जिस जमीन को आप 18.5 करोड़ की जान रहे हैं उसे दो हिस्सों में 26.5 करोड़ रुपये में चम्पत राय के नाम से राम जन्मभूमि ट्रस्ट ने खरीदा. इस विवादित खरीद फरोख्त की कुछ अनछुई तहें.
ट्रस्ट ने खरीदी विवादित जमीन
राम मंदिर ट्रस्ट ने जो जमीन खरीदी है उसके कागजात पर लिखा है कि इस पर कोई विवाद नहीं है. हालांकि न्यूज़लॉन्ड्री को हाथ लगे दस्तावेजों के मुताबिक सुल्तान अंसारी और रवि तिवारी से खरीदी गई जमीन और सीधे पाठक दंपति से खरीदी गई, दोनों जमीन विवादास्पद है. दरअसल 2017 में पाठक दंपति ने यह जमीन जावेद आलम, महफूज आलम, फिरोज आलम और नूर आलम से दो करोड़ रुपये में खरीदी थी. बेचने वाले आपस में भाई हैं.
वास्तव में यह ज़मीन वक्फ बोर्ड की है. यह जानकारी हमें वहीद अहमद ने दी. वहीद, आलम भाइयों के खानदान से हैं. वे बताते हैं, ‘‘हमारे खानदान के बुजुर्ग फकीर मोहम्मद, जो मेरे दादा के दादा थे, ने साल 1924 में इस जमीन के साथ-साथ कई और संपत्ति वक्फ को दान कर दी थीं. वक्फ को गई जमीन को लेकर उस समय कुछ नियम बने थे. जिसके मुताबिक खानदान में ही इसकी देखभाल करने के लिए मुतवल्ली (अध्यक्ष) का चुनाव होगा. जो भी अध्यक्ष होगा जमीन उसके नाम पर होगी और उस जमीन से जो भी कमाई होगी उसे गरीब मजलूमों को दिया जाएगा. इसके पहले अध्यक्ष खुद फकीर मोहम्मद बने.’’
वहीद अहमद कहते हैं, ‘‘यह जमीन तो बिक ही नहीं सकती क्योंकि यह वक्फ की जमीन है. जो संपत्ति एक बार वक्फ की हुई वो हमेशा वक्फ की ही रहेगी.’’
‘‘फकीर मोहम्मद के निधन के बाद दूसरे लोग खानदान द्वारा चुनकर वक्फ की जमीन की देखभाल करते रहे. साल 1986 तक सब ठीक चला. इसी साल महमूद आलम अध्यक्ष बने. उनके निधन के बाद साल 1994 में अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मोहम्मद असलम के पास आई. नियम से जमीन का मालिकाना महमूद आलम के बाद मोहम्मद असलम के पास आना चाहिए था, लेकिन 2009 में असलम ने पाया कि आलम के बेटे जावेद, महफूज़, फिरोज और नूर के नाम जमीन के मालिकों के रूप में दर्ज हो गए हैं.’’ वहीद अहमद बताते हैं.
आलम भाइयों के नाम पर जमीन दर्ज होने की जानकरी मिलने के बाद मोहम्मद असलम ने स्थानीय तहसीलदार को शिकायत लिखकर इसका विरोध किया. लंबी लड़ाई के बाद जिला प्रशासन ने सितंबर 2017 में बाग बिजैसी में मौजूद भूमि की बिक्री पर रोक लगा दी. यह दस्तावेज भी न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद है.
इस आदेश के बाद वहीद ने यहां एक बोर्ड लगवाया. जिसपर लिखा हुआ था, ‘‘यदि कोई वक्फ संपत्ति को बैनामा लेता है तो वह शून्य है. यह संपत्ति हाजी फकीर मोहम्मद के नाम दर्ज है.’’ हालांकि अब यह बोर्ड वहां मौजदू नहीं है. अहमद की माने तो ‘‘पाठक के लोगों ने उसे हटा दिया.’’
इस जमीन की खरीद बिक्री पर अयोध्या अपर आयुक्त ने 19 सितंबर 2017 को रोक लगा दी थी. रोक के बावजूद 20 नवंबर 2017 को पाठक दंपति ने यह जमीन अपने नाम बैनामा करा लिया.
यह जानकारी मिलने पर 22 अप्रैल, 2018 को वहीद अहमद और अब्दुल वाहीद ने आलम भाइयों और पाठक दंपत्ति के खिलाफ राम जन्मभूमि थाने में एक एफआईआर दर्ज करायी.
राम जन्मभूमि थाने में दर्ज एफआईआर 40/2018 में कहा गया है कि आलम भाइयों ने वक्फ के स्वामित्व वाली ज़मीन को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बेचा गया था. इस जमीन को बेचा नहीं जा सकता. इस जमीन का मुकदमा फ़ैजाबाद आयुक्त महोदय के यहां चल रहा है. इस पर स्टे लगा हुआ है.
यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपने एक सर्किल अफसर को इस जमीन की जांच के लिए भेजा था. वक्फ बोर्ड के विधि सहायक शकील अहमद द्वारा 10 अप्रैल, 2018 को बोर्ड के अध्यक्ष को लिखे पत्र में बताया गया कि 20 नवंबर, 2017 को वक्फनामा में अंकित संपत्ति गाटा संख्या 242/1, 243, 244, 246, कुल रकबा 2.3 हेक्टेयर को मुतवल्ली नूर आलम व उनके भाइयों द्वारा श्रीमती कुसुम पाठक और हरीश पाठक को बेंच दिया गया है. यह बिक्री बिना बोर्ड के इजाजत के की गई.
चंपत राय के झूठे दावे
इस घोटाले के केंद्र में राम जन्मभूमि ट्रस्ट के सदस्य और विश्व हिंदु परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री चंपत राय का नाम सामने आया है क्योंकि ट्रस्ट की ओर से उन्हीं का नाम दर्ज हुआ है. अपने बचाव में चंपत राय ने कहा कि इसका एंग्रीमेंट 2019 में हो गया था.
जिस एग्रिमेंट की बात ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय कर रहे हैं, वो एग्रिमेंट न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद है. 17 सितंबर, 2019 को हुए इस एग्रिमेंट में भूमि संख्या 242/1, 242/2, 243, 244 और 246 की कुल 2.3 हेक्टेयर जमीन की बिक्री दो करोड़ रुपए में तय हुई थी. यह एग्रिमेंट तीन साल के लिए वैध था. हालांकि ट्रस्ट ने अपनी सफाई में कहा है कि यह एग्रिमेंट 18 मार्च, 2021 को ‘रद्द करने के लिए पंजीकृत’ था. ट्रस्ट का यह दावा गलत है.
हकीकत यह है कि 17 सितंबर 2019 को तीन साल के लिए हुए समझौते को 18 मार्च 2021 को रद्द कर दिया गया.
यहां चंपत राय और ट्रस्ट की भूमिका पर एक नया संदेह खड़ा हो जाता है. जिस एंग्रीमेंट का जिक्र चंपत राय कर रहे हैं उसमें जमीन के पूरे हिस्से का एग्रीमेंट (भूमि संख्या 242/1, 242/2, 243, 244 और 246 की कुल 2.334 हेक्टेयर) पाठक दंपति ने दो करोड़ में किया था. लेकिन 18 मार्च को जब जमीन की रजिस्ट्री हुई तब उसे तीन हिस्सों में बेचा गया.
कुल जमीन 2.334 हेक्टेयर में से 1.208 हेक्टेयर 18.5 करोड़ में सुल्तान अंसारी और रवि तिवारी से खरीदा गया, 1.037 हेक्टेयर सीधे हरीश पाठक से आठ करोड़ में खरीदा गया. बाकी बची .089 हेक्टेयर जमीन को हरीश पाठक ने अपने ड्राइवर रविंद कुमार दुबे को दान कर दी.
यह तमाम खरीद बिक्री 18 मार्च 2021 की शाम में कुछ मिनटों के अंतराल के बीच हुई है. इसमें अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय और एक अन्य ट्रस्टी अनिल मिश्रा बतौर गवाह पेश हुए.
हमने चंपत राय से उनका पक्ष जानने के लिए तमाम कोशिशें की लेकिन उन्होंने मना कर दिया. हालांकि वो कारसेवकपुरम में ही मौजूद थे. हमने उन्हें लिखित में कुछ सवाल भेजे हैं. उनका जवाब आने पर इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?