उत्तर प्रदेश: अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए बलिया प्रशासन ने पत्रकारों को बनाया ‘बलि का बकरा’

अंग्रेजी का पेपर लीक होने से पहले संस्कृत का पेपर लीक हुआ था लेकिन प्रशासन ने पेपर लीक होने जैसी किसी भी घटना से इनकार कर दिया था.

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सिंह ने कहा, “तीन दिन से मेरा उत्पीड़न किया जा रहा है. नकल माफियाओं को गिरफ्तार करने की बजाय मुझसे पूछ रहे हैं कि कहां से पेपर मिला. जितने लोगों को अभी तक गिरफ्तार किया गया है उसमें से कोई भी नकल माफिया के लोग नहीं है. सिर्फ निर्दोष लोगों को गिरफ्तार किया गया है.”

वहीं बलिया पुलिस का कहना है कि अब तक की विवेचना में प्राप्त सबूतों के आधार पर ही गिरफ्तारियां हुई हैं. पुलिस के मुताबिक जिनकी गिरफ्तारी हुई है उनमें एक पत्रकार और एक विद्यालय में सहायक अध्यापक हैं जो वर्तमान माध्यमिक परीक्षा में एक परीक्षा कक्ष में निरीक्षक का कार्य कर रहे थे. हालांकि पुलिस ने पत्रकार का नाम नहीं लिया है लेकिन बताया जा रहा हैं वह अजीत ओझा हैं.

अखबार का पक्ष

अमर उजाला के एक पत्रकार कहते हैं, “दुख की बात है कि अमर उजाला अपने पत्रकारों के साथ नहीं खड़ा है. ऊपर से इतना प्रेशर है कि अब कोई इससे संबंधित खबर तक नहीं छप रही है. पूरे अमर उजाला में चर्चा है कि पुलिस और सरकार दोनों का संस्थान पर बहुत प्रेशर है. इसलिए इस मामले में सबने चुप्पी साध ली है. यही नहीं साधारण खबर के अलावा सरकार या पुलिस प्रशासन के रवैये और पेपर से संबंधी किसी भी संस्थान में अब खबर नहीं छप रही है. इस मामले को अब तूल न दिया जाए सभी को साफ तौर पर बोला गया है.”

वह आगे कहते हैं, “नई-नई सरकार बनी है और इतना बड़ा मामला हो गया इसलिए शासन-प्रशासन दोनों परेशान हैं.”

वहीं बलिया स्कूल के एक प्रबंधक नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, “हमारे स्कूल में तो परीक्षा सेंटर भी नहीं था तब भी हमारे तीन मास्टरों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. हमारे पीछे भी पुलिस पड़ी हुई है. हम भागे हुए हैं. स्कूल चलाने वालों में खौफ का माहौल है.”

वह आगे कहते हैं, “अभी ये मामला शांत हो जाए फिर सरकार से लड़ा जाएगा. सरकार अच्छा नहीं कर रही है. अपनी नाकामी छिपाने के लिए निर्दोष लोगों को मोहरा बना रही है.”

वहीं संस्थान के रवैए पर ब्यूरो चीफ संदीप सिंह कहते हैं, “हम और हमारा संस्थान पत्रकारों के साथ खड़ा है. मैंने थाने में कहा कि ब्यूरो चीफ के तौर पर अखबार में छपी खबर को लेकर मेरी जिम्मेदारी है इसलिए आप मुझे गिरफ्तार करें.”

वह कहते हैं, “जिलाधिकारी क्यों नहीं सवालों के जवाब दे रहे हैं, वह भागे-भागे फिर रहे हैं. इतने दिन बीत जाने के बाद भी अभी तक प्रशासन यह नहीं पता लगाया पाया कि पेपर लीक का मास्टरमाइंड कौन है. यहां के जिलाधिकारी की जो हिटलरशाही है, अपने आप को बचाने के लिए उन्होंने सारे विरोध को दबा दिया लेकिन अपनी लड़ाई को हम अंतिम परिणाम तक पहुंचाकर ही रहेगें.”

संदीप सिंह संस्कृत का पेपर लीक होने के बावजूद रद्द नहीं किए जाने पर प्रशासन पर सवाल खड़े करते हैं. वह कहते हैं कि लीक पेपर और असली पेपर, जिसका एग्जाम हुआ, दोनों की जांच करवा लीजिए एक-एक सवाल मैच हो रहा है.

इतना बड़ा मामला हो जाने के बावजूद डीएम पत्रकारों के सामने नहीं आ रहे हैं. पत्रकारों की गिरफ्तारी के विरोध में वकीलों का एक प्रतिनिधिमंडल शनिवार को बलिया डीएम कार्यालय में ज्ञापन देने पहुंचा, लेकिन जिलाधिकारी नहीं मिले. जिसके बाद उन्होंने राज्यपाल के नाम ज्ञापन प्रशासन को सौंपा. ज्ञापन में जिला प्रशासन पर उदासीनता व घोर लापरवाही का आरोप लगाते हुए पूरे प्रकरण में डीएम बलिया को दोषी ठहराया है.

संदीप सिंह कहते हैं, “डीएम कुछ बोल नहीं रहे हैं. सरकार को सामने आकर जवाब देना चाहिए. क्या सिर्फ विज्ञप्ति छापने के लिए पत्रकार पैदा हुए हैं. क्या सिर्फ उसी के लिए पत्रकारिता कर रहे हैं कि वह जो विज्ञप्ति देंगे वह सभी अखबारों में छप जाएगा.”

पत्रकार अजित ओझा के बतौर शिक्षक काम करने के सवाल पर वह कहते हैं, “क्या एक अध्यापक पत्रकार नहीं हो सकता. क्या वह कोई गैंगस्टर या माफिया है जो अध्यापक नहीं हो सकता. अध्यापक होना कोई गुनाह है क्या?. अगर प्रशासन के पास कोई सबूत है तो पत्रकार के खिलाफ वह कार्रवाई करे. लेकिन वह बतौर अध्यापक काम कर रहे हैं यह कोई गुनाह नहीं है.”

संस्थान द्वारा क्या किया जा रहा है, इसपर वह कहते हैं, “जो उचित मंच है वहां सब लोग बात कर रहे हैं. संस्थान पत्रकारों की लड़ाई लड़ रहा है, वह सबके सामने आ आएगा.”

न्यूज़लॉन्ड्री ने जिलाधिकारी आईबी सिंह और एसपी राजकरन नय्यर से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन बातचीत नहीं हो पाई. हमने दोनों अधिकारियों को इस मुद्दे से जुड़े कुछ सवाल भेजें है, अगर जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.

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