सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही वर्ष 2019 में टीबी से 79,144 लोगों की मौत हुई थी अर्थात देश में हर घंटे 9 लोगों की मौत टीबी से हो रही थी.
इसी साल मार्च में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने ट्रायबल टीबी इनीशिएटिव की शुरुआत की थी. उस दौरान तपेदिक उन्मूलन के लिए बनाई गई संयुक्त कार्य योजना को लेकर प्रस्तुत दस्तावेजों में यह कहा गया था कि कुपोषण और स्वच्छता की कमी से आदिवासी आबादी टीबी की चपेट में आ गई है. कार्ययोजना में 177 आदिवासी जिलों को तपेदिक उन्मूलन के लिए उच्च प्राथमिकता वाले जिलों में रखा गया था. यह योजना प्रारंभ में 18 राज्यों के 161 जिलों पर ध्यान केंद्रित करने वाली थी, मगर आज तक जमीनी स्तर पर इस योजना को कोई अता-पता नहीं हैं जबकि अत्यधिक घातक साबित हुई कोरोना महामारी की दूसरी लहर में तपेदिक से प्रभावित आदिवासियों की पहचान कर उनका उपचार सुनिश्चित करना बेहद जरूरी था. उस समय बड़े जोर से यह घोषणा भी की गई थी कि केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का निक्षय और जनजातीय मामलों के मंत्रालय का स्वास्थ पोर्टल तपेदिक पर डेटा संकलन को बढ़ावा देगा. यह भी सिर्फ घोषणा ही बन कर रह गई.
गत वर्ष अगस्त में ही केंद्रीय स्वास्थ मंत्रालय द्वारा टीबी पर दिशानिर्देश जारी किए गए थे. इसमें सभी टीबी मरीजों के लिए कोरोनावायरस की जांच को महत्वपूर्ण बताया गया था. साथ ही यह भी स्वीकार किया गया था कि टीबी के मरीज के कोरोना वायरस की चपेट में आने की ज्यादा सम्भावना है. इस दिशानिर्देश में बताया गया था कि टीबी के मरीजों में कोविड होने का खतरा अन्य लोगों से दोगुना होता है. साथ ही कोविड की जकड़ में आ चुके मरीज में टीबी होने की सम्भावना भी अधिक होती है. मंत्रालय ने कहा था कि विभिन्न शोधों से पता चला है कि कोरोना वायरस से ग्रस्त 0.37 से 4.47 फीसदी मरीजों में टीबी के लक्षण पाए गए हैं. दिशानिर्देशों में कोविड-19 मरीजों की टीबी जांच की सिफारिश भी की गई थी. साथ ही जिन लोगों में कोविड-19 नेगेटिव आया है उनकी भी टीबी जांच के लिए कहा गया था.
दिशानिर्देश में इन्फ्लुएंजा (आइएलआइ) और सांस सम्बन्धी गंभीर बीमारियों (एसएआरआइ) के लक्षणों वालों व्यक्तियों के लिए भी कोविड 19 की बात कही गई है. महत्वपूर्ण बात यह है कि इस दिशानिर्देश के अनुसार टीबी रोगियों में कोविड 19 के लक्षण पाए जाने पर दोनों बीमारियों का उपचार किया जाना है. इसी तरह कोविड 19 के मरीजों में टीबी के लक्षण मिले तो उनमें भी टीबी और कोरोना दोनों का इलाज किया जाना होगा. मंत्रालय ने साथ ही टीबी और कोविड 19 दोनों की चिकित्सा सुविधाओं को जोड़ने के लिए भी कहा था ताकि मरीजों का बेहतर इलाज हो सके.
आदिवासी क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्ति और संगठन बतलाते हैं, "सरकार को यह समझना होगा कि इन इलाकों में सरकारी ढर्रे पर चलकर किसी भी महामारी पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकेगा. वातानुकूलित दफ्तरों में बैठ कर आदिवासी इलाकों जो अक्सर ही सुदूर जंगलों और पहाड़ों पर अव्यस्थित होते हैं, के लिए योजनाएं बनाने वाले अक्सर ही इस समुदाय की रुढ़ियों और जमीनी हकीकतों से अंजान होते हैं. ऐसे में किसी भी सरकारी योजना का प्रभावी तौर पर लागू हो पाना मुश्किल हो जाता है. जैसा जोरशोर से शुरू ट्रायबल टीबी इनीशिएटिव के साथ हुआ. ऐसे में यह बेहद संभव है कि आदिवासी इलाकों में कोविड-19 के खतरे आने वाले दिनों में और बढ़ जाएं."
(लेखक भोपाल में निवासरत अधिवक्ता हैं. लंबे अरसे तक सामाजिक सरोकारों से जुड़े विषयों पर लिखते रहे है. वर्तमान में आदिवासी समाज, सभ्यता और संस्कृति के संदर्भ में कार्य कर रहे हैं.)
(साभार- जनपथ)