पतंजलि विश्वविद्यालय के निर्माण हेतु वहां बनी गीतांजलि रेजीडेंसी को बल-छल से कब्जाने में लगे हैं बाबा रामदेव के लोग.
बचे 18 मकानों को खरीदने के लिए की 'ज़बरदस्ती'
आरोप है कि साल 2017 में जब विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य शुरू हुआ, सभी मकानों की बिजली और पानी काट दी गई और धीरे- धीरे मकानों के सामने की सडकों की खुदाई चालू कर दी. मकानों के अंदर घुसने का रास्ता बंद हो गया. ज़बरदस्ती की गई. ऐसे में कई लोग पतंजलि को मकान बेचकर चले गए.
इसके बाद 18 में से 11 लोगों ने कम कीमतों पर मकान बेच दिए. लेकिन सात मकानों के मालिक पिछले पांच सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं. ये मकान सतीश सेठी, शोभा अग्रवाल, आमना बेग़म, राशि मालिक, डॉ. शेखावत खान, केशवनंद जुयाल और अनिल यादव के हैं. इन्हें कई बार आचार्य बालकृष्ण ने मीटिंग करने के लिए भी बुलाया लेकिन ये लोग मकान नहीं बेचना चाहते.
नवीन सेठी ने आरोप लगाया है कि पतंजलि के लोगों ने उन्हें धमकाया है. वह कहते हैं, "मैंने जब अपने मकान के सामने अवैध निर्माण की शिकायत की तो मुझे धमकाया गया. जब मैंने उनसे पूछा मेरे मकान के आगे दीवार का निर्माण क्यों किया जा रहा है तब उन्होंने कहा कि यह काम ऐसे ही होगा आपको जो करना है कर सकते हैं."
नवीन आगे कहते हैं, "जब यहां के निवासियों ने अपने ये मकान पतंजलि को बेचने से इन्कार कर दिया तो पंतजलि ने मकानों के आसपास के क्षेत्र का स्तर ऊंचा उठा दिया ओर सभी मकानों को करीब पांच फीट गड्ढे में दबा दिया गया. ये सब कार्य लॉकडाउन के दौरान किया गया. निवासी पिछले साल लॉकडाउन में अपने घरों को देखने जा नहीं सके और पतंजलि ने इस तरह से सभी घरों पर कब्जा जमा लिया. हमने डीएम, एसडीएम और सरकार से कई बार शिकायत की है. लेकिन कोई भी इस पर ध्यान नहीं देता."
वहीं एक और निवासी अनिल यादव ने आरोप लगाया, "हम कई बार बिजली विभाग में गए कि हमारी बिजली लौटा दें. लेकिन हर बार हमें खाली हाथ लौटा दिया जाता है. कह देते हैं कि पहले जाकर बाबा से एनओसी लेकर आओ तभी बिजली का कनेक्शन देंगे."
जांच में क्या पाया गया?
जुलाई 2020 में निरीक्षक सुलक्षणा नेगी ने स्थानीय निरीक्षण जांच में पाया कि पतंजलि योगपीठ द्वारा उक्त मकानों के चारों तरफ के रास्तों और भूमि को लगभग चार से पांच फ़ीट ऊपर उठाकर, मिट्टी का भराव कर, पक्का करने का कार्य गतिमान है. जिस कारण इन मकानों का भूमि-स्तर (ग्राउंड-लेवल) नीचे हो गया है. मकानों के मेन गेट, खिड़कियां व दरवाज़े दीवार से आधे ढ़क चुके हैं और मकानों में रहना मुमकिन नहीं है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने एचआरडीए में असिस्टेंट इंजीनियर डीएस रावत से बात की. उन्होंने बताया, "गीतांजलि रेजीडेंसी और पतंजलि विश्वविद्यालय के बीच मामला विचाराधीन है. जमीन के मालिकाना हक को लेकर असमंजस की स्थिति है. फिलहाल परीक्षण चल रहा है. हालांकि विश्वविद्यालय द्वारा अवैध अतिक्रमण हुआ है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने पतंजलि की तरफ से केस लड़ रहे वकील सतेंदर सैनी से भी बात की. वह कहते हैं, "यह मामला अभी अदालत में चल रहा है. कोविड के कारण सुनवाई रुकी हुई है." इसके अलावा पतंजलि ग्रुप की ओर से कोई जानकारी नहीं मिल पाई है.
इस मामले में न्यूज़लॉन्ड्री ने पतंजलि योगपीठ के सीईओ और बाबा रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण से बात करने की कोशिश की. लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो सका. इसके बाद हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं. हालांकि अभी तक उनका कोई जवाब नहीं आया है. उनका जवाब आते ही इस रिपोर्ट में शामिल कर लिया जाएगा.
पतंजलि विश्वविद्यालय के नक़्शे में गीतांजलि रेजीडेंसी का ज़िक्र नहीं
विश्वविद्यालय बनाने का कार्य हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण (एचआरडीए) के तहत आता है लेकिन ये पूरा विश्वविद्यालय बिना एचआरडीए की अप्रुवल के बनाया गया. यह खुलासा एक आरटीआई से हुआ है. इस बाबत एचआरडीए ने लगभग छह करोड़ का जुर्माना पतंजलि पर लगाया. ये जुर्माना इसलिए लगाया कि उसे बिना बताए एवं बिना अप्रुवल के ये विश्वविद्यालय बनाया गया. नवीन सेठी ने पतंजलि विश्वविद्यालय का नक्शा न्यूज़लॉन्ड्री के साथ साझा किया है जिसमें पता चलता है कि पतंजलि विश्वविद्यालय के लिए जारी नक़्शे में गीतांजलि रेसीडेंसी के इन मकानों का कहीं ज़िक्र नहीं है.
"2017 में जब विश्वविद्यालय का निर्माण कार्य शुरू हुआ, सभी मकानों की बिजली और पानी काट दी गई और धीरे- धीरे हमारे मकानों के सामने की सड़कों की खुदाई चालू कर दी. मकानों के अंदर घुसने का रास्ता बंद हो गया. ज़बरदस्ती की गई. ऐसे में कई लोग पतंजलि को मकान बेचकर चले गए. अब यहां सात मकान बचे हैं. सभी मकान ज़मीन में दबा दिए गए हैं." नवीन बताते हैं.
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