दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय हिंसा की आग ठंडी नहीं पड़ती कि फिर सुलगने लगती है

शुरू में जब दंगे फसाद शुरू हुए तब इसका रूप नस्लीय नहीं था लेकिन फिर धीरे-धीरे लोगों का गुस्सा भारतीय मूल के लोगों के प्रति निकलने लगा.

WrittenBy:राहिला परवीन
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वर्तमान समय में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के ढाई प्रतिशत लोग रहते हैं जिनकी वहां की अर्थव्यवस्था में अच्छी-खासी भागीदारी है. अगर वहां के स्थानीय लोगों की बात को सच मान भी लिया जाए कि भारतीय मूल के कुछ लोग उन्हें अपने से कमतर समझ कर उनके साथ भेदभव करते हैं तब सारे भारतीयों के साथ इस तरह के उनके रवैये को जायज नहीं ठहराया जा सकता. यह नहीं भूला जाना चाहिए की तमाम मतभेदों के बावजूद दोनों समुदायों के बीच उपनिवेशवाद के खिलाफ साझा संघर्ष का लंबा इतिहास भी रहा है.

कभी भी किसी समुदाय के कुछ लोगों की गलतियों कि सजा पूरे समुदाय को देना किसी भी कीमत पर न्यायसंगत नहीं हो सकता. पिछले साल की ही बात है जब भारत में कोरोना के समय दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में जमातियों के इकठ्ठा होने पर उनकी इस गलती के लिए न सिर्फ देश भर के मुसलमानों का बहिष्कार किया जाने लगा बल्कि पड़ोसी मुल्क नेपाल के मुसलमान जिनका रिश्ता भारत से था उनके साथ भी भेदभव किया गया.

इस तरह के आरोप प्रत्यारोप का सीधा प्रभाव सामाजिक सद्भाव पर भी पड़ता है. जो लोग सालों से एक-दूसरे के साथ रहते आए हैं उनके बीच एक अविश्वास का पनपना न सिर्फ समाज के बेहतर भविष्य की संभावनाओं को तोड़ता है बल्कि देश के अंदर भी गृह-युद्ध जैसी परिस्थितियां पैदा करता है.

मीडिया में गुप्ता बंधुओं के भारत में छिपे होने की संभावना व्यक्त की जा रही है. भारत सरकार को इस दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए और अपनी स्थिति साफ करनी चाहिए. इससे न सिर्फ दोनों देशो के रिश्ते प्रगाढ़ होंगे बल्कि दक्षिण अफ्रीका के स्थानीय लोगों में भी भारतीय मूल के लोगों के प्रति विश्वास जागेगा.

कौन हैं गुप्ता बंधु

गुप्ता बंधु 1993 में दक्षिण अफ्रीका व्यापार के मकसद से गये थे. उस वक्त तीनों भाई अजय, अतुल और राजेश गुप्ता परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ अपने व्यापार को दक्षिण अफ्रीका के अंदर विस्तार देने में लग गए. सबसे पहले अतुल गुप्ता ने सहारा कंप्यूटर्स नाम से दक्षिण अफ्रीका में अपना व्यापारिक प्रतिष्ठान स्थापित किया. इसके बाद धीरे-धीरे गुप्ता बंधुओं ने अपना व्यापार दक्षिण अफ्रीका के अंदर बढ़ाना शुरू किया. आज उनके पास वहां कोयले की खदानें, कंप्यूटर्स व मीडिया संस्थान जैसे स्थापित व्यापारिक प्रतिष्ठान हैं.

यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा की एक पत्नी बोनगी जुमा खुद गुप्ता बंधुओं की खनन कपंनी जेआईसी माइनिंग सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड से जुड़ी रहीं हैं. यहां तक कि जैकब जुमा की बेटी व नवासा भी उनके व्यापार का हिस्सा रहे हैं.

जैकब जुमा की ओर से गैर कानूनी तरीकों से गुप्ता बंधुओं को मदद पहुंचाने की संभावना इन वजहों से भी ज्यादा मालूम पड़ती है. साल 2018 में जब पहली बार यह विवाद सुर्खियों में आया था तब जैकब जुमा को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ गया था और अगले साल 2019 में गुप्ता बंधुओं की ओर से अपनी कई खनन कंपनियों को बेचने की खबर भी सामने आई थी.

दक्षिण अफ्रीका और भारत दोनों ब्रिक्स के भी सदस्य हैं दोनों देशों के बीच आर्थिक व व्यापारिक संंबंध भी हैं. इस मसले पर दोनों देशों को और संवेदनशील हो कर सोचना होगा जिससे कि भविष्य में भी इन दोनों के रिश्तों में और प्रगाढ़ता आए और अफ्रीका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित हो पाए.

(लेखिका ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद नीति के ऊपर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से शोध कार्य किया है.)

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