साबरमती नदी की कोख में पल रहे इन जैविक बगों की तरफ किसी का ध्यान नहीं

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदाबाद के बाद अगले 120 किमी तक नदी में सिर्फ औद्योगिक अपशिष्ट सड़े हुए पानी की शक्ल में बहता है और यही जाकर अरब सागर में प्रवाहित होता है.

WrittenBy:मंजीत ठाकुर
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ई कोली के सुपरबग में बदलने का क्या असर होगा?

ई कोली की अधिकतर नस्लें बीमारियों के लिए उत्तरदायी नहीं हो लेकिन उनमें से कई डायरिया, न्यूमोनिया, मूत्राशय में संक्रमण, कोलकइटिस और नवजातों में मेनोजाइटिस पैदा कर सकती हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि यह काम सीवेज ट्रीटमेंट में क्लोरीनेशन और अल्ट्रा-वायलेट रेडिएशन के दौरान बैक्टिरिया के जीन में उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) से हुआ होगा. समस्या यह है कि अगर बैक्टिरिया से यह जीन ट्रांसफर किसी अलहदा और एकदम नयी प्रजाति को जन्म न दे दे. यह खतरनाक होगा. साबरमती नदी की कोख में पल रहे इन संभावित जैविक बगों की तरफ किसी का ध्यान नहीं है.

भगवान शिव और गंगा की देन यह नदी अब नर्मदा से पानी उधार लेकर बह रही है. मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि साबरमती में पानी नहर के जरिये भरा जा रहा है. रिवरफ्रंट जहां खत्म होता है वहां वासणा बैराज है, जिसके सभी फाटक बंद करके पानी को रोका गया है. ऐसे में रिवरफ्रंट के आगे नदी में पानी नहीं है और न उसके बाद नदी में पानी है. वासणा बैराज के बाद नदी में जो भी बह रहा है वो इंडस्ट्री और नाले का कचरा है. नदी में गिर रहा कचरा बेहद खतरनाक है और इस पानी का उपयोग करने वाले लोगों के लिए यह नुकसान ही करेगा.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदाबाद के बाद अगले 120 किमी तक नदी में सिर्फ औद्योगिक अपशिष्ट सड़े हुए पानी की शक्ल में बहता है और यही जाकर अरब सागर में प्रवाहित होता है.

नर्मदा के खाते में भी कितना पानी बचा है जो वह इस तदर्थवाद के जरिये साबरमती को जिंदा रख पाएगा, यह भी देखने वाली बात होगी. इस वक्त प्रदूषण और सुपरबग को नजरअंदाज करने वाली जनता एक दिन दाधीचि की तरह विकास यज्ञ में अपनी अस्थियों की समिधा का दान देगी, अंदेशा यही है.

(फोटो क्रेडिट- हार्दिक जडेजा)

(साभार- जनपथ)

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ई कोली की अधिकतर नस्लें बीमारियों के लिए उत्तरदायी नहीं हो लेकिन उनमें से कई डायरिया, न्यूमोनिया, मूत्राशय में संक्रमण, कोलकइटिस और नवजातों में मेनोजाइटिस पैदा कर सकती हैं.

विशेषज्ञों का मानना है कि यह काम सीवेज ट्रीटमेंट में क्लोरीनेशन और अल्ट्रा-वायलेट रेडिएशन के दौरान बैक्टिरिया के जीन में उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) से हुआ होगा. समस्या यह है कि अगर बैक्टिरिया से यह जीन ट्रांसफर किसी अलहदा और एकदम नयी प्रजाति को जन्म न दे दे. यह खतरनाक होगा. साबरमती नदी की कोख में पल रहे इन संभावित जैविक बगों की तरफ किसी का ध्यान नहीं है.

भगवान शिव और गंगा की देन यह नदी अब नर्मदा से पानी उधार लेकर बह रही है. मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि साबरमती में पानी नहर के जरिये भरा जा रहा है. रिवरफ्रंट जहां खत्म होता है वहां वासणा बैराज है, जिसके सभी फाटक बंद करके पानी को रोका गया है. ऐसे में रिवरफ्रंट के आगे नदी में पानी नहीं है और न उसके बाद नदी में पानी है. वासणा बैराज के बाद नदी में जो भी बह रहा है वो इंडस्ट्री और नाले का कचरा है. नदी में गिर रहा कचरा बेहद खतरनाक है और इस पानी का उपयोग करने वाले लोगों के लिए यह नुकसान ही करेगा.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अहमदाबाद के बाद अगले 120 किमी तक नदी में सिर्फ औद्योगिक अपशिष्ट सड़े हुए पानी की शक्ल में बहता है और यही जाकर अरब सागर में प्रवाहित होता है.

नर्मदा के खाते में भी कितना पानी बचा है जो वह इस तदर्थवाद के जरिये साबरमती को जिंदा रख पाएगा, यह भी देखने वाली बात होगी. इस वक्त प्रदूषण और सुपरबग को नजरअंदाज करने वाली जनता एक दिन दाधीचि की तरह विकास यज्ञ में अपनी अस्थियों की समिधा का दान देगी, अंदेशा यही है.

(फोटो क्रेडिट- हार्दिक जडेजा)

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