लव जिहाद की राजनीति को हवा देने वाले नेताओं का एक चेहरा यह है कि उन्हें टीना डाबी और अतहर आमिर की शादी में फोटो भी खिंचवाना है.
पिछले साल मई में रिपब्लिक चैनल पर हैदराबाद से एक स्टिंग चला था. आप यूट्यूब पर इसकी डिबेट निकाल कर देखिए, सर फट जाएगा. स्टिंग में तीन लड़कों को आईएसआई के लिए काम करने वाला बताया गया था. जब पुलिस ने देशद्रोह का केस दर्ज किया था तब इसे चैनल ने अपनी कामयाबी के रूप में पेश किया ही होगा. लेकिन इंडियन एक्सप्रेस के पेज नंबर 8 पर ख़बर है कि चैनल ने स्टिंग के ओरिजिनल टेप नहीं दिए. इसलिए पुलिस केस बंद करने जा रही है.
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Contributeजबकि एक्सप्रेस के अनुसार उस स्टिंग में तीनों लड़के कथित रूप से सीरिया न जाने पर यहीं कुछ करने की बात कर रहे हैं. राष्ट्रवाद का इतना फर्ज़ीवाड़ा करने के बाद आख़िर रिपब्लिक चैनल ने टेप क्यों नही दिया, ताकि उन्हें सज़ा मिल सके? मगर स्टोरी के अंत में रिपब्लिक टीवी का बयान छपा है जिसमें चैनल ने इस बात से इंकार किया है कि उसकी तरफ से बिना संपादित टेप नहीं दिए गए.
रिपब्लिक टीवी तो खम ठोंक कर बोल रहा है कि सारा टेप पुलिस को दे दिया गया था. पुलिस प्रमुख मोहंती का बयान छपा है कि चैनल की तरफ से संपादित फुटेज दिए गए हैं. अब किसी को तो फैसला करना चाहिए कि दोनों में से कौन सही बोल रहा है. क्या इसमें प्रेस काउंसिल आफ इंडिया या एनबीए की कोई भूमिका बनती है?
पूरी दुनिया के सामने अब्दुल्ला बासित, अब्दुल हन्नान क़ुरैशी और सलमान को आतंकवादी के रूप में पेश किया गया. इन तीनों के परिवार पर क्या बीती होगी और आप ये डिबेट देखते हुए कितने ख़ूनी और सांप्रदायिक हुए होंगे कि मुसलमान ऐसे होते हैं, वैसे होते हैं.
एसआईटी ने रिपब्लिक चैनल के इस स्टिंग पर इन तीनों को पूछताछ के लिए बुलाया था और केस किया था. आप आज के इंडियन एक्सप्रेस में पूरी स्टोरी पढ़ सकते हैं. कूड़ा हिन्दी अख़बारों को ख़रीदने में आप जैसे दानी ही पैसे बर्बाद कर सकते हैं, जबकि उनमें इस तरह की स्टोरी होती भी नहीं और होगी भी नहीं.
2015 बैच की आईएएस टॉपर डाबी और अख़्तर आमिर ख़ान को बधाई. इस दौर में इस हिन्दू-मुस्लिम विवाह की तस्वीर मिसाल से कम नहीं है. दिल्ली में दोनों ने प्रीतिभोज का आयोजन किया जिसमें उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी आए और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद भी. लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन भी थीं.
कभी रविशंकर प्रसाद के पुराने बयान निकालिए, वो कहा करते थे कि लव जिहाद के नाम पर आतंकी गतिविधियां चल रही हैं. संघ के प्रवक्ता लव जिहाद को लेकर एक से एक थ्योरी पेश करते थे. टीवी चैनलों ने इस पर लगातार बहस कर आम जनता को ख़ूनी और सांप्रदायिक मानसिकता में बदला. और अब उनके नेता हिन्दू मुस्लिम शादी में घूम घूम पर आलू दम और पूड़ी खा रहे हैं. समाज को ज़हर देकर, खुद रसगुल्ला चांप रहे हैं.
हादिया पर क्या बीती होगी? अकेली लड़की नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी से लेकर गोदी मीडिया की सांप्रदायिकता से लड़ गई. हादिया इस वक्त प्रेम की सबसे बड़ी प्रतीक है. उसका कद लैला मजनू से भी ऊपर है. उस हादिया को लेकर मुद्दा गरमाने में किसका हित सधा. आप जानते हैं. ग़रीब हादिया ख़ुद से लड़ गई. संभ्रांत आमिर और डाबी ने इन लोगों को बुलाकर खाना खिलाया. फोटो खिंचाया. लव जिहाद एक फोकट मुद्दा था आपको चंद हत्याओं के समर्थन में खड़ा करने के लिए.
इस प्रक्रिया में लव जिहाद के नाम पर आप दर्शक उल्लू बने हैं. 2014 से 2018 तक टीवी पर हिन्दू-मुस्लिम डिबेट चला है. अब धीरे धीरे वो फुस्स होता जा रहा है. बीजेपी के बड़े नेता अब अच्छी छवि बना रहे हैं. हिन्दू मुस्लिम शादी को मान्यता दे रहे हैं. इसके लिए उन्हें बधाई. इस लव जिहाद के कारण लाखों दर्शकों में एक समुदाय के प्रति भय का विस्तार किया गया और आप भी हत्यारी होती राजनीति के साथ खड़े हो गए.
इन चार सालों में आप विपक्ष की भूमिका देखिए. लगता था काठ मार गया हो. कभी खुलकर सामने नहीं आया. विपक्ष भी हिन्दू सांप्रदायिकता के इस बड़े से केक से छोटा टुकड़ा उठा कर खाने की फिराक़ में था. कांग्रेस की तो बोलती बंद हो गई थी. अभी भी कांग्रेस ने कठुआ बलात्कार पीड़िता के आरोपियों को बचाने वालों को पार्टी से नहीं निकाला है. कांग्रेस ने कभी सांप्रदायिकता से ईमानदारी से नहीं लड़ा. न बाहर, न अपने भीतर.
सांप्रदायिकता से इसलिए मत लड़िए कि कांग्रेस-बीजेपी करना है. इनके आने जाने से यह लड़ाई कभी अंजाम पर नहीं पहुंचती है. भारत इस फटीचर मसले पर और कितना चुनाव बर्बाद करेगा. आपकी आंखों के सामने आपके ही नागरिकों के एक धार्मिक समुदाय का राजनीतिक प्रतिनिधित्व समाप्त कर दिया गया. मुसलमानों को टिकट देना गुनाह हो गया है. ऐसे में आप इस लड़ाई के लिए क्यों और किस पर भरोसा कर रहे हैं?
बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दल के भीतर सांप्रदायिक मुद्दों के लिए असलहा रखे हैं. या तो वे चुप रहकर सांप्रदायिकता करते हैं या फिर खुलेआम. बिहार के औरंगाबाद में कांग्रेसी विधायक की भूमिका सामने आई. अभी तक पार्टी ने कोई कार्रवाई नहीं की है. क्या पार्टी ने अपनी स्थिति साफ की है?
मैं ख़बरों में कम रहता हूं, आप बताइयेगा, ऐसा हुआ हो तो. उत्तराखंड के अगस्त्यमुनि में अफवाह के आधार पर मुसलमानों की दुकानें जला दी गईं. क्या कांग्रेस और बीजेपी का नेता गया, उस भीड़ के ख़िलाफ? जबकि वहीं के हिन्दू दुकानदारों ने आग बुझाने में मदद की. कुल मिलाकर ज़मीन पर सांप्रदायिकता से कोई नहीं लड़ रहा है.
इसलिए आप सांप्रदायिकता से लड़िए क्योंकि इसमें आप मारे जाते हैं. आपके घर जलते हैं. हिन्दुओं के ग़रीब बच्चे हत्यारे बनते हैं और ग़रीब मुसलमानों का घर और दुकान जलता है. इस ज़हर का पता लगाते रहिए और कहीं भी किसी भी नेता में, पार्टी में इसके तत्व दिखे तो आप उसका विरोध कीजिए.
चाहे आप हिन्दू हों या मुसलमान, अगर आपने दोनों दलों के भीतर सांप्रदायिक भीड़ या मानसिकता बनने दी, चुनावी हार जीत के नाम पर बर्दाश्त किया, उस पर चुप रहे तो यह भीड़ एक दिन आपको भी खींच कर ले जाएगी. आपको मार देने के लिए या फिर आपका इस्तेमाल किसी को मार देने में करने के लिए.
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