मुजफ्फरनगर महापंचायत: आखिर मीडिया के बड़े हिस्से से क्यों नाराज हैं किसान?

मुजफ्फरनगर महापंचायत में कई पत्रकारों की हूटिंग की गई तो वहीं सोशल मीडिया पर कवरेज को लेकर ही सवाल उठाए जा रहे हैं.

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मुजफ्फरनगर महापंचायत: आखिर मीडिया के बड़े हिस्से से क्यों नाराज हैं किसान?
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वहीं किसान याकूब प्रधान कहते हैं, "जो छोटे चैनल मोबाइल वाले हैं वह तो कुछ दिखाते हैं लेकिन बड़े वाले चैनल किसानों के विरोध में दिखाते हैं. बड़े चैनल वाले हिंदू मुस्लिम ज्यादा करते हैं. एंकर रुबिका लियाकत टिकैत जी से पूछ रही थीं कि इन कानूनों में काला क्या है? अब बताओ इन्हें क्या बताएं कि इन कानूनों में क्या काला है और क्या सफेद है. अब हम सरकार को बताएं या इन्हें बताएं. मीडिया बिका हुआ है. सबको सरकार ने खरीद रखा है. यह बीजेपी के दबाव में काम कर रहे हैं."

"पहले अखबार सब ठीक दिखाते थे. अमर उजाला अखबार सही खबरें छापता था. जो भी पहले आंदोलन होते थे उनको ठीक तरीके से कवर करते थे, किसनों की बात होती थी लेकिन अब ज्यादातर बीजेपी के माफिक लिख रहे हैं. उन्होंने आगे कहा.

इससे पहले जब न्यूजलॉन्ड्री की टीम सुबह-सुबह मुजफ्फरनगर महापंचायत को कवर करने पहुंची तो वहां फ्री में कुछ राष्ट्रीय अखबार बांटे गए. अखबार पढ़ने वाले लोगों से जब हमने बात की कि मीडिया आपकी बातों को किस तरह से रख रहा है. इस पर किसान राजकुमार सिंह कहते हैं, "भैया किसान की बातों को मीडिया नहीं दिखाता है. और सरकार की एक-एक बात को खुलकर दिखाता है. जहां भी हम कोई पंचायत या रैली करते हैं तो मीडया उन्हें नहीं दिखाता है. एक आद चैनल है जैसे संदीप चौधरी, वह हमारी बात दिखाते हैं. वो बढ़ाचढ़ाकर नहीं दिखाते हैं लेकिन बाकी मीडिया सिर्फ सरकार की ही बात करते हैं."

वह आगे कहते हैं, "अगर मीडिया किसानों की बात को सरकार तक पहुंचाता दे तो अब तक कुछ न कुछ फैसला आ जाता. लेकिन ये मीडिया वाले किसानों की बातों को छिपा रहे हैं. यह सरकार के सामने किसानों की बातों को उठाते ही नहीं हैं. वरना मीडिया मध्यस्तता करता तो ठीक रहता."

मुजफ्फरनगर महापंचायत में आई भीड़

मुजफ्फरनगर महापंचायत में आई भीड़

ट्विटर- राकेश टिकैत

आप महापंचायत में क्या सोचकर आए हैं? इस सवाल पर वह कहते हैं, "जब यह सरकार आई थी तो खाद्ध का कट्टा 600 रुपए का था लेकिन अब हमने 1200 का लिया है, दोगुना हो गया है. फसल का रेट आधा हो गया है. पहले धान 4200- 4500 तक बिक जाता था लेकिन अब 1500-1700 तक बिकता है. अब ऐसे हम तो आधे में पहुंच गए हैं. और मीडिया यह सब नहीं दिखाता है."

एक अन्य किसान कहते हैं, "मीडिया सरकार के अंडर में है इसलिए यह हमारे बारे में नहीं दिखाते हैं. यह सिर्फ सरकार की बात को ही बढ़चढ़कर बताते हैं. किसानों के हित की बात मीडिया नहीं करती है. मीडिया सिर्फ यही दिखाती है कि आज प्रधानमंत्री यहां गए या ये हुआ लेकिन अगर किसान मर जाए, उसका मर्डर हो जाए तो उसका कोई कुछ नहीं दिखाता है. पीएम की विदेश आने-जाने की मुख्य खबरे दिखाते हैं, कि उन्होंने कहां किसका उद्घाटन किया."

हाथ में हिंदुस्तान अखबार लिए एक अन्य किसान कहते हैं, "मीडया मोदी से डरा हुआ है इसलिए तुम लोग आगे नहीं आते हो. एक साल हो गए देखते- देखते ना अखबार में कुछ है ना टीवी में. सब जगह बस हर हर मोदी और घर घर मोदी कर रखा है."

किसान मेघराज सिंह कहते हैं, "भारत में मीडिया स्वतंत्र नहीं है और सरकार से डरा हुआ है. इसलिए वह सरकार के दबाव में आकर ही काम करता है. हमारी खबरों को मीडिया कट करके दिखाता है."

(बसंत कुमार के सहयोग से)

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