अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य के एक डॉक्टर ने पिछले महीने हंगामा खड़ा कर दिया. उन्होंने 18 से 39 वर्ष की आयु के पुरुषों को कोविड-19 के बाद लगने वाले बूस्टर टीकों से दूर रहने की सलाह दी. उन्होंने युवा पुरुषों में हृदय संबंधी मौतों को बूस्टर डोज से जोड़ दिया.
अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य के एक डॉक्टर जोसेफ लाडापो ने पिछले महीने हंगामा खड़ा कर दिया, जब उन्होंने कोविड-19 टीकों को राज्य के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर, इन्हें हाल ही में हुई युवा पुरुषों की हृदय संबंधी कारणों से हुई मौतों से जोड़ दिया. उन्होंने 18 से 39 वर्ष की आयु के पुरुषों को बूस्टर टीकों से दूर रहने की सलाह दी. वैज्ञानिकों ने उनकी चेतावनी को खारिज कर दिया और आठ पन्नों के विश्लेषण की निंदा की, जो किसी समकक्ष वैज्ञानिक की समीक्षा (पीयर-रिव्यू) के बिना ही छपा था.
इस विश्लेषण को अन्य वैज्ञानिकों ने अपारदर्शी और त्रुटिपूर्ण बताया, लेकिन ये बात भी शत प्रतिशत सही है कि कोविड-19 टीकों का यदा-कदा होने वाला लेकिन एक चिंताजनक हृदय संबंधी दुष्प्रभाव तो होता है. जिससे मायोकार्डिटिस यानी हृदय की मांसपेशियों की सूजन आ सकती है, जो सीने में दर्द और सांस की तकलीफ का कारण बन सकती है. इसके लक्षण उन किशोरों और युवा पुरुषों में देखे गए, जिन्हें बूस्टर टीका (तीसरी खुराक) लगाया गया था.
हालांकि इस टीके को लेने वालों में से इस आयु सीमा में, कई हजार में बस एक ही व्यक्ति ही इससे प्रभावित होता रिपोर्ट किया गया है, और वह भी तबीयत में जल्द सुधार दिखाते हुए बेहतर महसूस करता है. दुनिया भर में टीकों की वजह से होने वाली मायोकार्डिटिस मौतों की रिकॉर्ड की गई संख्या बहुत कम है.
लेकिन कई नए अध्ययनों से पता चलता है कि मायोकार्डिटिस होने के बाद, हृदय की मांसपेशियों को वापस पहले जैसा ठीक होने में महीनों का समय लग जाता है. कई वैज्ञानिक इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि लंबे समय तक रोगियों के लिए इसका अर्थ क्या होगा.
https://www.nature.com/articles/s41569-021-00662-w#MOESM1
यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने टीके बनाने वाली कंपनियों फाइजर और मॉडर्ना को इन जोखिमों का अध्ययन और आकलन करने, और आंकड़े इकठ्ठे करने का आदेश दिया है. एफडीए ने दो एमआरएनए टीकों की निर्माता फाइज़र और मॉडर्ना कपंनियों से छह मायोकार्डिटिस अध्ययनों की मांग की है.
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Contributeजैसे-जैसे वैज्ञानिक नए आंकड़ों को इकठ्ठा कर रहे हैं और इस जानकारी के अभाव को भरने की कोशिश कर रहे हैं, वैज्ञानिक और चिकत्सकों में इस बात पर विभाजिन दिखाई पड़ता है कि क्या इस तरह की चिंताओं से टीकों के प्रचार-प्रसार को प्रभावित होने देना चाहिए या नहीं. ख़ास तौर पर ऐसे समय में, जब दुनिया के कई देशों में कोविड-19 की एक नई लहर दस्तक दे रही है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि वे टीकाकरण का पूर्ण समर्थन करते हैं, लेकिन बूस्टर डोज़ की एक अलग समस्या है. ये युवा आयु वर्ग, जिसके लिए कोविड-19 सबसे कम खतरनाक है, उसी युवा आयु वर्ग के लिए बूस्टर टीकों से उत्पन्न होने वाला संभावित मायोकार्डिटिस सबसे ज़्यादा खतरनाक है. इस पशोपेश की स्थिति के पीछे यही कारण है.
बॉस्टन चिल्ड्रन अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ जेन न्यूबर्गर, जिन्होंने पोस्टवैक्सीन मायोकार्डिटिस रोगियों की देखभाल और अध्ययन किया, कहते हैं, "मैं एक टीकाकरण का घोर समर्थक हूं, मैं अभी भी बच्चों का टीकाकरण करूंगा." लेकिन सिएटल चिल्ड्रन हॉस्पिटल के बाल रोग विशेषज्ञ माइकल पोर्टमैन भी ऐसे रोगियों का अध्ययन भी कर रहे हैं, उनका कहना है कि वह स्वस्थ किशोरों को बूस्टर की सिफारिश करने में संकोच करेंगे. “मैं घबराहट पैदा नहीं करना चाहता, लेकिन इसके जोखिम-लाभ के अनुपात पर ज़्यादा स्पष्टता चाहता हूं.”
https://covid.cdc.gov/covid-data-tracker/#pediatric-seroprevalence
अक्टूबर महीने की शुरुआत में, उत्तरी कैलिफोर्निया के कैसर परमानेंटे, और सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की एक संयुक्त टीम ने मायोकार्डिटिस या पेरिकार्डिटिस के जोखिम की सबसे पहले सूचना दी थी - जब 12 से 15 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों में टीके की दूसरी ख़ुराक के बाद, 6700 में से 1 में हृदय के आसपास के ऊतकों की सूजन पायी गयी थी.
ऐसे ही पहली बूस्टर खुराक के बाद ये असर 16,000 में से 1 व्यक्ति में मिला था. वहीं 16 से 17 साल के बच्चों में यह टीके की दूसरी खुराक के बाद 8000 में से 1, और पहले बूस्टर के बाद 6000 में से 1 में देखा गया था. 18 से 30 वर्ष की आयु के पुरुषों में भी कुछ हद तक यह जोखिम बढ़ जाता है.
https://www.acpjournals.org/doi/10.7326/M22-2274#t1-M222274
कई वैज्ञानिकों को संदेह है कि टीके से होने वाला मायोकार्डिटिस, कोविड-19 के टीके लेने के बाद शरीर के अंदर होने वाली एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से शुरू होता है. द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में पिछले महीने प्रकाशित जर्मनी के एक अध्ययन ने सुझाव दिया कि यह असर कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन से जुड़ी एक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया से प्रेरित हो सकता है, जो मैसेंजर आरएनए टीका लेने के बाद, शरीर को ये प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए उकसाता है.
वैज्ञानिकों के इस समूह ने टीका लेने से जुड़े मायोकार्डिटिस रोगियों और गंभीर कोविड -19 वाले रोगियों, दोनों ही में ऐसी एंटीबॉडी मिलने की सूचना दी, जो स्वयं मायोकार्डिटिस का कारण बन सकती हैं. यही एंटीबॉडी, जो सामान्य सूजन नियंत्रण में दखल देती है, उन बच्चों में भी पाई गयी थी जिन्हें कोविड-19 से ग्रसित होने के बाद मल्टीसिस्टम इंफ्लेमेटरी सिंड्रोम (एमआईएस-सी) नामक एक दुर्लभ व खतरनाक अवस्था का सामना करना पड़ा था.
शोध का नेतृत्व करने वाली टुबिंगन विश्वविद्यालय में एक हृदय रोग विशेषज्ञ करीन क्लिंगेल कहती हैं, "मुझे लगता है कि यह वास्तव में एक अलग ही तंत्र है." लेकिन क्या यह खोजी गयी एंटीबॉडी सीधे मायोकार्डिटिस पैदा कर रही हैं, यह बात अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है.
https://www.nejm.org/doi/full/10.1056/NEJMc2205667?query=featured_home
बड़ा सवाल यह है कि क्या बूस्टर टीके लेने के लाभों से हृदय को कोई खतरा है या नहीं, चाहे उसकी संभावना कितनी ही कम क्यों न हो? कोविड -19 के लिए युवा लोगों को शायद ही कभी अस्पताल में भर्ती कराया जाता है, लेकिन वायरस उनके लिए पूरी तरह जोखिम-मुक्त भी नहीं है.
पिछले साल टीकाकरण से पहले लगभग 1600 कॉलेज एथलीटों के एक अध्ययन में पाया गया कि 2.3 फीसदी को कोविड -19 होने के बाद मायोकार्डिटिस की स्थिति से जूझना पड़ा था. संक्रमण के अन्य स्थायी प्रभावों में एमआईएस-सी और “लम्बी बीमारी वाला कोविड” शामिल हैं. वयस्कों में अध्ययन से पता चलता है कि टीकाकरण “लम्बी बीमारी वाले कोविड” के जोखिम को 15 से 80 प्रतिशत की रेंज में कितना भी कम कर देता है. इस वजह से ऐसा लगता है कि टीकाकरण जरूरी है.
https://jamanetwork.com/journals/jamacardiology/article-abstract/2780548
सभी के लिए बूस्टर टीके के सवाल पर विश्व के तमाम पश्चिमी देशों की सरकारें भी विभाजित दिखाई पड़ती हैं: स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी और डेनमार्क में, मुख्य रूप से वृद्ध वयस्कों और कमजोर युवाओं के लिए, नए बूस्टर टीके की दोनों खुराकें देने की सिफारिश की गई है. इसके विपरीत संयुक्त राज्य अमेरिका में, सीडीसी अब अनुशंसा कर रही है कि व्यक्ति की स्वास्थ्य पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना 5 वर्ष और उससे ज्यादा उम्र के सभी लोगों को इसकी खुराक दी जाए.
इस महामारी में हमने शुरू से देखा कि कई बार, जोखिम-लाभ के विश्लेषण बहुत जटिल प्रश्न खड़े कर रहे थे. कोरोना वायरस का ओमाक्रॉन वैरिएंट ही अब पूरे विश्व में पाया जाने वाला इसका प्रमुख प्रकार है, और अब तक के सभी अध्यनों का निचोड़ यही है कि ये वैरिएंट अपने पूर्ववर्ती वैरिएंट्स की अपेक्षा बहुत से खतरों के हिसाब से काफी कम खतरनाक है.
सीडीसी की ताज़ा रिपोर्ट कहती है की इस वर्ष के अगस्त तक, संयुक्त राज्य अमेरिका में कम से कम 86 प्रतिशत बच्चे कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं, जिससे उनके भविष्य में हो सकने वाले संक्रमण का खतरा बहुत कम हो गया है.
https://covid.cdc.gov/covid-data-tracker/#pediatric-seroprevalence
साथ ही पिछले साल की तुलना में टीकों से होने वाला मायोकार्डिटिस, अब बहुत कम देखा जा रहा है. कुल मिलाकर, बूस्टर टीका नयी उम्र के वयस्कों और बच्चों को दिया जाए या न दिया जाए, इस पर पश्चिमी देशों में अनिश्चितता है, जो थोड़ा निराशाजनक है - लेकिन जब तक पूरे आंकड़ें प्राप्त न हो जाएं, विज्ञान ऐसे ही सतर्कता से प्रश्नों के उत्तर देता है. ये देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में आने वाली कोरोना वायरस संक्रमण के खिलाफ, बच्चों के लिए बूस्टर टीकाकरण पर भारत सरकार क्या नीति निर्धारित करेगी.
(डॉ यूसुफ़ अख़्तर बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग में अध्यापनरत हैं.)
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