कानून की जमीन पर खोखली नजर आती ईशा फाउंडेशन के साम्राज्य की नींव

ईशा फाउंडेशन का मुख्यालय 150 एकड़ में फैला हुआ है. इनमें से एक ईशा आश्रम भी है जो तमाम नियम- कानूनों की धज्जियां उड़ाता हुआ 1994-2011 की अवधि में तैयार किया गया था.

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कानून की जमीन पर खोखली नजर आती ईशा फाउंडेशन के साम्राज्य की नींव
Anish Daolagupu
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मुथाम्मल ने इस याचिका में कहा है कि ईशा के अवैध निर्माण कार्यों की वजह से इंसानों और जानवरों के बीच के टकरावों के कारण आदिवासियों की जिंदगियां दूभर हो गयी हैं. उन्होंने 112 फुट बड़ी आदियोगी की प्रतिमा पर भी यह ध्यान दिलाते हुए एतराज जताया कि इससे संबंधित जरूरी अनुमतियां नहीं ली गयी हैं.

अर्जी के संबंध में जवाब देते हुए शहर एवं ग्राम नियोजन विभाग के उपनिदेशक ने इस बात की पुष्टि की कि मूर्ति का निर्माण उनके विभाग की मंजूरी के बगैर किया गया है.

इससे पहले कि वो अपना जवाब दाखिल करते 28 फरवरी, 2017 को इस प्रतिमा का अनावरण किसी और के नहीं बल्कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा किया जा चुका था.

यह सामने आने के बावजूद कि इस मूर्ति को कानूनी तौर पर चुनौती दी गयी है, मोदी जी को इसका अनावरण करने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई. ईशा के इतने सीधे तौर पर नियमों की धज्जियां उड़ाने का एक प्रमुख कारण हैं उस पर राजनेताओं का हाथ होना और उसमें भी खासकर तमिलनाडु सरकार का.

वन विभाग के ईशा आश्रम के एलीफैंट कॉरिडोर में स्थित होने से संबंधित दृष्टिकोण में आने वाले नाटकीय परिवर्तन को बेहद साफ तौर पर देखा जा सकता है.

न्यूज़लॉन्ड्री ने जो रिकॉर्ड्स देखें वो दर्शाते हैं कि कोयंबटूर के वन अधिकारी ने राज्य के वनों के प्रधान मुख्य संरक्षक को सूचित किया था कि ईशा द्वारा एलिफैंट कॉरिडोर की जमीन पर निर्माण कराया गया है और इसके निर्माण कार्यों तथा आश्रमों में भक्तों की भीड़- जिनकी महाशिवरात्रि पर ही संख्या दो लाख से अधिक हो जाती है के कारण इंसानों और जानवरों के बीच टकराहट बहुत बढ़ गया है. इसके साथ ही केवल महाशिवरात्रि उत्सव के आयोजन तक ही सीमित न रहने वाली बड़ी और शक्तिशाली लाइट्स और तेज आवाज वाली ऑडियों आदि ने भी स्थिति को और बिगाड़ दिया है.

इसी तरह जिला कलेक्टर द्वारा 2013 में जारी की गयी एक अधिसूचना में ईशा का नाम तो नहीं लिया लेकिन उस अधिसूचना में कहा गया था कि इक्कराई बोलुवम्पत्ति में संरक्षित वन के निकट अवैध निर्माण कार्य एलीफैंट कॉरिडोर में बाधाओं को तेजी से बढ़ाता जा रहा है. इस कारण जानवरों द्वारा इंसानी जान-माल की काफी क्षति हो रही है. इस नोटिस में एचएसीए की मंजूरी के बगैर निर्मित किये गये ईशा परिसर में बिजली और पानी की आपूर्ति बंद करने की धमकी भी दी गयी थी.

हालांकि 2020 तक आते-आते वन्य अधिकारी अलग-अलग राग अलापने लगे. जून, 2020 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण को स्टेटस रिपोर्ट सौंपते हुए प्रधान मुख्य वन संरक्षक पी दुराइरासु ने दावा किया, “ईशा परिसर इक्कराई बोलुवम्पत्ति ब्लॉक 2 संरक्षित वन "से सटकर" बना हुआ है. यह एक प्रसिद्ध एलीफैंट कॉरिडोर है लेकिन एक अधिकृत एलीफैंट कॉरिडोर नहीं है.”

उन्होंने आगे बताया, “अपने वार्षिक प्रवास के लिए हाथी इक्कराई बोलुवम्पत्ति में उस जगह के करीब से गुजरते है जहां ईशा आश्रम स्थित है लेकिन वो जगह आधिकारिक तौर पर एलीफैंट कॉरिडोर नहीं है.”

इक्कराई बोलुवम्पत्ति पर वन विभाग की स्थिति में आयी अस्थिरता ईशा के लिए सीधे तौर पर लाभदायी ही साबित हुई. पिछले साल मार्च में के पलानीस्वामी सरकार ने उन प्लॉट्स को नियमित कर दिया जो बिना किसी मंजूरी के उस पर्वतीय क्षेत्र में बनाये गए थे. इसमें एचएसीए की जमीनें भी शामिल थीं जो एलीफैंट कॉरिडोर के दायरे से बाहर थीं लेकिन इक्कराई बोलुवम्पत्ति के अंतर्गत आती थीं.

"हमारा मानना है कि ये नियम पिछले दरवाजे से ईशा फाउंडेशन की मदद के लिए लाया गया है ताकि उसके अवैध निर्माण कार्यों को नियमित किया जा सके," जी सुंदरराजन ने दावा किया जो कि एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं. "सरकार ने एलीफैंट कॉरिडोर्स और अभयारण्यों को अभी तक अधिसूचित नहीं किया है लेकिन ये नियम बना दिये हैं."

2017 में ईशा द्वारा जिन निर्माण कार्यों के लिए एचएसीए को मंजूरी के लिए अर्जी भेजी गई वो उससे पहले ही उन निर्माण कार्यों को पूरा कर इमारतें खड़ी कर चुका था. तत्कालीन प्रधान मुख्य वन संरक्षक, एच बसवराजू ने इस अर्जी के संबंध में जांच-परख करने के लिए एक कमेटी का गठन किया. कमेटी ने पाया कि ईशा के निर्माण कार्यों से स्थानीय वन्य जीवों और पर्यावरण को क्षति पहुंच रही है और उसने जिला वन अधिकारी को केवल उसी स्थिति में पूर्व में निर्मित हो चुके ढांचों को मंजूरी देने को कहा जो कि ईशा उन इमारतों में जरूरी बदलाव कर दे.

ईशा ने जंगल की कुछ सड़कों को इस्तेमाल में न लाने की बात और संरक्षित वन क्षेत्र के 100 मीटर के दायरे से भी बाहर तक ही अपने निर्माण कार्यों को सीमित रखने पर सहमति जता दी.

उसी साल भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) ने राज्य के वन विभाग को इस सब की जानकारी होने के बावजूद 2012 से ही ईशा के अवैध निर्माण कार्यों को न रोकने के लिए फटकार लगाई. एचएसीए की मंजूरी के बगैर ही निर्माण कार्य किया गया, कैग ने दोहराया.

कैग की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए ईशा फाउंडेशन ने दावा किया कि उन्होंने अपने सभी निर्माण कार्यों के लिए 16 मार्च, 2017 को एचएसीए से मंजूरी ले ली थी. जबकि प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा गठित कमेटी ने ईशा परिसर का निरीक्षण ही 17 मार्च, 2017 को किया गया था और इसके कुछ दिनों बाद 29 मार्च को उसने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. यहां तक कि 4 अप्रैल, 2017 को तो प्रधान मुख्य वन संरक्षक अधिकारी ने शहर एवं ग्राम नियोजन विभाग से ईशा को सशर्त पोस्ट-कंस्ट्रक्शन मंजूरी देने की सिफारिश की थी. इसके बाद ही शहर एवं ग्राम नियोजन विभाग ने कोयंबटूर के अपने क्षेत्रीय उपनिदेशक को ईशा के निर्माण कार्यों को इस शर्त पर पोस्ट-कंस्ट्रक्शन मंजूरी देने के निर्देश दिए कि वो पूरे शुल्क का भुगतान करेंगे और वन विभाग की शर्तों का अनुपालन करेंगे. फिर ये कैसे संभव है कि 16 मार्च, 2017 को ही एचएसीए ने ईशा के निर्माण कार्यों को मंजूरी दे दी?

ईशा ने इस पर और कुछ दूसरे आरोपों पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया. इस मामले पर टिप्पणी करने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा भेजे गए एक ईमेल का जवाब देते हुए फाउंडेशन के प्रवक्ता ने चेतावनी देते हुए कहा, "आपके अनुमान और पूर्वानुमान हमारे लिए कोई मायने नहीं रखते लेकिन अगर आप फाउंडेशन को बदनाम ही करना चाहते हैं तो आप ये काम अपने निजी जोखिम पर ही करें."

तमिलनाडु के पास पोस्ट-कंस्ट्रक्शन मंजूरी देने की कोई व्यवस्था नहीं है. शहर एवं ग्राम नियोजन विभाग किसी निर्माण को कार्योत्तर तभी नियमित कर सकता है जब कुछ खास शर्तें पूरी कर ली जाती हों. हालांकि ये विभाग पर्यावरण सम्बन्धी कोई भी मंजूरी देने का अधिकार नहीं रखता.

तत्कालीन प्रधान मुख्य वन संरक्षक अधिकारी बसवराजू ने ईशा द्वारा निर्मित ढांचों का निर्माण कार्य हो जाने के बाद मिलने वाली मंजूरियों के संबंध में कोई भी प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया है. उनकी जगह पर आए एक दूसरे अधिकारी और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में स्टेटस रिपोर्ट दायर करने वाले दुराईरासु का कहना है, "शर्तों से छूट देने के बाद केवल सिफारिशें ही पूरी की गयी हैं. मैं नहीं जानता कि उन्होंने शर्तों का पालन किया है या नहीं. मेरी जानकारी के अनुसार उन्होंने एचएसीए से अब तक कोई अनुमति नहीं ली है."

कोयंबटूर के जिला कलेक्टर होने के नाते एचएसीए के प्रमुख राजमणि ने कहा, “वो एजेंसी द्वारा ईशा को दी गयी मंजूरियों के विषय में कोई बात नहीं करना चाहते. "आप जो मर्जी चाहे लिख सकते हैं."

***

तीन पार्ट में प्रकाशित होने वाली रिपोर्ट का यह पहला हिस्सा है.

यह रिपोर्ट हमारी एनएल सेना प्रोजेक्ट का हिस्सा है, जिसमें 155 पाठकों ने योगदान दिया.

इसे सरस उपाध्याय, विशाल रघुवंशी, विपिन शर्मा, किमाया कर्मलकर, शाफिया काज़मी, सौम्या के, तपिश मलिक, सूमो शा, कृष्णन सीएमसी, वैभव जाधव, रचित आचार्य, वरुण कुझिकट्टिल, अनिमेष प्रियदर्शी, विनील सुखरमानी, मधु मुरली, वेदांत पवार, शशांक राजपूत, ओलिवर डेविड, सुमित अरोड़ा, जान्हवी जी, राहुल कोहली, गौरव जैन, शिवम अग्रवाल, नितीश के गनानी , वेंकट के, निखिल मेराला, मोहित चेलानी, उदय, हरमन संधू, आयशा, टीपू, अभिमन्यु चितोशिया, आनंद, हसन कुमार , अभिषेक के गैरोला, अधिराज कोहली, जितेश शिवदासन सीएम, रुद्रभानु पांडे, राजेश समाला, अभिलाष पी, नॉर्मन डीसिल्वा, प्रणीत गुप्ता, अभिजीत साठे, करुणवीर सिंह, अनिमेष चौधरी, अनिरुद्ध श्रीवत्सन, प्रीतम सरमा, विशाल सिंह, मंतोश सिंह, सुशांत चौधरी , रोहित शर्मा, मोहम्मद वसीम, कार्तिक, साई कृष्णा, श्रेया सेथुरमन, दीपा और हमारे अन्य एनएल सेना सदस्यों के योगदान से संभव बनाया गया है.

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