28 मई को, सुप्रीम कोर्ट में सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें एक व्हाट्सएप संदेश से जस का तस उठाई गई एक कहानी है.
28 मई को, सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के कारण देशभर में फंसे मज़दूरों की दुर्दशा पर स्वत:संज्ञान लेकर सुनवाई की. इस सुनवाई के दौरान, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्थिति से निपटने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों को पेश किया. उन्होंने तर्क दिया कि केंद्र बहुत कुछ कर रहा है, लेकिन कुछ ‘कयामत के पैगंबर’ हैं जो नकारात्मकता फैलाते रहते हैं. उन्होंने ये भी कहा कि “सोफे में धंस कर बैठे बुद्धिजीवी” राष्ट्र के प्रयासों को मानने के लिए तैयार नहीं हैं.
The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.
Contributeइसके बाद सॉलिसिटर जनरल ने पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता पत्रकार केविन कार्टर की सूडान में अकाल के दौरान खींची गई गिद्ध और बच्चे की तस्वीर की कहानी सुनाई– “1983 में एक फ़ोटोग्राफ़र सूडान गया. वहां पर उसे एक दहशतज़दा बच्चा मिला. वहीं पर एक गिद्ध बच्चे के मरने का इंतज़ार कर रहा था.
उसने वो तस्वीर कैमरे में कैद की और वो न्यूयॉर्क टाइम्स में पब्लिश हुई. इस फ़ोटो के लिए फ़ोटोग्राफ़र को पुलित्ज़र पुरस्कार मिला. उसने चार महीने बाद आत्महत्या कर ली. एक पत्रकार ने उससे पूछा था– उस बच्चे का क्या हुआ? उसने कहा कि मुझे नहीं पता. मुझे घर वापस लौटना था. तब रिपोर्टर ने दूसरा सवाल पूछा– वहां पर कितने गिद्ध थे? फ़ोटोग्राफ़र ने जवाब दिया– एक. रिपोर्टर ने कहा– नहीं, वहां पर दो गिद्ध थे. दूसरे गिद्ध के हाथ में कैमरा था…”
ऑल्ट न्यूज़ ने सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान मौजूद एक वकील से बात की. उन्होंने बताया कि इस वर्ज़न के बारे में लाइव लॉ की रिपोर्टिंग एकदम सही है.
हमें पता चला कि सॉलिसिटर जनरल ने जो कहानी सुप्रीम कोर्ट में सुनाई ती, वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थकों के बीच व्हॉट्सऐप पर पिछले एक हफ्ते से घूम रही थी. सरकार की किसी भी तरह की आलोचना को चुप कराने के इरादे से, इस मेसेज के जरिए केविन कार्टर की कहानी से लिंक जोड़ने की कोशिश की गई और प्रवासी मज़दूरों की दुर्दशा को बताने वालों की तुलना गिद्धों से की गई. तुषार मेहता बस अकाल के साल में चूक कर गए लेकिन बाकी कहानी उन्होंने शब्दश: सुनाई.
ये हैरान करने वाली बात है कि भारत के सॉलिसिटर जनरल एक वायरल व्हॉट्सऐप मेसेज को देश की सर्वोच्च अदालत में शब्दश: क़ोट करते हैं.
भूख से मरते बच्चे और गिद्ध की कहानी अलग-अलग दावों के साथ दुनियाभर में वर्षों से वायरल होती रही है. इस तस्वीर की एक अलग कहानी का स्नोप्स ने 2008 में फ़ैक्ट-चेक किया था.
भूखे बच्चे और गिद्ध की तस्वीर, 1993 में सूडान में पड़े अकाल की सबसे प्रसिद्ध तस्वीरों में से एक मानी जाती है. केविन कार्टर दक्षिण अफ़्रीका के फ़ोटो पत्रकार थे. उन्होंने इस तस्वीर के लिए पुलित्ज़र अवॉर्ड जीतने के कुछ महीनों के बाद ही आत्महत्या कर ली थी.
ये तस्वीर पहली बार न्यूयॉर्क टाइम्स में 26 मार्च, 1993 को पब्लिश हुई थी. उस बच्चे का क्या हुआ, इस बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स से अनगिनत लोगों ने सवाल पूछे. 30 मार्च, 1993 को न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक एडिटर्स नोट लिखकर पूरा मामला स्पष्ट किया, “बहुत सारे पाठकों ने उस बच्ची के बारे में सवाल पूछा है. फ़ोटोग्राफ़र ने बताया कि बच्ची को इतना होश आ गया था कि गिद्ध को भगाए जाने के बाद वो चलने लगी थी. ये पता नहीं चला कि वो सेंटर तक पहुंच पाई या नहीं.”
कार्टर को इसके लिए कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा जिन्हें लगा कि कार्टर ने बच्चे की मदद करने की बजाय फ़ोटो खींचना ज़्यादा ज़रूरी समझा. केविन कार्टर की ज़िंदगी और मौत पर टाइम मैगज़ीन में छपी प्रोफ़ाइल के अनुसार, पुलित्ज़र को इसके लिए ‘लोकप्रियता के साथ मिलने वाली आलोचनात्मक चर्चा’ भी मिली. दक्षिण अफ़्रीका में कई पत्रकारों ने कार्टर के प्राइज़ को ‘आकस्मिक सफलता’ कहा और आरोप लगाया कि उसने उस तस्वीर के लिए सेटअप तैयार किया था. इस आर्टिकल में कहीं भी कार्टर और किसी दूसरे पत्रकार की बातचीत का कोई ज़िक्र नहीं है, जिसमें कार्टर को गिद्ध कहा गया था. इस बयान का सबसे नज़दीकी संदर्भ सेंट पीटर्सबर्ग (फ़्लोरिडा) टाइम्स के एक ओपिनियन आर्टिकल में मिलता है: “पीड़ा का सटीक फ़्रेम तैयार करने के लिए अपने लेंस को एडजस्ट करने वाला व्यक्ति दूसरा शिकारी ही हो सकता है. वहां पर मौज़ूद दूसरा गिद्ध.”
हालांकि, दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित तस्वीरों पर लिखे एक आर्टिकल में, टाइम मैगज़ीन ने लिखा है, “जैसे ही उसने बच्ची की तस्वीर खींची, एक गिद्ध वहां पर आकर बैठ गया. कथित तौर पर कार्टर को सलाह दी गई थी कि बीमारी की आशंका की वजह से पीड़ितों को न छूएं. इसलिए, उन्होंने मदद करने की बजाय, 20 मिनट तक इंतज़ार किया कि गिद्ध वहां से उड़कर चला जाए. लेकिन गिद्ध वहीं बैठा रहा. कार्टर ने तब गिद्ध को डराकर भगाया और बच्चे को सेंटर की तरफ़ जाते देखता रहा. उसके बाद, उसने एक सिगरेट सुलगाई, ईश्वर से बात की और रोने लगा.”
इसलिए, जैसा कि लगता है, कार्टर ने बच्चे की मदद के लिए गिद्ध को दूर भगा दिया था. वो बच्चे को उठा नहीं सकता था क्योंकि पत्रकारों को सलाह दी गई थी कि बीमारी की आशंका की वजह से अकाल पीड़ितों को न छूएं.
ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है, जिसमें ये दावा किया गया हो कि गिद्ध और बच्चे की तस्वीर ही कार्टर के मौत का कारण बनी हो. कार्टर का काम काफ़ी भावनात्मक था और उसमें हिंसा से बार-बार बचने के दौरान अक्सर जीवित रहने की स्पष्टता नहीं रहती थी. वो अपनी परेशानी दूर करने के लिए अक्सर ड्रग्स का सहारा लेता था. “एक बेटी की परवरिश करते हए कार्टर का कोई रोमांस ज़्यादा दिनों तक नहीं चला.” टाइम के आर्टिकल से उसकी अस्थिर पर्सनल लाइफ़ के बारे में पता चलता है. टाइम ने कार्टर का सुसाइड नोट भी पब्लिश किया, इसमें पैसों की दिक्कत का ज़िक्र है.
कार्टर ने लिखा था, “…उदास …बिना फ़ोन के …किराए के पैसे …बच्चे की देखभाल के पैसे …कर्ज़ के लिए पैसे …पैसा!!! …मैं हत्याओं और लाशों और क्रोध और दर्द… भूखे और ज़ख्मी बच्चों, पागलों से, कई बार पुलिस और हत्यारों को मारने वाले जल्लादों की, चौंधियाने वाली यादों से त्रस्त आ चुका हूं. अगर मैं भाग्यशाली हुआ तो मुझे केन के पास जाना है.”
केन कार्टर के सबसे अज़ीज़ दोस्तों में से एक था. 1994 में दक्षिण अफ़्रीका के टोकोज़ा में एक हिंसक घटना को कवर करने के दौरान गोली लगने से उसकी मौत हो गई थी. इसके लगभग एक महीने बाद कार्टर ने आत्महत्या कर ली थी. केन की मौत ने कार्टर को तोड़ कर रख दिया था. वो अपने दोस्तों से कहा करता था कि वो गोली केन को नहीं बल्कि उसे लगनी चाहिए थी. हिंसा और दुर्दशा को कवर करने की ड्यूटी उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ गई. कार्टर अक्सर अपने दोस्तों से कहा करता था, “इन कहानियों में शामिल हर एक फ़ोटोग्राफ़र प्रभावित हुआ है. आप हमेशा के लिए बदल जाते हैं. कोई ये काम की ख़ुद को खुश रखने के लिए नहीं करता है. ये काम करते रहना बहुत मुश्किल है.”
उसके अंतिम दिनों में उसका काम भी अच्छा नहीं चल रहा था. कार्टर के दोस्तों के मुताबिक़, उसने खुलेआम आत्महत्या के बारे में बात करना शुरू कर दिया था.
केविन कार्टर ने 27 जुलाई, 1994 को आत्महत्या कर ली.
ये बाद में पता चला कि जिस बच्चे को लड़की समझा गया था, वो असल में एक लड़का था और वो अकाल में ज़िंदा बचने में कामयाब रहा. हालांकि, 14 साल बाद मलेरिया के बुखार से उसकी मौत हो गई.
एक व्हॉट्सऐप फ़ॉरवर्ड के आधार पर, सॉलिसिटर जनरल ने केविन कार्टर को बच्चे की मौत के लिए ज़िम्मेदार बताया और दावा किया कि एक बातचीत में दूसरे पत्रकार ने केविन को गिद्ध कहा था. ऐसी किसी बातचीत का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है. इसके अलावा, कार्टर ने तस्वीर खींचने के बाद गिद्ध को भगाया था और वो बच्चा अकाल से बच गया था. पीगुरूज़ के एक आर्टिकल में भी इस भ्रामक जानकारी का प्रचार-प्रसार किया गया कि केविन कार्टर ने सूडान अकाल के ख़ौफ़ की वजह से आत्महत्या की थी.
(ऑल्टन्यूज़ डॉट इन से साभार)
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?