गाजीपुर बॉर्डर: भीख नहीं हक मांग रहे हैं इसलिए 11-12 साल तक भी यहां रुक सकते हैं

किसान आंदोलन को एक साल पूरा हो गया है, लेकिन किसानों का कहना है कि वह अभी आंदोलन खत्म करके अपने घर वापस नहीं जाएंगे.

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शाहजहांपुर से आए 48 वर्षीय किसान जरनैल सिंह लाडी पीएम मोदी के उस बयान पर खफा नजर आते हैं, जिसमें पीएम ने कहा था कि हम कुछ किसानों को समझा नहीं पाए. जरनैल सिंह कहते हैं, “पहली बात तो यह है कि किसान छोटा या बड़ा नहीं होता, यह उनकी सोच का फर्क है. हमारे आंदोलन में देशभर के किसान शामिल हैं. हर राज्य से किसान आए हैं, कोई एक-दो राज्य से किसान नहीं आए है.”

मेरठ से आए नरेश गुर्जर मावी गाजीपुर बॉर्डर पर कई मीडियाकर्मियों से बात करते हुए कहते हैं, “हमारी सभी मांगे मान ली जाएगी तो हम तुरंत चले जाएंगे वर्ना 2024 तक यही रहेगें. उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी जाने वाली है. कानून वापसी से कोई फर्क नहीं पडे़गा.”

मीडिया द्वारा यह पूछे जाने पर कि किसान कब जाएंगे इस पर नरेश गुर्जर कहते हैं, “मीडिया वाले तो बिके हुए हैं. यहां क्या हम उनके घर से खा रहे हैं. हम किसान अपना पैदा किया हुआ अन्न खा रहे हैं, न तो हमें मोदी और न ही योगी खाना दे रहे हैं. यह सवाल तो मीडिया को सरकार से करना चाहिए कि किसान घर क्यों नहीं जा रहे हैं.”

नरेश गुर्जर मावी

75 वर्षीय अभय राम कंडेला भी गाजीपुर बॉर्डर पर एक साल से बैठे हैं. वह बीच-बीच में अपने घर जाते रहते हैं लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. वह कहते हैं, “बच्चों के भविष्य के लिए यहां बैठे हैं. हम अगर आंदोलन में मर भी गए तो आने वाली पीढ़ी के लिए तो कुछ करके जाएंगे. ताकि वे हमें याद रखें. यह सरकार हम पर जुल्म ढा रही है. हमारी सभी मांगों को नहीं मान रही है. जब तक हमारी सभी मांगें नहीं मानी जाएंगी तब तक हम यहां से हिलने वाले नहीं हैैं."

रामपुर निवाली 45 वर्षीय उमेश आंदोलन में सातवीं बार आए हैं और जब भी आते हैं तो 15 से 20 दिन तक रुककर जाते हैं. वह कहते हैं, “मेरे पास जमीन कम है लेकिन मैं फिर भी आंदोलन में आता हूं. आज महंगाई आसमान छू रही है. बाजार में निकलने से पहले 10 बार सोचना पड़ता है. यह सरकार न किसानों की सुन रही है न गरीब आदमी की. यह सरकार हर मामले में फेल है. भले ही सरकार ने कानूनों को वापस लेने की बात कह दी हो लेकिन सवाल यह है कि आंदोलन में बैठे किसानों का एक साल कौन लौटाएगा. यहां जो 700 से ज्यादा लोग मरे हैं उनकी जिम्मेदारी कौन लेगा. दूसरी बात जब तक किसानों की सभी बातें नहीं मान ली जाती हैं तब तक यहां से कोई भी किसान आंदोलन छोड़कर नहीं जाएगा."

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