यूक्रेन से लौटे छात्रों को पीएम के साथ मुलाकात के दौरान केवल ‘पॉजिटिव बातें’ कहने के लिए कहा गया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों उत्तर प्रदेश चुनावों में प्रचार के लिए वाराणसी में हैं. यहीं पर उन्होंने गुरुवार को यूक्रेन से लौटे कुछ छात्रों से मुलाकात की.

WrittenBy:बसंत कुमार
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डर, बदहाली और नाउम्मीदी से भरा सफर

यूक्रेन में भारतीय छात्रों की बदहाल तस्वीरें लगातार सामने आ रही हैं. बंकरों में छात्रों ने भूखे पेट रहकर, अपनी परेशानी बयान करते हुए वीडियो साझा किए. वहां आई परेशानी को लेकर ऋतिक कहते हैं, ‘‘एम्बेसी ने बॉर्डर क्रॉस करने के बाद मदद की है. बॉर्डर क्रॉस करने से पहले किसी ने मदद नहीं की. जो किया हमने खुद से किया.’’

ऋतिक रोमानिया के बॉर्डर पहुंचे थे. वे बताते हैं, ‘‘मैं जहां था वहां से रोमानियन बॉर्डर 200 किलोमीटर दूर था. इसमें से 180 किलोमीटर तो हम बस से आए थे. जो हमने खुद ही बुक कर रखी थी. बाकी 18 किलोमीटर हम पैदल चले. एक तो ठंड बहुत थी. बर्फ गिर रही थी. रोमानियन बॉर्डर पर आने के बाद 35-40 घंटे हम वहीं खड़े रहे. हमारे बैठने तक की सुविधा नहीं थी. कई छात्रों को हाइपोथर्मिया हो गया. बॉर्डर पर हमें रोककर यूक्रेन के नागरिकों को निकाला जा रहा था. वहां हमारी एम्बेसी की तरफ से कोई भी मौजूद नहीं था.’’

ऋतिक आगे कहते हैं, ‘‘मैं भारत सरकार से बहुत खुश हूं, बस बॉर्डर क्रॉस कर जाने के बाद. बॉर्डर क्रॉस करने से पहले जो परेशानी हुई वो हम खुद ही झेले हैं. हम 18 किलोमीटर सामान लेकर पैदल चले. वो भी ठीक था लेकिन जो 40 घंटे वहां काटे हैं, वो खल गया. अगर 10-15 घंटे और काटना पड़ता तो मैं हार जाता. खाने-पीने का कुछ नहीं था. पेशाब करने के लिए खुले में जाना पड़ता था. आप समझ सकते हैं कि कैसे हमने ठंड में समय काटा होगा.’’

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केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बीते दिनों कहा था कि विदेशों में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले 90 प्रतिशत भारतीय छात्र, नीट की परीक्षा पास नहीं कर पाते हैं. इस पर ऋतिक कहते हैं, ‘‘ऐसा नहीं है. यहां सरकारी में इतनी फीस है. अगर फीस कम होती तो बच्चों को बाहर जाना ही नहीं पड़ता. वहां पर करीब 3 से 4 लाख रुपए सालाना फीस है. यहां तो फीस आप जानते ही हैं.’’

विशाल कुमार अपनी यात्रा में आई परेशानी का जिक्र करते हैं, ‘‘पहले खबरों में आ रहा था कि 16 फरवरी को ब्लास्ट (रूस हमला करेगा) होगा. जब उस दिन हमला नहीं हुआ तो हम लोग कुछ दिन रुक गए कि शायद न हो, लेकिन 24 फरवरी को रूस ने ब्लास्ट करना शुरू कर दिया. उसके बाद खबरें आने लगीं कि अटैक शुरू हो गया है. 16 फरवरी के बाद से ही हम लोग बार-बार एम्बेसी को मेल कर रहे थे कि हमें बताइए कि क्या करें. मेल का कोई रिप्लाई नहीं दे रहे थे. कॉल करने पर कभी उठाते थे, कभी नहीं उठाते थे. जब उठाते थे तो कहते थे कि जिसको जाना है वो जा सकता है. अगर आपको रहना है तो आप रह भी सकते हैं, ऐसी कोई दिक्क्त नहीं है.’’

विशाल आगे बताते हैं, ‘‘एम्बेसी के ऐसा कहने पर हमें लगा कि स्थिति ज्यादा खराब नहीं होने वाली है, तभी ऐसा बोल रहे हैं. हमारे ग्रुप में अमेरिका की एक लड़की थी. उसको एम्बेसी से मैसेज आ गया था कि आप लोग तत्काल पोलेंड के लिए शिफ्ट हो जाइए. दो-तीन दिन बाद अमेरिकी छात्र पोलेंड शिफ्ट हो गए. हमने कॉलेज वालों से बोला कि ऑनलाइन शिक्षा कर दो ताकि हम अपने देश से पढ़ लें. वो मान ही नहीं रहे थे. उनका कहना था कि वॉर नहीं होगा. ऐसी स्थिति 2014 में भी आई थी. 24 फरवरी को जब धमका हुआ तब यूनिवर्सिटी ने कहा कि आपका ऑनलाइन क्लास चलेगा.’’

विशाल अपनी आपबीती बताते हैं, ‘‘धमाके के बाद यूक्रेन के लोग शहर छोड़कर जाने लगे. हमारे रूम के आसपास कोई नहीं था तो हमारी चिंता बढ़ गई. इसके बाद एम्बेसी से संपर्क किया कि क्या करें. तब नोटिस आया कि आप तत्काल यूक्रेन छोड़ दीजिए. वहां से कोई बस भी नहीं चल रही थी. हमने पहले पोलेंड बॉर्डर जाने को सोचा था लेकिन पोलेंड बॉर्डर की तरफ 50 किलोमीटर की लाइन लगी थी. ऐसे में हम रोमानिया बॉर्डर की तरफ चल दिए. हमने टैक्सी की. हमें बताया गया कि अपनी गाड़ी पर भारत का झंडा लगाकर लिख दें कि ‘इंडियन स्टूडेंट ऑन बोर्ड’. तब कोई अधिकारी नहीं रोकेगा. हमने ऐसा ही किया तो हमें किसी ने नहीं रोका.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘हम जब बॉर्डर पर पहुंचे तो वहां काफी संख्या में अलग-अलग देशों के लोग थे. वहां कोई दो दिन से, तो कोई तीन दिन से खड़ा था. वहां -5 डिग्री टेंपरेचर था और वहां रहने के लिए कुछ नहीं था. लोग वहां खुले आसमान के नीचे खड़े थे. यहां इंडियन एम्बेसी से कोई नहीं था. 26 फरवरी की रात हम आठ घंटे बॉर्डर पर खड़े रहे. सिर्फ लड़कियों को बॉर्डर पार कराया जा रहा था, जिसके बाद अंत में भगदड़ मच गई. ऐसे में उनका गेट टूट गया, जिसके बाद वहां के अधिकारी फायरिंग करने लगे और जो गेट तोड़कर अंदर गए उन्हें मारा भी. मारकर उन्हें बाहर निकाल दिया गया. जैसे-तैसे हम रोमानिया पहुंचे. हम वहां के एक कैंप में थे, जिसमें वहां के एनजीओ के लोग खाने पीने का बेहतर इंतजाम कर रहे थे.’’

रोमानिया पहुंचने के बाद भी विशाल की परेशानियां खत्म नहीं हुईं. वहां हमें दो दिन तक फ्लाइट का इंतजार करना पड़ा. विशाल कहते हैं, ‘‘जहां मैं था, वहां करीब 350 बच्चे थे. ऐसे ही सात आठ कैंप थे. लेकिन अगली सुबह अधिकारियों ने कहा कि हम सिर्फ 25 छात्रों को ले जाएंगे. यह हैरान करने वाली बात थी. जहां इतने लोग थे वहां से सिर्फ 25 लोगों को ले जाने का क्या मतलब? खैर, जैसे-तैसे मैं इन 25 लोगों में शामिल हुआ. एक मार्च को मैं वापस इंडिया आ गया. रोमानिया से लौटने के बाद लगा कि भारत सरकार ने हमारे लिए कुछ किया है.’’

भारत सरकार के मंत्री और भाजपा नेता एक कार्टून साझा कर रहे हैं जिसमें दिखाया गया है कि पीएम मोदी पुल बनकर अपने देश के नागरिकों को यूक्रेन से निकाल रहे हैं. वहीं चीन, पाकिस्तान और अमेरिका समेत बाकी देशों के छात्र वहां फंसे हुए हैं. इसको लेकर भारतीय मीडिया में खबरें भी छपीं. हालांकि इन खबरों का सोर्स भारत सरकार ही थी. इसको लेकर विशाल से हमने सवाल किया तो जवाब में उन्होंने कहा, ‘‘अमेरिका ने ब्लास्ट होने से पहले ही अपने नागरिकों को वहां से हटा दिया था. वहां एक भी अमेरिकन छात्र नहीं था. उन्हें कहा गया था कि 48 घंटे के अंदर यूक्रेन छोड़ दें. पाकिस्तान और नाइजीरिया के छात्र तो थे. रोमानिया बॉर्डर पर नाइजरिया के एक अधिकारी, छात्रों को निकालते नजर आ रहे थे.’’

विशाल और ऋतिक किसी तरह परेशानियों का सामना कर वापस लौट आए, लेकिन उनकी चिंता अपने भविष्य को लेकर है कि आखिर आगे उनका क्या होगा? उनके अंतर्मन को कचोटता यह सवाल, वे प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात होने के बावजूद भी नहीं पूछ पाए.

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