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दिल्ली सरकार की लोन योजना: दो छात्रों को मिला लोन और विज्ञापन पर खर्च हुए 19 करोड़
दिल्ली सरकार ने 2015 में “दिल्ली उच्च शिक्षा और कौशल विकास गारंटी योजना” शुरू की थी. इस योजना का मकसद, दिल्ली से 10वीं या 12वीं करने वाले छात्रों को कॉलेज में पढ़ाई करने हेतु 10 लाख रुपए तक के लोन की सुविधा उपलब्ध कराना है.
वित्त वर्ष 2021-22 में इस योजना का लाभ पाने के लिए 89 छात्रों ने आवेदन किया, जिसमें से केवल दो छात्रों को ही लोन मिला. योजना के तहत 10 लाख तक लोन मिलता है, ऐसे में अगर मान लिया जाए कि इन छात्रों को अधिकतम 20 लाख तक का लोन मिला होगा, तब भी दिल्ली सरकार के द्वारा किया विज्ञापन का खर्च योजना से कई गुना अधिक है. दिल्ली सरकार ने इस साल इस योजना के विज्ञापन पर 19 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. यह जानकारी न्यूज़लॉन्ड्री ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के जरिए हासिल की है.
12 जून 2015 को इस योजना की घोषणा करते हुए दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा था, ‘‘देश में पहली बार पेरेंट्स को, अपने बच्चों को हायर और स्किल एजुकेशन दिलाने के लिए फाइनेंस की चिंता नहीं करनी पड़ेगी. अभी तक लोग इस बात से डरे रहते थे कि अगर बच्चे को हायर एजुकेशन के लिए भेजें, तो पैसा कहां से आएगा? आज हम दिल्ली उच्च शिक्षा और कौशल विकास गारंटी योजना शुरू कर रहे हैं, इसके तहत सरकार उसके लोन की गारंटी लेगी.’’
सिसोदिया ने यह भी बताया कि अभी तक जिस ब्याज पर छात्रों को लोन मिलता था, इस योजना के तहत उससे 0.5 प्रतिशत कम ब्याज पर लोन दिए जाएंगे.
योजना के शुरू होने के एक साल बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस योजना को लेकर वेबसाइट लांच की. इस दौरान उन्होंने कहा, “पिछले साल स्कीम तो अनाउंस कर दी, लेकिन पहला साल होने से कई बाधाएं आईं. इसलिए वेबसाइट पर फार्म की सुविधा दे रहे हैं.”
हर साल कम होते गए लाभार्थी
मनीष सिसोदिया के दावे के विपरीत ये योजना आठ-नौ सालों में ही दम तोड़ती नजर आने लगी है. साल दर साल इससे लाभान्वित होने वाले छात्रों की संख्या में गिरावट आ रही है. आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक अब तक कुल 1139 छात्रों ने लोन के लिए अप्लाई किया, लेकिन महज 363 छात्रों को ही लोन मिला.
अगर साल दर साल इन आंकड़ों को देखें तो वित्त वर्ष 2015-16 में, जिस साल योजना की शुरुआत हुई, उस साल 58 छात्रों ने इस योजना के लिए आवेदन किया और सभी छात्रों को लोन मिला. वित्त वर्ष 2016-17 में 424 छात्रों ने लोन के लिए आवेदन किया और 176 को लोन मिला, 2017-18 में 177 छात्रों ने आवेदन किया और 50 छात्रों को लोन मिला.
वित्त वर्ष 2018-19 में 139 छात्रों ने लोन के लिए आवेदन किया और 44 को मिला, 2019-20 में 146 छात्रों ने इस ऋण के लिए अर्ज़ी दी लेकिन सिर्फ 19 को ही लोन मिल पाया, वित्त वर्ष 2020-21 में 106 छात्रों ने आवेदन किया और सिर्फ 14 को लोन मिला और बीते वित्त वर्ष 2021-22 में लोन के लिए आवेदन करने वाले छात्रों की संख्या केवल 89 थी और महज 2 छात्रों को ही लोन मिला.
वित्त वर्ष 2019-20, जिस साल सिर्फ 19 छात्रों को बैंको ने लोन दिया, उसी साल मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने 13 बैंक के अधिकारियों के साथ इस योजना को लेकर बैठक भी की थी.
तमाम दावों के बावजूद आवेदन करने वाले छात्रों में से महज 31 प्रतिशत को इस योजना का लाभ मिला. हमने आरटीआई के जरिए यह भी जानने की कोशिश की, कि आखिर जिन छात्रों ने आवेदन किया उन्हें लाभ क्यों नहीं मिला? इसके जवाब में दिल्ली हायर एजुकेशन के सेक्शन अफसर ने बताया, ‘‘बैंक नियमों के अनुसार कई कारण हैं.’’
जब मनीष सिसोदिया इस योजना की घोषणा कर रहे थे तब उनके साथ एक महिला अधिकारी भी मौजूद थीं. वे कहती हैं, ‘‘इस स्कीम में न किसी को लेटरल देना है, न मार्जिन मनी देना है, न ही थर्ड पार्टी गारंटी देनी है और न ही प्रोसेसिंग चार्ज देना है.’’
2016 में, जब इस योजना की वेबसाइट को लांच किया गया, तो सिसोदिया ने कहा था कि पोर्टल के आने से बैंक जाने की जरूरत नहीं होगी. सब कुछ भर कर बस बैंक में प्रिंट आउट जमा कराना होगा. बैंक बिना कारण लोन के लिए मना नहीं कर सकेगा.
इस सब के बावजूद इतनी कम संख्या में छात्रों को लाभ क्यों मिला? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने मनीष सिसोदिया को फ़ोन किया लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई. हमने उन्हें अपने सवाल भेजे हैं, अगर उनकी ओर से जवाब आता है तो खबर में जोड़ दिया जाएगा.
एक साल में विज्ञापन पर 19 करोड़ रुपए खर्च
एक तरफ जहां “दिल्ली उच्च शिक्षा और कौशल विकास गारंटी योजना” का लाभ बहुत कम छात्रों को मिल पाया, वहीं सरकार ने इसके विज्ञापन पर करोड़ों रुपए खर्च कर दिए. योजना के प्रचार के लिए प्रिंट और टेलीविजन मीडिया में विज्ञापन दिए गए.
न्यूज़लॉन्ड्री ने आरटीआई के जरिए यह जानकारी मांगी थी कि योजना की शुरुआत से लेकर अब तक इसके विज्ञापन पर कितने रुपए खर्च किए गए. जवाब में सिर्फ वित्त वर्ष 2021-22 का ही आंकड़ा दिया गया. जिसके मुताबिक इस दौरान प्रिंट मीडिया में 46 लाख 22 हज़ार 685 रुपए और टेलीविजन मीडिया को 18 करोड़ 81 लाख 618 रुपए के विज्ञापन दिए गए. यानी कुल मिलाकर 19 करोड़ 27 लाख रुपए योजना के विज्ञापन पर खर्च हुए, जबकि इस साल योजना का लाभ सिर्फ दो छात्रों को मिला.
हमने इस विषय पर भी मनीष सिसोदिया से सवाल किए हैं.
इस योजना के तहत कम छात्रों को मिले लाभ और विज्ञापन पर हुए खर्च को लेकर भाजपा नेता हरीश खुराना कहते हैं, ‘‘भाजपा हमेशा कहती है कि अरविंद केजरीवाल घोषणा और विज्ञापन मंत्री हैं. सीएजी ने हाल ही में बताया कि ऐसी 39 योजनाएं हैं, जिसकी घोषणा दिल्ली सरकार ने की लेकिन वो जमीन पर नहीं उतरी हैं. यह दिल्ली सरकार का शिक्षा मॉडल है. केजरीवाल जी जगह-जगह जाकर गारंटी की बात कर रहे हैं. अगर ऐसी गारंटी है तो भगवान ही मालिक है.’’
यह पहला मौका नहीं है जब दिल्ली सरकार ने योजना की लागत से ज़्यादा उसके विज्ञापन पर खर्च किया है. न्यूज़लॉन्ड्री ने ही अपनी रिपोर्ट में बताया था कि प्रदूषण से निजात दिलाने के लिए दिल्ली सरकार ने बायो डी-कंपोजर का छिड़काव कराया था. जहां दो सालों में इस छिड़काव पर 68 लाख रुपए खर्च हुए, वहीं इस योजना के विज्ञापनों पर 23 करोड़ रुपए खर्च किए गए. इसी प्रकार हवा साफ करने के लिए कनॉट प्लेस में स्मॉग टॉवर लगवाए गए थे. ये टॉवर लगाने में 19 करोड़ रुपए खर्च हुए, वहीं इसके विज्ञापन पर सरकार ने 5.58 करोड़ रुपए खर्च किए.
बता दें कि वित्त वर्ष 2021-22 में दिल्ली सरकार ने विज्ञापन पर 490 करोड़ रुपए खर्च किए हैं.
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