गाम्बिया में कफ सिरप से हुई मौतों के मामले में सीडीएससीओ ने भेजा नोटिस

मेडेन फार्मा को सीओपीपी सर्टिफिकेट जारी करने को लेकर दिनेश ठाकुर और प्रशांत रेड्डी को सीडीएससीओ ने भेजा नोटिस.

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केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता दिनेश ठाकुर और टी प्रशांत रेड्डी को एक नोटिस जारी किया है. यह नोटिस पश्चिम अफ्रीकी देश गाम्बिया में हुई 70 बच्चों की मौत के मामले में इंडिया टुडे को दिए इंटरव्यू के सिलसिले में है. संगठन ने नोटिस में गलतबयानी कर सीडीएससीओ की छवि खबर करने पर माफी मांगने को कहा है.

दरअसल, गाम्बिया में बच्चों की मौत का मामला एक भारतीय दवा कंपनी से जुड़ा है. हरियाणा में स्थित मेडेन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड कंपनी की खांसी की दवा से गाम्बिया में बच्चों की मौत हुई है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 5 अक्टूबर, 2022, को भारत की मेडेन फार्मास्यूटिकल्स सिरप (पीने वाली दवा) को लेकर अलर्ट जारी किया था. डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉ. टेडरॉस एडनहोम घेब्रेयेसुस ने कहा कि ये सिरप संभावित रूप से बच्चों की मौतों से जुड़ी हुई हैं. साथ ही सभी देशों को इन उत्पादों को हटाने की सलाह भी दी थी.

डब्ल्यूएचओ ने अलर्ट जारी करते हुए कहा कि दिल्ली स्थित एक कंपनी ने गाम्बिया को जो चार कफ सिरप - प्रोमेथाजोन ओरल सोल्यूशन, कोफिक्समेलिन बेबी कफ सिरप, मैकोफ बेबी कफ सिरप और मैगरिप कोल्ड सिरप, निर्मित और निर्यात किए हैं, उनमें दो जहरीले दूषित करने वाले पदार्थ डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल पाए गए.

इस अलर्ट के बाद ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने स्थायी राष्ट्रीय समिति के उपाध्यक्ष डॉ वाई के गुप्ता की अध्यक्षता में चार सदस्यीय समिति का गठन किया था. कमेटी की रिपोर्ट पर डीसीजीआई वी जी सोमानी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को भेजे जवाब में कहा, ‘‘डब्ल्यूएचओ द्वारा अब तक साझा की गई क्लीनिक ​​विशेषताएं और बच्चों को मिला उपचार, इटियोलॉजी (रोग के कारणों) को निर्धारित करने के लिए अपर्याप्त है.” बता दें कि डीसीजीआई के अंतर्गत ही सीडीएससीओ आता है.

एक ओर जहां कंपनी को हरियाणा सरकार की ओर से नोटिस जारी किया गया है, वहीं इस मुद्दे पर बात करने पर सीडीएससीओ ने जन स्वास्थ्य एक्टिविस्ट ठाकुर और रेड्डी को नोटिस जारी कर दिया.

क्या है नोटिस?

सीडीएससीओ ने कई बयानों का जिक्र करते हुए उन पर आपत्ति जताई है, साथ ही बयानों का जवाब भी दिया है.

पहला- दोनों कार्यकर्ताओं ने बातचीत में कहा था कि सीडीएससीओ ही सर्टिफिकेट ऑफ फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट (सीओपीपी) जारी करता है, और ये स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है. साथ ही उन्होंने बताया था कि सीडीएससीओ ने 2009 में सीओपीपी जारी करने की जिम्मेदारी ले ली थी. राज्यों के ड्रग कंट्रोलर सिर्फ दवा के उत्पादन का लाइसेंस देते हैं.

इस पर सीडीएससीओ ने जवाब देते हुए कहा है कि वह सीओपीपी जारी नहीं करता. यह काम राज्य ड्रग कंट्रोलर करता है. सीडीएससीओ सिर्फ उन कंपनियों की जानकारी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करती है जिन्हें सीओपीपी मिला है. बता दें कि सीडीएससीओ की वेबसाइट पर मेडेन फार्मा का नाम है.

दूसरा- इंडिया टुडे से बातचीत में कहा गया कि एक बार कंपनी को मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस मिल जाए, तो वह अपने उत्पाद को भारत में बेच सकती है. ऐसा कोई भारतीय कानून नहीं है जो इस पर रोक लगाता हो. सीडीएससीओ की वेबसाइट पर सीओपीपी लिस्ट में इस कंपनी का नाम है, इसलिए भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय गाम्बिया में इन मौतों के लिए जवाबदेह है.

इस पर सीडीएससीओ ने कहा कि आपके गैर जिम्मेदाराना और झूठे बयान से सार्वजनिक तौर पर नुकसान हो सकता है. आगे बताया गया कि निर्यात के लिए मिले लाइसेंस से सिर्फ निर्यात ही किया जा सकता है, भारतीय बाजार में नहीं बेचा जा सकता.

तीसरा- एक अन्य सवाल के जवाब में दोनों कार्यकर्ता कहते हैं कि प्राथमिक तौर पर जिम्मेदारी, लाइसेंस जारी करने वाली एजेंसी की होती है. लेकिन गाम्बिया मामले में डीसीजीआई ने सीओपीपी जारी किया जिसमें सीडीएससीओ की जिम्मेदारी है. क्यों लाइसेंस जारी करने से पहले कंपनी का ट्रैक रिकॉर्ड नहीं देखा गया? किस आधार पर सीडीएससीओ ने सीओपीपी जारी किया?

सीडीएससीओ ने अपने जवाब में कहा कि यह झूठा बयान है. न सिर्फ सीडीएससीओ, बल्कि राज्य ड्रग रेलुगेटर ने भी इन दवाईयों के लिए सीओपीपी जारी नहीं किया.

संगठन ने अपने बयान में आगे लिखा कि इस तरह के बयान देकर सीडीएससीओ और केंद्र सरकार को बदनाम किया गया. इन बयानों के जरिए जनता का जो विश्वास इंडियन ड्रग रेगुलेटरी सिस्टम पर है, उसे भी कमजोर करने की कोशिश की गई.

सीडीएससीओ के उपनिदेशक प्रशासन (ड्रग्स) अमित कुमार ने नोटिस में कहा कि ठाकुर और रेड्डी के झूठे, निराधार और मनगढ़ंत बयानों का उद्देश्य केवल सीडीएससीओ की छवि को नीचा दिखाना है. उन्हें मीडिया में तुरंत सही बयान जारी करना चाहिए और भविष्य में ऐसे बयान देने से बचना चाहिए. साथ ही कहा गया कि भविष्य में इस तरह के बयानों को रोकने के लिए संगठन कानूनी विकल्पों का उपयोग करने में संकोच नहीं करेगा.

इस नोटिस के जवाब में दिनेश ठाकुर और प्रशांत रेड्डी ने भी विस्तृत जवाब देते हुए संगठन के सभी प्रश्नों का जवाब दिया है. साथ ही उन्होंने सीडीएससीओ को कहा कि वह अपने नोटिस को वापस लें और माफीनामा जारी करें.

क्या है नियम

हेल्थ और फार्मा कवर करने वालीं एक वरिष्ठ पत्रकार नाम न छापने की शर्त पर कहती हैं, “जब से सीडीएससीओ ने कहा कि वह सीओपीपी जारी नहीं करता, तब से इस पर असमंजस की स्थिति बन गई है. क्योंकि अभी तक यही पता था कि सीओपीपी केंद्रीय एजेंसी ही जारी करता है.”

बता दें कि सीओपीपी सर्टिफिकेट, निर्यात के लिए मिलता है. यह सर्टिफिकेट डब्ल्यूएचओ के मानक, गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (जीएमपी) के तहत मिलता है. यह सर्टिफिकेट राज्य ड्रग्स कंट्रोलर जारी करते हैं.

ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क के डॉक्टर गोपाल डबाडे कहते हैं, “वैसे तो सर्टिफिकेट राज्य ही जारी करता है लेकिन वह इसकी सूचना केंद्रीय एजेंसी को भी देता है. राज्य और केंद्र दोनों इस प्रकिया में जुड़े होते हैं.”

वह आगे कहते हैं कि, इस घटना के बाद हमें यह देखना चाहिए कि गलती कहां हुई है. और इस व्यवस्था को सुधारने के लिए काम करना चाहिए.

साल 2009 में औषधि सलाहकार समिति (डीसीसी) की 40वीं बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि एक्सपोर्ट के लिए सीओपीपी और जीएमपी सर्टिफिकेट, डीसीजीआई ही जारी करेगा.

बता दें कि सीडीएससीओ के प्रमुख डीसीजीआई होते हैं. उस बैठक के बाद एक पत्र में कहा गया था कि “कई बार सर्टिफिकेट को लेकर डब्ल्यूएचओ की शिकायतें मिली हैं. इसलिए सर्टिफिकेट ऑफ फार्मास्यूटिकल प्रोडक्ट्स (सीओपीपी) और सर्टिफिकेट ऑफ गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (जीएमपी), राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण यानी डीसीजीआई कार्यालय द्वारा दिया जाएगा.”

दोनों स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने अपने जवाब में 2009 में हुई डीसीसी की बैठक के मिनट्स ऑफ मीटिंग भी दिए हैं. साथ ही दोनों ने अपने जवाब में कर्नाटक हाईकोर्ट के एक फैसले का जिक्र भी किया है, जिसमें कहा गया है कि डीसीजीआई ही सीओपीपी जारी करता है.

मेडेन फार्मा ने अपने जवाब में कहा कि उसके पास डब्ल्यूएचओ के मानकों के तहत जीएमपी सर्टिफिकेट है. कंपनी ने बताया कि सीडीएससीओ ने सैंपल लिए हैं, जिनकी जांच चल रही है. कंपनी ने यह भी साफ किया कि वह सिर्फ निर्यात करती है और देश में अपनी दवाओं की बिक्री नहीं करती.

सीडीएससीओ ने अपने जवाब में कहा कि “मेडेन फार्मा के चारों प्रोडक्ट्स के लिए न तो सीडीएससीओ, और न ही राज्य ड्रग रेगुलेटर ने सीओपीपी जारी किया है.”

इस बात का यह निष्कर्ष निकलता है कि यह चारों सीरप, बिना सर्टिफिकेट मिले ही गाम्बिया निर्यात हो गए.

हेल्थ कवर करने वाली एक अन्य पत्रकार कहती हैं, “यह अपने आप में बहुत ही चिंताजनक है कि कैसे बिना सर्टिफिकेट मिले ही यह प्रोडक्ट एक्सपोर्ट हो गए. इसका जवाब तो अब सीडीएससीओ को ही देना होगा.”

नोटिस का जवाब देते हुए दोनों स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने भी इस विषय को उठाया है. उन्होंने कहा कि, “गाम्बिया के नियमों के मुताबिक आयातित दवाओं के लिए सीओपीपी सर्टिफिकेट जरूरी है. हम इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि सरकार ने दावा किया, कि चारों कफ सिरप भारत से बिना सीओपीपी मिले ही गाम्बिया एक्सपोर्ट कर दिए गए.”

दिनेश ठाकुर कहते हैं कि उन्होंने सीडीएससीओ को अपना जवाब दे दिया है. अभी तक एजेंसी की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने सीडीएससीओ से बातचीत करने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. हमने स्वास्थ्य परिवार कल्याण विभाग में पीआईबी की उपनिदेशक सुविधा कुमार को अपने सवाल भेजे हैं. उनकी ओर से जवाब आने पर खबर में जोड़ दिया जाएगा.

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