लंबे समय से लोकायुक्त का पद खाली रहने के चलते दिल्ली लोकायुक्त कार्यालय में 31 अगस्त, 2021 तक 252 मामले लंबित पड़े हैं.
केजरीवाल सरकार भ्रष्टाचार को लेकर कितनी सजग?
भारतीय राजनीति में बदलाव और पारदर्शिता के दावे के साथ सत्ता में आई आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 2014 लोकसभा चुनाव के पहले कुछ ‘भ्रष्ट' नेताओं की एक सूची बनाई थी. जिसमें शरद पवार, नितिन गडकरी और राहुल गांधी समेत कई नाम शामिल थे.
बीते सात सालों में बहुत कुछ बदल गया. जिस राहुल गांधी को केजरीवाल ने भ्रष्ट बताया था, उनकी पार्टी कांग्रेस से लोकसभा चुनाव 2019 में गठबंधन के लिए तैयार नजर आई. केजरीवाल ने ट्वीट कर राहुल गांधी से गठबंधन पर विचार करने को कहा था. वहीं केजरीवाल शरद पवार के घर विपक्षी नेताओं के साथ डिनर में शामिल हुए.
सत्ता में आने के बाद आम आदमी पार्टी की सरकार भ्रष्ट नेताओं और अधिकारियों पर कार्रवाई को लेकर कितनी सजग है, उसका उदाहरण है, दो साल तक लोकायुक्त का पद खाली रहने के बाद उसे भरना और अब फिर से दस महीने से लोकायुक्त का पद खाली रहना.
केजरीवाल सरकार ने समय पर ना तो लोकायुक्त की नियुक्ति की बल्कि उनपर ही सवाल खड़े कर दिए. दरअसल दिल्ली सरकार को 2019 में लोकायुक्त ने एक नोटिस दिया था जिसके बाद लोकायुक्त पर ही विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने सवाल खड़े कर दिए थे.
बता दें कि जनवरी 2019 में तत्कालीन लोकायुक्त रेवा खेत्रपाल ने मुख्यमंत्री केजरीवाल सहित दिल्ली के सभी 68 विधायकों को नोटिस देकर अपनी संपत्ति की जानकारी देने के लिए कहा था. यह नोटिस बीजेपी के नेता विवेक गर्ग की शिकायत के आधार पर दिया गया था. गर्ग ने अपनी शिकायत में कहा था कि आप के विधायक साल 2015-16, 2016-17 और 2017-18 के दौरान की अपनी संपत्ति की जानकारी दें.
केजरीवाल और उनके विधायको ने संपत्ति का ब्यौरा तो नहीं दिया लेकिन लोकायुक्त पर ही सवाल खड़े कर दिए. दैनिक जागरण की खबर के मुताबिक विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने कहा था कि सोमवार को वह लोकायुक्त को पत्र लिखकर पूछेंगे कि उन्होंने किस कानून के अनुसार विधायकों से संपत्ति की जानकारी मांगी है.
गर्ग न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘केजरीवाल सरकार जो राजनीति में पारदर्शिता की बात तो करती है, लेकिन लोकायुक्त के कहने के बाद भी संपत्ति की जानकारी नहीं देती है. सुप्रीम कोर्ट के जज, केंद्र सरकार के मंत्री सभी अपनी संपत्ति की जानकारी वेबसाइट पर डालते हैं. लेकिन केजरीवाल सरकार इससे बच रही है.वहीं अब तो रेवा जी भी रिटायर हो गई हैं.’’
लोकायुक्त की नियुक्ति में क्यों हो रही है देरी?
दिल्ली लोकायुक्त से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी पद के खाली होने की वजह पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, “हो सकता है उन्हें ‘सूटेबल’ आदमी नहीं मिल रहा हो.’’
वे आगे कहते हैं, ‘‘दरअसल अगर लोकायुक्त अपना काम अच्छे से कर रहा है तो न तो वो सरकार का प्यारा होगा और ना ही विरोधी दल का. तो यह पद उस आदमी को जाना चाहिए जिसके मन में संकल्प हो भ्रष्टाचार को हटाने का. हालांकि लोकायुक्त को बस रिकमेंडेशन देने की ही शक्ति होती है, खुद सज़ा नहीं दे सकता है, पर लोकायुक्त के रिकमेंडेशन से पब्लिक ओपिनियन तो बन ही जाता है और उस नेता पर असर पड़ता है.’’
लोकायुक्त की नियुक्ति में हो रही देरी पर निखिल डे कहते हैं, ‘‘जो सरकार राजनीतिक भ्रष्टाचार और पारदर्शिता के मुद्दे, लोकपाल और लोकायुक्त की मांग पर बनी है. उसी सरकार का इसपर विशेष ध्यान नहीं देना यह इनके ही पॉलिटिकल एकाउंटेबिलिटी पर सवाल है. यह अपने आप में बहुत दुखदाई स्थिति है.’’
बीजेपी नेता प्रवीण शंकर इस पर लेकर कहते हैं, ‘‘हमारा मानना है कि लोकायुक्त के पास केवल विधायक के खिलाफ ही शिकायत नहीं होती, बल्कि सरकार के खिलाफ भी कई शिकायतें आती हैं. इसलिए केजरीवाल जी को यह सूट करता है कि लोकायुक्त न ही रहे तो अच्छा है. उन्होंने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल में लगभग आधा समय बिना लोकायुक्त के ही निकाल दिया. वहीं सही मायने में देखें तो रेवा खेत्रपाल के कार्यकाल का कुछ समय भी कोरोना की भेंट चढ़ गया. ऐसे में हम मानते हैं कि वे जानबूझकर लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं कर रहे हैं.’’
क्या सरकार ने नए लोकायुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी है? कब तक नए लोकायुक्त की नियुक्ति हो पाएगी? यह सवाल हमने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन ऑफ़ दिल्ली के चेयरपर्सन जैस्मीन शाह को मेल किए हैं. अगर उनका जवाब आता है तो खबर में जोड़ दिया जाएगा.
वहीं दिल्ली सरकार के एक प्रवक्ता ने लोकायुक्त की नियुक्ति के सवाल पर कोई भी कमेंट करने से इंकार करते हुए कहा, ‘‘अभी हम इसपर कुछ नहीं कह सकते हैं.’’ साथ ही उन्होंने अपना नाम भी नहीं छापने को कहा.
2019 में गैर सरकारी संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने आरटीआई के जरिए लोकायुक्त की नियुक्ति के लेकर सवाल किया था. जिसमें सामने आया था कि 12 राज्यों में लोकायुक्त के पद ख़ाली हैं.
‘आप’ में आंतरिक लोकपाल है या नहीं?
19 नवंबर 2015 को आम आदमी पार्टी ने अपने फेसबुक पेज पर दैनिक जागरण की एक खबर को साझा करते हुए लिखा कि दिल्ली कैबिनेट में लोकपाल बिल का पास होना यह सिद्ध करता है की आम आदमी पार्टी उन पार्टियों से अलग है जो चुनावी जुमले खेल कर जनता को किये गए वादे चुनावों के बाद भूल जाती है.
पांच साल बाद 2020 में जब विधानसभा चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी ने घोषणा पत्र जारी किया तो सीएम केजरीवाल ने एक बार फिर लोकपाल बिल को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक तब केजरीवल ने कहा था कि लोकपाल बिल तो आप सरकार ने दिसंबर 2015 में पास कर दिया था. इसे पास कराने के लिए लगातार संघर्ष किया है, लेकिन केंद्र सरकार इसे मंजूरी नहीं दे रही.’’
28 मार्च 2015 को आम आदमी पार्टी ने अपने पहले आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास को हटा दिया था. इन्हें लोकपाल से हटाने के बाद पार्टी ने नए लोकपाल का गठन किया. इस बार पूर्व आईपीएस अधिकारी एन दिलीप कुमार, राकेश सिन्हा और शिक्षाविद् एसपी वर्मा को लोकपाल बनाया गया.
पार्टी कार्यकारणी द्वारा नए आंतरिक लोकपाल नियुक्त होने के कुछ ही महीने बाद सितंबर 2015 में एन दिलीप कुमार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. कुमार के हटने के दो महीने बाद दिसंबर 2015 में राकेश सिन्हा ने भी अपना पद छोड़ दिया. इसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का सलाहकार बनाया गया. लोकपाल की कमेटी में सिर्फ एसपी वर्मा बचे. उसके बाद आंतरिक लोकपाल के पद पर कौन आया इसकी जानकारी नहीं है.
आंतरिक लोकपाल को बेहद करीब से जानने वाले एक सदस्य से जब हमने इस पर सवाल किया तो वे हंसते हुए कहते हैं, ‘‘क्या आपने उसके बाद किसी का नाम सुना? नहीं न? मैंने भी नहीं सुना.’’
पार्टी के आंतरिक लोकपाल के पास क्या पॉवर हैं इस सवाल पर वे कहते हैं, ‘‘पार्टी के संयोजक से लेकर विधायक, सांसद और मंत्री तक की शिकायतें लोकपाल के पास आती थीं. लेकिन जांच के लिए एजेंसियों की मदद लेनी होती है. दूसरी बात किसी पार्टी का लोकपाल सरकारी बॉडी नहीं है कि वो किसी सरकारी संस्थान से कोई डॉक्यूमेंट मांगे और वे दे दें. ऐसे में आंतरिक लोकपाल कुछ ज़्यादा कर नहीं सकता है.’’
आम आदमी पार्टी को लम्बे समय से कवर कर रहे तीन पत्रकारों से न्यूज़लॉन्ड्री ने बात की तो उन्होंने भी आंतरिक लोकपाल नहीं होने की बात दोहराई.
पार्टी में लोकपाल को लेकर हमने 'आप' के राष्ट्रीय सचिव पंकज गुप्ता से हमने सवाल किया तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं अगर उनका जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.