हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ़्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.
एनएल चर्चा के 145वें एपिसोड में बातचीत ख़ासतौर से किसान आंदोलन में महिलाओं की उपस्थिति, सरकार का मीडिया मैनेजमेंट और सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर केंद्रित रहा. इसके अलावा केंद्र सरकार के सुझावों को खारिज़ कर किसान संगठनों द्वारा कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग, किसान संगठनों ने कहा भारत बंद सफल रहा, नए संसद भवन की नींव रखते हुए पीएम मोदी का भूमि पूजन, गौ हत्या को लेकर कर्नाटक विधानसभा में बिल पारित समेत कई दूसरे विषयों का जिक्र हुआ.
इस बार चर्चा में न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस, सह संपादक शार्दूल कात्यायन और न्यूज़लॉन्ड्री की संवाददाता निधि सुरेश शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल कहते हैं, ''पिछले हफ़्ते किसान आंदोलन को लेकर काफ़ी चीज़ें हुईं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण यह था कि अमित शाह ने आठ तारीख की शाम को अचानक से कुछ किसानों को मिलाने के लिए बुलाया, जबकि 9 तारीख को सभी नेताओं से अंतिम दौर की चर्चा होनी थी. जिसमें 9 तारीख को किसी नतीज़े पर पहुंचने की बात कही गई थी. लेकिन इससे पहले ही अमित शाह ने मिलने को बुलाया फिर पूरी बातचीत पटरी से उतर गई.
निधि को चर्चा में शामिल करते हुए अतुल सवाल करते हैं, ''यह क्या हुआ था और 9 तारीख वाली बातचीत से किसानों ने खुद को अलग क्यों कर लिया."
निधि कहती हैं, ''सरकार तभी से कह रही है हम बात करेंगे, वहीं किसानों की शिकायत एक दम साफ है. जिसमें बिल के तकनीकी तौर पर उनकी दो शिकायत हैं. पहला कि कृषि कानून बनाने को लेकर उनसे मशवरा क्यों नहीं लिया गया. जबकि इस पर सरकार का कहना है कि बिल किसान का हिमायती है. इस पर किसान साफ बोल रहे हैं, आप कैसे बोल सकते हैं. इससे हमें कोई फायदा नहीं हो रहा, हम बिल के खिलाफ़ दिल्ली कूच कर सीमा पर हैं.
निधि आगे कहती हैं, ''किसान बहुत ज्यादा धोखा खाए हुए महसूस कर रहे हैं. इस संदर्भ को लेकर उनका बात करने का मूड नहीं है. वो कह रहे हैं, अगर आपको बात करनी है तो पहले इसका जवाब दें, फिर हम बिल के ऊपर बात करेंगे. लेकिन सरकार इस पर बात नहीं कर रही, वो बस आगे बढ़कर कह रही हैं कि हम एमएसपी को लिखित तौर पर दे देंगे. इस पर किसान पूछ रहे हैं कि आप लिख कर दे सकते हैं तो कानून में क्यों नहीं लिख सकते हैं.
अतुल आगे मेघनाथ से पूछते हुए कहते हैं, ''यह सब मिलाकर सरकार की नीयत पर किस तरह से सवाल खड़े कर रहे हैं, क्या सच में सरकार की नीयत साफ है या उसने इसको केवल नाक का मुद्दा बनाकर और कॉर्पोरेट के दबाव में इस पर आगे बढ़ने का मन बना लिया है, जो कभी पीछे हटना नहीं चाहती.''
मेधनाथ कहते हैं, ''सरकार इस आंदोलन को घटिया तरह से हैंडल कर रही है, जो दरार पैदा करने की कोशिश की, वो भी विफल रही, जिसमें कुछ नेता लोगों को बुलाया और कुछ लोगों को नहीं बुलाया. इससे किसान नेताओं में इन पर और भी गंभीर शक पैदा हो गए हैं."
मेधनाथ आगे कहते हैं, ''यह मांग तो है कि आप इन कानूनों को रद्द कर दें, एमएसपी को कानून में लिख दें. लेकिन जो प्रोटेस्ट का हैंडलिंग है जैसे मीडिया द्वारा खालिस्तानी कहना और किसानों को भ्रमित किया जा रहा... बता रही है और आगे ऐसे नज़रिए को लाना कि इन्हें क़ानून पढ़ना नहीं आता."
शार्दूल को चर्चा में शामिल करते हुए अतुल कहते हैं,'' यह नीयत और हैडलाइन मैनेजमेंट की बात है मैं आपकी इस पर टिपणी जानना चाहूंगा, क्योंकि यह सरकार इसी तरह बहुत सारे आंदोलनों को अलग करने में सफल रही है तो इस एक आंदोलन से क्या उम्मीद है.''
शार्दूल कहते हैं, ''सरकार मीडिया मैनेजमेंट करने में विश्वास रखती है, इस बात से झुठलाया नहीं जा सकता. हमने पिछली बार भी बात की थी, जो अभी भी चल रहा है. और मेरे नज़रिए से जो मुझे लग रहा था कि सरकार का कुछ ज्यादा नहीं बिगड़ेगा, थोड़ा बहुत होगा जो होगा, क्योंकि पंजाब में ज्यादा उनका कोई स्टेक है नहीं. लेकिन इस सरकार को पहली बार इतना अथक विरोध झेलना पड़ा है. प्रदर्शन करने वाले न थक रहे हैं और न ही सरकार को कोई रास्ता मिल रहा है कि इनको एक कटघरे में खड़ा कर सकें.''
क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.
निधि सुरेश
द ऑरिजिन्स ऑफ़ टोटिटेरियनिज़्म - हाना आरेंट
शार्दूल कात्यायन
न्यूज़लॉन्ड्री हिंदी पर अनुमेहा यादव की रिपोर्ट
मेघनाद एस
किसान प्रोटेस्ट पर वॉक थ्रू (पकमिंग)
द बिगनिंग ऑफ़ द एन्ड ऑफ़ पान्डेमिक
द पैसेज ट्राइलॉजी - जस्टिन क्रोनिन
अतुल चौरसिया
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इस बार चर्चा में न्यूज़लॉन्ड्री के एसोसिएट एडिटर मेघनाद एस, सह संपादक शार्दूल कात्यायन और न्यूज़लॉन्ड्री की संवाददाता निधि सुरेश शामिल हुए. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल कहते हैं, ''पिछले हफ़्ते किसान आंदोलन को लेकर काफ़ी चीज़ें हुईं, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण यह था कि अमित शाह ने आठ तारीख की शाम को अचानक से कुछ किसानों को मिलाने के लिए बुलाया, जबकि 9 तारीख को सभी नेताओं से अंतिम दौर की चर्चा होनी थी. जिसमें 9 तारीख को किसी नतीज़े पर पहुंचने की बात कही गई थी. लेकिन इससे पहले ही अमित शाह ने मिलने को बुलाया फिर पूरी बातचीत पटरी से उतर गई.
निधि को चर्चा में शामिल करते हुए अतुल सवाल करते हैं, ''यह क्या हुआ था और 9 तारीख वाली बातचीत से किसानों ने खुद को अलग क्यों कर लिया."
निधि कहती हैं, ''सरकार तभी से कह रही है हम बात करेंगे, वहीं किसानों की शिकायत एक दम साफ है. जिसमें बिल के तकनीकी तौर पर उनकी दो शिकायत हैं. पहला कि कृषि कानून बनाने को लेकर उनसे मशवरा क्यों नहीं लिया गया. जबकि इस पर सरकार का कहना है कि बिल किसान का हिमायती है. इस पर किसान साफ बोल रहे हैं, आप कैसे बोल सकते हैं. इससे हमें कोई फायदा नहीं हो रहा, हम बिल के खिलाफ़ दिल्ली कूच कर सीमा पर हैं.
निधि आगे कहती हैं, ''किसान बहुत ज्यादा धोखा खाए हुए महसूस कर रहे हैं. इस संदर्भ को लेकर उनका बात करने का मूड नहीं है. वो कह रहे हैं, अगर आपको बात करनी है तो पहले इसका जवाब दें, फिर हम बिल के ऊपर बात करेंगे. लेकिन सरकार इस पर बात नहीं कर रही, वो बस आगे बढ़कर कह रही हैं कि हम एमएसपी को लिखित तौर पर दे देंगे. इस पर किसान पूछ रहे हैं कि आप लिख कर दे सकते हैं तो कानून में क्यों नहीं लिख सकते हैं.
अतुल आगे मेघनाथ से पूछते हुए कहते हैं, ''यह सब मिलाकर सरकार की नीयत पर किस तरह से सवाल खड़े कर रहे हैं, क्या सच में सरकार की नीयत साफ है या उसने इसको केवल नाक का मुद्दा बनाकर और कॉर्पोरेट के दबाव में इस पर आगे बढ़ने का मन बना लिया है, जो कभी पीछे हटना नहीं चाहती.''
मेधनाथ कहते हैं, ''सरकार इस आंदोलन को घटिया तरह से हैंडल कर रही है, जो दरार पैदा करने की कोशिश की, वो भी विफल रही, जिसमें कुछ नेता लोगों को बुलाया और कुछ लोगों को नहीं बुलाया. इससे किसान नेताओं में इन पर और भी गंभीर शक पैदा हो गए हैं."
मेधनाथ आगे कहते हैं, ''यह मांग तो है कि आप इन कानूनों को रद्द कर दें, एमएसपी को कानून में लिख दें. लेकिन जो प्रोटेस्ट का हैंडलिंग है जैसे मीडिया द्वारा खालिस्तानी कहना और किसानों को भ्रमित किया जा रहा... बता रही है और आगे ऐसे नज़रिए को लाना कि इन्हें क़ानून पढ़ना नहीं आता."
शार्दूल को चर्चा में शामिल करते हुए अतुल कहते हैं,'' यह नीयत और हैडलाइन मैनेजमेंट की बात है मैं आपकी इस पर टिपणी जानना चाहूंगा, क्योंकि यह सरकार इसी तरह बहुत सारे आंदोलनों को अलग करने में सफल रही है तो इस एक आंदोलन से क्या उम्मीद है.''
शार्दूल कहते हैं, ''सरकार मीडिया मैनेजमेंट करने में विश्वास रखती है, इस बात से झुठलाया नहीं जा सकता. हमने पिछली बार भी बात की थी, जो अभी भी चल रहा है. और मेरे नज़रिए से जो मुझे लग रहा था कि सरकार का कुछ ज्यादा नहीं बिगड़ेगा, थोड़ा बहुत होगा जो होगा, क्योंकि पंजाब में ज्यादा उनका कोई स्टेक है नहीं. लेकिन इस सरकार को पहली बार इतना अथक विरोध झेलना पड़ा है. प्रदर्शन करने वाले न थक रहे हैं और न ही सरकार को कोई रास्ता मिल रहा है कि इनको एक कटघरे में खड़ा कर सकें.''
क्या देखा पढ़ा और सुना जाए.
निधि सुरेश
द ऑरिजिन्स ऑफ़ टोटिटेरियनिज़्म - हाना आरेंट
शार्दूल कात्यायन
न्यूज़लॉन्ड्री हिंदी पर अनुमेहा यादव की रिपोर्ट
मेघनाद एस
किसान प्रोटेस्ट पर वॉक थ्रू (पकमिंग)
द बिगनिंग ऑफ़ द एन्ड ऑफ़ पान्डेमिक
द पैसेज ट्राइलॉजी - जस्टिन क्रोनिन
अतुल चौरसिया
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