कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति में उनके प्रति जो रवैया दिख रहा है उससे साफ लगता है कि इस संभावनाशील ताकतवर युवा नेता को कांग्रेस अपने साथ लंबे समय तक जोड़े रखने की कोई गंभीर कोशिश नहीं कर रही है.
पटेल का पाटीदार आंदोलन एकमात्र कारण रहा कि 2017 के विधानसभा चुनाव में गुजरात में बीजेपी को बहुत मेहनत करने के बावजूद वो बहुमत नहीं मिला, जिसके लिए वह असल प्रयास में थी. कुल 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में जैसे-तैसे करके बीजेपी 99 सीटें ही ले पायी, वह भी तब जब हार्दिक ने स्वयं चुनाव नहीं लड़ा था क्योंकि उम्र ही उनकी चुनाव लड़ने लायक नहीं थी. वरना पटेल वोट बैंक का बहुत बड़ा हिस्सा कांग्रेस की तरफ जा सकता था. अब अगले साल 2022 के आखिर में गुजरात में फिर चुनाव होने हैं. बीजेपी ने अपना मुख्यमंत्री बदल दिया है, विजय रूपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल मुख्यमंत्री बन गए हैं. हार्दिक के आंदोलन ने बीजेपी को किसी पटेल को मुख्यमंत्री बनाने को मजबूर किया, लेकिन उनकी अपनी ही कांग्रेस पार्टी में अपनी क्षमता साबित करने के लिए हार्दिक पटेल को आलाकमान से ताकत की उम्मीद करनी पड़ रही है.
राजनीति में नेतृत्व से मिली शक्तियों के आधार पर नेता स्वयं की ताकत को द्विगुणित करते है, लेकिन कांग्रेस आलाकमान को ही अगर हार्दिक पटेल के सामर्थ्य व क्षमता की कद्र नहीं है तो फिर हार्दिक पटेल के कांग्रेस में होने का मतलब ही क्या है? दरअसल, यही सही समय है कि हार्दिक पटेल को संगठन में ताकतवर बनाया जाए वरना प्रदेश में कांग्रेस का बंटाधार तो तय है ही, देश की सबसे पुरानी पार्टी अपने ही नहीं देश के सबसे युवा नेता को खो दे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
कांग्रेस वैसे भी राहुल गांधी के अलावा किसी और नेता की बहुत ज्यादा चिंता करती नहीं दिखती और यही रवैया उसे लगातार कमजोर भी करता जा रहा है. गुजरात में कांग्रेस के पास खोने को वैसे भी बहुत कुछ बचा नहीं है. पुराने नेताओं की ताकत अब उतनी नहीं है, अकेले हार्दिक लंबे चलने वाले नेता हैं. फिर भी कांग्रेस का अपनी नयी पीढ़ी को गुजरात में ताकत सौंपने के मामले में कंजूसी बरतना समझ से परे है.
कुछ कट्टर कांग्रेसी और स्थापित नेताओं के गुलाम मानसिकता वाले सेवक भले ही अपनी इस बात से सहमत न हों, लेकिन सच यही है कि कांग्रेस अगर समय रहते हार्दिक पटेल जैसे अपने संभावनाशील युवा नेताओं की अहमियत भी न समझे तो देश की इस सबसे पुरानी पार्टी को इतिहास में समा जाने का रास्ता तलाशने के लिए छोड़ देना चाहिए.
(साभार- जनपथ)
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?