनली प्राइवेट लिमिटेड, कोटक महिंद्रा कैपिटल कंपनी लिमिटेड और आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज लिमिटेड.

आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ) से पहले भी एनडीटीवी काफी लाभदायक था. इसका नेट प्रॉफिट 2001 में 15.64 करोड़ रुपए, 2002 में 13.97 करोड़ रुपए और 2003 में 12.44 करोड़ रुपए था. लेकिन दिसंबर 2021 तक नौ महीनों में अपने चैनल लॉन्च करने की स्टार्टअप लागत के कारण इसे 46.41 करोड़ रुपए का घाटा हुआ. हालांकि, एनडीटीवी 24x7 को नंबर 1 अंग्रेजी चैनल का दर्जा भी मिला, और टैम व्यूअरशिप डेटा के अनुसार एनडीटीवी इंडिया आज तक के बाद दूसरे स्थान पर रहा. दोनों चैनलों की कुल दर्शक संख्या 4 करोड़ 65 लाख थी और उन्हें 246 विज्ञापनदाताओं और 402 ब्रांड्स से विज्ञापन मिले. इसलिए एनडीटीवी का आईपीओ इस कदर चर्चा में रहा कि इसे कथित तौर पर 17 गुना ओवरसब्सक्राइब किया गया था.

एनडीटीवी ने अपने चैनलों की संख्या और शेयरों में विस्तार जारी रखा. बिज़नेस समाचारों के लिए एनडीटीवी प्रॉफिट, लाइफस्टाइल के लिए एनडीटीवी गुड टाइम्स (अब गुडटाइम्स) के साथ-साथ ही टाई-अप के माध्यम से दो वैश्विक चैनल - मलेशिया में एस्ट्रो अवानी और बांग्लादेश में स्वतंत्र टेलीविजन - भी लॉन्च किए.

इस बीच भारत में समाचार चैनलों की संख्या भी कई गुना बढ़ गई - 2006 में इंडिया टुडे के अनुसार भारत में 38 चैनल थे. जैसे-जैसे प्रतिस्पर्धा बढ़ी, वैसे-वैसे प्रतिभाशाली लोगों को चैनल में रोके रखने जैसी चुनौतियां भी बढ़ीं. सरदेसाई ने अपनी खुद की कंपनी शुरू करने के लिए एनडीटीवी छोड़ दिया और एक साल बाद अर्नब गोस्वामी टाइम्स नाउ में चले गए. फिर भी एनडीटीवी बरखा दत्त, विनोद दुआ, निधि राजदान और रवीश कुमार जैसे पत्रकारों का घर रहा है.

विक्रम चंद्रा ने डिजिटल मीडिया में एनडीटीवी के पदार्पण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. समूह ने इलेक्ट्रॉनिक मार्केटप्लेस के रूप में गैजेट्स 360, कार और बाइक शो के पूरक के रूप में फिफ्थ गियर और कला बाजार के रूप में Mojarto.com लॉन्च किया.

लोन का सिलसिला और खतरे की घंटी

एनडीटीवी शेयरधारक क्वांटम सिक्योरिटीज प्राइवेट लिमिटेड ने 2017 में एक शिकायत दर्ज की, जिसमें वीसीपीएल के साथ लोन एग्रीमेंट के बारे में शेयरधारकों को भौतिक जानकारी न देने पर कथित रूप से नियमों के उल्लंघन का ज़िक्र किया गया. लेकिन सेबी की जांच में बहुत पहले से लेनदेन का पता चला.

26 दिसंबर, 2007 को, प्रणॉय रॉय ने जीए ग्लोबल इंवेस्टमेंट्स लिमिटेड से एनडीटीवी के 48,35,850 शेयर अपने और राधिका के संयुक्त खाते में खरीदे थे. यह एनडीटीवी की कुल पेड-अप/वोटिंग शेयर पूंजी का 7.73 प्रतिशत था, और प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (शेयरों का पर्याप्त अर्जन और अधिग्रहण) विनियम, 1997 के विनियम 11(1) के अनुसार इस अधिग्रहण से एक अनिवार्य ओपन ऑफर शुरू हुआ. सार्वजनिक शेयरधारकों को यह ओपन ऑफर परिणामी वोटिंग शेयर पूंजी का 20 प्रतिशत हासिल करने के लिए था.

यह मानते हुए कि प्रस्ताव पूरी तरह स्वीकार कर लिया जाएगा, रॉय दंपत्ति ने इंडियाबुल्स फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड से 540 करोड़ रुपए का लोन लिया, क्योंकि 438.98 रुपए प्रति शेयर पर एनडीटीवी के 12,690,257 शेयरों के अधिग्रहण के लिए कुल 557 करोड़ रुपए आवश्यक थे. इस लोन के लिए उन्होंने एनडीटीवी के 78,36,000  शेयरों को गिरवी रखा, जबकि 21,079,700 इक्विटी शेयरों को इंडियाबुल्स की पावर ऑफ अटॉर्नी के तहत रखा.

इसलिए, 22 जनवरी 2008 और 17 मार्च 2008 को, प्रणॉय और राधिका रॉय ने गिरवी रखने के लिए अपने संयुक्त खाते में क्रमशः 4,75,500 और 1,50,000 इक्विटी शेयर स्थानांतरित किए. और प्रस्ताव की सार्वजनिक घोषणा के बाद 17 अप्रैल 2008 को, प्रणॉय ने 24,10,417 और राधिका ने 25,03,259 इक्विटी शेयर, 435.1 रुपए प्रति शेयर के हिसाब से गोल्डमैन सैक्स को बेचे.

जीए ग्लोबल से लेनदेन के संबंध में 31 अगस्त 2018 को, सेबी ने प्रणॉय और राधिका को एक नोटिस भेजा जिसमें उन पर इनसाइडर ट्रेडिंग निषेध संबंधी विनियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए कहा गया कि अघोषित मूल्य-संवेदनशील जानकारी होते हुए भी उन्होंने प्रतिभूतियों में व्यापार किया. और गोल्डमैन सैक्स को शेयरों की बिक्री करके क्लोज्ड विंडो पीरियड में ट्रेडिंग की.

सेबी ने 27 नवंबर, 2020 के अपने आदेश में रॉय दंपत्ति को निर्देश दिया कि वह संयुक्त रूप से या अलग-अलग, कारण बताओ नोटिस में दी गई 16,97,38,335 रुपए की अनुचित लाभ की राशि लौटाएं, 17 अप्रैल, 2008 से प्रति वर्ष छह प्रतिशत ब्याज के साथ. रॉय दंपत्ति ने प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (सैट) में अपील की, जिसने 21 जनवरी, 2021 को एक अंतरिम आदेश में कहा कि उनकी अपील पर विचार करने की आवश्यकता है. सैट के अंतरिम आदेश में निर्देश दिया गया कि अपील को निस्तारण के लिए सूचीबद्ध किया जाए और रॉय दंपत्ति सेबी के पास बकाया राशि का 50 प्रतिशत जमा करें.

इसके बाद रॉय दंपत्ति ने सिविल कोर्ट में अपील दायर की. 

2 जनवरी, 2018 को एक और कारण बताओ नोटिस ने जनवरी 2008 में इंडियाबुल्स फाइनेंशियल सर्विसेज लिमिटेड द्वारा 6.4 प्रतिशत एनडीटीवी शेयरों के अधिग्रहण, जुलाई 2008 में एनडीटीवी के प्रमोटरों द्वारा 20.28 प्रतिशत एनडीटीवी शेयरों का अधिग्रहण, और वित्तीय वर्ष 2007-08 और 2010-11 में एनडीटीवी द्वारा अपने प्रवर्तकों की शेयरधारिता के वार्षिक प्रकटीकरण के संबंध में गैर-प्रकटीकरण/विलंबित प्रकटीकरण का आरोप लगाया. इस संबंध में सेबी ने 17 जून 2019 के एक आदेश में, सेबी अधिनियम 1992 की धारा 15ए (बी) के तहत, एनडीटीवी पर 12 लाख रुपए का जुर्माना लगाया.

एनडीटीवी ने इस आदेश के खिलाफ अपील की और 2019 के एक फैसले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि"… दोनों आवेदन दिनांक 21.3.2017 (आकलन वर्ष 2009-2010 में 450 करोड़ रुपए की आयकर मांग का खुलासा न करने के संबंध में) और 24.7.2017 (शेयरों की बिक्री और मूल्य-संवेदनशील जानकारी के विलंबित प्रकटीकरण के संबंध में) गुण-दोष के आधार पर तय किए जाएंगे. नतीजतन, अगर निपटान आवेदन दाखिल करने के बाद अधिनिर्णय का कोई आदेश पारित किया गया है, तो उसे अमान्य कर दिया जाएगा." 

इस स्थिति को देखते हुए, जनवरी 2021 में सैट के साथ हुई सुनवाई में मामले का निस्तारण कर दिया गया. निपटान आवेदन अभी भी अदालत में लंबित है. 

लेकिन लोन का सिलसिला यहीं नहीं रुका.

13 अक्टूबर, 2008 को, आरआरपीआर ने आईसीआईसीआई बैंक से 375 करोड़ रुपए का लोन लिया, जिसकी सिक्योरिटी ट्रस्टी 3i इन्फोटेक ट्रस्टीशिप सर्विसेज बनी. 7 अगस्त 2009 को ऋण का पूरा भुगतान किया गया और आरओसी को सूचित कर दिया गया था. आईसीआईसीआई ने भी नो ड्यूज लेटर जारी कर दिया था. 

लेकिन आईसीआईसीआई के पत्र में यह भी कहा गया कि नो ड्यूज सर्टिफिकेशन जारी करने और फॉर्म 17 दाखिल करने से "आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड को 6 अगस्त, 2009 के सुविधा समझौते (जिसे 14 अक्टूबर, 2008 के समझौते के बाद निष्पादित किया गया था) में वर्णित मार्केट कैप शुल्क का भुगतान करने की उनकी आकस्मिक देनदारी/दायित्व से छूट नहीं मिलती है. और यह समझौता 6 अगस्त 2019 को समाप्त हो जाएगा."

सेबी की जांच के अनुसार, अगस्त 2009 का यह समझौता लोन के अग्रिम भुगतान के लिए हुए 2008 के समझौते का संशोधन था. इन समझौतों के अनुसार, प्रवर्तकों ने वचन दिया था कि वह आईसीआईसीआई की लिखित स्वीकृति के बिना एनडीटीवी का किसी भी प्रकार का विलय, डीमर्जर, समेकन, पुनर्गठन, समामेलन या पुनर्निर्माण की अनुमति नहीं देंगे या अपने लेनदारों या शेयरधारकों के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे. इसके अलावा, संस्था के पुनर्गठन की स्थिति में, कम से कम 63 प्रतिशत शेयरों को नॉन-डिस्पोजल अंडरटेकिंग के तहत रखा जाएगा.

सेबी ने कहा कि यह शर्तें एनडीटीवी पर बाध्यकारी थीं. प्रोमोटर्स को इन्हें एनडीटीवी को बताना चाहिए था, जिसे फिर स्टॉक एक्सचेंजों को इसकी सूचना देनी चाहिए थी. इसके अभाव में शेयरधारक तथ्यों के आधार पर निर्णय लेने की स्थिति में नहीं थे. इसलिए, सेबी ने माना कि ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी को छुपाकर प्रोमोटर्स ने एनडीटीवी के अल्पसंख्यक सार्वजनिक शेयरधारकों के साथ धोखाधड़ी की है. 

सेबी के अनुसार, शर्तों से बंधे होने के बावजूद, लोन एग्रीमेंट लागू रहने के दौरान भी, रॉय दंपत्ति ने एनडीटीवी के शेयर्स स्थानांतरित करने के साथ-साथ ऑफ-मार्केट में आरआरपीआर से एनडीटीवी के शेयर्स प्राप्त भी किए. इसके अलावा, संशोधित समझौते के समय, पूर्वव्यापी प्रभाव से लोन की ब्याज दर को 19 प्रतिशत प्रति वर्ष से घटाकर 9.5 प्रतिशत कर दिया गया था.

लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. आईसीआईसीआई का लोन चुकाने के लिए, 21 जुलाई, 2009 को आरआरपीआर ने वीसीपीएल से 350 करोड़ रुपए का लोन लिया. आरआरपीआर की 100 प्रतिशत पूंजी तब रॉय दंपत्ति के पास थी. साथ ही 25 जनवरी 2010 को आरआरपीआर ने वीसीपीएल से 53.85 करोड़ रुपए का अतिरिक्त लोन लिया. दोनों लोन 10 वर्ष की अवधि के लिए लिए गए थे.

बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2008 में निगमित वीसीपीएल के पास आरआरपीआर को लोन देने के लिए पैसा, उसी साल शिनानो रिटेल प्राइवेट लिमिटेड से एक और असुरक्षित ऋण के रूप में मिला था.

शिनानो को भी पैसा एक असुरक्षित ऋण के रूप में रिलायंस इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट्स एंड होल्डिंग्स लिमिटेड से मिला था, जो मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड का ही एक हिस्सा थी. फिर 2012 में, रिलायंस ने वीसीपीएल को नेक्स्टवेव टेलीवेंचर प्राइवेट लिमिटेड और स्काईब्लू बिल्डवेल प्राइवेट लिमिटेड को दे दिया. यह दोनों कंपनियां रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की सहायक कंपनी रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड के एक निदेशक महेंद्र नाहटा से जुड़ी थीं.

अंत में, जैसा कि हम जानते हैं, इस साल अगस्त में वीसीपीएल का स्वामित्व एक बार फिर बदला और अडानी की एएमएनएल ने इसे अपने कब्जे में ले लिया.

अपने आदेश में सेबी ने वीसीपीएल समझौतों की कई विशेषताओं का विवरण दिया और बताया कि वह लोन देने की आड़ में अधिग्रहण के प्रयास की तरह क्यों लग रहे थे.

यहां (सामान्य भाषा में संक्षेप में) कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं:

- सभी ऋण ब्याज मुक्त थे. 

- दूसरे लोन का उपयोग केवल निवेश के उद्देश्यों से किया जाना था, लेकिन उस निवेश का कोई उल्लेख नहीं था जिसके लिए इसका लाभ उठाया गया.

- पहले लोन के समझौते की शर्त थी कि रॉय दंपत्ति एनडीटीवी के 1,15,63,683 शेयर आरआरपीआर को हस्तांतरित करें/बेचें, ताकि एनडीटीवी में आरआरपीआर की हिस्सेदारी बढ़कर 1,63,05,404 शेयर - एनडीटीवी की इक्विटी शेयर पूंजी का 26% - हो जाए. आरआरपीआर के पास एनडीटीवी के केवल 47,41,721 शेयर्स थे, जो उस समय इसकी एकमात्र संपत्ति थे. इसी तरह, दूसरे लोन के समझौते में रॉय दंपत्ति को 25,08,524 शेयर्स आरआरपीआर को हस्तांतरित करने/बेचने थे, जिससे एनडीटीवी में उसकी हिस्सेदारी बढ़कर 1,88,13,928 इक्विटी शेयर या 29.18% हो गई. सेबी ने पाया कि वास्तव में दोनों ऋण समझौतों के तहत रॉय दंपत्ति को कुल मिलाकर अपनी हिस्सेदारी का लगभग 30% वीसीपीएल को हस्तांतरित करना पड़ा.

- वीसीपीएल ने न केवल पहले लोन के अंतर्गत जारी हुए परिवर्तनीय वारंटों के माध्यम से आरआरपीआर पर स्वामित्व सुनिश्चित किया, बल्कि एनडीटीवी के शेयर्स को दो कॉल ऑप्शन समझौतों के माध्यम से अपनी समूह कंपनियों को स्थानांतरित करने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था भी की. यह समझौते एनडीटीवी के प्रोमोटर्स और वीसीपीएल के सहयोगियों सुभगामी ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड (एसटीपीएल) और श्याम इक्विटीज़ प्राइवेट लिमिटेड (एसईपीएल) के बीच हुए थे, जिसके द्वारा इन दो कंपनियों को 214.65 रुपए प्रति शेयर के पूर्व निर्धारित मूल्य पर एनडीटीवी की इक्विटी पूंजी का क्रमशः 14.99% और 11.01% खरीदने का अधिकार मिल गया.

- इन समझौतों के तहत वीसीपीएल के पास कभी भी वारंटों को इक्विटी में बदलकर अप्रत्यक्ष रूप से एनडीटीवी के 29.18% हिस्से के अधिग्रहण का अधिकार था. वीसीपीएल के पास ऋण की अवधि के दौरान या उसके बाद भी कभी भी अपने विवेकाधिकार पर कॉल ऑप्शन का प्रयोग करने का भी अधिकार था. इन समझौतों में न ऋण की अदायगी पर इन अधिकारों की समाप्ति का कोई उपखंड था, न ही एनडीटीवी के शेयर भाव में प्रतिकूल उतार-चढ़ाव की स्थिति में अतिरिक्त प्रतिभूतियां )सिक्योरिटीज) उपलब्ध कराने के लिए कोई प्रावधान था.

- सेबी ने पाया कि पहले लोन की 350 करोड़ रुपए की राशि को 1,63, 05,404 शेयरों से विभाजित करने पर एक शेयर की कीमत 214.65 रुपए आती है, जो कॉल ऑप्शन के लिए निर्धारित मूल्य के बराबर था. इसी तरह, दूसरे लोन की 53.85 करोड़ रुपए की राशि को (आरआरपीआर में स्थानांतरित) 25,08,524 शेयरों से विभाजित करके भी प्रति शेयर का भाव 214.65 रुपए आता है. हालांकि, पहले लोन और दूसरे लोन के समय एनडीटीवी के शेयरों की औसत कीमत क्रमशः 127.20 रुपए और 138.70 रुपए थी. अतः, सेबी ने पाया कि इस पूरी प्रक्रिया में जानबूझकर एनडीटीवी के शेयरों का भाव 214.65 रुपए निर्धारित करने का प्रयास किया गया था. 

- समझौतों के अनुसार, रॉय दंपत्ति को निम्न के लिए वीसीपीएल की पूर्व सहमति आवश्यक थी: (i) एनडीटीवी के इक्विटी शेयर जारी करना, जिनसे इसका मूल्यांकन 1,346 करोड़ रुपए से नीचे गिर सकता है; (ii) बाय-बैक या इसकी शेयर पूंजी में कोई परिवर्तन; (iii) दिवाला, शोधन-अक्षमता, राहत या किसी पुनर्निर्माण या पुनर्गठन आदि की दिशा में कोई कदम उठाना; (iv) इक्विटी सिक्योरिटीज जारी करने या कोई समझौता करने के लिए कोई कार्रवाई करना, जिसके परिणामस्वरूप प्रोमोटर्स का एनडीटीवी या समूह पर एकमात्र नियंत्रण समाप्त हो सकता है. 

- जबकि वीसीपीएल के पास समझौते की अवधि के दौरान भी समझौते, ऋण और अधिकारों को किसी तीसरे पक्ष को सौंपने का अधिकार था, प्रोमोटर्स के पास ऐसे अधिकार उपलब्ध नहीं थे.

- समझौतों के तहत आरआरपीआर बोर्ड में (तीन में से) कम से कम एक निदेशक वीसीपीएल द्वारा नामित किया जाएगा; जिसकी उपस्थिति बोर्ड की किसी भी बैठक का कोरम तय करने के लिए अनिवार्य होगी.

- समझौतों में यह भी प्रावधान था कि "अगले 3 से 5 वर्षों में, आरआरपीआर और वीसीपीएल, आरआरपीआर के लिए एक 'स्थिर' और 'विश्वसनीय' खरीदार की तलाश करेंगे, जो एनडीटीवी का ब्रांड और विश्वसनीयता बनाए रखेगा". 

- ऋण अनुबंधों या संबंधित अनुबंधों की शर्तों के किसी भी उल्लंघन की स्थिति में, ऋण राशि तुरंत देय थी. फिर भी, आरआरपीआर ने वीसीपीएल को परिवर्तनीय वारंट जारी नहीं किए, जो उन्हें समझौतों के निष्पादन के तुरंत बाद जारी करने पड़े थे. इतना ही नहीं, समझौतों के निष्पादन के नौ साल से अधिक समय बीत जाने के बावजूद, वीसीपीएल ने प्रीपेमेंट की प्रक्रिया शुरू नहीं की. 

इससे सेबी और आश्वस्त हो गया कि इस ऋण को चुकाने का इरादा कभी था ही नहीं, और आरआरपीआर और रॉय दंपत्ति को जो राशि मिली, वह वीसीपीएल को एनडीटीवी में अपनी हिस्सेदारी बेचने के फलस्वरूप मिली थी.

रॉय दंपत्ति और आरआरपीआर के खिलाफ कार्रवाई

सेबी का निष्कर्ष था कि उपरोक्त तीन ऋण समझौते (एक आईसीआईसीआई के साथ और दो वीसीपीएल के साथ) और दो कॉल ऑप्शन समझौते (आरआरपीआर और रॉय दंपत्ति द्वारा ऋण समझौते के पूरक के रूप में निष्पादित) में ऐसे निर्णय और कदम उठाए गए जो एनडीटीवी और शेयरधारकों के हित को प्रभावित करने वाले थे. और उनमें ऐसी जानकारी भी थी जो यदि एनडीटीवी के निवेशकों को पता होती तो उनका निर्णय प्रभावित होता. ऐसी जानकारी का खुलासा करने में विफल रहने पर, प्रोमोटर्स ने "धोखाधड़ीपूर्ण कार्य" किया.

सेबी ने यह भी पाया कि रॉय दंपत्ति के कुछ निर्णय और कार्य एनडीटीवी की आचार संहिता का भी उल्लंघन कर रहे थे, जिसका पालन करना एनडीटीवी के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक के रूप में उनसे अपेक्षित था.

सेबी ने रॉय दंपत्ति को जिन कानूनों के उल्लंघन का दोषी पाया वह हैं सेबी अधिनियम की धारा 12ए(ए), (बी) और (सी) के नियमों 3(ए), (बी), (सी), (डी) और 4(1); पीएफयूटीपी विनियमों के साथ-साथ इक्विटी लिस्टिंग समझौते के खंड 49(1)(डी) और एससीआरए की धारा 21 (प्रतिभूति बाजार में निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए). और इसलिए, सेबी ने आरआरपीआर, प्रणॉय और राधिका को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दो साल के लिए प्रतिभूति बाजारों में व्यापार करने से तत्काल प्रभाव से रोक दिया और म्यूचुअल फंड की इकाइयों सहित उनकी मौजूदा होल्डिंग को फ्रीज करने का निर्देश दिया. सेबी ने राधिका और प्रणॉय को एनडीटीवी में दो साल के लिए और किसी अन्य सूचीबद्ध कंपनी में एक साल के लिए किसी भी प्रमुख प्रबंधकीय पद पर रहने या रखे जाने से भी रोक दिया.

सेबी ने 29 दिसंबर, 2020 को एक आदेश में एनडीटीवी पर लिस्टिंग एग्रीमेंट के खंड 36 के कथित उल्लंघन के लिए 5 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया. एनडीटीवी ने एसएटी के समक्ष अपील की, जिसने दंड को घटाकर 10 लाख रुपए कर दिया और जिसका भुगतान फिर एनडीटीवी ने किया.

2008-10 में आईसीआईसीआई के साथ आरआरसीआर और वीसीपीएल के साथ प्रोमोटर्स द्वारा किए गए ऋण समझौतों का खुलासा नहीं करने के कारण सेबी अधिनियम 1992 के साथ पीएफयूटीपी विनियम और लिस्टिंग एग्रीमेंट के खंड 49 (आई) आईडी के साथ एससीआरए की धारा 21 के उल्लंघन के मामले में रॉय दंपत्ति और आरआरपीआर को भेजे गए नोटिस के संबंध में, सेबी ने 14 जून 2019 के अपने आदेश में और 24 दिसंबर, 2020 के एक आदेश में समान निष्कर्षों के कारण, आरआरपीआर और रॉय दंपत्ति द्वारा संयुक्त रूप से और अलग-अलग देय, 25 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया. और केवल रॉय दंपत्ति पर 1 करोड़ रुपए का अतिरिक्त जुर्माना लगाया.

सेबी के आदेशों के खिलाफ आरआरपीआर और रॉय दंपत्ति की अपील के जवाब में, एसएटी ने जुर्माना घटाकर 5 करोड़ रुपए कर दिया. रॉय दंपत्ति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है.

समूह की कंपनियां, आय और लोग जो मायने रखते हैं

हालांकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला और अधिग्रहण के प्रयास का परिणाम प्रतीक्षित है, आइए एनडीटीवी के वित्तीय स्वास्थ्य, कारोबार और प्रमुख लोगों पर एक नजर डालें.

जबसे एनडीटीवी सार्वजनिक हुआ है, इसकी समेकित आय धीरे-धीरे 2004 में 71 करोड़ रुपए से बढ़कर 2010 में 715 करोड़ रुपए हो गई, जिसमें 572 करोड़ रुपए संचालन से मिलने वाला राजस्व और 143 करोड़ रुपए अन्य प्रकार की आय से थे. हालांकि, शुद्ध आय के संदर्भ में इसे 2009 तक घाटा ही हुआ. उस वर्ष शुद्ध लाभ 143 करोड़ रुपए था, जो 2010 में 117 करोड़ रुपए के लाभ से अधिक था.

हाल के दिनों में, एनडीटीवी घाटे में चल रहा था लेकिन महामारी से ठीक पहले इसमें सुधार होना शुरू हुआ और 2019 में इसे 11.36 करोड़ रुपए का मुनाफा हुआ. महामारी के दौरान और उसके बाद, मुनाफे में वृद्धि हुई है: 2020 में 29.31 करोड़ रुपए, 2021 में 75 करोड़ रुपए, और 2022 में 84.24 करोड़ रुपए.

जहां एनडीटीवी का खुदरा या ई-कॉमर्स राजस्व 2019 में 11.5 करोड़ रुपए से घटकर 2022 में शून्य हो गया, इसे टीवी राजस्व से अच्छी कमाई हुई: 2019 में 392.12 करोड़ रुपए, 2020 में 368.26 करोड़ रुपए, 2021 में 357.62 करोड़ रुपए और 2022 में 396.39 करोड़ रुपए.

स्क्रीनर के अनुसार, इस लेख के प्रकाशन के समय एनडीटीवी का मार्केट कैप 2,413 करोड़ रुपए था. 

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सहायक कंपनियां, संयुक्त उद्यम और सहयोगी 

वित्त वर्ष 2022 के आंकड़ों के अनुसार एनडीटीवी की सहायक कंपनियां हैं एनडीटीवी मीडिया लिमिटेड (74 प्रतिशत), एनडीटीवी नेटवर्क्स लिमिटेड (85 प्रतिशत), एनडीटीवी लैब्स लिमिटेड (99.97 प्रतिशत), एनडीटीवी कन्वर्जेंस लिमिटेड (एनडीटीवी के पास 17 प्रतिशत, एनडीटीवी नेटवर्क्स के पास 75 प्रतिशत हिस्सेदारी), एनडीटीवी वर्ल्डवाइड लिमिटेड (4.25 प्रतिशत एनडीटीवी मीडिया के पास, 92 प्रतिशत एनडीटीवी के पास), और डेल्टा सॉफ्टप्रो प्राइवेट लिमिटेड (100 प्रतिशत). 

इसकी तीन सहायक कंपनियों - ब्रिकबायब्रिक प्रोजेक्ट्स लिमिटेड, ऑन डिमांड ट्रांसपोर्टेशन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड, और स्मार्टकुकी इंटरनेट लिमिटेड - ने स्वैच्छिक लिक्विडेशन के लिए आवेदन किया है. रेडस्टर डिजिटल लिमिटेड पहले ही बंद हो चुका है. 

एनडीटीवी और एनडीटीवी कन्वर्जेंस लिमिटेड ने एक पूर्व सहायक कंपनी रेड पिक्सेल्स वेंचर्स लिमिटेड में अपने निवेश का 48.44 प्रतिशत, क्रमशः 22.96 करोड़ रुपए और 7.06 करोड़ रुपए (कुल 30.02 करोड़ रुपए) में बेच दिया था. लेकिन यह अभी भी एक सहयोगी कंपनी है जिसकी 44.16 प्रतिशत हिस्सेदारी एनडीटीवी कन्वर्जेंस के पास है. 

इसके संयुक्त उद्यमों में इंडियनरूट्स रिटेल प्राइवेट लिमिटेड इंडिया (100 प्रतिशत) और लाइफस्टाइल एंड मीडिया होल्डिंग्स लिमिटेड (पहले एनडीटीवी लाइफस्टाइल होल्डिंग्स लिमिटेड) प्रमुख हैं, जिसे 2019 में आरओसी से हटा दिया गया था. एनएलएचएल की लाइफस्टाइल और मीडिया ब्रॉडकास्टिंग लिमिटेड में 99.54 प्रतिशत हिस्सेदारी है और इंडियनरूट्स शॉपिंग लिमिटेड (जिसे पहले एनडीटीवी एथनिक रिटेल लिमिटेड के नाम से जाना जाता था) के लिए एक रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल नियुक्त किया गया है. इसमें एनडीटीवी वर्ल्डवाइड लिमिटेड के पास 0.24 प्रतिशत, एनडीटीवी कन्वर्जेंस के पास 0.42 प्रतिशत और एनएलएचएल के पास 99.26 प्रतिशत स्वामित्व है. 

2020 में समूह ने एक सहायक कंपनी ऑनआर्ट क्वेस्ट लिमिटेड में अपनी हिस्सेदारी को कम करके उस पर नियंत्रण खो दिया.

इस लेख के संबंध में प्रणॉय रॉय और संजय पुगलिया को प्रश्नावली भेजी गई है. यदि उनके जवाब मिलते हैं तो यह रिपोर्ट संशोधित कर दी जाएगी.

सभी वित्तीय और स्वामित्व विवरण एनडीटीवी द्वारा कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में दायर किए गए वित्तीय विवरणों और अन्य कंपनी दस्तावेजों से प्राप्त किए गए हैं.

विस्तृत उद्धरण यहां देखें.

इन्फोग्राफिक्स- गोबिंद वीबी.

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