डिजिटल मीडिया पर लगाम लगाने के लिए एक और कदम

केंद्र ने कहा- कोर्ट चाहे तो डिजिटल मीडिया को लेकर कानून बनाए या कानून बनाने के लिए इसे सरकार पर छोड़ दे.

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नौ नवम्बर को केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर का ऑनलाइन न्यूज पोर्टलों, ऑनलाइन कंटेंट प्रोवाइडरों से जुड़ा एक नोटिफिकेशन जारी किया. जिसके तहत, ऑनलाइन फिल्मों के साथ ऑडियो-विज़ुअल कार्यक्रम, ऑनलाइन समाचार और करंट अफेयर्स के कंटेंट सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत लाने का फैसला किया गया है.

इसके बाद केंद्र सरकार ने पहले की घोषणा के मुताबिक डिजिटल मीडिया में 26 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति को स्वीकृति भी दे दी. आदेश में कहा गया है कि इसे एक महीने के अंदर ही लागू किया जाएगा. बता दें कि इससे पहले केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा 18 सितंबर, 2019 को डिजिटल न्यूज मीडिया नें 26 फीसदी एफडीआई की इजाजत दी थी. 26 प्रतिशत एफडीआई केवल भारत में पंजीकृत या स्थित संस्थानों पर ही लागू होगा. साथ ही कंपनी का सीईओ भी भारतीय नागरिक होना चाहिए.

आइबी मंत्रालय के नोटिस के मुताबिक, 26 फीसदी से कम एफडीआई वाली डिजिटल न्यूज संस्थाएं-कंपनी के ब्यौरे, अपना शेयर होल्डिंग का पैटर्न, डायरेक्टरों और शेयर धारकों के नाम और पते एक महीने के भीतर मंत्रालय को मुहैया करवाएं. 26 फीसदी से ज्यादा एफडीआई वाली फर्म को भी यही ब्यौरे मुहैया कराने होंगे और साथ ही उन्हें 15 अक्टूबर, 2021 तक विदेशी निवेश 26 फीसदी पर लाने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे.

दरअसल पिछले कुछ दिनों से केंद्र सरकार की तरफ से ऐसी बातें सामने आती रहीं हैं जिससे जाहिर होता है कि कहीं सरकार ऑनलाइन मीडिया पर कुछ कंट्रोल करना तो नहीं चाहती है.

इसके कुछ ताजा उदाहरण देखने को मिले हैं. 21 सितम्बर को भी जब सुदर्शन टीवी के यूपीएससी मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नया हलफनामा दाखिल किया था तो इसमें भी सरकार ने कहा था कि वेब आधारित डिजिटल मीडिया को पहले कंट्रोल करना होगा, तभी टीवी चैनलों पर नियंत्रण किया जा सकता है. केंद्र ने कहा कि कोर्ट चाहे तो डिजिटल मीडिया को लेकर कानून बनाए या कानून बनाने के लिए इसे सरकार पर छोड़ दे.

इससे पहले साल 2019 में सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि मोदी सरकार मीडिया की आजादी पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाना चाहती. लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए कुछ न कुछ नियम कानून जरूर होने चाहिए क्योंकि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं फिल्मों के लिए पहले से नियम हैं.

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सरकार के इस कदम पर इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि इसका मीडिया की स्वतंत्रता और उसकी सृजन की आजादी पर दूरगामी असर पड़ सकता है. इन आशंकाओं को तब और बल मिला जब अधिसूचना के एक हफ्ते बाद ही केंद्र ने विस्तृत दिशा निर्देश जारी कर डिजिटल मीडिया संस्थानों से कहा कि वे अपने यहां एफडीआइ 26 फीसद तक सीमित करने वाली नीति का अनुपालन पक्का करें. 24 नवंबर को जब अचानक हफपोस्ट इंडिया ने अपने पेज पर यह लिख कर सबको चौंका दिया कि अब हफपोस्ट इंडिया कोई भी कंटेंट पब्लिश नहीं करेगा. तो इस क्षेत्र से जुड़े लोगों का मानना था कि सरकार की ताजा एफडीआई पॉलिसी कहीं न कहीं इसकी जिम्मेदार हो सकती है.

हमने इस क्षेत्र से जुड़े कुछ लोगों से बात कर जानने की कोशिश की कि सरकार के ये फैसले फिलहाल या आगे इस क्षेत्र पर कैसे प्रभाव डाल सकते हैं.

सरकार के इस निर्णय पर वरिष्ठ पत्रकार ऑनिंद्यो चक्रवर्ती कहते हैं, “मुझे लगता है कि इस रेगयूलेशन की जरूरत तो है लेकिन इसमें सरकार या मिनिस्ट्री का कंट्रोल नहीं होना चाहिए. क्योंकि वह इसका मिस यूज भी कर सकती है. ये सरकार के अधीन नहीं बल्कि किसी स्वतंत्र इंस्टीटयूशन जो पार्लियामेंट को रिपोर्ट करता हो, उसके अधीन होना चाहिए. और ये मल्टी इंस्टीटयूशन हो जिसमें सिविल सोसाइटी जैसे लोग शामिल हों और जो भी पार्टी पावर में हो उसका रोल इसमें नहीं होना चाहिए. क्योंकि कोई भी सरकार अगर रेग्यूलेट करती है तो वह निष्पक्ष रेग्यूलेट नहीं करती.

ऑनिंद्यो आगे कहते हैं, “मुझे लगता है कि इसमें ओटीटी और न्यूज वेबसाइट के बीच एक अंतर भी करना चाहिए. क्योंकि ये दोनों अलग- अलग चीजें हैं. और दुनियाभर में अब सेंशरशिप की जगह रेटिंग किया जाता है. तो ये रेगयूलेशन तो एक तरीके से कंट्रोल के लिए ही किया जा रहा है. अगर आप देखें तो इस समय देश में बड़ी संख्या में न्यूज वेबसाइट बन गई हैं, जो फेक न्यूज फैलाते हैं. और देखें तो उनपर तो कोई रोक नहीं है बल्कि जो असली न्यूज दिखाते हैं, उन पर कहीं न कहीं कंट्रोल किया जा रहा है. जैसे अगर 26% एफडीआई की बात हो तो उससे किसी भी वेबसाइट के रिसोर्स पर फर्क पड़ सकता है. क्योंकि अब सरकार को एक डर ये भी है कि आजकल वेबसाइट की रीच बहुत तेजी से बढ़ रही है.”

वहीं ऑल्ट न्यूज के फाउंडर प्रतीक सिन्हा कहते हैं, “अगर हम अपनी बात करें तो हम पर तो इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है क्योंकि हम नॉन प्रोफिट ऑर्गेनाइजेशन हैं. बाकि अगर हफपोस्ट जैसे बंद हो गया तो उस कॉन्टेंस्ट में कहा जा सकता है कि सरकार की इन नीतियों का न्यूज वेबसाइट पर कहीं न कहीं फर्क पड़ेगा.”

दरअसल अब तक देश में डिजिटल कंटेंट के नियमन के लिए कोई स्वायत्त संस्था या कानून नहीं था. हालांकि पिछले महीने दिल्ली में डिजिटल क्षेत्र में पत्रकारिता और समाचार संस्थाओं के प्रतिनिधित्व, उनके हितों की रक्षा और डिजिटल क्षेत्र में अच्छी पत्रकारिता को सभी प्रकार से पोषित करने के लिए “डिजीपब न्यूज़ इंडिया” नामक संस्था की आधिकारिक रूप से घोषणा हुई. जिसमें 11 डिजिटल मीडिया संस्थान शामिल हैं.

मीडियानामा के फाउंडर निखिल बाबा से भी हमने इस बारे में जानने की कोशिश की. बाबा कहते हैं, “पहली बात तो ये कि सरकार ने जो ये निर्णय लिया है वह ज्यादातर न्यूज वेबसाइटों के कंसल्टेंट के बिना लिया गया है. शुरू में जावड़ेकर जी ने बोला था कि ये ऑनलाइन मीडिया को बूसट करने के लिए एफडीआई लिमिट 26 प्रतिशत की जा रही है. जबकि सच्चाई ये है कि पहले तो 100 प्रतिशत था और अब घट गया है. और देखिए ये ऑनलाइन मीडिया काफी मुश्किल बिजनेस होता है क्योंकि विज्ञापन आधारित में तो काफी यूजर होते हैं. जबकि यहां छोटी और नई वेबसाइट पर भी एफडीआई जैसी पाबंदियां लगा देंगे तो वह तो बंद ही हो जाएगा. तो बेसिकली ये जो पॉलिसी लाई गई है वह भारतीय ऑनलाइन मीडिया में बाधा लगाने के लिए है.”

बाबा आगे कहते हैं, “क्योंकि एफडीआई सरकार के अपरूवल के बिना तो आएगी नहीं. तो इससे सरकार को मीडिया पर ज्यादा कंट्रोल करने में भी आसानी होगी. क्योंकि अगर आप किसी की फंडिंग कंट्रोल करेंगे तो आप उनकी काम करने की योग्यता को कंट्रोल करेंगे. पैसे कम होंगे, तो आप कम लोगों को हायर करेंगे. ये एफडीआई कंट्रोल करके तो एक अतिरिक्त पाबंदी लगाई है. जिसकी कोई न तो जरूरत है और न ही कोई रीजन है बल्कि ये मीडिया कंट्रोल करने का एक तरीका है. और हफपोस्ट का बंद होना कहीं न कहीं उसी का एक कारण है. और कुछ महीने पहले वीसी सर्किल भी एचटी ने खरीदा था तो ये एफडीआई की वजह से ही है. अब एक बिक गया, एक बंद हो गया और आगे क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता.”

“पिछले साल जो ये निर्णय सरकार ने लिया था, क्यू लिया था ये न तब लोगों की समझ में आया था और न ही अब आ रहा है. न ही सरकार की तरफ ऐसी कोई टिप्पणी आई है कि ये क्यूं है. रही बात फेक न्यूज की तो उसके लिए तो देश में आज भी मानहानि और अन्य कानून हैं. जो गलत हो रहा है उस पर कार्यवाही होनी चाहिए. सॉलिसिटर जनरल जो सुप्रीम कोर्ट में दलील दे रहे थे वह तो एक बहाना है पाबंदियां लगाने का. फेक टीवी वालों पर तो कुछ कर नहीं पा रहे, ऑनलाइन पर पाबंदियां लगाना चाहते हैं,” बाबा ने कहा.

डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन के वाइस प्रेसीडेंट प्रबीर पुरकायस्थ इस सारे मसले पर कहते हैं, “मेरे हिसाब से इसके जरिए कुछ न्यूज कंटेट पर बंदिश लगाने की सोच सरकार में है. ये इससे भी साबित होता है कि सुदर्शन टीवी के केस में जो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविड फाइल किया है उसमें करीब-करीब ये साफ कहा है कि हमें डिजिटल प्लेटफॉर्म के कंटेंट को रोकने की या बंदिश की जरूरत है ना कि टीवी और प्रिंट मीडिया पर. इसके बाद जब ये सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय में लाया जाता है तो उससे स्पष्ट जाहिर होता है कि ये कंटेंट पर पाबंदी के बारे में सोच रहे हैं.”

“दूसरे जो एफडीआई पर जो बंदिश लगाई हैं उसका असर न्यूज प्लेटफॉर्म पर जरूर पड़ेगा. क्योंकि आजकल जो सरकार की आलोचना डिजिटल प्लेटफॉर्म पर काफी हुई है उसी के खिलाफ ये एक कदम है. अभी जावड़ेकर ने भी जो कहा उससे यही लगता है कि इसे कुछ कंट्रोल करना चाहते हैं. अब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सरकार क्या करेगी ये तो आगे ही पता चलेगा, लेकिन अभी जो ये विदेशी निवेश की बात है उसमें तो मुझे यही लगता है कि सरकार ने विदेशी प्लेटफॉर्म का तो एक एडवांटेज तैयार कर लिया लेकिन देशी प्लेटफॉर्म पर बहुत सी बंदिशें आने वाली हैं,”

प्रबीर कहते हैं, “रही बात फेक न्यूज रोकने की तो हम भी ये मानते हैं कि डिजिटल में सेल्फ रेगुलेशन होना चाहिए. लेकिन सवाल ये है कि जो टीवी पर सबसे ज्यादा फेक न्यूज फैलाते हैं, चाहे रिपब्लिक हो या सुदर्शन, उस पर सरकार का रवैया एक जैसा रहता है, उस पर सवाल लाजिमी है. उससे तो यही लगता है कि सरकार का इरादा पूरी तरह ऑनेस्ट नहीं है.”

हमने ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स और अमेजन से भी इस बारे में उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने हमें ई-मेल पर अपने सवाल भेजने को कहा. नेटफ्लिक्स की कॉरपोरेट एंड पॉलिसी कम्यूनिकेशन लीड करुणा गुलयानी ने हमारे ई-मेल के जवाब में लिखा कि वे इस बारे में कोई भी कमेंट शेयर नहीं करेंगे. वहीं अमेजन की तरफ से अभी तक 30 घंटे बाद भी हमारे ई-मेल का कोई जवाब नहीं दिया गया था. अगर उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया आती है तो स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा.

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इसके बाद केंद्र सरकार ने पहले की घोषणा के मुताबिक डिजिटल मीडिया में 26 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति को स्वीकृति भी दे दी. आदेश में कहा गया है कि इसे एक महीने के अंदर ही लागू किया जाएगा. बता दें कि इससे पहले केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्रालय द्वारा 18 सितंबर, 2019 को डिजिटल न्यूज मीडिया नें 26 फीसदी एफडीआई की इजाजत दी थी. 26 प्रतिशत एफडीआई केवल भारत में पंजीकृत या स्थित संस्थानों पर ही लागू होगा. साथ ही कंपनी का सीईओ भी भारतीय नागरिक होना चाहिए.

आइबी मंत्रालय के नोटिस के मुताबिक, 26 फीसदी से कम एफडीआई वाली डिजिटल न्यूज संस्थाएं-कंपनी के ब्यौरे, अपना शेयर होल्डिंग का पैटर्न, डायरेक्टरों और शेयर धारकों के नाम और पते एक महीने के भीतर मंत्रालय को मुहैया करवाएं. 26 फीसदी से ज्यादा एफडीआई वाली फर्म को भी यही ब्यौरे मुहैया कराने होंगे और साथ ही उन्हें 15 अक्टूबर, 2021 तक विदेशी निवेश 26 फीसदी पर लाने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे.

दरअसल पिछले कुछ दिनों से केंद्र सरकार की तरफ से ऐसी बातें सामने आती रहीं हैं जिससे जाहिर होता है कि कहीं सरकार ऑनलाइन मीडिया पर कुछ कंट्रोल करना तो नहीं चाहती है.

इसके कुछ ताजा उदाहरण देखने को मिले हैं. 21 सितम्बर को भी जब सुदर्शन टीवी के यूपीएससी मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नया हलफनामा दाखिल किया था तो इसमें भी सरकार ने कहा था कि वेब आधारित डिजिटल मीडिया को पहले कंट्रोल करना होगा, तभी टीवी चैनलों पर नियंत्रण किया जा सकता है. केंद्र ने कहा कि कोर्ट चाहे तो डिजिटल मीडिया को लेकर कानून बनाए या कानून बनाने के लिए इसे सरकार पर छोड़ दे.

इससे पहले साल 2019 में सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि मोदी सरकार मीडिया की आजादी पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाना चाहती. लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए कुछ न कुछ नियम कानून जरूर होने चाहिए क्योंकि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं फिल्मों के लिए पहले से नियम हैं.

सरकार के इस कदम पर इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि इसका मीडिया की स्वतंत्रता और उसकी सृजन की आजादी पर दूरगामी असर पड़ सकता है. इन आशंकाओं को तब और बल मिला जब अधिसूचना के एक हफ्ते बाद ही केंद्र ने विस्तृत दिशा निर्देश जारी कर डिजिटल मीडिया संस्थानों से कहा कि वे अपने यहां एफडीआइ 26 फीसद तक सीमित करने वाली नीति का अनुपालन पक्का करें. 24 नवंबर को जब अचानक हफपोस्ट इंडिया ने अपने पेज पर यह लिख कर सबको चौंका दिया कि अब हफपोस्ट इंडिया कोई भी कंटेंट पब्लिश नहीं करेगा. तो इस क्षेत्र से जुड़े लोगों का मानना था कि सरकार की ताजा एफडीआई पॉलिसी कहीं न कहीं इसकी जिम्मेदार हो सकती है.

हमने इस क्षेत्र से जुड़े कुछ लोगों से बात कर जानने की कोशिश की कि सरकार के ये फैसले फिलहाल या आगे इस क्षेत्र पर कैसे प्रभाव डाल सकते हैं.

सरकार के इस निर्णय पर वरिष्ठ पत्रकार ऑनिंद्यो चक्रवर्ती कहते हैं, “मुझे लगता है कि इस रेगयूलेशन की जरूरत तो है लेकिन इसमें सरकार या मिनिस्ट्री का कंट्रोल नहीं होना चाहिए. क्योंकि वह इसका मिस यूज भी कर सकती है. ये सरकार के अधीन नहीं बल्कि किसी स्वतंत्र इंस्टीटयूशन जो पार्लियामेंट को रिपोर्ट करता हो, उसके अधीन होना चाहिए. और ये मल्टी इंस्टीटयूशन हो जिसमें सिविल सोसाइटी जैसे लोग शामिल हों और जो भी पार्टी पावर में हो उसका रोल इसमें नहीं होना चाहिए. क्योंकि कोई भी सरकार अगर रेग्यूलेट करती है तो वह निष्पक्ष रेग्यूलेट नहीं करती.

ऑनिंद्यो आगे कहते हैं, “मुझे लगता है कि इसमें ओटीटी और न्यूज वेबसाइट के बीच एक अंतर भी करना चाहिए. क्योंकि ये दोनों अलग- अलग चीजें हैं. और दुनियाभर में अब सेंशरशिप की जगह रेटिंग किया जाता है. तो ये रेगयूलेशन तो एक तरीके से कंट्रोल के लिए ही किया जा रहा है. अगर आप देखें तो इस समय देश में बड़ी संख्या में न्यूज वेबसाइट बन गई हैं, जो फेक न्यूज फैलाते हैं. और देखें तो उनपर तो कोई रोक नहीं है बल्कि जो असली न्यूज दिखाते हैं, उन पर कहीं न कहीं कंट्रोल किया जा रहा है. जैसे अगर 26% एफडीआई की बात हो तो उससे किसी भी वेबसाइट के रिसोर्स पर फर्क पड़ सकता है. क्योंकि अब सरकार को एक डर ये भी है कि आजकल वेबसाइट की रीच बहुत तेजी से बढ़ रही है.”

वहीं ऑल्ट न्यूज के फाउंडर प्रतीक सिन्हा कहते हैं, “अगर हम अपनी बात करें तो हम पर तो इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है क्योंकि हम नॉन प्रोफिट ऑर्गेनाइजेशन हैं. बाकि अगर हफपोस्ट जैसे बंद हो गया तो उस कॉन्टेंस्ट में कहा जा सकता है कि सरकार की इन नीतियों का न्यूज वेबसाइट पर कहीं न कहीं फर्क पड़ेगा.”

दरअसल अब तक देश में डिजिटल कंटेंट के नियमन के लिए कोई स्वायत्त संस्था या कानून नहीं था. हालांकि पिछले महीने दिल्ली में डिजिटल क्षेत्र में पत्रकारिता और समाचार संस्थाओं के प्रतिनिधित्व, उनके हितों की रक्षा और डिजिटल क्षेत्र में अच्छी पत्रकारिता को सभी प्रकार से पोषित करने के लिए “डिजीपब न्यूज़ इंडिया” नामक संस्था की आधिकारिक रूप से घोषणा हुई. जिसमें 11 डिजिटल मीडिया संस्थान शामिल हैं.

मीडियानामा के फाउंडर निखिल बाबा से भी हमने इस बारे में जानने की कोशिश की. बाबा कहते हैं, “पहली बात तो ये कि सरकार ने जो ये निर्णय लिया है वह ज्यादातर न्यूज वेबसाइटों के कंसल्टेंट के बिना लिया गया है. शुरू में जावड़ेकर जी ने बोला था कि ये ऑनलाइन मीडिया को बूसट करने के लिए एफडीआई लिमिट 26 प्रतिशत की जा रही है. जबकि सच्चाई ये है कि पहले तो 100 प्रतिशत था और अब घट गया है. और देखिए ये ऑनलाइन मीडिया काफी मुश्किल बिजनेस होता है क्योंकि विज्ञापन आधारित में तो काफी यूजर होते हैं. जबकि यहां छोटी और नई वेबसाइट पर भी एफडीआई जैसी पाबंदियां लगा देंगे तो वह तो बंद ही हो जाएगा. तो बेसिकली ये जो पॉलिसी लाई गई है वह भारतीय ऑनलाइन मीडिया में बाधा लगाने के लिए है.”

बाबा आगे कहते हैं, “क्योंकि एफडीआई सरकार के अपरूवल के बिना तो आएगी नहीं. तो इससे सरकार को मीडिया पर ज्यादा कंट्रोल करने में भी आसानी होगी. क्योंकि अगर आप किसी की फंडिंग कंट्रोल करेंगे तो आप उनकी काम करने की योग्यता को कंट्रोल करेंगे. पैसे कम होंगे, तो आप कम लोगों को हायर करेंगे. ये एफडीआई कंट्रोल करके तो एक अतिरिक्त पाबंदी लगाई है. जिसकी कोई न तो जरूरत है और न ही कोई रीजन है बल्कि ये मीडिया कंट्रोल करने का एक तरीका है. और हफपोस्ट का बंद होना कहीं न कहीं उसी का एक कारण है. और कुछ महीने पहले वीसी सर्किल भी एचटी ने खरीदा था तो ये एफडीआई की वजह से ही है. अब एक बिक गया, एक बंद हो गया और आगे क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता.”

“पिछले साल जो ये निर्णय सरकार ने लिया था, क्यू लिया था ये न तब लोगों की समझ में आया था और न ही अब आ रहा है. न ही सरकार की तरफ ऐसी कोई टिप्पणी आई है कि ये क्यूं है. रही बात फेक न्यूज की तो उसके लिए तो देश में आज भी मानहानि और अन्य कानून हैं. जो गलत हो रहा है उस पर कार्यवाही होनी चाहिए. सॉलिसिटर जनरल जो सुप्रीम कोर्ट में दलील दे रहे थे वह तो एक बहाना है पाबंदियां लगाने का. फेक टीवी वालों पर तो कुछ कर नहीं पा रहे, ऑनलाइन पर पाबंदियां लगाना चाहते हैं,” बाबा ने कहा.

डिजीपब न्यूज इंडिया फाउंडेशन के वाइस प्रेसीडेंट प्रबीर पुरकायस्थ इस सारे मसले पर कहते हैं, “मेरे हिसाब से इसके जरिए कुछ न्यूज कंटेट पर बंदिश लगाने की सोच सरकार में है. ये इससे भी साबित होता है कि सुदर्शन टीवी के केस में जो सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविड फाइल किया है उसमें करीब-करीब ये साफ कहा है कि हमें डिजिटल प्लेटफॉर्म के कंटेंट को रोकने की या बंदिश की जरूरत है ना कि टीवी और प्रिंट मीडिया पर. इसके बाद जब ये सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय में लाया जाता है तो उससे स्पष्ट जाहिर होता है कि ये कंटेंट पर पाबंदी के बारे में सोच रहे हैं.”

“दूसरे जो एफडीआई पर जो बंदिश लगाई हैं उसका असर न्यूज प्लेटफॉर्म पर जरूर पड़ेगा. क्योंकि आजकल जो सरकार की आलोचना डिजिटल प्लेटफॉर्म पर काफी हुई है उसी के खिलाफ ये एक कदम है. अभी जावड़ेकर ने भी जो कहा उससे यही लगता है कि इसे कुछ कंट्रोल करना चाहते हैं. अब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सरकार क्या करेगी ये तो आगे ही पता चलेगा, लेकिन अभी जो ये विदेशी निवेश की बात है उसमें तो मुझे यही लगता है कि सरकार ने विदेशी प्लेटफॉर्म का तो एक एडवांटेज तैयार कर लिया लेकिन देशी प्लेटफॉर्म पर बहुत सी बंदिशें आने वाली हैं,”

प्रबीर कहते हैं, “रही बात फेक न्यूज रोकने की तो हम भी ये मानते हैं कि डिजिटल में सेल्फ रेगुलेशन होना चाहिए. लेकिन सवाल ये है कि जो टीवी पर सबसे ज्यादा फेक न्यूज फैलाते हैं, चाहे रिपब्लिक हो या सुदर्शन, उस पर सरकार का रवैया एक जैसा रहता है, उस पर सवाल लाजिमी है. उससे तो यही लगता है कि सरकार का इरादा पूरी तरह ऑनेस्ट नहीं है.”

हमने ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स और अमेजन से भी इस बारे में उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने हमें ई-मेल पर अपने सवाल भेजने को कहा. नेटफ्लिक्स की कॉरपोरेट एंड पॉलिसी कम्यूनिकेशन लीड करुणा गुलयानी ने हमारे ई-मेल के जवाब में लिखा कि वे इस बारे में कोई भी कमेंट शेयर नहीं करेंगे. वहीं अमेजन की तरफ से अभी तक 30 घंटे बाद भी हमारे ई-मेल का कोई जवाब नहीं दिया गया था. अगर उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया आती है तो स्टोरी को अपडेट कर दिया जाएगा.

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