सरकारी लापरवाही का यह मामला मुजफ्फरनगर जिले के पलडी गांव का है. यहां सचिन सैनी की पत्नी अंजलि का कोरोना से निधन के दो दिन बाद उनका कोरोना टेस्ट हुआ और सात दिन बाद नतीजे आए.
‘‘मैं सिस्टम के आगे हार गया. इलाज के अभाव में मेरी पत्नी की मौत हो गई. मेरे दो छोटे-छोटे बच्चे हैं. उनकी आंखें मां को तलाशती रहती हैं. उन्हें क्या जवाब दूं. मुझे तो अब भगवान पर भी भरोसा नहीं रहा.’’ सचिन सैनी यह कहते हुए पास में ही खड़ी अपनी चार साल की बेटी को देखने लगते हैं.
23 अप्रैल को छह महीने की गर्भवती अंजलि का निधन मुजफ्फरनगर के मेडिकल कॉलेज में हो गया. अपनी पत्नी के निधन के बाद सचिन परेशान थे, लेकिन वे तब हैरान रह जब उन्हें पता चला की अंजलि के निधन के दो दिन बाद 25 अप्रैल को आरटी पीसीआर टेस्ट के लिए सैंपल लिया गया, जिसका नतीजा 30 अप्रैल को आया. वो भी निगेटिव. जबकि इस टेस्ट और रिपोर्ट के आने से पहले ही अंजलि की मौत कोरोना की वजह से हो चुकी थी.
सरकारी लापरवाही का यह मामला मुजफ्फरनगर जिले के पलडी गांव का है.
दो दिन, दो अस्पताल और मौत
30 वर्षीय अंजलि के साथ लापरवाही सिर्फ तब नहीं हुई जब वह मर चुकी थीं, बल्कि उनके साथ यह मजाक तब भी हुआ जब वो ज़िंदा थीं और बीमार थीं. तीन दिन तक उनका परिवार उन्हें लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का चक्कर काटता रहा. दो सरकारी अस्पतालों ने बाद में भर्ती तो किया लेकिन इधर से उधर भेजते रहे, आख़िरकार अंजलि की मौत हो गई.
21 अप्रैल
अंजलि के पति सचिन बताते हैं, ‘‘21 अप्रैल को अंजलि को काफी तेज सूखी खांसी हुई. मैं उसे लेकर मुजफ्फरनगर के प्राइवेट अस्पतालों में भटकता रहा. उसकी खांसी बढ़ती जा रही थी. सांस लेने में भी परेशानी होने लगी थी, लेकिन अस्पताल वाले कोरोना रिपोर्ट मांग रहे थे. मैंने शाहपुर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में उसका एंटीजन, आरटी पीसीआर और सिटी स्कैन कराया. एंटीजन में कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आई वहीं सिटी स्कैन में निमोनिया की बात सामने आई. कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आने पर मैं थोड़ा चिंता मुक्त था और शाम भी हो गई थी तो हम घर चले आए.’’
22 अप्रैल
अंजलि की स्थिति में कोई सुधार होता नजर नहीं आ रहा था. सचिन कहते हैं, ‘‘उसका ऑक्सीजन लेवल कम हो रहा था. खांसी रुक नहीं रही थी. 22 अप्रैल की सुबह हम उसे मेडिकल कॉलेज ले गए. वहां पहले उन्होंने भर्ती करने से मना कर दिया लेकिन जैसे-तैसे कोशिश करने पर उन्होंने भर्ती ले लिया. वहां फिर से एंटीजन टेस्ट हुआ, जो निगेटिव आया. देर शाम सात बजे मेडिकल कॉलेज वालों ने कहा कि इन्हें आप जिला अस्पताल लेकर जाइये. आरटीपीसीआर रिपोर्ट के बाद वे बताएंगे की इन्हें कोरोना के इलाज की ज़रूरत है या नहीं? हम एंबुलेंस से जिला अस्पताल पहुंचे.’’
सचिन आगे कहते हैं, ‘‘22 अप्रैल की शाम से लेकर सुबह तक अंजलि जिला अस्पताल में रही. वहां जाने के बाद उसे ऑक्सीजन लगा दिया गया, लेकिन कोई भी डॉक्टर उसे देखने नहीं आया. वो छह महीने की गर्भवती थी. जब उसका ऑक्सीजन मास्क इधर-उधर हो जाता था तो वहां सफाई करने वाली एक महिला ठीक कर देती थी. मुझे अंदर नहीं जाने दे रहे थे. वहां एक बार फिर उसका एंटीजन टेस्ट हुआ, जो पॉजिटिव आया. सुबह के पांच बजे के करीब उन्होंने मेडिकल कॉलेज ले जाने के लिए कह दिया. उन्होंने बताया कि इन्हें अब वेंटिलेटर की ज़रूरत है. हमारे यहां वेंटिलेटर नहीं है.’’
23 अप्रैल
सचिन चौबीस घंटे में तीन बार कोरोना टेस्ट, मेडिकल कॉलेज से जिला अस्पताल, जिला अस्पताल से मेडिकल कॉलेज के बीच चक्कर काटते रहे. वो कहते हैं, ‘‘अंजलि की तबीयत बिगड़ती जा रही थी. एक दिन पहले तक जिसका एंटीजन रिपोर्ट निगेटिव था वो एक दिन बाद पॉजिटिव हो गया. यह सब उनकी लापरवाही से हुआ. उसे इधर-उधर बैठा रहे थे. कोई साफ़-सफाई तो अस्पतालों में है नहीं.’’
जिला अस्पताल के डॉक्टर के कहने पर सचिन वापस मेडिकल कॉलेज पहुंचे. यहां 23 अप्रैल की सुबह के 11:35 पर उन्हें भर्ती किया गया. सचिन बताते हैं, ‘‘भर्ती तो कर लिए लेकिन इलाज नहीं किया. उसका ऑक्सीजन लेवल गिर रहा था. इसकी जानकारी के लिए मैं बार-बार अस्पतालकर्मियों से पूछ रहा था. उनके हेल्पलाइन नंबर पर कॉल किया, लेकिन मुझे कोई जानकारी नहीं दी. मैं परेशान इधर-उधर भटकता रहा. जिला अस्पताल वालों ने कहा था कि वेंटिलेटर की ज़रूरत है लेकिन वेंटिलेटर लगा नहीं रहे थे. करीब एक घंटे बाद मुझे फोन करके बताया गया कि आपका बच्चा नहीं रहा. हम इन्हें वेंटिलेटर पर लगा रहे हैं. मैं उनसे कहा कि अब तक आपने वेंटिलेटर पर नहीं डाला. ऐसा क्यों किया? मैं विनती करते हुए बोला कि आप उसे वेंटिलेटर दीजिए.’’
इसी बीच 21 अप्रैल वाले आरटी पीसीआर की रिपोर्ट आ गई थी. जो निगेटिव था.
‘‘करीब एक घंटे बाद फिर उनका फोन आया कि हम आपके मरीज को वेंटिलेटर पर डाल रहे हैं. मैं बोला कि आप लोग अब तक वेंटिलेटर पर नहीं ले गए. आप मेरा मरीज दे दीजिए, मैं उसे किसी और अस्पताल में भर्ती कराऊंगा. मेरी नाराजगी के बाद उन्होंने कहा कि आप सीएमओ से लिखवा कर लाइए हम आपको मरीज दे देंगे. मैं सीएमओ ऑफिस के लिए निकला ही था कि साढ़े चार बजे के करीब मुझे फोन आया कि आपकी पत्नी नहीं रही.’’ सचिन ने हमें बताया.
वायरल वीडियो और जांच के आदेश
सचिन गाजियाबाद के एक कंपनी में बतौर इंजीनियर काम करते हैं. जहां उनकी सैलरी करीब 50 हज़ार महीना है.
वे कहते हैं, ‘‘हम साथ ही रहते थे. शहर में घर लेने वाले थे. कोरोना के मामले बढ़ने लगे तो अप्रैल के शुरुआती महीने में गांव आए. लेकिन यहां आकर यह सब हो गया तो मैं एकदम परेशान हो गया. जब उन्होंने अंजलि के नहीं रहने के बारे में बताया तो मैं भागा-भागा अस्पताल पहुंचा तो वहां कोई डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी नहीं था. यहां तक की जो रिसेप्शन पर बैठते हैं वो भी नहीं था. मेरी पत्नी की मौत इलाज के बगैर हुई थी. मैं चिल्लाने लगा और वीडियो बनाया.’’
सचिन का मेडिकल कॉलेज में बनाया वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ. जिसमें वे कहते नजर आते हैं, ‘‘अस्पताल में मौत का नंगा नाच चल रहा है. एक कुल्हाड़ी लेकर बाहर बैठ जाओ और लोगों के गर्दन पर मारते रहो. कम से कम तसल्ली तो हो जाएगी की मार दिया. मेरी वाइफ मार दी इन्होंने. आज ही भर्ती की थी.’’
अंजलि के शव को परिजनों को उसी शाम वापस दे दिया गया. रात के आठ बजे गांव में उनका अंतिम संस्कार हो गया. लेकिन सचिन का वीडियो तेजी से वायरल हुआ. जिसके बाद मुजफ्फरनगर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर गुरदीप मनचंदा ने एक वीडियो जारी किया जिसमें उन्होंने कहा, ‘‘अंजलि का एंटीजन टेस्ट पॉजिटिव था, साथ में वो गर्भवती थी. राज्य सरकार का आदेश भी है कि गर्भवती महिला को समय पर इलाज दिया जाए. उनकी स्थिति खराब थी. इनका ऑक्सीजन लेवल 50 आ गया था. हमने उन्हें आईसीयू में भर्ती कर इलाज शुरू दिया लेकिन वह बच नहीं पाई. इसका हमें दुःख है.’’
गुरदीप मनचंदा अपने वीडियो में सचिन के दूसरे आरोपों को निराधार बताते हैं. हालांकि सचिन का वीडियो वायरल होने के बाद खबर आई कि इस मामले की जांच होगी. सचिन बताते हैं, ‘‘अख़बारों में खबर छपी की मेरी शिकायत की जांच होगी. एक दिन एडीएम साहब का फोन आया. उन्होंने कहा कि मैं इस मामले की जांच करूंगा. अस्पताल के सीसीटीवी भी देखूंगा कि तुम्हारी पत्नी को इलाज मिला या नहीं. मुझे थोड़ा सा चैन आया कि जांच होगी, लेकिन उसके बाद कभी उनका कोई फोन नहीं आया. मैं अपनी तरफ से करता हूं तो फोन काट देते हैं. मुझे नहीं पता की जांच हो रही है या नहीं.’’
यह जांच का आदेश जिलाधिकारी द्वारा दिया गया जिसकी रिपोर्ट एडीएम को जिलाधिकारी को ही सौंपनी थी. जांच का क्या हुआ. इसकी जानकारी के लिए जब न्यूज़लॉन्ड्री ने जिलाधिकारी सेल्वा कुमारी से फोन पर संपर्क किया तो उनके पीए ने बताया कि वो अभी वीडियो कन्फ्रेंसिग के जरिए मीटिंग में व्यस्त है. आप बाद में फोन कीजिए. दोबारा फोन करने पर हमारी बात नहीं हो पाई. न्यूजलॉन्ड्री ने सवालों की लिस्ट उन्हें मैसेज किया है. अगर उनका जवाब आता है तो उसे खबर में जोड़ दिया जाएगा.
इस बीच सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि अंजलि के मरने के बाद उनका सैंपल कैसे लिया गया? इसको लेकर भी हमने जिलाधिकारी से सवाल किया है.
सचिन कहते हैं, ‘‘मैं कोई बड़ा आदमी नहीं हूं. इस सिस्टम से लड़ नहीं सकता. मैं हार जाऊंगा लेकिन मुझे न्याय चाहिए. मेरी पत्नी इलाज के बगैर मरी है. जांच हो तो यह सच सामने आ जाएगा.’’
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