यूपी चुनाव को लेकर अमर उजाला के खास पेज ‘22 का रण’ से क्यों गायब है विपक्ष

यूपी में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर अमर उजाला एक खास पेज ‘22 का रण’ निकाल रहा है. जिसमें ज़्यादातर खबरें योगी सरकार और बीजेपी से जुड़ी होती हैं.

WrittenBy:बसंत कुमार
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बीएसपी से जुड़ी खबरों से ज्यादा योगी सरकार के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह की खबरें

अखबार के चुनाव विशेष पेज से विपक्ष की खबरें सत्तारूढ़ पार्टी से बेहद कम और कई बार तो हैं ही नहीं. लेकिन एक चीज ज्यादा हैरान करती है. उत्तर प्रदेश में लंबे समय तक सत्ता में रही बहुजन समाज पार्टी और उसकी प्रमुख मायावती से जुड़ी खबरें अखबार के चुनावी पेज से गायब मिलती हैं. वहीं बीजेपी नेता और योगी सरकार के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह से जुड़ी एक खबर हर रोज अखबार में छप रही है. सिंह अभी योगी सरकार में एमएसएमई समेत दूसरे मंत्रालयों के साथ राज्य सरकार के प्रवक्ता भी हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने 25 अक्टूबर से लेकर 4 नवंबर यानी 11 दिन तक अमर उजाला के लखनऊ संस्करण में छपी खबरों को देखा. हमने पाया कि सिर्फ ‘22 का रण’ पेज से ही नहीं बल्कि अखबार में भी बीएसपी की खबरें नहीं छप रही हैं. इन 11 दिनों में सिर्फ तीन बार बीएसपी प्रमुख मायावती का बयान अखबार में छपा. यह भी महज एक कॉलम का रहा. एक 28 अक्टूबर को बसपा प्रमुख के ट्वीट के आधार पर खबर छपी जिसमें उन्होंने किसानों की खाद की समस्या को खत्म करने के लिए सरकार को कहा था. इसके बाद 2 नवंबर को जिन्ना विवाद को लेकर किए गए उनके ट्वीट को अखबार ने छापा. इसके बाद 4 नवंबर को ऐसे ही एक दो कॉलम की खबर छपी.

10 अक्टूबर का अमर उजाला का '22 का रण' पेज

वहीं इस दौरान हर रोज अखबार भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की खबरों से तो भरा पड़ा रहा है लेकिन 10 खबरें योगी सरकार के मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह के बयानों पर छपीं. जिसमें वे अक्सर सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर निशाना साधते नजर आते हैं.

ऐसा नहीं है कि बसपा जमीन पर सक्रिय नहीं है. पार्टी के महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के सोशल मीडिया से पता चलता है कि वे आए दिन समाज के अलग-अलग हिस्सों के लोगों से मिल रहे हैं. वहीं बसपा प्रमुख मायावती के भतीजे आकाश आनंद ट्वीट के जरिए सरकार पर निशाना साधते दिखते हैं. 3 नवंबर को जब सरकार ने पेट्रोल डीजल से एक्साइज ड्यूटी हटाकर कीमतों में कमी की तो आनंद ने ट्वीट कर इसकी आलोचना की. इनका ट्वीटर अकाउंट बताता है कि अक्सर ही ये तेल की बढ़ती कीमतों पर सरकार को घेरते नजर आते हैं.

ऐसे ही एक नवंबर को उन्होंने ‘द हिन्दू’ की एक खबर को साझा करते हुए लिखा, ‘‘एक और जुमला. मुफ्त वैक्सीन के नाम पर पेट्रोल-डीजल के दाम मे बेतहाशा वृद्धि की जाती है और अब वैक्सीन के लिए लोन लेना पड़ रहा है? कहां हैं PM Care Fund का पैसा? क्यों लेना पड़ रहा है लोन? क्या देश की आर्थिक स्थिति जितनी दिखाई दे रही है उससे ज्यादा खस्ता हाल में है?’’

हमने थोड़ा पीछे जाकर देखा कि बसपा के संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर 9 अक्टूबर को पार्टी ने लखनऊ में विशाल रैली की थी उस रोज लखनऊ एडिशन में किस तरह की खबरें छपी. न्यूज़लॉन्ड्री ने पाया कि उस रोज भी बसपा को अखबार के लखनऊ एडिशन के पहले पेज पर जगह नहीं मिली. ‘22 का रण’ पेज पर जरूर मायावती के बयानों को पहली खबर बनाया गया. वहीं गृहमंत्री अमित शाह का जब लखनऊ में कार्यक्रम हुआ तो उस रोज पहले पेज पर बड़ी तस्वीर के साथ उनका बयान छपा कि ‘अबकी बार फिर 300 पार’. इसके बाद ‘22 का रण’ का पूरा पेज शाह के कार्यक्रम के इर्द गिर्द ही घूमता रहा.

एक तरफ जहां हर रोज सिद्धार्थ नाथ सिंह की खबरें प्रकाशित होती हैं वहीं मायावती के भतीजे आकाश आनंद हो या पार्टी में दूसरे नंबर की हैसियत रखने वाले सतीश चंद्र मिश्रा हो, इनके बयान को अखबार में जगह मिलती नहीं दिखती है. जबकि कई मौकों पर ये दोनों सवाल उठाते नजर आते हैं.

ऐसा समाजवादी पार्टी के साथ भी होता नजर आता है. ज्यादातर समय अखिलेश यादव के बयान को ही अखबार ने जगह दी है.

लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार असद रिजवी बताते हैं, ‘‘उत्तर प्रदेश में लंबे समय से यह परंपरा बन गई है कि मुख्यमंत्री अगर किसी के मरने पर श्रद्धांजलि भी देते हैं तो वह पहले पेज की खबर होगी. और इस खबर के साथ सीएम की तस्वीर होगी. जो पार्टी सरकार में होती है उसको ज्यादा जगह मिलती रही, लेकिन विपक्ष को जैसे आज जगह नहीं मिल रही है ऐसा पहले नहीं होता था.’’

रिजवी आगे कहते हैं, ‘‘सत्तारूढ़ पार्टी को जगह देना अखबार की मजबूरी भी है नहीं तो विज्ञापन रोक दिया जाएगा. ऐसा मायावती की सरकार में काफी हुआ. जो अखबार उनके खिलाफ लिखता है उसका विज्ञापन रोक देते थे. अखिलेश यादव के समय में सबको विज्ञापन दिया गया. जल्दी किसी को रोका नहीं गया. इस सरकार में भी यही स्थिति है. अखबार वालों को डर है कि अगर वे सरकार के खिलाफ कुछ लिखते हैं तो उनका विज्ञापन रोक दिया जाएगा. सबकुछ विज्ञापन को लेकर हो रहा है.’’

दिलीप मंडल इसको लेकर कहते हैं, ‘‘इसमें कोई दो राय नहीं कि मीडिया में विपक्ष के लोगों को जगह नहीं मिल रही है. इसके जरिए वो जनता का मन तैयार करते हैं. ऐसा रिसर्च में देखा गया कि चुनाव के समय मीडिया जिन मुद्दों को तरजीह देता है. चुनाव उसी मुद्दे के इर्द-गिर्द घूमता है. लेकिन जरूरी नहीं कि हर बार ऐसा ही हो. दूसरी बात ध्यान देने वाली है कि बसपा में मायावती हो या सपा में अखिलेश यादव इनके अलावा किसका बयान मीडिया छापे. इन दोनों दलों से ज्यादा नेता तो कांग्रेस में हैं.’’

हालांकि लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान इससे इस्तेफाक नहीं रखते हैं. वे कहते हैं, ‘‘अखिलेश यादव हो या प्रियंका अगर ये कुछ भी करते हैं तो उसे सातवीं या आठवें पेज की खबर थोड़ी बनाएंगे. अमित शाह छींक भी मारे तो पहले पेज की खबर और दूसरे मर भी जाएं तो बीच किसी कोने में. विपक्ष को जिस तरह से आज मीडिया में किनारे किया गया है वैसा तो इमरजेंसी के समय में भी नहीं हुआ था.’’

प्रधान आगे कहते हैं, ‘‘यह सब बस लालच में हो रहा है. विज्ञापन पाने के लिए अखबार वाले समर्पण कर चुके हैं. एडिटर की भूमिका कम कर दी गई और मालिक ही सब देखने लगे हैं. मुझे तो कई रिपोर्टर बताते हैं कि उन्हें सरकार के खिलाफ खबर करने से रोक दिया जाता है. अब पत्रकारिता बची नहीं है.’’

इसको लेकर न्यूज़लॉन्ड्री ने अमर उजाला के लखनऊ संपादक राजीव सिंह से संपर्क किया. सवाल सुनने के बजाय उन्होंने हमसे ही सवाल करने शुरू कर दिए, और फोन रख दिया. ऐसे में हमने उन्हें कुछ सवाल भेजे हैं अगर उनका जवाब आता है तो खबर में जोड़ दिया जाएगा.

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