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क्या बुली बाई मामले में मुंबई पुलिस की कार्रवाई ने दिल्ली पुलिस को सुल्ली डील्स में कार्रवाई के लिए मजबूर किया?
4 जुलाई, 2021 को पहली बार ‘सुल्ली डील्स’ एप के बारे में लोगों को पता चला. इस एप पर मुस्लिम महिला पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और कलाकारों की ऑनलाइन नीलामी की जा रही थी. मामला सामने आने के बाद कई महिलाओं, राष्ट्रीय महिला आयोग, दिल्ली महिला आयोग ने दिल्ली पुलिस को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की थी. दिल्ली पुलिस ने 8 जुलाई को इस मामले में पहली एफआईआर दर्ज की.
दिल्ली पुलिस के पीआरओ चिन्मय बिस्वाल कहते हैं, ”सुल्ली डील्स एप के बारे में राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीआरपी) पर प्राप्त हुई एक शिकायत के आधार पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी.”
पुलिस ने आईपीसी की धारा 354ए के तहत केस दर्ज किया. हालांकि इसके बाद जुलाई से लेकर 9 जनवरी, 2022 तक इस मामले में न तो कोई प्रगति हुई न कार्रवाई देखने को मिली. सुल्ली डील्स का कारवां 1 जनवरी को ‘बुली बाई’ तक पहुंच गया. बुली बाई ऐप में भी पहले की ही तरह मुस्लिम महिलाओं की फोटो लगाकर उनकी बोली लगाई जा रही थी. यह मामला सामने आने के बाद एक बार फिर से महिलाओं ने कड़ा विरोध किया. शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट कर भारत सरकार से कार्रवाई करने की मांग की. इसके बाद केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने ट्वीट कर कहा, "भारत सरकार इस मामले पुलिस प्रशासन साथ काम कर रही है.”
बुली बाई मामले में शिकायत के बाद मुंबई पुलिस ने जांच शुरू की. 1 जनवरी को मामला सामने आया और तीन जनवरी को मुंबई पुलिस ने इंजीनियरिंग के एक छात्र विशाल कुमार को बेंगलुरु से गिरफ्तार किया गया. इसके अगले ही दिन मुंबई पुलिस ने एक और आरोपी लड़की को उत्तराखंड से गिरफ्तार किया.
मुंबई पुलिस द्वारा गिरफ्तारी करने तक दिल्ली पुलिस ने न तो सुल्ली डील्स, ना ही बुली बाई एप मामले में कोई गिरफ्तारी की थी. जबकि मामला दोनों राज्यों की पुलिस के संज्ञान में 1 जनवरी को ही आ गया था.
बुली बाई एप का मामला सामने आने के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को पत्र लिखकर कहा, “यह निराशाजनक है कि पिछले सुल्ली डील्स मामले में भी जांच में कोई प्रगति नहीं हुई.”
बुली बाई एप मामले में दिल्ली साउथ-ईस्ट जोन साइबर सेल द्वारा दर्ज केस को चार जनवरी को ‘इंटेलीजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक ऑपरेशन्स’ इकाई (आईएफएसओ) को ट्रांसफर कर दिया गया. अगले दिन पांच जनवरी को लगभग आठ महीने पुराना ‘सुल्ली डील्स’ वाला मामला भी आईएफएसओ को ट्रांसफर कर दिया गया.
न्यूज़लॉन्ड्री से पांच जनवरी को बात करते हुए दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता चिन्मय बिस्वाल कहते हैं, “सुल्ली डील्स मामले की जांच चल रही है. हमें गृह मंत्रालय से परस्पर कानूनी सहायता संधि प्रक्रिया (एमएलएटी) की मंजूरी मिल गई है. आईएफएसओ इस मामले की जांच कर रही है.”
कब बढ़ी जांच की रफ्तार?
5 जनवरी को सुल्ली डील्स केस के साथ-साथ बुली बाई केस आईएफएसओ को ट्रांसफर कर दिया गया. 6 जनवरी को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने बुली बाई एप मामले में मुख्य आरोपी और मास्टमाइंड नीरज बिश्नोई को असम के जोरहाट से गिरफ्तार कर लिया. दोनों मामलों में अभी तक यह दिल्ली पुलिस की पहली कार्रवाई थी.
अचानक से दिल्ली पुलिस ने बुली बाई में गिरफ्तारी कर सभी को चौंका दिया. इसके दो दिन बाद ही दिल्ली पुलिस ने सुल्ली डील्स एप के मास्टरमाइंड ओंकारेश्वर ठाकुर को इंदौर से गिरफ्तार कर लिया. पुलिस के मुताबिक, वह ट्विटर पर एक ट्रेड ग्रुप का सदस्य था. इसी में मुस्लिम महिलाओं को बदनाम करने का आइडिया शेयर किया गया था.
इस बात को लेकर सारे लोग हैरान रह गए कि जिस मामले में दिल्ली पुलिस ने जुलाई से लेकर जनवरी तक कोई कार्रवाई नहीं की थी, उसमें अचानक से कैसे अतिसक्रिय हो गई. इसको लेकर दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “अभी सभी टीमें मिलकर काम कर रही हैं इसलिए कार्रवाई में तेजी आई है. दूसरी बात हमारी टेक्निकल टीम ने पहले से कई गुना अच्छा काम किया है. तेजी का कारण है जांच को लेकर पुलिस का एप्रोच और वरिष्ठ अधिकारियों का कार्रवाई करने को लेकर आदेश.”
सवाल उठता है जिस सुल्ली डील्स मामले में छह महीने से कोई कार्रवाई नहीं हुई उस मामले में कैसे ओंकारेश्वर ठाकुर की अचानक से गिरफ्तार हो गई. इस सवाल पर जांच से जुड़े एक अधिकारी गोपनीयता की शर्त पर कहते हैं, “नीरज बिश्वोई के लैपटॉप डेटा में बुली बाई एप के साथ-साथ सुल्ली डील्स एप के बारे में जानकारी थी. जब हमने जांच की तो उसी से ओंकारेश्वर ठाकुर के बारे में पता चला. उसने ही सुल्ली डील्स एप को बनाया था. वह आईटी एक्सपर्ट है. हालांकि उसने अपने लैपटॉप से एप से जुड़ी सभी जानकारियों को डिलीट कर दिया है.”
अधिकारी आगे कहते हैं, “इस मामले में 30 ट्विटर हैंडलों की पहचान हुई है, जिनकी जांच की जा रही है. जल्द ही और लोगों को भी गिरफ्तार किया जाएगा.”
एक अहम सवाल है कि बुली बाई एप के बारे में जानकारी आने के दो दिनों के अंदर जब मुंबई पुलिस कार्रवाई करके लोगों को गिरफ्तार कर सकती है, तो दिल्ली पुलिस को सुल्ली डील्स में इतना समय क्यों लगा?
इस पर आईएफएसओ के डीसीपी केपीएस मल्होत्रा कहते हैं, “गिटहब से सुल्ली डील्स के मामले में कोई जानकारी नहीं मिली. बुली बाई मामले में भी गिटहब से कोई जानकारी नहीं मिली, मुंबई पुलिस ने जो गिरफ्तारी की है वह ट्विटर पर एप को लेकर ट्वीट करने वालों को ट्रैक करके किया है. जबकि हमने बुली बाई मामले में एप पर सोर्स कोड लिखने वाले को गिरफ्तार किया है. इस मामले में गिरफ्तारियां इसलिए भी हो पाईं क्योंकि इस बार हमने टेक्निकल जांच की, और वह सुल्ली डील्स मामले से ज्यादा उच्च स्तर की थी.”
वह आगे कहते हैं, “बुली बाई मामले में हमने टेक्निकल जांच एक जनवरी से ही करनी शुरू कर दी थी, यानी शिकायत आने से पहले ही. इस बार हमें इंडियन कम्प्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी) की मदद मिली. हमें गिटहब और ट्विटर से कोई मदद नहीं मिली. फिर भी हमने मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर लिया.”
सुल्ली डील्स मामले में आईपी एड्रेस को ट्रेस करके कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इस पर डीसीपी मल्होत्रा कहते हैं, “अब मुमकिन नहीं था कि छह महीने पहले के आईपी एड्रेस को ट्रैक किया जा सके वह समय निकल गया था. हमने गिटहब से जानकारी मांगने के लिए एमएलएटी के जरिए अमेरिका के जस्टिस विभाग को भेजा है.”
क्या है एमएलएटी और कैसे मिलती है अनुमति?
गृह मंत्रालय के दिसंबर 2019 के एक पत्र के मुताबिक भारत का कुल 42 देशों के साथ परस्पर कानूनी सहायता संधि (एमएलएटी) है. इसका उद्देश्य परस्पर कानूनी सहायता के माध्यम से आतंकवाद से संबंधित अपराधों समेत अन्य अपराधों की जांच और अभियोजन में दोनों देशों की क्षमता और प्रभावशीलता में वृद्धि करना है.
गिटहब एक अमेरिकी कंपनी है, इसलिए कंपनी ने सीआरपीसी की धाराओं के तहत मांगी गई जानकारी को साझा नहीं किया. इसलिए दिल्ली पुलिस ने एमएलएटी के तहत कंपनी से जानकारी मांगी. भारत ने अमेरिका के साथ साल 2005 में यह संधि की थी.
गृह मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार, किसी भी जांच एजेंसी को राज्य सरकार की अनुमति के बाद एक प्रपोजल तैयार करना होता है जो लीगल सेक्शन, केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजा जाता है. इसके बाद लीगल सेक्शन उस प्रपोजल की जांच करता है. जिसके बाद वह जांच एजेंसी को कोर्ट से अनुमति पत्र लेने के लिए कहता है. कोर्ट से अनुमति पत्र मिलने के बाद जांच एजेंसी उसे गृह मंत्रालय को भेजती है. गृह मंत्रालय एडिशनल डायरेक्टर (आईपीसीसी) के जरिए वह संबंधित देश को पत्र भेजता है.
सुल्ली डील्स मामले में एमएलएटी की भूमिका
डीसीपी केपीएस मल्होत्रा न्यूज़लॉन्ड्री को कहते हैं, “दिल्ली पुलिस ने अगस्त में एमएलएटी के लिए आवेदन किया था. हमें दिल्ली सरकार से 29 दिसंबर को अनुमति पत्र मिला, 31 दिसंबर को सीएमएम कोर्ट से अनुमति पत्र मिला, जिसके बाद हमने इंटरपोल के द्वारा 5 जनवरी को अमेरिका भेज दिया.”
क्या यह महज इत्तेफाक है कि बुली बाई मामले के समय में ही दिल्ली पुलिस को एमएलएटी मामले की अनुमति मिली? इस पर मल्होत्रा कहते हैं, “हां, यह महज इत्तेफाक हो सकता है. हालांकि हमें दिल्ली सरकार की अनुमति 29 दिसंबर को ही मिल गई थी.”
एक साइबर एक्सपर्ट के मुताबिक आज की दुनिया में ऑनलाइन अपराध करने वालों तक पहुंचना बहुत मुश्किल नहीं है. यह निर्भर करता है कि पुलिस किस मामले में कार्रवाई करना चाहती है और किस मामले में नहीं. दिल्ली पुलिस का रवैया सुल्ली डील्स मामले में बहुत ढ़ीला रहा है. वह जांच में कोताही कर रही थी, वरना अभी तक गिरफ्तारी हो गई होती.
बता दें कि राकेश अस्थाना सुशांत सिंह ड्रग्स मामले की जांच के दौरान एनसीबी के डीजी थे. उन्होंने ही केपीएस मल्होत्रा के अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था. मल्होत्रा एनसीबी के जोनल डायरेक्टर थे. उन्होंने ड्रग मामले की जांच की थी.
अगस्त 2021 में अस्थाना को दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बनाया गया. जिस पर काफी विवाद भी हुआ था. उनकी नियुक्ति को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती भी दी गई थी. हालांकि हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया. केपीएस मल्होत्रा की नियुक्ति स्पेशल सेल में सितंबर महीने में की गई है.
एमएलएटी की प्रकिया में देरी के लिए जिम्मेदार कौन?
परस्पर कानूनी सहायता मिलने में हुई देरी पर उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, “इस पूरी प्रक्रिया में कुल 45 दिन लगते हैं. 15 दिन भारत में अनुमति लेने में और 30 दिन विदेश से जवाब आने में. इस मामले में अगर पांच महीने भारत में ही अनुमति मिलने में समय लग गया तो इसका मतलब है कि पुलिस इस मामले को ठीक से फॉलो नहीं कर रही थी.”
विक्रम सिंह कहते हैं, “एमएलएटी में अगर इतना समय लग गया तो इसका मतलब है कि इसमें पुलिस का कोई ना कोई स्वार्थ है. दिल्ली में तो दो से तीन दिन में प्रक्रिया को अनुमति मिल जाती है.”
दिल्ली पुलिस ने 5 जनवरी को इंटरपोल के जरिए पत्र भेजा और 8 जनवरी को पुलिस ने पहली गिरफ्तारी कर ली. क्या इतनी जल्दी जवाब आ जाता है? इस पर पूर्व डीजीपी कहते हैं, “विदेशी एजेंसियां अपना समय लेती हैं. वह इतना जल्दी जवाब नहीं भेजती हैं.”
जब हमने सुल्ली डील्स मामले में जांच कर रही टीम से जुड़े अधिकारी पवन कालरा से पूछा कि, क्या गिटहब से जानकारी मिलने के बाद आप ने ओंकारेश्वर ठाकुर की गिरफ्तारी की या बिना जानकारी मिले? तो उन्होंने इसका जवाब नहीं में दिया. इसके बाद हमने डीसीपी मल्होत्रा को फोन किया लेकिन वह व्यस्त थे.
उधर इंदौर के न्यूयॉर्क सिटी में रहने वाले युवक के पिता अखिलेश ठाकुर कहते हैं, “दिल्ली पुलिस के दो पुलिसकर्मी आए थे और मेरे बेटे के साथ उसका मोबाइल और लैपटॉप भी साथ ले गए. मेरे बेटे को फंसाया जा रहा है.”
हमने और जानकारी के लिए ओंकारेश्वर ठाकुर के भाई को फोन लगाया. वह कहते हैं, “मैं एक प्राइवेट कंपनी में काम करता हूं. मैं आप से बात नहीं कर सकता. मेरी नौकरी चली जाएगी, इसलिए मेरा नाम भी मत छापिएगा.”
दिल्ली पुलिस ने कहा कि उसे 29 दिसंबर को एमएलएटी प्रकिया की अनुमति मिली है. तो हमने इसमें हुई देरी का पता लगाने के लिए दिल्ली सरकार के कानून विभाग, गृह विभाग के सचिव को सात जनवरी को मेल भेजा और फोन पर भी संपर्क किया. प्रिंसिपल सचिव के ऑफिस के कहा गया कि मेल को आगे भेजा गया है. संबंधित विभाग आपको जवाब भेज देगा. हमें उनके जवाब का इंतजार है.
इसके अलावा हमने केंद्रीय गृह मंत्रालय के लीगल सेल, एडिशनल डायरेक्टर (आईपीसीसी) सीबीआई, और अजय भल्ला के ऑफिस को भी पांच जनवरी को मेल किया था. जिसके बाद फोन कर तीनों विभागों से मेल का जवाब देने का अनुरोध भी किया, लेकिन खबर लिखे जाने तक किसी भी विभाग का कोई जवाब नहीं आया है.
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