दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और घटनाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी.
इस हफ्ते दो घटनाएं एक साथ हुई. 14 अप्रैल को एबीपी न्यूज़ के तमाम एंकरों ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल के एक वीडियो बयान की मनमानी, उलट-पुलट व्याख्या करते हुए न्यूज़लॉन्ड्री पर हमला बोल दिया. कीचड़ उछालने का उपक्रम हुआ, लेकिन उसी दिन शाम होते-होते एबीपी न्यूज़ की कलई खुल गई. मुंबई के बांद्रा इलाके में भारी संख्या में लोग इकट्ठा हो गए. इस भीड़ को उकसाने वाली तमाम अफवाहों में एक महत्वपूर्ण भूमिका एबीपी समूह के मराठी चैनल एबीपी माझा की रही.
इस त्वरित दोराहे पर खड़े एबीपी न्यूज़ के तमाम एंकरों ने मुंह छुपाने की कवायद के तहत मुंबई की घटना में साजिश और षडयंत्र जैसे तमाम नकाब चेहरे पर लगाए लेकिन अपनी गलती स्वीकार करने का नैतिक साहस नहीं दिखा पाए.
10 अप्रैल को एबीपी न्यूज़ ने आईसीएमआर यानि भारत की शीर्ष मेडिकल संस्था इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रीसर्च के हवाले से एक ख़बर दिखाई. ख़बर का लब्बोलुआब यह था कि अगर प्रधानमंत्री ने समय रहते लॉकडाउन घोषित नहीं किया होता तो 15 अप्रैल तक देश में कोरोना मरीजों की संख्या 8.20 लाख तक पहुंच जाती.
क्या आईसीएमआर ने ऐसी कोई रीसर्च की है?
न्यूज़लॉन्ड्री ने तमाम पक्षों से बातचीत में पाया कि ऐसा कोई शोध आईसीएमआर ने नहीं किया है. जानिए क्या है ये पूरा विवाद, जिसे फेक न्यूज़ की शक्ल में एबीपी न्यूज़ ने चलाया.
दूसरी तरफ मुंबई की घटना ने एक बार फिर से तमाम चैनलों के सांप्रदायिक चेहरे को बेनकाब किया. टिप्पणी में आपको टीवी और मीडिया के अंडरवर्ल्ड की ऐसी ही कई दिलचस्प जानकारियां मिलेंगी.