एनएल एक्सक्लूसिव: ‘हमारी मजबूरी की रोटियां खाईं मीडिया वालों ने’

इंदौर के एक पूर्व सैनिक की तीन बेटियों का मीडिया ट्रायल के चलते अपने घर से निकलना भी दूभर हो गया है.

   
  • Share this article on whatsapp

जिस बहन का कोई लेना-देना नहीं उसे मीडिया ने बना दिया जासूस

इस पूरे मामले में सबसे बड़ी बहन 32 वर्षीय गौहर को जबरन घसीटा गया. गौहर बताती हैं कि वे भारतीय जनता पार्टी की कार्यकर्ता हैं और नज़दीक ही अपने पति और 12 साल के बेटे के साथ रहती हैं. दोनों पति-पत्नी आजीविका चलाने के लिए काम करते हैं.

imageby :

गौहर का नाम और उनकी तस्वीर इंदौर से नए-नए शुरू हुए खुलासा फर्स्ट अखबार ने 22 मई को बेहद सनसनीखेज़ तरीके से प्रकाशित की. इस तरह की ख़बर प्रकाशित होने की जानकारी गौहर को दो दिन बाद मिली जब उनका बेटा दूध लेने के लिए गया था और उसे किसी ने यह अख़बार दिया.

अखबार के संपादक अंकुर जायसवाल न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते है, “अन्य अखबारों में पीड़िता का नाम और फोटो छपने के बाद हमने उनका फोटो और नाम अपने अखबार में छापा था.”

जिस बहन का इस पूरे मामले में कोई लेना देना नहीं था उसका फोटो और नाम छापने के सवाल पर अंकुर कहते है, “हम करेक्शन छापेगें. इस मामले में अभी पुलिस का कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है इसलिए हमने नहीं छापा.” हमने पूछा कब तक आप करेक्शन छापेगें तो वह कहते हैं “जैसे पुलिस बयान जारी करेगी हम छाप देगें.”

दैनिक भास्कर द्वारा इस मामले पर की गई रिपोर्टिंग पर भास्कर इंदौर के संपादक अमित मंडलोई कहते है, “जो जांच एजेंसियों द्वारा बताया जा रहा था वह हमने अपने अखबार में छापा था. और यही सब अन्य अखबारों में भी छापा जा रहा था. उस समय जो जानकारियां निकल कर आ रही थीं उसके हिसाब से यह बहुत बड़ी खबर थी. इसलिए हमने इसे प्रमुखता से छापा. जहां तक पीड़िता का नाम छापने की बात है तो, जो पुलिस अधिकारियों द्वारा हमें बताया जा रहा था हमने उसी आधार पर उनका नाम भी प्रकाशित किया.”

मीडिया में फोटो प्रकाशित होने पर गौहर कहती हैं, “मैं पास ही में अपने पति और बच्चों के साथ रहती हूं. मेरा इस पूरे घटनाक्रम में कोई लेना देना नहीं है फिर भी मीडिया ने मेरा नाम और चेहरा अखबार में छाप दिया.”

गौहर एक शॉपिंग सेंटर में काम करती थीं लेकिन इसके बाद उनकी नौकरी चली गई. उनके पति भवन निर्माण के लिए लोहा बांधने का काम करते थे लेकिन इस पूरे मामले के बाद अब उनके पास भी काम नहीं है.

गौहर कहती हैं, “अखबार में फोटो छपने के कारण मैं घर से बाहर नहीं जा पा रही हूं. किसी का डर नहीं है लेकिन शर्मिंदगी के कारण नहीं जा रही हूं. इस फोटो के कारण मुझे नौकरी से निकाल दिया गया. कंपनी के लोग कहते हैं कि वह देश के खिलाफ काम करने वाले लोगों को काम नहीं देते.” ये कहते हुए गौहर रोने लगती हैं.

वे आगे कहती हैं, “पाकिस्तान के लिए जासूसी तो छोड़िए मैं कभी पाकिस्तान की तरफ मुंह करके भी नहीं सोई हूं. मेरे पिता ने कहा था बेटा देश के लिए मरना, देश के लिए जीना. मेरे पिता ने देश की सेना में 24 साल तक सेवा की, लेकिन हम पर इस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं.”

पुलिस की क्लीन चिट

करीब 10 दिनों तक घर में नज़रबंद करने के बाद 28 मई की शाम को इंदौर पुलिस की क्राइम ब्रांच ने दोनों लड़कियों को वापस फोन दे दिया. साथ ही उसी दिन उन्हें जांच से भी छूट मिल गई. सायरा कहती हैं, “28 की शाम को क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने हमारे फोन हमें वापस देते हुए कहा कि आप लोग अब से फ्री हैं. लेकिन आगे से ऐसा कुछ मत करना.”

हालांकि इन बहनों को अब तक नहीं पता कि उन्होंने ऐसा क्या किया था जो उन्हें नज़रबंद रखा गया, उनके घर के बाहर लगातार पुलिस बैठी रही और मीडिया उनके बारे में उल-जुलूल जानकारी सूत्रों से मिलकर लोगों को बताता रहा.

परिवार के मुताबिक पुलिस ने उनसे कमोबेश अच्छा सुलूक किया. इनकी शिकायत मीडिया से है. जिन्होंने उनके मामले में बेहद गैर जिम्मेदाराना रवैया दिखाया.

क्लीन चिट मिलने की ख़बर को अख़बारों ने उस अहमियत के साथ प्रकाशित नहीं किया जैसा कि उन्होंने इस मामले की शुरुआत में किया था. इसके बाद मामले में मीडिया की दिलचस्पी ख़त्म हो गई.

इस घटना के बाद इन बहनों की जिंदगी पूरी तरह बदल गई. वे अपने घरों से बाहर शर्मिंदगी के कारण नहीं निकल रही हैं और अब घर में किसी के भी पास नौकरी भी नहीं है. घर का खर्च पिता की पेंशन से जैसे-तैसे चल रहा है.

क्लीन चिट देने के फैसले पर इंदौर के आईजी हरिनारायणचारी मिश्र ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “हमें जानकारी मिली थी जिसके आधार पर जांच की गई. लेकिन अभी तक हमें कोई ठोस सबूत नहीं मिला है. इसलिए लड़कियों के खिलाफ जांच बंद कर दी गई है. फिलहाल लड़कियों के खिलाफ कोई जांच नहीं होगी.”

मीडिया रिपोर्टिंग पर कानून के जानकार

बार काउंसिल महू के पूर्व अध्यक्ष, रवि आर्य इस मामले पर कहते हैं, “बिना किसी जांच और सबूत के ही मीडिया ट्रायल शुरू हो गया. पुलिस अधिकारियों ने “जासूस” और “देशद्रोही” शब्द उपयोग कर संबोधित किया और मीडिया ने नाम और फोटो छाप दिया. सुप्रीम कोर्ट कहता है कि मीडिया ट्रायल तब तक आप नहीं कर सकते जब तक ठोस सबूत न हों. लेकिन इस मामले में बिना किसी सबूत के ही उन्हें आरोपी बनाया जाने लगा. शर्मिंदगी तो प्रशासन को तब उठानी पड़ी जब उन्हें क्लीन चिट दे दी गई.”

ना जाने कितनी बार सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया ट्रायल को लेकर नाराजगी व्यक्त की है. ना सिर्फ कोर्ट बल्कि कई संगठनों ने भी पुलिस जांच या कोर्ट ट्रायल के आधार पर कुछ भी लिखने, दिखाने के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है. लेकिन इसके बावजूद बेहद संवेदनशील मामलों तक पर मीडिया का ट्रायल बदस्तूर जारी है.

(इस खबर में गोपनीयता के कारण पीड़ित परिवार के सदस्यों के नाम बदल दिए गए हैं.)

Also see
article imageमहाराष्ट्र: विधवा मजदूर, कोविड और मुकादम
article imageअलीगढ़: दलितों ने अपने घरों के बाहर क्यों लिखा 'यह मकान बिकाऊ है'
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like