परिवारवादी रामदेव: पतंजलि में रामदेव तो बस ‘एंकर’ हैं, असली मालिक तो कोई और है!

रामकिशन यादव के योग गुरु रामदेव, और योग गुरु से कारोबारी रामदेव बनने की कहानी.

WrittenBy:बसंत कुमार
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योग गुरु रामदेव का जन्म हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के सैद अलीपुर में हुआ था. घंटों भटकने के बाद हम रामदेव के गांव पहुंचे. यह इलाका अरावली की पहाड़ियों से घिरा है. गांव के प्रवेश पर ही सैद अलीपुर का सरकारी स्कूल है. सैद अलीपुर में पांचवीं तक की पढ़ाई करने के बाद रामदेव आगे की पढ़ाई के लिए शहबाजपुर गए थे. 1987 में, जब रामदेव आठवीं में पढ़ते थे, एक रोज उन्होंने अपनी किताबें पास के जंगल में फेंककर घर छोड़ दिया. उस समय इस इलाके में आर्यसमाज का बहुत प्रभाव हुआ करता था. उनका पूरा गांव आर्य समाजी हो गया था. उनके अपने चाचा सरपंच जगदीश भी आर्य समाज के प्रचारक थे. रामदेव को शुरुआती शिक्षा सरपंच जगदीश से ही मिली थी.

अब तक रामदेव, रामकिशन यादव थे. रामनिवास यादव और गुलाब देवी के तीन बेटे और एक बेटी हैं. देवदत्त, रामदेव, रामभरत और बहन ऋतम्भरा. रामदेव के बड़े भाई देवदत्त यादव केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल में कार्यरत थे. पारिवारिक कारणों के चलते समय से पहले रिटायर होकर आये देवदत्त अब गांव में ही खेती करते हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए वे कहते हैं, ‘‘स्वामी जी (रामदेव) साल 1986 के आसपास मुझसे अक्सर कहते थे कि मेरे सपने में एक सन्यासी आते हैं. वे कहते हैं कि तुम्हें देश सेवा करनी है. वे हर शाम टाट-पट्टी और पानी का ग्लास लेकर छत पर चले जाते थे. वहीं भगवान का ध्यान करते थे. ऐसा करते-करते एक दिन उन्होंने घर ही छोड़ दिया.’’

देवदत्त बताते हैं, ‘‘रामदेव जिद्दी स्वभाव के हैं. उन्हें जीतना पसंद है. हमारे पिताजी दोनों भाइयों के बीच पहलवानी कराते थे. रामदेव दुबले-पतले थे तो मैं उन्हें आसानी से हरा देता था. एक दिन वे गुदगुदी करके जीत गए. मुझे गुस्सा आया तो मैंने रामदेव को थप्पड़ मार दिया. तब रामदेव ने कहा मेरे दूसरे गाल पर भी मारो. मुझे शर्मिंदगी हुई. तब से कभी रामदेव पर हाथ नहीं उठाया.’’

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घर छोड़ने के बाद रामदेव पास में ही खानपुर के आर्ष गुरुकुल पहुंचे. यह आर्य समाज का अध्ययन केंद्र है. एक दौर था जब यहां सैकड़ों की संख्या में छात्र पढ़ाई करते थे, लेकिन अब यहां गिने चुने छात्र ही हैं. जानकार इसकी वजह आर्य समाज के घटते प्रभाव को मानते हैं. यहां रामदेव के गुरु थे, स्वामी प्रद्युम्न. वे आज भी वहीं रहते हैं. वे बीच में कुछ दिनों के लिए पतंजलि में छात्रों को पढ़ाने गए थे, लेकिन जल्द ही लौट आये. अब यह गुरुकुल भी पतंजलि की देखरेख में है. गुरुकुल में एक बड़ा सा पतंजलि स्टोर है. यह भंडार केंद्र भी है जहां से आसपास के इलाके में पतंजलि के उत्पाद भेजे जाते हैं.

प्रद्युम्न बताते हैं, ‘‘स्वामीजी (रामदेव) आर्य समाज के योद्धा हैं. वे यहां अब कम ही आते हैं, लेकिन आज भी गुरुकुल की हर मदद करते हैं. मेरे चलने के लिए उन्होंने फार्चूनर गाड़ी दी हुई है. वे अकेले यहां आए थे और दो साल रहकर शिक्षा हासिल की. यहां के बाद झज्जर जिले के कालवा आश्रम चले गए. वहां से हरिद्वार.’’

रामदेव के दाहिने हाथ आचार्य बालकृष्ण की रामदेव से मुलाकात इसी खानपुर आश्रम में हुई थी. स्वामी प्रद्युम्न बताते हैं, ‘‘आचार्य बालकृष्ण रामदेव के आने के कुछ महीनों के बाद आए. उन्हें मैं ही गुरुकुल लेकर आया था. उनके पिता नेपाल से मज़दूरी करने आए थे. बालकृष्ण रामदेव से छोटे हैं लेकिन वे दोनों अच्छे दोस्त बन गए थे. जब रामदेव यहां से गए, उसके कुछ दिनों बाद बालकृष्ण भी चले गए.’’

रामदेव के शुरुआती दिनों को याद करते हुए स्वामी प्रद्युम्न कहते हैं, ‘‘वे परिश्रमी, सेवाभावी, श्रद्धालु और पढ़ाई करने में बेहद अच्छे थे. उन्हें किसी भी काम में लगा दो, जब तक ख़त्म नहीं करते तब तक हटने वाले नहीं हैं. वो आदत आज भी है.’’

रामदेव को घर वापस लाने के लिए एक रोज उनके पिता खानपुर पहुंचे. प्रद्युम्न बताते हैं, ‘‘उनके पिताजी ने कहा कि इसकी मां उदास है, इसे घर जाने दीजिए. हमने कहा कि बांधकर तो नहीं रख सकते हैं. हालांकि अगले ही दिन रामदेव वापस अपने घर से गुरुकुल लौट आए और फिर कभी वापस लौटकर नहीं गए.’’

रामदेव के बड़े भाई के मुताबिक रामदेव घर से दूर हो गए लेकिन परिवार से कभी संबंध ख़त्म नहीं किया. उन्होंने बताया, “1992 में जब मेरी शादी हुई थी तब रामदेव और बालकृष्ण दोनों आए थे. अगले साल उनकी पढ़ाई का वार्षिक उत्सव हरिद्वार में हुआ. वहां परिवार की तरफ से मैं ही गया था. उसी साल रामदेव ने हरिद्वार के कनखल मंदिर में संन्यास की दीक्षा ले ली.”

रामदेव और बालकृष्ण ने एक ही व्यक्ति को गुरु बनाया. उनका नाम था शंकर देव. आगे चलकर शंकर देव लापता हो गए और उनका अब तक पता नहीं चला है. “1995 में रामदेव ने पहली नर्सरी खोली तो घर से भी पैसे मांगे. रामदेव ने मुझसे कहा था कि अगर घर-परिवार से कुछ बचता है तो मुझे दे दो. मैंने कुछ मदद की. पिताजी ने बैंक से लोन लेकर कुछ पैसे दिए.”

रामदेव और उनके गांव के लोग

देश के अलग-अलग हिस्सों में रामदेव की छवि एक महात्मा की है. उनके गुरु हों या बड़े भाई, सब उन्हें स्वामीजी ही कहते हैं. लेकिन उनके गांव और आसपास ऐसे लोग भी हैं जो उन्हें पसंद नहीं करते हैं. उनके गांव के लोग उन पर और उनके परिवार पर गांव की संपत्ति कब्जाने का आरोप लगाते हैं.

रामदेव के गांव में प्रवेश करते ही वो सरकारी स्कूल है जहां रामदेव ने पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई की. स्कूल के आगे एक बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ है जिस पर गांव की महान विभूतियों के नाम लिखे हुए हैं. सैद अलीपुर के बोर्ड पर चार नाम लिखे हैं. इनमें पहला नाम रामदेव का है.

स्कूल के पास में ही हमारी मुलाकात 24 वर्षीय दीपक सिंह से हुई. वे रामदेव के परिवार से ताल्लुक रखते हैं. दीपक कहते हैं, ‘‘देश के लिए भले ही उन्होंने कुछ किया हो लेकिन यहां के लोगों के लिए कुछ भी नहीं किया. उल्टा हमारे यहां की पंचायत की जमीन कब्जाने की कोशिश उनके परिजनों ने की. एक सरकारी जोहड़ (तालाब) को अपने कब्जे में कर लिया है. वहां से मिट्टी तक नहीं उठाने देते हैं.’’

गांव की जमीन कब्जाने की कोशिश के आरोप पर विस्तार से बात करते हुए सिंह कहते हैं, ‘‘हमारे यहां पानी की समस्या है. ऐसे में गांव के लोगों ने जोहड़ की खुदाई के लिए उन्हें एक किला (5 बीघा) जमीन दी थी. बारिश के समय पहाड़ का पानी उसमें जमा होता, जिससे गांव का जल स्तर भी बेहतर होता और पशु-पक्षियों को भी पानी पीने को मिलता. आज तक उसमें पानी जमा नहीं हुआ यानी उससे गांव को कोई फायदा नहीं हुआ. अब तो उसमें से गांव वालों को मिट्टी तक नहीं निकालने दिया जाता. अगर कोई मिट्टी निकालने जाता है तो उनके भाई देवदत्त भगा देते हैं. जबकि वो ग्रामसभा की जमीन है. रामदेव के परिवार के लोगों ने उस पर कब्जा कर लिया है.’’

सिंह एक दूसरी घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘‘हमारे यहां पंचायत के पास 24 किले की जमीन है. रामदेव ने कहा कि यह जमीन हमारे नाम कराओ. यहां पर मैं यूनिवर्सिटी बनवाऊंगा. इससे आपको फायदा होगा और यहां के लोगों को रोजगार मिलेगा. गांव को लोग एक किला देकर पहले ही पछता रहे थे. इस बार उन्होंने देने से इंकार कर दिया. जिसके बाद रामदेव ने इस गांव में पलटकर नहीं देखा. वे सात-आठ महीने पहले पांच मिनट के लिए अपने घर आये थे.’’

रामदेव के गांव से पतंजलि में सिर्फ एक व्यक्ति काम करता है. रामदेव शुरुआत में गांव से कई लोगों को लेकर गए लेकिन किसी पर चोरी तो किसी पर कामचोरी का आरोप लगाकर हटा दिया गया. गांव के एक व्यक्ति की तो जमकर पिटाई भी की गई. सुरेंद्र वैद्य जी के नाम से चर्चित ये व्यक्ति गांव के ही रहने वाले हैं. पतंजलि की जब शुरुआत हुई तो गांव के कुछ लोगों के साथ सुरेंद्र भी वहां काम करने गए थे. उन्हें बेरहमी से पीट कर एक लाख की चोरी का आरोप लगाकर निकाल दिया गया. सुरेंद्र ने हमसे बात करने से इंकार कर दिया.

दरअसल गांव का जो भी व्यक्ति पतंजलि में काम करता था, उसके परिवार वालों को रामदेव का परिवार अपना नौकर बना लेता था. यही सुरेंद्र वैद्य के परिवार के साथ हुआ. रामदेव की भाभी हो या मां, वे इनके परिवार से दिन भर काम कराते रहते थे. सुरेंद्र को इस बात की जानकारी आठ-नौ साल बाद हुई. उन्होंने अपनी मां को रामदेव के परिवार का काम करने से मना कर दिया. यह बात पतंजलि के लोगों को बुरी लगी.

इसके बाद सुरेंद्र के बुरे दिनों की शुरुआत हुई. पहले सुरेंद्र के ऊपर चोरी का आरोप लगाया गया. उसने कहा कि आप जांच करा लो, अगर कोई गलती निकलती है तो आपको जो कार्रवाई करना हो करना. जांच में सुरेंद्र साफ निकले. फिर इन्हें एक रोज बंद कमरे में इनके ऊपर हमला हुआ. उन्हें पांच दिनों तक एक कमरे में बंद रखा गया. इसके बाद एक लाख रुपए चोरी के आरोप पर हस्ताक्षर कराये गए. सुरेंद्र के परिजनों ने गांव से कर्ज लेकर एक लाख रुपए जमा कराये तब जाकर उन्हें छोड़ा गया. वहां से आने के बाद एक साल तक सुरेंद्र का इलाज चला. वे बिस्तर से उठ नहीं पाए.

गांव के कई लोग यह कहानी सुनाते हैं. गांव के एक बुजुर्ग कहते हैं, ‘‘गांव में पढ़े लिखे लड़के बेरोजगार घूम रहे हैं, लेकिन पतंजलि कोई जाना नहीं चाहता है. अभी सरकार उनके पक्ष की है, इसलिए कोई कुछ बोलता नहीं है. यहां कोई उन्हें अपना नहीं मानता है. रामदेव और उनके परिवार का गांव में यह हाल है कि वे सरपंच का चुनाव लड़ लें, तो घर के अलावा किसी का वोट नहीं मिलेगा.’’

रामदेव के भाई देवदत्त इस आरोप के जवाब में कहते हैं, ‘‘कामचोर हैं सब. एक तो काम कम करते हैं ऊपर से चोरी करते हैं. फिर कोई कैसे काम देगा? जहां तक जोहड़ की बात है तो वे मेरे दादा ने बनाया था. उस पर गांव के लोगों का कोई हक़ नहीं है.’’

गांव के एक बुजुर्ग सरदार सिंह दावा करते हैं कि उन्होंने रामदेव को गोद में खिलाया है. वे कहते हैं, ‘‘गांव के लिए तो रामदेव ने कुछ नहीं किया, यह सच है, लेकिन उनके होने से गांव का नाम तो होता है. अगर रामदेव नहीं होते तो आप भी हमारे गांव नहीं आते.’’

गांव से निकलते हुए एक किराने की दुकान है जहां हम रुके. यह दुकान 65 वर्षीय कैलाश की है. रामदेव का जिक्र आते ही वे बिफर कर कहते हैं, ‘‘अगर अभी मैं बीमार पड़ जाऊं और इलाज के लिए कर्ज मांगने जाऊं तो नहीं मिलेगा, लेकिन अगर मुझे जमीन बेचनी हो तो हरिद्वार से पैसा आ जाएगा.’’

रामदेव, कनखल आश्रम और हरिद्वार

दुनिया भले ही आज पतंजलि के साम्राज्य के पीछे की वजह स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की मेहनत को मानती हो, लेकिन शुरुआती दिनों में इनके साथ स्वामी कर्मवीर भी जुड़े हुए थे. आगे चलकर कर्मवीर ने इनका साथ छोड़ दिया. आजकल वे पुणे में अपना आश्रम चलाते हैं. साथ ही मुजफ्फरनगर के पुरकाजी में महर्षि पतंजलि अंतर्राष्ट्रीय योग विद्यापीठ (ट्रस्ट) भी चलाते हैं. यह संस्थान भी योग सिखाता है और आयुर्वेदिक दवाओं का निर्माण करता है.

स्वामी कर्मवीर ने हरिद्वार के गुरुकुल कांगड़ी से तीन विषयों में स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई की है. शुरुआती दिनों से तीनों को जानने वालों की मानें, तो रामदेव और बालकृष्ण को योग और जड़ी-बूटी की दुनिया में लाने वाले कर्मवीर ही थे. जिस शंकर देव से रामदेव और बालकृष्ण ने शिक्षा ली, वे कर्मवीर के गुरु थे. कर्मवीर कहते हैं, ‘‘मुझसे मिलने पहले आचार्य बालकृष्ण कनखल स्थिति त्रिपुरा योग आश्रम में आए थे. बालकृष्ण के साथ हमने सिक्किम और नेपाल में काम किया. उसके करीब दो-तीन साल बाद स्वामी रामदेव आए.’’

तहलका पत्रिका की एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक स्वामी शंकर देव के पास हरिद्वार में गंगा के बिल्कुल आसपास जाने-माने संतों के आश्रमों के बीच काफी जमीन थी. उन दिनों रामदेव, बालकृष्ण और कर्मवीर इधर-उधर योग सिखाते, जड़ी बूटियां बांटते और बीमारों को अन्य फॉर्मेंसियों की बनी दवाइयां देते थे. शिष्य बनने के बाद इन तीनों ने पांच जनवरी 1995 को स्वामी शंकर देव के साथ मिलकर दिव्य योग के नाम से एक ट्रस्ट बनाया. स्वामी शंकर देव की सारी संपत्ति को भी इस ट्रस्ट में शामिल कर लिया गया.

रिपोर्ट के मुताबिक इस ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी रामदेव बने और बालकृष्ण को महामंत्री का महत्वपूर्ण पद दिया गया. कर्मवीर ट्रस्ट के उपाध्यक्ष बने, साध्वी कमला उपमंत्री और सूरत के व्यापारी जीवराज भाई पटेल कोषाध्यक्ष बने. शंकर देव ट्रस्ट के संरक्षक थे.

पतंजलि के साथ शुरुआती दौर से जुड़े एक शख्स ने नाम नहीं छपने की शर्त पर हमें बताया, “जीवराज भाई पटेल, रामदेव को गुजरात ले जाने वाले व्यक्ति थे. वे किसी काम से हरिद्वार आये थे. उनके पेट में दर्द हुआ तो बाबा रामदेव के पास आये. बाबा रामदेव की दवाई से जीवराज को आराम मिला. वे व्यापारी थे. समाज सेवा के नाम पर उन्होंने बाबाजी को छोटी-छोटी मशीनें दीं. इसके बाद रामदेव ने कारोबार शुरू कर दिया. उनके सहयोग से ही रामदेव गुजरात के व्यापारियों और समाजसेवियों से मिले. कनखल में बने योग मंदिर के निर्माण में ज्यादातर आर्थिक सहयोग गुजरात के लोगों का ही है. इसके बाद बाबा को शिविर लगाने की आदत पड़ गई. एक सप्ताह में बाबा एक करोड़ तक लाने लगे थे. सारे पैसे कैश में ही आते थे.”

ट्रस्ट से जुड़े ज़्यादातर लोगों को धीरे-धीरे बाहर का रास्ता दिखाया जाने लगा. किसी को अवांछनीय तो किसी को गैर कानूनी गतिविधियों के कारण निकाला गया. कर्मवीर खुद ही साल 2004-05 में पतंजलि से अलग हो गए. न्यूज़लॉन्ड्री ने कर्मवीर से विस्तार से बात की. लेकिन उसके पहले जान लेते हैं कि रामदेव और बालकृष्ण कैसे दिव्य योग ट्रस्ट के प्रमुख बन गए.

धीरे-धीरे ट्रस्ट से लोगों को अलग किया जा रहा था. इसी बीच रामदेव और बालकृष्ण ने स्वामी शंकर देव से लिखवा लिया कि “न्यास (ट्रस्ट) के विघटन की दशा में न्यास की संपत्ति, सम उद्देश्य वाले किसी न्यास को स्थानांतरित की जाएगी.’’

बाबा रामदेव को स्वामी कर्मवीर ने ही अपने गुरु शंकरदेव से मिलाया था. कर्मवीर बताते हैं, ‘‘स्वामी जी (शंकर देव) से मेरा पहले से परिचय था. वे हमें आश्रम देना चाहते थे. उनके आग्रह पर हमने एक ट्रस्ट का निर्माण किया. फिर वहां दवाइयों के निर्माण का काम शुरू हुआ.’’

2004-05 में कर्मवीर पतंजलि से अलग हो गए. तब तक रामदेव योग की दुनिया में प्रसिद्ध हो चुके थे. उनकी दवाइयों की मांग बढ़ गई थी. उनके चाहने वालों की संख्या बढ़ने लगी थी. योग कैंप में लाखों की संख्या में लोग आने लगे थे. कर्मवीर दावा करते हैं कि उन्होंने ही योग कैंप की शुरुआत की थी. वे बताते हैं, ‘‘बालकृष्ण को जड़ी बूटियों की अच्छी समझ है. वे जड़ी-बूटी का काम देखते थे. मैंने लंबे समय तक हिमालय में रहकर जड़ी-बूटी के साथ-साथ योग पर भी काम किया है. योग मैं सिखाता था. रामदेव जी बाकी इंतज़ाम देखते थे. गुजरात में हुए कार्यक्रम में मैंने ही उन्हें योग का काम दे दिया.’’

रामदेव और बालकृष्ण से अलग होने के सवाल पर कर्मवीर कहते हैं, ‘‘मैंने वहां से अलग होते हुए उनसे कुछ नहीं लिया. तब तो करोड़ो-करोड़ों रुपए आने लगे थे लेकिन बस विचार नहीं मिला तो अलग हो गया.’’

करीब 14 सालों तक साथ रहने के बाद हुए अलगाव पर कर्मवीर वही जवाब दोहराते हैं, लेकिन आगे जो कुछ कहते हैं, उससे अंदाजा लगता है कि रामदेव-बालकृष्ण का साथ उन्होंने क्यों छोड़ा. लोकप्रिय होने के बाद रामदेव ने अपने साम्राज्य का विस्तार शुरू किया. इसके लिए जमीनों की वैध/अवैध तरीके से खरीदारी, टैक्स चोरी का काम शुरू हो गया. आगे चलकर टैक्स चोरी के आरोप में रामदेव के कई ठिकानों पर छापेमारी हुई. जब हमने कर्मवीर से यह पूछा कि क्या यह सब उनके सामने शुरू हुआ तो वे कहते हैं, ‘‘नहीं, मैंने ऐसा होने नहीं दिया. यह सब मेरे जाने के बाद शुरू हुआ. लेकिन कुछ चीजें थीं, जिसको लेकर मेरा ऐतराज़ था. उसके बारे में बताना मैं उचित नहीं समझता.’’

कर्मवीर के एक शिष्य बताते हैं कि महाराज जी (कर्मवीर) को जनता से छल पसंद नहीं है. रामदेव जैसे-जैसे लोकप्रिय हो रहे थे उनकी चाहत और बढ़ती जा रही थी. वे अब साधना और योग को छोड़ व्यवसाय की तरफ बढ़ रहे थे. आध्यात्म का काम छोड़ वे व्यवसाय के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. रामदेव का नेताओं से लगाव बढ़ता जा रहा था. जो इन्हें (कर्मवीर) पसंद नहीं आया और एक शाम छोड़कर चले गए.

रामदेव से अलग होने वाली शाम कर्मवीर गुरुकुल कांगड़ी के अपने अध्यापक ईश्वर भारद्वाज के यहां पहुंचे. भारद्वाज न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘तब उन्होंने पतंजलि छोड़ने के कारणों का जिक्र नहीं किया. बस इतना कहा कि तप करने के लिए समुद्र किनारे जा रहे हैं. कर्मवीर के जाने से रामदेव दुखी थे. मैंने उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि हम कर्मवीर को सब कुछ सौंपने को तैयार हैं, अगर वो वापस आये तो.’’

शंकर देव का लापता होना और रामदेव पर आरोप

कनखल स्थित कृपालु आश्रम, जिसे अब दिव्य योगपीठ के नाम से जाना जाता है. छोटी नहर के किनारे स्थित है. इसके गेट पर दो गार्ड बैठे नजर आते हैं. गार्ड रूम में रामदेव की एक बड़ी तस्वीर और बालकृष्ण की एक छोटी तस्वीर लगी हुई है. यहां मौजूद गार्ड इशारा करते हुए बताते हैं कि इसी जगह पर बालकृष्ण जी बैठकर दवाइयां देते थे. आजकल यहां हम लोग बैठते हैं.

आश्रम में ही लाल रंग का एक पुराना भवन है. यह शंकर देव का निवास हुआ करता था. आज भी उनका कमरा सुरक्षित है, जिस पर ताला लटका हुआ है. इस पुराने भवन में रामदेव का भी कमरा है. एक तरफ पतंजलि आगे बढ़ रहा था, दूसरी तरफ 2007 में एक रोज शंकर देव लापता हो गए. उसके बाद कभी लौटकर वापस नहीं आए. शंकर देव की गुमशुदगी रहस्यमय परिस्थितियों में हुई.

कनखल स्थित एक आश्रम के महंत गिरीश (बदला नाम) कहते हैं, “शंकर देव जी बेहद सीधे व्यक्ति थे. इन लोगों ने चालाकी से उनका सब कुछ ले लिया. वे बीमार रहते थे, लेकिन उनका कोई इलाज नहीं करा रहा था. वे अक्सर हमें यह सब बताते थे. वो अपने शिष्यों से दुखी थे और फिर एक रोज गायब हो गए. कहां गए, यह किसी को नहीं पता. लेकिन अपने अंतिम दिनों में वे तकलीफ में थे.”

प्रोफेसर ईश्वर भारद्वाज, बाबा रामदेव और बालकृष्ण को हरिद्वार के शुरुआती दिनों से जानते हैं. एक घटना का जिक्र करते हुए वे बताते हैं, ‘‘एक बार ठंड के महीने में मैं दिव्य योग पीठ गया था. मैं बालकृष्ण के साथ बैठा हुआ था. उस रोज गेट पर जो गार्ड था उसने स्वेटर नहीं पहना था. उसे देखकर शंकर देव जी बालकृष्ण के पास पहुंचे और स्वेटर देने की बात कही. बालकृष्ण ने बिना समय गंवाए गार्ड के लिए स्वेटर लाने का आदेश दिया. अब जिनके कहने पर बालकृष्ण मिनट भर में कोई काम करते थे, वो बालकृष्ण उनको कष्ट देंगे? यह ठीक नहीं है.’’

भारद्वाज आगे कहते हैं, ‘‘दरअसल वे बीमार रहते थे. बचपन में उन्हें कभी चोट लगी थी जिस कारण कमर में दर्द था. उनका दर्द असहनीय होता जा रहा था. मुझे लगता है शायद बढ़ते दर्द के कारण उन्होंने कोई कदम उठा लिया हो. उनके आश्रम के सामने तेज धार में बहती छोटी नहर है. उसी में कूद गए हों. कोई नहीं जान पाया.’’

भारद्वाज की तरह कर्मवीर भी शंकर देव के बीमार होने का जिक्र करते हुए कहते हैं, “मैं उन दिनों हरिद्वार से दूर जा चुका था. हालांकि अक्सर उन्हें फोन करके हालचाल लेता रहता था. एक दिन उन्होंने मुझे फोन किया और कहा कि आज के बाद तुमसे बात नहीं होगी. हमने उन्हें कहा कि आप मेरे पास आ जाओ, यहीं आपका इलाज कराऊंगा. आप ठीक हो जाओगे. उन्होंने कुछ कहा नहीं और अगले दिन गायब होने की सूचना मिली.”

शंकर देव के लापता होने को लेकर रामदेव पर सवाल उठते रहे. 2012 में रामदेव ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था, तब उत्तराखंड में कांग्रेस की ही सरकार थी. कांग्रेस भी उन्हें निपटाना चाहती थी. नवंबर 2013 में रामदेव के ऊपर एक दिन में 81 मामले दर्ज हुए. कांग्रेस किसी भी तरह रामदेव को गिरफ्तार करना चाहती थी. उसने कर्मवीर से संपर्क किया.

इसी समय रामदेव ने नोएडा में आयोजित योगशाला में सालों बाद कर्मवीर को बुलाया था, और कर्मवीर की तारीफ के पुल बांधे थे.

कर्मवीर न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘कांग्रेस के लोग चाहते थे कि मैं कुछ भी ऐसा बोल दूं जिससे वे स्वामी रामदेव को गिरफ्तार कर सकें. मैंने ऐसा कुछ नहीं बोला. कांग्रेस के लोग मुझसे संपर्क कर रहे हैं यह बात रामदेव को पता चली तो उन्होंने मुझे नोएडा के कार्यक्रम में बुलाया. उनके जिद्द पर मैं वहां शामिल होने गया. तब हम सालों बाद मिले थे, उन्होंने मेरा आदर किया. मैं समझ रहा था कि यह सम्मान क्यों हो रहा है. मैं झूठ तो नहीं बोल सकता.’’

स्वामी कर्मवीर और ईश्वर भारद्वाज के बयानों के बारे में महंत गिरीश कहते हैं, ‘‘अगर शंकर देव जी बीमार थे तो उनका इलाज कराया गया क्या? तब तो उनके तीनों शिष्य काफी नाम कमा चुके थे. करोड़ों का करोबार था. मुझे जितना याद पड़ता है वे लापता होने तक यहीं रहे. कभी इलाज के लिए बाहर नहीं गए. दरअसल उनकी संपत्ति अपने नाम कराने के बाद उनके शिष्यों ने उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया था.’’

इसी बीच रामदेव तब चर्चा में आए जब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की नेता वृंदा करात ने उन पर दवाइयों में इंसान की हड्डी मिलाने का आरोप लगाया. इस घटना ने रामदेव को थोड़े दिनों के लिए परेशानी में जरूर डाला लेकिन उन्हें इसका फायदा भी खूब हुआ. करात पतंजलि के मजदूरों के एक आंदोलन में गईं थीं, वहीं उन्हें दवाइयों में मानव और जानवरों की हड्डियां मिलाने की जानकारी मिली.

2011 में प्रकाशित तहलका की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मज़दूरों द्वारा जानकारी मिलने के बाद करात ने पतंजलि की दवाइयों को भारत सरकार के स्वास्थ्य सचिव के पास जांच के लिए भेजा था. केंद्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सचिव शिव बसंत ने 29 मई, 2005 को, वृंदा करात को लिखे पत्र में बताया कि नमूनों का परीक्षण देश की प्रमुख प्रयोगशालाओं में किया गया, जिसमें पता चला है कि फार्मेसी द्वारा भारतीय ड्रग और कॉस्मेटिक एक्ट का उल्लंघन किया जा रहा है. आगे की जांच की कार्रवाई राज्य की लाइसेंसिंग अथॉरिटी करेगी. हालांकि तब केंद्र और उत्तराखंड, दोनों ही जगह कांग्रेस की सरकार थी.

उस समय पतंजलि में काम करने वाले एक कर्मचारी से हमने बात की. उन्होंने हमें बताया, “करात ने गलत आरोप नहीं लगाए थे. मिर्गी की दवाई में हड्डियां मिलाई जाती थीं. यह इंसान की खोपड़ी होती थी जिसे हमारे लोग हरिद्वार के श्मशान घाट से उठाकर लाते थे. कोई हमें देख न सके इसलिए हम ये काम रात में करते थे. यह आइडिया रामदेव को ऋषिकेश के एक डॉक्टर ने दिया था. बाद में जब हमें पता चला कि यह सब गलत है, तो हमें अफ़सोस हुआ.”

उस वक्त मीडिया में यह बड़ी खबर बन गई थी. तब पतंजलि ने आरोपों से इनकार कर दिया था. उत्तराखंड आयुष विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘आयुर्वेद में हड्डियों का इस्तेमाल होता रहा है. शंख, भस्म आदि का इस्तेमाल तो होता ही है.’’

ये कोई पहला और आखिरी मौका नहीं था जब पतंजलि के किसी उत्पाद पर सवाल खड़े हुए. बाबा रामदेव से अलग होने वाले आचार्य कर्मवीर ने पतंजलि के घी पर सवाल उठाया था. एक फेसबुक पोस्ट में कर्मवीर ने पतंजलि के घी पर सवाल उठाते हुए कहा था, ‘‘आप अपने उस घी को देशी गाय का घी बताकर, कागज के चंद टुकड़ों के लिए देश के मासूम बच्चों के जीवन से खिलवाड़ न करें, ये धन नाशवान है.’’

न्यूज़लॉन्ड्री ने इसको लेकर कर्मवीर से सवाल किया तो वो कहते हैं, ‘‘मैं अपनी बातों पर अब भी कायम हूं. कोई भी व्यक्ति अगर गाय का शुद्ध देशी घी बनाता है, तो उसकी कीमत 12 सौ रुपए के करीब आएगी. मैं खुद गोपालक हूं तो मुझे इसका अंदाजा है. मैंने ऐसे ही सवाल खड़े नहीं किए थे.’’

सेना की कैंटीन स्टोर्स डिपार्टमेंट (सीएसडी) ने भी पतंजलि के आंवला जूस के एक बैच की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि यह बैच पश्चिम बंगाल की लोक स्वास्थ्य प्रयोगशाला के नेमी परीक्षण में असफल हो गया था. यह जानकारी 2017 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में तत्कालीन रक्षा राज्यमंत्री सुभाष भामरे ने दी थी.

पतंजलि और रामदेव का परिवार

बाबा रामदेव अक्सर परिवारवाद पर निशाना साधते नजर आते हैं. 2015 में उन्होंने कहा था कि कांग्रेस में वंशवाद व परिवारवाद के बीज बोए गए, जिससे लोकतंत्र कमजोर हो रहा है. हाल ही में उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों के चुनावों के नतीजों पर बोलते हुए रामदेव ने कहा था कि यह उन क्षेत्रीय दलों के लिए भी सबक है, जो परिवार से घिरे हुए हैं. बाबा के बातों से लगता है कि वे परिवारवाद के खिलाफ हैं लेकिन आज पतंजलि पूरी तरह से रामदेव के परिवार और रिश्तेदारों के नियंत्रण में है.

रामदेव की पतंजलि में क्या स्थिति है, वे उनके चचेरे भाई बीरेंद्र सिंह की बातों से जाहिर होता है. हरियाणा पुलिस से रिटायर बीरेंद्र उन्हीं सरपंच जगदीश के बेटे हैं, जिनसे प्रभावित होकर रामदेव आर्य समाज के करीब आए थे. वे कहते हैं, ‘‘रामदेव महज टीवी के एंकर हैं, बाकी काम तो दूसरे लोग देख रहे हैं.’’

हरिद्वार में रामदेव और पतंजलि के कारोबार को जानने वाला हर दूसरा शख्स यही कहता है कि पतंजलि को रामदेव के भाई रामभरत और जीजा यशदेव शास्त्री चला रहे हैं. बालकृष्ण भी अब कमजोर हो चुके हैं. कई कंपनियों में बालकृष्ण और दूसरे लोगों को डायरेक्टर के पद से हटाकर रामभरत और उनकी पत्नी स्नेहलता भरत को निदेशक बनाया गया है.

मीडिया से दूरी बनाकर चलने वाले रामदेव के छोटे भाई रामभरत ने बीए तक पढ़ाई की है. एक तरफ जहां देवदत्त यादव गांव में रहकर खेती करते हैं, वहीं रामभरत शुरू से ही पतंजलि से जुड़ गए थे. आज वे पतंजलि प्राइवेट लिमिटेड समेत इससे जुड़ी 19 कंपनियों में निदेशक यानी डायरेक्टर के पद पर हैं. कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक स्नेहलता का कर पहचान नंबर(TIN), 3 मार्च 2017 को सक्रिय हुआ. उसके बाद से वे 11 कंपनियों में निदेशक हैं.

कई कंपनियां ऐसी भी हैं जिसमें रामभरत और उनकी पत्नी स्नेहलता भरत ही निदेशक हैं. जड़ी-बूटियों के कारोबार के साथ-साथ पतंजलि कपड़े के कारोबार में भी शामिल है. इसको लेकर 21 अगस्त, 2009 को एक कंपनी की शुरुआत की गई, जिसका नाम पतंजलि परिधान प्राइवेट लिमिटेड है. वर्तमान में इसके निदेशक भी दोनों पति-पत्नी ही हैं.

इस कंपनी में पहले रामभरत के साथ आचार्य बालकृष्ण निदेशक पद पर हुआ करते थे. 4 जुलाई, 2018 को बालकृष्ण ने कंपनी से इस्तीफा दे दिया. उससे दो ही दिन पहले, 2 जुलाई को स्नेहलता भरत को कंपनी का अतिरिक्त निदेशक बनाया गया था. तकनीकी तौर पर एक समय में दो निदेशक जरूर होने चाहिए. बालकृष्ण के इस्तीफे के बाद 27 सितंबर को स्नेहलता को कंपनी का निदेशक बना दिया गया.

दिव्य पैकमैफ प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में भी रामभरत और स्नेहलता ही निदेशक पद पर हैं. जहां रामभरत 2009 से ही ये पद संभाल रहे हैं, वहीं स्नेहलता 2018 में निदेशक बनाई गईं.

एक बार बाबा रामदेव ने कहा था, ‘‘मैं फकीर हूं, देश के लिए काम कर रहा हूं और देश को मजबूत करने के प्रयास में हूं. पतंजलि से जो लाभ हो रहा है वो देश के लिए है. आज पतंजलि 8,000 करोड़ रुपए की कंपनी हो गई है. हम बाकी कंपनियों का अधिग्रहण कर रहे हैं. आगे बढ़ रहे हैं. हमें और देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता है.’’

लेकिन हकीकत इससे कुछ अलग है. रामदेव पतंजलि से जुड़ी कंपनियों में भले ही किसी पद पर न हों, लेकिन इसकी ज्यादातर कंपनियों में रामदेव के परिजनों की भूमिका लगातर बढ़ रही है. जिन कंपनियों में आचार्य बालकृष्ण निदेशक हैं, उसमें रामदेव के भाई रामभरत और उनके अन्य रिश्तेदार भी मौजूद हैं.

जब पतंजलि ने रुचि सोया का अधिग्रहण किया तब आचार्य बालकृष्ण उसके प्रबंध निदेशक बने, लेकिन अगस्त 2020 में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. जिसके बाद बोर्ड की मीटिंग में रामभरत को मैनेजिंग डायरेक्टर चुन लिया गया.

पतंजलि की कंपनियों में हर जगह “पराक्रम सुरक्षा” गार्ड ही नजर आते हैं. “पराक्रम सिक्योरिटी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड” पतंजलि की ही एक शाखा है. इसमें दो अन्य लोगों के साथ रामभरत और रामदेव के जीजा यशदेव शास्त्री निदेशक हैं.

पतंजलि आरोग्य प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत अगस्त 2009 में हुई थी. कंपनी के निर्माण के समय से ही इसके दो निदेशक बालकृष्ण और रामभरत रहे हैं. लंबे समय तक देहरादून से नेशनल टेलीविजन के लिए पत्रकारिता करने वाले एक पत्रकार न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘बालकृष्ण अब बस शोपीस हैं. असली पावर रामभरत के हाथों में है. बालकृष्ण को धीरे-धीरे तमाम डिसीजन लेने वाले पदों से हटाया जा रहा है.’’

2020 में बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी खबर के मुताबिक पतंजलि का सलाना टर्नओवर 10 हजार करोड़ के आसपास है. पतंजलि बिस्कुट प्राइवेट लिमिटेड में भी रामभरत के साथ-साथ यशदेव शास्त्री निदेशक पद पर हैं. ऐसे ही पतंजलि यूनिवर्सल टीवी नेटवर्क प्राइवेट लिमिटेड में वे रामभरत के साथ निदेशक हैं. यशदेव शास्त्री की तेल पिराई की फैक्ट्री है. वहां तैयार हुआ तेल वो पतंजलि को सप्लाई करते हैं.

पतंजलि के कारोबार को जानने वाले यह तो ज़रूर कहते हैं कि रामभरत ही सर्वेसर्वा हैं, लेकिन इनमें से बेहद कम लोग उनसे मिले हैं. वे ज़्यादातर समय पदार्था स्थित फ़ूड पार्क में ही रहते हैं. मीडिया से दूर रहकर काम करने वाले रामभरत तब चर्चा में आए, जब पदार्था फूड पार्क के बाहर ट्रक यूनियन के लोगों ने प्रदर्शन शुरू किया. 2015 में स्थानीय ट्रक चालक प्रदर्शन कर रहे थे क्योंकि पतंजलि ने उन्हें काम देना बंद कर दिया था. प्रदर्शन के दौरान पतंजलि और ट्रक यूनियन के लोग आपस में भिड़ गए. लाठी-डंडे चले, तलवारें चलीं. इसी दौरान एक ट्रक चालक दलजीत सिंह की पीटकर हत्या कर दी गई.

हत्या का आरोप पतंजलि के लोगों पर लगा. रामभरत समेत कई अन्य लोगों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) का मामला दर्ज हुआ. वहीं दूसरे पक्ष के ट्रांसपोर्टर धर्मेंद्र चौहान पर आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास) के तहत मामला दर्ज हुआ. इस मामले में रामभरत को जेल जाना पड़ा. हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद वे बाहर आ गए. इस केस में हरिद्वार के जिला कोर्ट में लगातार बहस चल रही है. इस बहस से जुड़े एक वकील न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘इस मामले पर लगातार बहस चल रही है. बहुत मुमकिन है कि 2023 के मार्च तक इसका फैसला आ जाए.’’

ये पहला मौका नहीं था जब रामभरत पर कोई आरोप लगा. मज़दूरों के शोषण को लेकर उन पर पहले भी आरोप लगते रहे हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने रामभरत की पत्नी स्नेहलता भरत को पतंजलि की कई कंपनियों में निदेशक बनने को लेकर बाबा रामदेव के पीआरओ एसके तिजारावाला को अपने प्रश्न भेजे हैं. उनकी ओर से कोई भी जवाब आने पर इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जायेगा.

(इस सीरीज के दूसरे भाग में हम पतंजलि द्वारा जमीनों पर किए गए अवैध कब्जों की बात करेंगे)

(यह ग्राउंड रिपोर्ट सीरीज एनएल सेना प्रोजेक्ट के तहत की जा रही है. यदि आप इस सीरीज को समर्थन देना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें.)

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