गुजरात: विज्ञापन के मैदान में भी भाजपा ने मारी बाजी

आप और कांग्रेस भाजपा के संसाधनों की बराबरी नहीं कर सकते, हालांकि उनका दावा है कि भगवा पार्टी मीडिया घरानों पर 'दबाव' डाल रही है.

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भाजपा: 120, कांग्रेस: 0​​6, आप: 0

यह गुजरात विधानसभा चुनाव में इन पार्टियों द्वारा जीती गई सीटों की संख्या नहीं है. यह पिछले 15 दिनों में इनके द्वारा गुजरात के तीन शीर्ष दैनिकों - संदेश, दिव्य भास्कर और गुजरात समाचार में दिए गए विज्ञापनों की संख्या है. भाजपा ने गुजरात में न केवल चुनावी मैदान में बाज़ी मारी, बल्कि राज्य में विज्ञापन की लड़ाई में भी सबसे आगे रही. 

न्यूज़लॉन्ड्री ने 21 नवंबर से 5 दिसंबर के बीच इन अख़बारों के अहमदाबाद संस्करण पर एक नज़र डाली. भाजपा ने तीनों अखबारों में हर रोज औसतन आठ विज्ञापन दिए, जबकि कांग्रेस ने मात्र 0.4. तीनों अखबारों ने इस अवधि के दौरान अपने मुखपृष्ठ और अंतिम-पृष्ठ पर भाजपा के कुल 72 विज्ञापन प्रकाशित किए. इसमें 1 दिसंबर को अहमदाबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रोड शो के फुल-पेज विज्ञापन भी थे. भाजपा द्वारा अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी करने के एक दिन बाद 27 नवंबर को भी फुल-पेज विज्ञापन छापे गए.

भाजपा के ज्यादातर विज्ञापन उनके नेताओं द्वारा गुजरात में की जाने वाली जनसभाओं के बारे में थे. ज़ाहिर तौर पर प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रमों का मुखपृष्ठ के लगभग आधे हिस्से पर कब्जा था. अन्य नेता जिनके कार्यक्रमों के बारे में प्रमुखता से विज्ञापन छापे गए उनमें गृह मंत्री अमित शाह, स्मृति ईरानी, ​​पुरुषोत्तम रुपाला और मनसुख मंडाविया, मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, हिमंत बिस्वा सरमा, जयराम ठाकुर और योगी आदित्यनाथ व साथ ही महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस शामिल थे.

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भाजपा के सबसे अधिक विज्ञापन 22 नवंबर को प्रकाशित हुए. हर अख़बार में आठ विज्ञापन - तीन अंतिम पृष्ठ पर और पांच अंदर के पन्नों में जिनमें रूपाला, फडणवीस, मंडाविया, सरमा और ठाकुर की जनसभाओं के विवरण थे. हर अख़बार के अंतिम पृष्ठ के एक चौथाई हिस्से में अमित शाह की एक मुस्कुराती हुई तस्वीर के साथ बनासकांठा, अहमदाबाद और आणंद में उनकी जनसभाओं के विवरण थे. भूपेंद्र पटेल और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा संबोधित कार्यक्रमों के विवरण भी थे.

तीनों अख़बारों में भाजपा का एकमात्र जैकेट विज्ञापन 1 दिसंबर को छपा, जब प्रधानमंत्री मोदी ने अहमदाबाद में 50 किलोमीटर का ब्लॉकबस्टर रोड शो किया. विज्ञापन में पीएम मोदी द्वारा तीन घंटे में 16 विधानसभा क्षेत्रों के दौरे के मार्ग और उस मार्ग में उनके 35 पड़ावों का ब्यौरा था.

भाजपा ने 27 नवंबर को तीनों अख़बारों में अंदर के पन्नों पर फुल-पेज विज्ञापन दिए, जिनमें पार्टी के घोषणा पत्र या संकल्प पत्र के प्रमुख बिंदुओं को सूचीबद्ध किया गया था. इन चुनावी वादों में समान नागरिक संहिता लागू करना, "एंटी-रेडिकलाइजेशन" सेल की स्थापना, 2036 ओलंपिक की मेजबानी के लिए विश्वस्तरीय सुविधाओं का निर्माण करना, 20 लाख नौकरियां पैदा करना और "एम्स जैसी" चिकित्सा सुविधाओं की स्थापना करना आदि प्रमुख थे.

1 दिसंबर का विज्ञापन

इसके अलावा, न्यूज़लॉन्ड्री ने उपरोक्त 15 दिनों में मोदी की जनसभाओं से संबंधित 18 मुखपृष्ठ विज्ञापन देखे, जिनमें 1 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी के रोड-शो को छोड़कर बाकी सभी पहले पेज के आधे हिस्से पर थे.

उदाहरण के लिए, 24 नवंबर को तीनों अख़बारों के मुखपृष्ठों पर अरावली, बनासकांठा, गांधीनगर और अहमदाबाद में पीएम मोदी की चार जनसभाओं के स्थान व समय के साथ विज्ञापन दिए गए थे. शाह की जनसभाओं के विज्ञापन आमतौर पर अंतिम पृष्ठ पर छापे गए - तीन अख़बारों में आमतौर पर चौथाई पृष्ठ के कुल 24 विज्ञापन.

बाकी दिनों में भी भाजपा की उपलब्धियों पर अंदर के पन्नों में कई विज्ञापन छपे. इन विज्ञापनों में अनिवार्य रूप से शुरुआत या अंत में लिखा होता था, "भाजप एतले भरोसो", यानी “भाजपा मतलब विश्वास". 24 नवंबर के एक विज्ञापन में लिखा था, “बीजेपी का मतलब कानून और व्यवस्था बनाए रखने वाला; वह जो राज्य में शांति सुनिश्चित करता है; जो मातृ शक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करता है; वह जो महिलाओं की रक्षा करता है.” यह विज्ञापन भाजपा को सत्ता में लाने की अपील के साथ समाप्त हुआ.

भाजपा के घोषणापत्र में किए गए वादों को बयां करता है विज्ञापन.
24 नवंबर का विज्ञापन.

एक अन्य विज्ञापन में कोविड के दौरान भाजपा की उपलब्धियों की सराहना की गई. इसमें गरीबों को मुफ्त राशन, फेरीवालों को बिना गारंटी के कर्ज, मजदूरों के लिए पौष्टिक भोजन आदि की प्रशंसा हुई.

5 दिसंबर को दूसरे चरण के मतदान के दिन तीनों अखबारों में एक तीसरा विज्ञापन प्रकाशित हुआ, जिसमें जनता से "गुजरात के गौरव" के लिए वोट देने की अपील की गई थी. आधे पेज के इस विज्ञापन में लिखा था, "उसके लिए जिसने गुजरात के विरोधियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिसने आतंकवादियों को राज्य में प्रवेश करने से रोका, जिसने समान नागरिक संहिता की प्रक्रिया शुरू की है, जिसने दुनिया में गुजरात का डंका बजाया.” साथ में मोदी के कटआउट के बगल में शाह, नड्डा, भूपेंद्र पटेल और सीआर पाटिल की तस्वीरें थीं.

कांग्रेस ने क्या किया?

कांग्रेस ने बस दो मुखपृष्ठ के विज्ञापन दिए. एक दूसरे चरण के मतदान से एक दिन पहले 4 दिसंबर को तीनों अख़बारों में चौथाई पेज पर, और दूसरा 5 दिसंबर को. पहले विज्ञापन में कांग्रेस के चुनावी वादों की बात की गई थी, जिनमें मुफ्त बिजली, 500 रुपए में गैस सिलेंडर, अधिक नौकरियां और किसानों के लिए कर्ज माफी प्रमुख थे.

5 दिसंबर के विज्ञापन ने मतदाताओं को "आसमान छूती" महंगाई, बेरोजगारी और "व्यापक" भ्रष्टाचार की याद दिलाते हुए कहा कि अगर उन्होंने कांग्रेस को वोट दिया, तो उनके पास शिक्षा प्रणाली में सुधार करने, युवाओं को रोजगार देने, महंगाई को हराने और गुजरात को नशा-मुक्त बनाने का मौका होगा. विज्ञापन में अंत में कहा गया, "परिवर्तन ही एकमात्र विकल्प है."इ

5 दिसंबर को पहले पन्ने पर कांग्रेस और भाजपा विज्ञापन.

आप का कोई विज्ञापन 21 नवंबर से 5 दिसंबर के बीच दिव्य भास्कर, संदेश और गुजरात समाचार में नहीं था.

'दबाव' का आरोप

इससे यह प्रमाणित होता है कि कैसे इस विज्ञापन युद्ध में भाजपा का पड़ला बहुत भारी है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स या एडीआर के अनुसार 2017 और 2021 के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से भाजपा ने सबसे अधिक कमाई की. इसी अवधि में पार्टी ने गुजरात से कुल कॉर्पोरेट चंदे का 94 प्रतिशत - 174.06 करोड़ रुपए - भी प्राप्त किया.

गुजरात में कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोशी ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उनकी पार्टी को अपने सीमित संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग करना पड़ता है. उन्होंने कहा, “पहले चरण के दौरान हमने 30 नवंबर और 1 दिसंबर को केवल दो फ्रंट-पेज विज्ञापन दिए. हम 4 और 5 दिसंबर को दूसरे चरण के लिए भी ऐसा ही करेंगे. कांग्रेस और भाजपा के बीच खर्च का अनुपात 1 रुपए पर 1 लाख रुपए है. हमारे पास भाजपा जितना पैसा नहीं है, लेकिन हम अपना खर्च छोटी जन सभाओं और रैलियों पर केंद्रित कर रहे हैं.”

गुजरात में आप के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार इशुदान गढ़वी ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा था कि गुजरात में मीडिया उनकी पार्टी की गतिविधियों को कवर नहीं कर रहा है. उन्होंने आरोप लगाया, "हमें टीवी पर बहसों में भाग लेने नहीं दिया जाता है."

गुजरात में आप के प्रवक्ता मनोज बारोट भी इससे सहमत दिखे. उन्होंने आरोप लगाया, "सच्चाई यह है कि भाजपा ने इशुदान गढ़वी या अरविंद केजरीवाल जी को नहीं दिखाने के लिए मीडिया को डरा-धमका रखा है.

उन्होंने कहा, ''भाजपा जानती है कि वह किसी तरह कांग्रेस से निपट सकती है, लेकिन आप से नहीं. वह जानते हैं कि आप भ्रष्टाचार विरोधी पार्टी है और वो उन्हें बेनकाब कर देगी. इसलिए वह गुंडागर्दी करके और टीवी डिबेट या अखबारों में हमारी कवरेज बाधित करके हमें रोकने के अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं.”

दिल्ली के एक आप नेता ने नाम न बताने की शर्त पर दावा किया कि उनकी पार्टी समाचार पत्रों के विज्ञापनों पर पैसा खर्च नहीं करती है, इसके बजाय सोशल मीडिया पर अपने सीमित धन को केंद्रित करना पसंद करती है.

उन्होंने कहा, "हमें इलेक्टोरल बॉन्ड से जो पार्टी फंड मिलता था वह अब बंद हो गया है. ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग के जरिए बीजेपी उन कारोबारियों को निशाना बना रही है, जिन्होंने हमें फंड दिया था. इसलिए पिछले तीन या चार वर्षों में पार्टी का फंड और कम हो गया है.” उन्होंने बताया कि पार्टी का सोशल मीडिया अभियान “युवाओं” द्वारा चलाया जाता है.

उन्होंने कहा कि दिल्ली और पंजाब में आप की सरकारों ने 4 नवंबर को गुजरात विधानसभा कार्यक्रम की घोषणा से पहले अखबारों में विज्ञापन दिए थे. इन प्रयासों के लिए कांग्रेस ने आप को "अरविंद एडवर्टाइजमेंट पार्टी" करार दिया था. 

गुजरात भाजपा के प्रवक्ता यमल व्यास ने कहा कि वह नहीं बता सकते कि क्यों कॉरपोरेट्स अन्य दलों के बजाय भाजपा को चुन रहे हैं. उन्होंने कहा, "फंडिंग में पारदर्शिता के लिए हमने इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था शुरू की है. ​​​​ईडी, सीबीआई और आईटी द्वारा (विपक्षी दलों को फंड देने वाले) व्यापारियों को निशाना बनाने का आरोप निराधार हैं."

व्यास ने विपक्षी दलों को कम कवरेज देने के लिए मीडिया घरानों पर "दबाव" डालने के आरोप का भी खंडन किया.

सौराष्ट्र में संदेश के स्थानीय संपादक जयेश ठकरार ने कहा कि यह कहना "सही नहीं" है कि मीडिया इस चुनाव में विपक्षी दलों को कवर नहीं कर रहा है. उन्होंने कहा, "हर कार्यक्रम की न्यूज़ वैल्यू के अनुसार, हमने विपक्षी दलों को भी उचित स्थान दिया है."

दिव्य भास्कर के राज्य संपादक देवेंद्र भटनागर ने भी ठकरार का समर्थन किया, "यदि आप इस चुनाव में राजनीतिक रैलियों के हमारे कवरेज को देखते हैं, तो हमने विपक्षी दलों को भी जगह दी है."

लेकिन एक प्रमुख गुजराती दैनिक के संपादक इस तर्क से सहमत नहीं दिखे, वे  नाम न छापने की शर्त पर ही हमसे बात करने को तैयार हुए.

उन्होंने कहा, "कांग्रेस और आप का कम मीडिया कवरेज का आरोप कुछ हद तक सही है. पहले पत्रकार पार्टियों और मीडिया घरानों के बीच की मुख्य कड़ी हुआ करते थे. जिन्हें पार्टी के नेता कहते थे कि, 'थोड़ा देख लेना कि हमें अच्छा कवरेज मिले.' अब पार्टियां सीधे मालिकों के साथ सौदा करती हैं. यदि कोई रिपोर्टर आलोचनात्मक खबर लिखता है तो अखबार के मालिक के पास एक कॉल आती है और स्टोरी रद्द कर दी जाती है.”

उन्होंने आगे कहा, "मीडिया पर अभूतपूर्व पाबंदियां हैं - एक तरह से आपातकाल से भी बदतर. मेरे बच्चे भी पूछते हैं, 'पापा, आप क्या कर रहे हैं?' मैं आईना नहीं देख पाता हूं.”

लेकिन इस जाल में फंसने से बचने का एक तरीका है. वही जो हम न्यूज़लॉन्ड्री में करते हैं. चाहे सरकारें हों या कॉरपोरेट्स, हम कोई भी विज्ञापन नहीं लेते, पत्रकारिता को लेकर हमारे जुनून के बारे में यहां पढ़ें, और आज ही न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें. 

यह खबर न्यूज़लॉन्ड्री पर पहले अंग्रेजी में प्रकाशित हुई थी.

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