मारिया रेसा : 'आप सत्य के लिए क्या बलिदान कर सकते हैं?'

फिलीपींस की पत्रकार मारिया रेसा और रूस के पत्रकार दमित्री मुरातोव को साझा रूप से नोबेल शांति पुरस्कार 10 दिसंबर को दिया गया. इस मौके पर मारिया रेसा का संबोधन.

WrittenBy:मारिया रेसा
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एक देश या दुनिया इस तरह अपनी आत्मा खोती है

आपको पता होना चाहिए आप किन मूल्यों के लिए लड़ रहे हैं, आपको अपनी सीमाएं जल्दी खींच लेनी पड़ती हैं- अगर आपने अभी तक ऐसा नहीं किया है, तो कर लें: जहां इस तरफ आप अच्छे हैं, दूसरी तरफ बुरे हैं. कुछ सरकारों का अब कुछ नहीं किया जा सकता, अगर आप तकनीकी दुनिया में काम कर रहे हैं तो यह मैं आपसे कह रही हूं.

जब आपके पास तथ्यों की प्रमाणिकता नहीं है तो चुनावों की प्रमाणिकता कैसे हो सकती है?

अगले साल जिन देशों में चुनाव हैं उनके सामने यह समस्या है: इनमें ब्राजील, हंगरी, फ्रांस, अमेरिका और मेरा फिलीपींस भी है, जहां 9 मई को होने वाले राष्ट्रपति के चुनाव में हम करो या मरो की स्थिति में हैं. फरडिनैंड मार्कोस को जनक्रांति से निकाले जाने और उनके परिवार को निर्वासित करने के 35 साल बाद, उसका बेटा फरडिनैंड मार्कोस जूनियर इस दौड़ में सबसे आगे है- और उसने सोशल मीडिया पर अपना एक बड़ा गलत जानकारी फैलाने वाला तंत्र खड़ा कर लिया है जिस का खुलासा रैपलर ने 2019 में किया. यह हमारी आंखों के सामने इतिहास बदलते देखने जैसा है.

गलत जानकारी स्थानीय और वैश्विक दोनों ही तरह की परेशानी है, इसे समझने के लिए चीन के सूचना ऑपरेशन को देखें जिन्हें फेसबुक ने सितंबर 2020 में हटाया: वे एआई के द्वारा बनाए गए फोटो लेकर जाली खाते अमेरिकी चुनावों के लिए बना रहे थे, मार्कोस की छवि साफ कर रहे थे, ड्यूटेरटे की बेटी के लिए प्रचार कर रहे थे और मुझ पर और रैपलर पर हमला कर रहे थे.

तो हम क्या करेंगे?

हमारे सूचनातंत्र के अंदर एक अदृश्य एटम बम फूट गया है और दुनिया को वैसे ही बर्ताव करना चाहिए जैसा उसने हिरोशिमा के बाद किया था. उस समय की तरह ही हमें संयुक्त राष्ट्र की तरह एक नई संस्था खड़ा करना होगा. वैश्विक मानव अधिकारों की तरह ही हमारे मूल्यों को परिभाषित करते नए मानक स्थापित करने पड़ेंगे जिससे कि मानवता अपने सबसे बुरे स्वरूप की तरफ अग्रसर न हो. यह सूचनातंत्र के अंदर हथियारों की होड़ है. इसे रोकने के लिए बहुआयामी तरीके चाहिए जिसका हिस्सा हम सबको बनना पड़ेगा. इसकी शुरुआत तथ्यों को पुनर्स्थापित करने से होती है.

हमें सोचना कि वह तंत्र चाहिए जो तथ्यों और केवल तथ्यों को ही महत्व दें. हम सामाजिक प्राथमिकताओं को पत्रकारिता को दोबारा खड़ा करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके साथ नफरत और झूठ से मुनाफा कमाने वाली, ताकझांक वाली अर्थव्यवस्थाओं को नियंत्रित और तड़ीपार करना होगा.

हमें स्वतंत्र पत्रकारिता को जिंदा रखने के लिए मदद की जरूरत है. पहला पत्रकारों को निशाना बनाने वाली सरकारों से कहीं ज्यादा सुरक्षा देकर और दूसरा ऐसी सरकारों के खिलाफ खड़े होकर. इसके बाद हमें पत्रकारिता के विज्ञापन केंद्रित मॉडल को ढहाने पर ध्यान देना होगा. यह भी एक कारण है जिसकी वजह से मैंने इंटरनेशनल फंड फॉर पब्लिक इंटरेस्ट मीडिया की सह अध्यक्षता स्वीकार की जो ओवरसीज डेवलपमेंट असिस्टेंट फौंट्स के जरिए और पैसा इकट्ठा करने की कोशिश कर रही है.

आज पत्रकारिता पर चौतरफा हमला हो रहा है. ओडीए यानी ऑफिशियल डेवलपमेंट असिस्टेंट का केवल 0.3% ही पत्रकारिता पर खर्च हो रहा है. अगर हम इसे किसी तरह खींच कर 1% पर ले आएं तो हम समाचार संस्थाओं के लिए एक बिलियन डॉलर प्रति वर्ष निकाल सकते हैं. यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी.

पत्रकारों को तकनीक को अपनाना होगा. इसीलिए गूगल न्यूज़ इनिशिएटिव के साथ मिलकर रैपलर ने दो हफ्ते पहले एक नया मंच खड़ा किया है. यह काम करने वाले समुदायों को जोड़ने के लिए डिजाइन किया गया है. पत्रकारों के हाथ में तकनीक होगी लेकिन वायरल नहीं होगी, बल्कि यह आपकी सब्जियों की तरह होगी जो आपकी बेहतरी के लिए होगी. इसका लक्ष्य केवल मुनाफा नहीं बल्कि तथ्य, सत्य और विश्वास भी होगा.

रही कानून की बात. यूरोपियन यूनियन का अपने डेमोक्रेसी एक्शन प्लान के तहत इस क्षेत्र में नेतृत्व करने का धन्यवाद. अमेरिका के लिए, उन्हें अपने अनुच्छेद 230 को रद्द करना या उसमें सुधार करना होगा जो सोशल मीडिया को एक नैसर्गिक उपयोगिता की तरह देखता है. यह एक संपूर्ण इलाज नहीं है लेकिन इससे शुरुआत हो सकती है क्योंकि यह सभी ऑनलाइन मंच वितरण के स्तर पर ही महत्व देते हैं. इसलिए जहां आम विमर्श डाली जाने वाली सामग्री पर केंद्रित है, असली गड़बड़ पहले ही हो जाती है जहां जानकारी को आगे तक बांटने की एल्गोरिदम, निहित स्वार्थ रखने वाले इंसानों के द्वारा लिखी जाती हैं. उनका संपादकीय एजेंडा मुनाफे को ध्यान में रखकर चलता है और उसका क्रियान्वयन बड़े स्तर पर मशीनें करती हैं. इसका प्रभाव वैश्विक है, जहां सोशल मीडिया पर सस्ती सेनाओं ने कम से कम 81 देशों में जनतंत्र को तार-तार कर दिया है. इस उच्छृंखलता का रुकना अति आवश्यक है.

जनतंत्र, व्यक्ति दर व्यक्ति आज हमारे हमारे मूल्यों की सुरक्षा का कवच बन गया है. हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहां हम इसी रास्ते पर चलना जारी रख फासीवाद के गर्त में और गिर सकते हैं, या हम एक बेहतर दुनिया के लिए लड़ने का विकल्प चुन सकते हैं.

ऐसा करने के लिए आपको अपने आप से पूछना होगा: आप सत्य के लिए क्या बलिदान कर सकते हैं?

मुझे नहीं मालूम था कि मैं आज यहां पर होऊंगी. मैं हर दिन इस खतरे में जीती हूं कि मेरी बाकी ज़िंदगी जेल की सलाखों के पीछे इसलिए गुजरेगी क्योंकि मैं पत्रकार हूं. जब मैं घर जाऊंगी तो मुझे नहीं पता कि भविष्य में क्या होगा, लेकिन यह खतरा उठाने लायक है.

ध्वंस हो चुका है. यह समय निर्माण का है- जैसी दुनिया हम चाहते हैं उसे बनाने का.

अब कृपया, मेरे साथ अपनी आंखें बंद करें. और कल्पना करें ऐसी दुनिया की जैसी वह होनी चाहिए. एक शांति, विश्वास और संवेदना की दुनिया, जो हमारे भीतर छिपे सबसे अच्छे स्वरूप को बाहर लाए.

आइए अब चलें, इसे साकार करें. आइए, मिलकर इस सीमारेखा पर दृढ़ता से डट जाएं.

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