राज्यसभा में सुभाष चंद्रा के 6 साल: मीडिया पर चुप्पी, धारा 370 पर डिबेट

सुभाष चंद्रा ने चुनाव जीतने के बाद सदन में जिन मुद्दों को उठाने का वादा किया था, वह उनके कार्यकाल से गायब रहे. उन्होंने अपने छह साल के कार्यकाल में मात्र 10 सवाल पूछे.

Article image
  • Share this article on whatsapp

सवाल और डिबेट में हिस्सा

सुभाष चंद्रा ने चुनाव जीतने के बाद सदन में जिन मुद्दों को उठाने का वादा किया था, वह उनके कार्यकाल से गायब रहा. सांसदों की पूरी जानकारी रखने वाली संस्था पीआरएस के मुताबिक, चंद्रा ने सदन में मात्र छह बहसों में हिस्सा लिया. जबकि राष्ट्रीय स्तर पर डिबेट में हिस्सा लेने का औसत 98.1 प्रतिशत है और उनके प्रदेश का औसत 58.4 प्रतिशत है.

इसी तरह चंद्रा ने अपने छह साल के कार्यकाल में मात्र 10 सवाल पूछे. उन्होंने अपना आखिरी सवाल 2018 में पूछा था और उसके बाद से उन्होंने कोई सवाल नहीं पूछा. राष्ट्रीय स्तर पर सवाल पूछने की औसत दर 284.8 है और उनके राज्य के स्तर पर 221.93 है.

इसका अर्थ है कि ‘भारत के मीडिया मुगल’ सुभाष चंद्रा सदन में सवाल पूछने और डिबेट में काफी पीछे रहे, जबकि मीडिया का काम ही सवाल पूछना है. वहीं जिस चैनल के वे मालिक हैं, वह आए दिन अपने कार्यक्रमों में विपक्षी सांसदों के सदन में कामकाज को लेकर सवाल उठाते रहते हैं लेकिन उन्होंने अपने मालिक के कामकाज को लेकर कभी कोई सवाल नहीं उठाया.

चंद्रा ने सबसे पहला सवाल नवंबर 2016 में हीरे की नीलामी प्रक्रिया को लेकर पूछा था. इसी दिन उन्होंने ग्रामीण विकास की योजनाओं में मदद को लेकर अपना दूसरा सवाल पूछा था. तीसरा सवाल 29 नवंबर को आयुर्वेद दवाइयों के क्लिनिकल ट्रायल को लेकर पूछा. बता दें कि सुभाष चंद्रा की कंपनी शिरपुर गोल्ड रिफाइनरी और एस्सेल मिडिल ईस्ट कंपनी खनन से जुड़े क्षेत्र में काम करती है.

2017 में उन्होंने कुल पांच सवाल किए. इसके बाद चंद्रा ने 18 दिसंबर 2017 को दो और 20 दिसंबर 2017 को तीन सवाल किए. 18 दिसंबर को उनका पहला सवाल गंगा नदी की सफाई योजना को लेकर था और दूसरा सवाल जल क्रांति अभियान के तहत चिन्हित किए गए गांवों को लेकर था. 20 दिसंबर को उन्होंने सांसद आदर्श ग्राम, विकलांग बच्चों के स्किल डेवलपमेंट, रोजगार और बेरोजगारी को लेकर किए गए सर्वे को लेकर सवाल पूछे थे.

2018 में उन्होंने केवल दो सवाल किए. उन्होंने यह दोनों सवाल एक ही दिन, 10 अगस्त को पूछे थे. उनके द्वारा पूछे गए दोनों सवाल भारतीय मानक ब्यूरो से जुड़े थे. 2018 के बाद चंद्रा ने संसद में एक भी सवाल नहीं पूछा.

इसी तरह उन्होंने छह साल में, संसद की मात्र छह बहसों में हिस्सा लिया. उन्होंने अगस्त 2016 में अयोध्या मामले को लेकर पहली बार डिबेट में हिस्सा लिया था. इसके बाद उन्होंने 2017 में अंडमान में द्वीपों का नाम बदलने की आवश्यकता के संबंध में हुई डिबेट में हिस्सा लिया.

अप्रैल 2017 में उन्होंने लोकसभा में पास हुए जीएसटी बिल पर, राज्यसभा में हुई बहस में हिस्सा लिया. चंद्रा ने इसके बाद सीधे अगस्त 2019 में ही अरावली की पहाड़ियों से जुड़ी बहस में हिस्सा लिया. इसके बाद उन्होंने जम्मू कश्मीर आरक्षण बिल पर और अंतिम बार, सितंबर 2020 में आयुर्वेद शिक्षण और अनुसंधान संस्थान विधेयक, 2020 पर हुई बहस में हिस्सा लिया. सितंबर 2020 के बाद से उन्होंने अन्य किसी डिबेट में हिस्सा नहीं लिया.

समितियों की सदस्यता

सुभाष चंद्रा 20 अप्रैल, 2021 से राज्यसभा में नियम समिति और 13 अप्रैल, 2021 से लोकसभा में संचार और सूचना प्रौद्योगिकी समिति के सदस्य रहे. 26 नवंबर 2016 से वे राजभाषा समिति के सदस्य हैं. वह अपना कार्यकाल खत्म होने तक इस समिति के सदस्य रहे.

चंद्रा सितंबर 2016 से जुलाई 2017 तक शहरी विकास समिति के सदस्य रहे. वहीं अक्टूबर 2016 से जून 2018 तक और अक्टूबर 2019 से राज्यसभा नियमों की समिति में भी शामिल रहे. अक्टूबर 2016 से मई 2019 तक वह गृह मंत्रालय की सलाहकार समिति के सदस्य रहे.

सुभाष चंद्रा, मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सलाहकार समिति में स्थायी विशेष आमंत्रित सदस्य भी थे.

दोबारा राज्यसभा की कोशिश

सुभाष चंद्रा ने दोबारा राज्यसभा में जाने के लिए कोशिश तो की, लेकिन इस बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा. हरियाणा से इस बार आईटीवी ग्रुप के प्रमुख, कार्तिकेय शर्मा राज्यसभा में पहुंचे. शर्मा निर्दलीय उम्मीदवार थे लेकिन उन्हें भाजपा और जेजपी का समर्थन प्राप्त था. इस बार हरियाणा से बात नहीं बनती हुई देख चंद्रा ने राजस्थान का रुख किया.

इस बार राजस्थान से संसद जाने का सपना देख रहे चंद्रा के पास पर्याप्त नंबर नहीं थे लेकिन फिर भी उन्होंने नामांकन किया. इस बार भी वह 2016 की तरह ही राज्यसभा पहुंचने की उम्मीद लगाए हुए थे, लेकिन राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा विधायकों की बाड़ेबंदी ने चंद्रा और भाजपा के खेल को बिगाड़ दिया. चंद्रा को कुल 30 वोट मिले. राज्यसभा की चार सीटों के लिए हुए चुनावों में कांग्रेस के मुकुल वासनिक, रणदीप सुरजेवाला और प्रमोद तिवारी, साथ ही भाजपा के घनश्याम तिवारी को सफलता मिली.

इससे पहले चंद्रा ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि, “मैं जीतूं या न जीतूं, मैं शांति से रहूंगा. राजस्‍थान की राजनीति सबसे आसान है. मैंने महाराष्‍ट्र और हरियाणा को करीब से देखा है. इनके मुकाबले राजस्थान में राजनीति आसान है.”

फोर्ब्स लिस्ट के अनुसार एस्सेल ग्रुप के मालिक सुभाष चंद्रा की 2019 में 2.5 बिलियन डॉलर की संपत्ति थी. 2018 में उनकी संपत्ति पांच बिलियन डॉलर थी जो एक साल में ही आधी हो गई. कंपनी के घाटे में जाने के बाद उन्होंने निवेशकों और बैंकरों को पत्र लिखकर माफी भी मांगी थी. उन्होंने लिखा था, “सबसे पहले तो मैं अपने वित्तीय समर्थकों से दिल की गहराई से माफी मांगता हूं. मैं हमेशा अपनी गलतियों को स्वीकार करने में अव्वल रहता हूं. अपने फैसलों की जवाबदेही लेता रहा हूं.”

हालांकि 2021 में चंद्रा ने बताया कि उन्होंने अपना 91 प्रतिशत कर्ज चुका दिया है. 2.9 प्रतिशत कर्ज चुकाने की प्रक्रिया में है वहीं बाकी का 8.8 प्रतिशत जल्द चुका दिया जाएगा. कर्ज चुकाने के लिए चंद्रा को अपने हिस्से के शेयर बेचने पड़े.

राज्यसभा सांसदों को हर महीने एक लाख रुपए वेतन मिलता है. संसदीय क्षेत्र के लिए 70 हजार और ऑफिस खर्च के लिए 60 हजार महीने अलग से मिलता है. हालांकि चंद्रा ने मात्र एक रुपया ही वेतन के रूप में लिया. ज़ी न्यूज की एक खबर के मुताबिक चंद्रा ने केवल एक रुपये वेतन के रूप में लेकर, अपना पूरा वेतन प्रधानमंत्री राहत कोष में दान किया.

Also see
article imageसुधीर का इस्तीफा: शुरू से अंत तक…
article imageजुबैर का इंटरव्यू: 'उन्होंने पूछा- भारत इतना गरीब है, कोई आपको फैक्ट-चेक के लिए पैसे क्यों देगा?'
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like