NL Charcha
चर्चा 251: धीरेन्द्र शास्त्री व समाज में आस्था के नाम पर अंधविश्वास
इस हफ्ते की चर्चा का मुख्य विषय मध्यप्रदेश छतरपुर स्थित बागेश्वर धाम बाबा धीरेंद्र शास्त्री और आस्था के नाम पर बेचा जा रहा अंधविश्वास रहे. इस हफ्ते की सुर्खियों में पद्म विभूषण पुरस्कारों के वितरण, बीबीसी डॉक्यूमेंट्री के प्रदर्शन को लेकर जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों की गिरफ्तारी, प्रस्तावित आईटी नियम संशोधन में एक और बड़े बदलाव, उद्योगपति गौतम अदाणी के संबंध में आई हिंडनबर्ग की रिपोर्ट और लेह के एसपी द्वारा पेश की गई रिपोर्ट शामिल रहीं.
इस हफ्ते की एनएल चर्चा में बतौर मेहमान हमारे साथ प्रशांत अद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक व वेदांत शिक्षक आचार्य प्रशांत, भारतीय तर्कशास्त्री एसोसिएशन के अध्यक्ष सनल एडमार्को, शार्दूल कात्यायन व वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी जुड़े. चर्चा का संचालन अतुल चौरसिया ने किया.
चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल आचार्य प्रशांत से सवाल करते हैं कि एक 25 - 26 वर्ष का नौजवान दावा करता है कि वह अपनी शक्तियों से साधना से या तपस्या से लोगों की किस्मत बदल सकता है, उसको बहुत सारी चीजों का इलहाम है या दैवीय ज्ञान होता है, जिससे वह क्या होने वाला है और अतीत में क्या हुआ है सब बता सकता है. ये संभव भी है या इसमें आप किसी तरह की खामी देखते हैं या लोगों को किसी तरह से छलने की एक प्रवृत्ति देखते हैं?
अतुल के सवाल के जवाब में प्रशांत कहते हैं, “दूसरे के विचारों को पढ़ पाना, ये न तो आध्यात्मिक तौर पर और न ही वैज्ञानिक तौर पर संभव है. हां वैज्ञानिक तौर पर उपकरणों वगैरह का इस्तेमाल करके ब्रेन की केमिकल इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को पढ़ सकते हैं लेकिन उसमें भी ऐसा नहीं है कि आप साफ साफ विचारों को ही पढ़ लें. और इस तरह का कोई भी विषय आध्यात्मिक तो बिल्कुल भी नहीं है.”
आगे आचार्य, अध्यात्म को परिभाषित करते हुए कहते हैं, “स्वयं को जानना ही अध्यात्म है और अंततः अध्यात्म का लक्ष्य है मुक्ति कामना. अध्यात्म में मन पढ़ना या कामना पूर्ति जैसी कोई चीज होती ही नहीं.”
चर्चा में सनल कहते हैं कि, “इंसान तो इंसान है, चाहे वो पादरी हो, मौलवी हो या गुरु. इनके पास भी वही सामर्थ्य है जो दूसरे इंसानों के पास है, और कुछ भी नहीं है. हमारे समाज में ऐसी धारणा है कि कुछ लोगों के पास आम लोगों से ज्यादा शक्ति है इसलिए कई लोग इसका फायदा उठाने के लिए और आम लोगों को प्रसन्न करने के लिए ऐसा करते हैं जैसे कि बागेश्वर बाबा करते हैं. हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग हैं. आध्यात्म में जो लोग लगे हैं वो दूसरे हैं, ये लोग तो आम लोगों के अंधविश्वास का फायदा उठाने की कोशिश करने वाले लोग हैं.”
सनल के साथ ही अपनी बात जोड़ते हुए वरिष्ठ पत्रकार हृदयेश जोशी एक दृष्टांत का जिक्र करते हुए कहते हैं, “एक बार किसी ने स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस से कहा कि एक बाबा की खड़ाऊ पानी पर तैरती है, तो रामकृष्ण परमहंस ने जवाब दिया था कि इस चमत्कार की कीमत सिर्फ 2 पैसे है, तो इस चमत्कार का क्या फायदा है.”
हृदयेश आगे कहते हैं, “ये जो लोग भविष्य बताने के दावे कर रहे हैं वो ये क्यों नहीं बताते हैं कि अभी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने वाली थी और स्टॉक गिरने वाला है, लाखों का नुकसान होने वाला है.”
इसी विषय पर अपनी बात रखते हुए शार्दूल कहते हैं, “अपने समाज में लोग कथा वाचक, महंत योगी, तपस्वी, पुजारी, ज्योतिषी, तांत्रिक, संत, पुजारी के बीच अंतर नहीं समझते हैं. इनमे से हर कोई समाज के लिए बस महात्मा होता है. कम से कम मेरी नजर में किसी भी संत का पहला गुण होता है विनम्रता, जो सांसारिक मोह से अगर विरक्ति नहीं, तो उसकी कम से कम इच्छा तो रखता है. और वहीं यह धीरेंद्र शास्त्री अहंकार से भरी हुई भाषा बोलता है. वह संत नहीं है, कथावाचक भले ही अच्छा हो, कथा बांचना उनका काम है.”
टाइम कोड
00:00:00 - 00:07:40 - इंट्रो, हेडलाइंस व ज़रूरी सूचनाएं
00:07:41 - 01:23:00 - बाबा, धर्म और अंधविश्वास
1:22:59 - 01:30:24 - सलाह और सुझाव
01:30:30 - सब्सक्राइबर्स के मेल
पत्रकारों की राय क्या देखा पढ़ा और सुना जाए-
अतुल चौरसिया
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री : इंडिया द मोदी क्वेश्चन, भाग 2
आचार्य प्रशांत
आचार्य प्रशांत की किताब - वेदांत
हृदयेश जोशी
मनीषा द्वारा सीएसडीएस टीम के साथ किया गया इंटरव्यू
स्टीफेन हॉकिंग की किताब - द ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम
शार्दूल कात्यायन
हृदयेश जोशी की रिपोर्ट - उत्तराखंड का जल शोक, बांधों की बलि चढ़ते गांव
शार्दूल द्वारा बीबीसी डॉक्यूमेंट्री का रिव्यू
Also Read
-
Can Amit Shah win with a margin of 10 lakh votes in Gandhinagar?
-
Know Your Turncoats, Part 10: Kin of MP who died by suicide, Sanskrit activist
-
In Assam, a battered road leads to border Gorkha village with little to survive on
-
‘Well left, Rahul’: In Amethi vs Raebareli, the Congress is carefully picking its battles
-
कच्छ, गुजरात: जातिगत भेदभाव का कुचक्र और दलितों का बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन